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डेली न्यूज़

  • 22 Nov, 2024
  • 62 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन क्रेडिट

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन क्रेडिट, कार्बन बाज़ार, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल, ग्रीनहाउस गैसें, ग्रीनवाशिंग

मेन्स के लिये:

कार्बन बाज़ार और उनकी प्रभावशीलता, कार्बन बाज़ारों में पर्यावरण अखंडता और ग्रीनवाशिंग, भारत में कार्बन क्रेडिट बाज़ार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

नेचर जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि केवल 16% कार्बन क्रेडिट के परिणामस्वरूप वास्तविक उत्सर्जन में कमी आती है, जिससे कार्बन बाज़ारों की प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न होता है। 

अध्ययन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • कार्बन क्रेडिट की अप्रभावीता: अध्ययन ने क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 तंत्र के तहत एक अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बराबर कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने वाली परियोजनाओं का विश्लेषण किया और पता चला कि इनमें से केवल 16% क्रेडिट वास्तविक उत्सर्जन में कमी के अनुरूप थे।
  • HFC-23 उन्मूलन में सफलता: सबसे प्रभावी उत्सर्जन में कमी उन परियोजनाओं में देखी गई जो हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC)-23, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, के उन्मूलन पर केंद्रित थीं। 
    • इन परियोजनाओं से प्राप्त लगभग 68% ऋणों के परिणामस्वरूप वास्तविक उत्सर्जन में कटौती हुई, जिससे ये परियोजनाएँ समीक्षित परियोजनाओं में सर्वाधिक सफल रहीं।
  • अन्य परियोजनाओं की चुनौतियाँ: वनों की कटाई से बचने वाली परियोजनाओं की प्रभावशीलता दर केवल 25% रही।
    • "वनों की कटाई से बचाव परियोजना" एक संरक्षण प्रयास है जो वनों को कटने से बचाता है तथा CO2 के उत्सर्जन को रोकता है जो वृक्षों के कट जाने पर उत्पन्न होता है।
    • सौर कुकर परिनियोजन परियोजनाओं की प्रभावशीलता और भी कम रही, जहाँ मात्र 11% क्रेडिट से उत्सर्जन में कमी आई।
  • अध्ययन में पाया गया कि क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत कई परियोजनाएँ "अतिरिक्तता" नियम का पालन करने में विफल रहीं, जिसका अर्थ है कि कार्बन क्रेडिट से प्राप्त राजस्व के बिना भी उत्सर्जन में कमी हो सकती थी।
    • अतिरिक्तता के लिये ऐसी परियोजनाओं की आवश्यकता होती है जो उत्सर्जन को उससे भी अधिक कम कर दें जो सामान्य व्यवसाय परिदृश्य में होता। 
    • अध्ययन में वर्तमान आकलन में त्रुटियों को उजागर किया गया है, जिसमें कई क्योटो तंत्र गैर-अतिरिक्त कटौती के लिये क्रेडिट जारी करते हैं, जिससे उत्सर्जन दावे कमजोर हो जाते हैं।
    • ये मुद्दे पेरिस समझौते, 2015 के तहत अधिक मज़बूत कार्बन व्यापार तंत्र की आवश्यकता पर बल देते हैं, जिस पर बाकू (Baku) में आयोजित होने वाले COP29 में प्रगति अपेक्षित है।
  • सिफारिशें: अध्ययन में उत्सर्जन में कमी को मापने के लिये  सख्त पात्रता मानदंड और बेहतर मानकों और पद्धतियों की मांग की गई है।
    • जिन परियोजनाओं में अतिरिक्तता की संभावना अधिक हो, उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
    • अध्ययन में पेरिस समझौते के अंतर्गत मज़बूत कार्बन व्यापार तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षा उपाय किये गए हैं कि क्रेडिट वास्तविक उत्सर्जन में कमी को प्रतिबिंबित करें।

कार्बन क्रेडिट क्या हैं?

  • कार्बन क्रेडिट या कार्बन ऑफसेट से तात्पर्य कार्बन उत्सर्जन में कमी या निष्कासन से है, जिसे कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य टन (tCO2e) में मापा जाता है। 
    • प्रत्येक कार्बन क्रेडिट एक टन CO2 या उसके समतुल्य उत्सर्जन की अनुमति देता है।
    • ये क्रेडिट उन परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं जो कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित या कम करते हैं और सत्यापित कार्बन मानक (Verified Carbon Standard- VCS) और गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा प्रमाणित होते हैं

  • कार्बन बाज़ार: पेरिस समझौते के तहत स्थापित कार्बन बाज़ारों का उद्देश्य कार्बन क्रेडिट के व्यापार के लिये अधिक मजबूत, विश्वसनीय प्रणालियाँ बनाना और उत्सर्जन में कमी लाने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
    • पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत, देश मिलकर काम कर सकते हैं, उत्सर्जन कम करने वाली परियोजनाओं से प्राप्त कार्बन क्रेडिट को अन्य देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने के लिये स्थानांतरित कर सकते हैं।
  • कार्बन बाज़ार के प्रकार:
    • अनुपालन बाज़ार: राष्ट्रीय या क्षेत्रीय उत्सर्जन व्यापार योजनाओं (ETS) के माध्यम से स्थापित, जहाँ प्रतिभागियों को विशिष्ट उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य किया जाता है।
      • ये बाज़ार विनियामक ढाँचे द्वारा संचालित होते हैं और गैर-अनुपालन के लिये दंड लगाते हैं।
      • इसमें सरकारें, उद्योग और व्यवसाय शामिल हैं, जिन सभी को प्राधिकारियों द्वारा निर्धारित उत्सर्जन सीमाओं को पूरा करना होगा।
  • स्वैच्छिक बाज़ार: स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों में उत्सर्जन को कम करने की कोई औपचारिक बाध्यता नहीं होती है।
    • कंपनियाँ, शहर या क्षेत्र जैसे प्रतिभागी, अपने उत्सर्जन को संतुलित करने तथा जलवायु तटस्थता या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन जैसे स्थिरता लक्ष्यों को पूरा करने के लिये स्वेच्छा से कार्बन व्यापार में संलग्न होते हैं।
    • ऐसा अक्सर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल के हिस्से के रूप में या पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी का प्रदर्शन करके बाज़ार में लाभ हासिल करने के लिये किया जाता है।

  • कार्बन क्रेडिट के लाभ: वन संरक्षण या टिकाऊ भूमि प्रबंधन के उद्देश्य से बनाई गई परियोजनाएँ महत्त्वपूर्ण आवासों, जानवरों और पौधों की प्रजातियों को संरक्षित कर सकती हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ावा दे सकती हैं। कार्बन क्रेडिट टिकाऊ परियोजनाओं के वित्तपोषण में भी भूमिका निभा सकते हैं।

कार्बन क्रेडिट के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • अतिरिक्तता का पालन न करना: कार्बन क्रेडिट केवल उन परियोजनाओं के लिये दिया जाना चाहिये जो उत्सर्जन में प्राकृतिक रूप से होने वाली कमी से अधिक कमी हासिल करती हैं। इस अवधारणा को अतिरिक्तता के रूप में जाना जाता है, जो कार्बन क्रेडिट का एक मुख्य सिद्धांत है। 
    • स्पष्ट अतिरिक्तता नियमों के अभाव के कारण, उन परियोजनाओं को क्रेडिट दिया जाता है, जो वैसे भी उत्सर्जन में उतनी ही कमी ला सकती थीं, जिससे कार्बन बाज़ार कम प्रभावी हो जाता है।
  • ग्रीनवाशिंग: कुछ कंपनियाँ अपने परिचालन में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये बिना पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार दिखने के लिये कार्बन क्रेडिट का दावा करती हैं, इस प्रथा को ग्रीनवाशिंग के रूप में जाना जाता है। 
    • इससे कार्बन क्रेडिट बाज़ार की विश्वसनीयता कम हो जाती है तथा उपभोक्ताओं और निवेशकों को वास्तविक पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में गुमराह किया जा सकता है।
  • बाज़ार पारदर्शिता: कार्बन क्रेडिट किस प्रकार उत्पन्न और कारोबार किया जाता है, इसमें पारदर्शिता का अभाव बाज़ार की वैधता पर संदेह पैदा कर सकता है।
    • वास्तविक समय पर निगरानी और स्वतंत्र ऑडिट का अभाव प्रणाली की अखंडता को कमज़ोर करता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन में कमी की दोहरी गणना जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • असमान पहुँच: विकासशील देशों को कार्बन क्रेडिट उत्पादन में भाग लेने के लिये संसाधनों या प्रौद्योगिकी तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे बाज़ार से लाभ उठाने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है। यह वैश्विक जलवायु प्रयास में असमानताओं को कायम रख सकता है।
  • भारत के कार्बन क्रेडिट बाज़ार के सामने प्रमुख चुनौतियाँ:
    • उद्योग तत्परता और अनुपालन लागत: निगरानी और सत्यापन प्रणालियों की उच्च लागत भारत में छोटी परियोजनाओं, विशेषतः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को सीमित करती है, जो सालाना लगभग 110 मिलियन टन CO2 उत्पन्न करते हैं, जिससे कार्बन बाज़ार में उनकी भागीदारी बाधित होती है।
    • विनियामक और निरीक्षण तंत्र: भारत का कार्बन बाज़ार, हालाँकि अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है, प्रभावी होने के लिये मजबूत प्रवर्तन और घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मानकों के साथ संरेखण की आवश्यकता है। 

कार्बन क्रेडिट से संबंधित भारत की पहल

  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): भारत ने घरेलू कार्बन बाज़ार की स्थापना को शामिल करने के लिये वर्ष 2023 में अपने NDC को अद्यतन किया।
  • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022: कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। यह भारत सरकार को घरेलू कार्बन बाज़ार स्थापित करने और नामित एजेंसियों को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र (CCC) जारी करने के लिये अधिकृत करने का अधिकार देता है।
    • CCTS एक एकीकृत भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) है जिसकी स्थापना कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के व्यापार के माध्यम से GHG उत्सर्जन को कम करने के लिये की गई है।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना 
  • नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC)
  • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम
  • निगरानी और सत्यापन: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) और भारतीय कार्बन बाज़ार के लिये राष्ट्रीय संचालन समिति (NSCICM) कठोर निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और सत्यापन प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्बन क्रेडिट की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।

आगे की राह

  • अतिरिक्तता को सुदृढ़ करना: यह सुनिश्चित करने के लिये कि क्रेडिट वास्तविक उत्सर्जन कटौती को दर्शाता है, कठोर अतिरिक्तता मानदंड लागू करना।
    • वास्तविक समय निगरानी और थर्ड पार्टी वेरीफिकेशन के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना: HFC-23 उन्मूलन जैसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देना जिन्होंने उच्च उत्सर्जन कटौती प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है। निम्न सफलता दर वाली कम प्रभाव वाली परियोजनाओं से बचना।
  • मज़बूत MRV सिस्टम स्थापित करना: विशेष रूप से छोटी परियोजनाओं के लिये स्केलेबल मॉनिटरिंग, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) सिस्टम में निवेश करें। विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये VCS या गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सहयोग करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना: पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 का अनुपालन सुनिश्चित करना तथा वैश्विक कार्बन बाज़ार मानकों को एकीकृत करना।
    • कार्बन बाज़ारों में प्रभावी रूप से भाग लेने के लिये विकासशील क्षेत्रों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कार्बन बाज़ार की अवधारणा का मूल्यांकन कीजिये। अतिरिक्तता में खामियाँ कार्बन क्रेडिट सिस्टम की अखंडता को कैसे प्रभावित करती हैं?"

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये (2023)

कथन - I: ऐसी संभावना है कि कार्बन बाज़ार, जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक सबसे व्यापक साधन बन जाए।

कथन-II: कार्बन बाज़ार संसाधनों को प्राइवेट सेक्टर से राज्य को हस्तांतरित कर देते हैं।

उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है।
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है।
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है।

उत्तर: B


प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: B


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ऑस्ट्रेलिया द्वितीय वार्षिक शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

जी-20, ग्रीन हाइड्रोजन, भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA, मेक इन इंडिया, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, AUSINDEX, पिच ब्लैक, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग।

मेन्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध, भारत-ऑस्ट्रेलिया महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी, महत्त्व, भारत-शिखर सम्मेलन।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में 2024 ग्रुप ऑफ 20 (G-20) शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-ऑस्ट्रेलिया द्वितीय वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया।

  • वर्ष 2025 में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी की पाँचवीं वर्षगाँठ से पहले, प्रधानमंत्रियों ने जलवायु परिवर्तन, व्यापार, रक्षा, शिक्षा एवं क्षेत्रीय सहयोग सहित क्षेत्रों में महत्त्वत्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला।

भारत-ऑस्ट्रेलिया द्वितीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

  • नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी: सौर ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) शुरू की गई
  • व्यापार और निवेश: भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA) की सफलता पर आधारित एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) विकसित करने के लिये प्रतिबद्धता, जिसके कारण दो वर्षों के भीतर आपसी व्यापार में 40% की वृद्धि हुई।
    • AIBX एक 4-वर्षीय कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य बाज़ार संबंधी जानकारी प्रदान करके और वाणिज्यिक साझेदारी को बढ़ावा देकर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देना है ।
    • प्रधानमंत्रियों ने 'मेक इन इंडिया' और 'फ्यूचर मेड इन ऑस्ट्रेलिया' के बीच अनुपूरकता पर प्रकाश डाला तथा रोज़गार सृजन, आर्थिक विकास को गति देने एवं भविष्य में समृद्धि सुनिश्चित करने की उनकी क्षमता पर बल दिया।
    • दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया-भारत व्यापार विनिमय (AIBX) कार्यक्रम को जुलाई 2024 से चार वर्षों के लिये बढ़ाए जाने का स्वागत किया।
  • बढ़ी हुई गतिशीलता: दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच गतिशीलता को आर्थिक विकास की कुंजी माना, उन्होंने अक्तूबर, 2024 में भारत के लिये ऑस्ट्रेलिया के वर्किंग हॉलिडे मेकर वीज़ा कार्यक्रम के शुभारंभ का स्वागत किया ।
  • उन्होंने प्रतिभाशाली युवा भारतीयों के लिए ऑस्ट्रेलिया में काम करने की नई योजना (MATES) के प्रारंभ होने की भी प्रतीक्षा की, जिसका उद्देश्य प्रारंभिक पेशेवरों की गतिशीलता को बढ़ावा देना और भारत के शीर्ष STEM  (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) स्नातकों तक ऑस्ट्रेलियाई उद्योग की पहुँच प्रदान करना है
    • रणनीतिक सहयोग: नेताओं ने वर्ष 2025 में रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग (JDSC) पर संयुक्त घोषणा को नवीनीकृत करने पर सहमति व्यक्त की, जो उनकी बढ़ी हुई रक्षा साझेदारी और रणनीतिक अभिसरण को दर्शाता है।
  • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग: दोनों देशों ने सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के अनुरूप एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये अपने समर्थन की पुष्टि की।
    • उन्होंने क्वाड ढाँचे के तहत निरंतर सहयोग का संकल्प लिया, जिसमें महामारी प्रतिक्रिया, साइबर सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों पर ज़ोर दिया गया।
    • पर्थ में वर्ष 2024 में होने वाला हिंद महासागर सम्मेलन और वर्ष 2025 में भारत की आगामी हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की अध्यक्षता समुद्री पारिस्थितिकी और सतत् विकास में आपसी प्रयासों को रेखांकित करती है।
    • दोनों देशों ने भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (FIPIC) ढाँचे के माध्यम से प्रशांत द्वीप देशों को समर्थन देने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

नोट: पहला वार्षिक शिखर सम्मेलन वर्ष 2023 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया, प्रधानमंत्रियों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने के लिये अपने समर्थन की पुष्टि की।

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी क्या है?

  • परिचय: जून, 2020 में, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित 'रणनीतिक साझेदारी' को 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' (CSP) तक बढ़ा दिया।
    • यह आपसी विश्वास, साझा लोकतांत्रिक मूल्यों तथा क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास एवं वैश्विक सहयोग जैसे क्षेत्रों में साझा हितों पर आधारित है।

CSP की मुख्य विशेषताएँ: 

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान सहयोग: चिकित्सा अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा पर सहयोग में वृद्धि।
    • समुद्री सहयोग: स्थायी समुद्री संसाधनों और अवैध मत्स्यन से निपटने पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त प्रयास।
    • रक्षा: "मालाबार" अभ्यास जैसे संयुक्त अभ्यास आयोजित करके सैन्य सहयोग का विस्तार करना तथा आम सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये पारस्परिक रसद समर्थन समझौते (MLSA) जैसे समझौतों के माध्यम से रसद सहायता प्रदान करना।
    • आर्थिक सहयोग: व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर पुनः कार्य करना, व्यापार, निवेश और बुनियादी ढांचे, शिक्षा और नवाचार में सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • कार्यान्वयन:  CSP में विभिन्न स्तरों पर नियमित वार्ताएँ शामिल हैं, जिनमें '2+2' प्रारूप में विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक शामिल है, वार्षिक शिखर सम्मेलन और मंत्रिस्तरीय बैठकों का उद्देश्य निरंतर सहयोग सुनिश्चित करना है।

भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA

  • वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना है। इसने भारत को ऑस्ट्रेलिया की 100% टैरिफ लाइनों तक तरजीही पहुँच प्रदान की, जिसमें रत्न, कपड़ा, चमड़ा और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। 
  • इसके जवाब में भारत ने कोयला और खनिज जैसे कच्चे माल सहित 70% से अधिक टैरिफ लाइनों तक तरजीही पहुँच की पेशकश की, जिससे दोनों देशों के व्यापारिक हितों को लाभ हुआ।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में प्रमुख मील के पत्थर क्या हैं?

  • द्विपक्षीय व्यापार: भारत ऑस्ट्रेलिया का 5 वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसके साथ वर्ष 2023 में 49.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।
    • भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया को निर्यात: परिष्कृत पेट्रोलियम, मोती और रत्न, आभूषण, तथा निर्मित वस्तुएँ।
    • ऑस्ट्रेलिया का भारत को निर्यात: कोयला, ताँबा अयस्क और सांद्रण, प्राकृतिक गैस, अलौह/लौह अपशिष्ट और स्क्रैप, तथा शिक्षा संबंधी सेवाएँ।
  • असैन्य परमाणु सहयोग: वर्ष 2014 में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे भारत को यूरेनियम निर्यात की अनुमति मिली। 
    • यह समझौता वर्ष 2015 में लागू हुआ, जिससे भारत की शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये यूरेनियम की आपूर्ति सुगम हो गयी।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा संबंधों को AUSINDEX, पिच ब्लैक जैसे संयुक्त अभ्यासों और वर्ष 2022 में जनरल रावत एक्सचेंज प्रोग्राम, एक सैन्य विनिमय कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से मज़बूत किया जा रहा है।
  • बहुपक्षीय सहभागिता: क्वाड पहल, IORA और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में सक्रिय भागीदारी।

निष्कर्ष

भारत और ऑस्ट्रेलिया ने साझा लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रेरित होकर अपने आर्थिक और सामरिक संबंधों को मज़बूत करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। CECA के विकास में देरी और क्षेत्रीय सुरक्षा के विकास जैसी चुनौतियों के बावजूद, दोनों देश अपनी साझेदारी को गहरा करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। निरंतर सहयोग के साथ, वे भविष्य में संबंधों को बढ़ाने के लिये अच्छी स्थिति में हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बदलती वैश्विक गतिशीलता के संदर्भ में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंधों के विकास का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न . निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया   
  2. कनाडा   
  3. चीन  
  4. भारत   
  5. जापान  
  6. यू.एस.ए.

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ASEAN) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5    
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5   
(d) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: C


Q. दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (ASEAN) के छह साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं, अर्थात् पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, कोरिया गणराज्य, जापान, भारत तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड।


भारतीय अर्थव्यवस्था

एक अवसर के रूप में भारत का व्यापार घाटा

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापार घाटा, जनजाति, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI), पूंजी खाता, चालू खाता, मेक इन इंडिया, बजट घाटा, भुगतान संतुलन, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, राष्ट्रीय रसद नीति (NLP), यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP), लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक, ग्लोबल वैल्यू चेन, प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI), एक्सपोर्ट हब के रूप में ज़िले

मेन्स के लिये:

व्यापार हित से जुड़े लाभ और चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत का व्यापार घाटा विनिर्माण की कमी का संकेत नहीं है बल्कि यह सेवाओं में मज़बूती के साथ निवेश के रूप में भारत के आकर्षण का प्रतीक है।

भारत के व्यापार घाटे की स्थिति क्या है?

  • व्यापार घाटा का आशय किसी देश द्वारा अपने निर्यात की तुलना में अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करना ह। यह उस राशि को दर्शाता है जिससे एक निश्चित अवधि में आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता है।
  • भारत का व्यापार परिदृश्य:
    • समग्र व्यापार घाटा: 121.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से घटकर 78.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) हो गया।
    • सेवा व्यापार: वित्त वर्ष 2024 में सेवा निर्यात 339.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर और सेवा व्यापार अधिशेष 162.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
      • विश्व सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5% (1993) से बढ़कर 4.3% (2022) हो गई, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर 7वाँ सबसे बड़ा सेवा निर्यातक बन गया।
    • वाणिज्य वस्तु (Merchandise) निर्यात: यह 776 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) रहा। वाणिज्य वस्तु व्यापार घाटा 264.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से घटकर 238.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) रह गया।
    • चालू खाता घाटा (CAD): 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 2023 में GDP का 2%) से घटकर 23.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 2024 में GDP का 0.7%) रह गया।
    • पूंजी खाता अधिशेष: विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) द्वारा संचालित शुद्ध प्रवाह 58.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से बढ़कर 86.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) हो गया।

क्यों भारत का व्यापार घाटा एक कमज़ोरी नहीं है?

  • सेवाओं में मज़बूती: भारत सेवाओं में वैश्विक अग्रणी है और उसने विशेष रूप से IT और फार्मास्यूटिकल्स में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ अर्जित किया है जिसके कारण वह वस्तुओं में व्यापार घाटा सहने में सक्षम है। 
    • सेवाओं में निर्यात अधिशेष से भारत अपनी अर्थव्यवस्था को अस्थिर किये बिना अधिक वस्तुओं का आयात करने में सक्षम होता है।
  • निवेश गंतव्य: भारत में विदेशी निवेश आकर्षित होने के परिणामस्वरूप पूंजी खाता अधिशेष होने से चालू खाता घाटा संतुलित होता है। 
    • इसलिए, चालू खाता घाटा भारत की निवेश आकर्षित करने की रणनीति का स्वाभाविक परिणाम है।
  • प्रतिस्पर्द्धी निर्यात: जब किसी देश का व्यापार घाटा बढ़ता है तो उसकी मुद्रा पर दबाव पड़ने से वह अन्य मुद्राओं की तुलना में कमज़ोर हो जाती है। 
    • अवमूल्यित मुद्रा देश के निर्यात को सस्ता बनाती है तथा विदेशी बाज़ारों में यह प्रतिस्पर्धी होने से निर्यात गतिविधि को बढ़ावा मिलता है।
  • संतुलित चालू खाता घाटा: भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2% के बराबर चालू खाता घाटा को संतुलित माना है। 
    • घाटे का यह स्तर देश की आर्थिक स्थिरता के लिए तत्काल खतरा पैदा नहीं करता, जब तक कि पूंजी प्रवाह घाटे के अनुरूप हो।
  • तुलनात्मक लाभ: भारत का व्यापार घाटा विनिर्माण में अकुशलता का संकेत नहीं है बल्कि यह तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत पर आधारित है।
    • तुलनात्मक लाभ का अर्थ है कि भारत उन चीजों का निर्यात करता है जिनमें वह सर्वश्रेष्ठ (जैसे सेवाएँ) है तथा उन वस्तुओं का आयात करता है जिनके उत्पादन में उसकी स्थिति कम बेहतर है।
  • विनिर्माण में वृद्धि: चालू खाता घाटा से विनिर्माण उत्पादन में वृद्धि की संभावना में बाधा नहीं आती है। 
    • मेक इन इंडिया पहल को समर्थन देने के लिए आयातित मशीनरी और इंजीनियरिंग सामान से भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण विस्तार को बढ़ावा मिलता है।
  • उच्च उपभोग क्षमता: वस्तुओं और सेवाओं का आयात करके कोई देश अपने नागरिकों को उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान कर सकता है जिसमें वे भी शामिल हैं जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हैं या जिनका घरेलू स्तर पर उत्पादन अधिक महंगा है तथा जिनसे जीवन स्तर को बेहतर हो सकता है।
  • आर्थिक लचीलापन: जब घरेलू उत्पादन मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होता है, तो आयात से इस कमी को पूरा किया जा सकता है, जिससे आर्थिक व्यवधानों को रोका जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को उनकी ज़रूरत की वस्तुओं तक पहुँच मिलती रहे।
  • आर्थिक एकीकरण: व्यापार घाटा वैश्विक आर्थिक एकीकरण को दर्शाता है, जो उद्योगों और उपभोक्ताओं को समर्थन देने वाले आयातों तक पहुँच को सक्षम बनाता है।

व्यापार घाटे के नुकसान क्या हैं?

  • आर्थिक संप्रभुता की हानि: निरंतर व्यापार घाटा विदेशी राष्ट्रों को घरेलू संपत्ति खरीदने (अवसरवादी अधिग्रहण) का मौका देता है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों पर नियंत्रण खोने का ज़ोखिम होता है और बाहरी प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है। उदाहरण के लिये, भारतीय कंपनियों का अवसरवादी अधिग्रहण।
  • उच्च बेरोज़गारी: खुली अर्थव्यवस्था में निरंतर व्यापार घाटे के कारण घरेलू व्यवसाय सस्ते आयातों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में असमर्थ हो सकते हैं, जिससे नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं और आर्थिक स्थिरता आ सकती है।
  • दोहरे घाटे की परिकल्पना: व्यापार घाटा प्रायः बजट घाटे से जुड़ा होता है, क्योंकि जब आयात को कवर करने के लिये निर्यात अपर्याप्त होता है, तो सरकार अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिये ऋण ले सकती है।
  • विऔद्योगीकरण: लगातार घाटे के कारण घरेलू विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट आ सकती है, क्योंकि घरेलू उद्योगों को सस्ते या उच्च गुणवत्ता वाले आयातों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है।
  • भुगतान संतुलन संकट: यदि व्यापार घाटे को ऋण लेकर वित्तपोषित किया जाता है, तो विदेशी निवेशकों का अचानक विश्वास खत्म होने से भुगतान संतुलन संकट उत्पन्न हो सकता है, जैसा कि वर्ष 1991 में भारत के साथ हुआ था।

संतुलित व्यापार के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  • निर्यात ऋण सहायता: बैंकों को किफायती और पर्याप्त निर्यात ऋण प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये, ताकि विदेशी बाज़ारों में बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था और प्रतिस्पर्द्धात्मकता हासिल की जा सके।
  • लॉजिस्टिक्स अवसंरचना: कम लागत पर घरेलू विनिर्माण को समर्थन देने के लिये लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में परिचालन को सुव्यवस्थित करने, लागत को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिये PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) जैसी पहलों का लाभ उठाना।
    • NLP का लक्ष्य वर्ष 2030 तक लॉजिस्टिक्स लागत को मौजूदा 13-14% से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद का 8% तक लाना है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): यह सुनिश्चित करना कि FTA आवश्यक आयातों के लिये बेहतर शर्तें प्रदान करें, जिससे देश घरेलू मांग को लागत प्रभावी ढंग से पूरा कर सके।
  • GVC भागीदारी: वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) में शामिल होकर, भारतीय कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखलाओं का हिस्सा बन सकती हैं, व्यापक ग्राहक आधार तक पहुँच प्राप्त कर सकती हैं और निर्यात मात्रा में वृद्धि कर सकती हैं।
  • घरेलू विनिर्माण: उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार और निर्यात केन्द्रों (DEH) के रूप में ज़िलों को मज़बूत करने की पहल से घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है तथा व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • उच्च मूल्य व्यापार: उच्च मूल्य वाली वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में वृद्धि से प्रति इकाई निर्यात पर अधिक राजस्व उत्पन्न होने से भारत के व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, टाटा मोटर्स और महिंद्रा इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियाँ उच्च मूल्य वाले इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का निर्यात, सौर पैनल जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का निर्यात बढ़ा सकती हैं।
  • निर्यात में विविधता: रक्षा उपकरण, एयरोस्पेस और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर पैनल, पवन टर्बाइन) जैसे क्षेत्रों में निर्यात का विस्तार करके, भारत अधिक राजस्व सृजन सुनिश्चित कर सकता है और व्यापार घाटे को कम कर सकता है।
  • स्वच्छता और पादप स्वच्छता संबंधी बाधाओं का समाधान: कीटनाशक अवशेष सीमा, संगरोध आवश्यकताओं और पशु स्वास्थ्य नियमों जैसी बाधाओं का समाधान करके, भारत अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देशों में नए बाज़ार खोल सकता है और अपने निर्यात को बढ़ा सकता है, जिससे व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के व्यापार घाटे में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये तथा इसे दूर करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन चालू खाता प्रदर्शित करता है/गठन करता है?(2014)

  1. व्यापार संतुलन 
  2. विदेशी संपत्ति
  3. अदृश्य का संतुलन
  4. विशेष आहरण अधिकार 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: C


प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से पूँजीगत लेखा की रचना करते हैं?

  1. विदेशी ऋण
  2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
  3. निजी प्रेषित धन
  4. पोर्टफोलियो निवेश

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) 1, 2 और 3
(b) 1, 2 और 4
(c) 2, 3 और 4
(d) 1, 3 और 4

उत्तर: B 


मेन्स

प्रश्न: सोने के लिये भारतीयों के उन्माद ने हाल के वर्षों में सोने के आयात में प्रोत्कर्ष (उछाल) उत्पन्न कर दिया है और भुगतान-संतुलन और रुपए के बाह्य मूल्य पर दबाव डाला है। इसको देखते हुए, स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के गुणों का परीक्षण कीजिये। (2015)


भूगोल

ताजे जल के भंडार में वैश्विक गिरावट

प्रिलिम्स परीक्षा के लिये:

राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, अल नीनो, आर्द्रभूमि, जलजनित रोग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, विश्व जल दिवस, अटल भू-जल योजना, जल शक्ति अभियान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, अलवणीकरण

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और जल की कमी, भारत का जल संकट, ताजे जल के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता, वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर जल तनाव का प्रभाव।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) - जर्मन GRACE (ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट) उपग्रहों के हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014 के बाद से पृथ्वी के कुल ताजे जल के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

नोट: GRACE नासा और जर्मनी का एक संयुक्त मिशन है, इसका लक्ष्य पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को मापना है, इसके लिये दो समान उपग्रहों का उपयोग किया जाता है जो पृथ्वी की लगभग 220 किमी की दूरी पर परिक्रमा करते हैं। ये उपग्रह विभिन्न भूभौतिकीय प्रक्रियाओं जैसे महासागरीय धाराओं, भू-जल भंडारण, बर्फ के आवरण में परिवर्तन और भूकंप जैसी ठोस पृथ्वी की गतिविधियों के कारण होने वाले गुरुत्वाकर्षण परिवर्तनों को ट्रैक करते हैं।

ताजे जल के भंडारों में गिरावट की स्थिति क्या है?

  • वैश्विक: वर्ष 2015 और वर्ष 2023 के बीच, झीलों, नदियों और भू-जल सहित भूमि पर संग्रहीत ताजे जल में 1,200 घन किलोमीटर की कमी आई है।
  • भारत: विश्व की 18% आबादी का निवास स्थान, भारत में विश्व के ताजे जल के संसाधनों का सिर्फ़ 4% हिस्सा है और पृथ्वी की सतह का सिर्फ़ 2.4% हिस्सा है। इसकी लगभग आधी नदियाँ प्रदूषित हैं, और 150 से ज़्यादा प्राथमिक जलाशय अपनी भंडारण क्षमता के केवल 38% पर हैं, जिससे देश का गंभीर जल संकट और भी बढ़ गया है।
    • नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 समग्र जल प्रबंधन सूचकांक इंगित करता है कि भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा उच्च से लेकर चरम जल तनाव का सामना कर रहा है, लगभग 600 मिलियन भारतीय जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
    • भू-जल की कमी एक बड़ी चिंता का विषय है, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में, जहाँ सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिये अत्यधिक दोहन के कारण जल स्तर में काफी गिरावट आई है।
    • राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात सहित मध्य और पश्चिमी भारत के क्षेत्र प्रायः सूखे की चपेट में आते हैं, जिससे पहले से ही कम हो रहे जल भंडार और भी अधिक घट जाते हैं।

ताजे जल के स्तर में गिरावट के क्या कारण हैं?

  • अल नीनो घटनाओं की भूमिका: वर्ष 2014-2016 की अल नीनो घटना, जो वर्ष 1950 के बाद से सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, ने वैश्विक स्तर पर वर्षा के पैटर्न को बाधित कर दिया।
    • प्रशांत महासागर के बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडलीय जेट धाराएँ बदल गईं, जिससे विश्व भर में सूखे की स्थिति और भी गंभीर हो गई।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित और असमान वर्षा प्रारूप उत्पन्न हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक सूखा, अनावृष्टि एवं अनियमित मानसून जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं।
    • तीव्र वर्षा की घटनाओं के कारण भू-जल पुनःपूर्ति के बजाय भू-अपवाह होता है, तथा लंबे समय तक सूखा रहने से मिट्टी कठोर हो जाती है, जिससे उसकी जल अवशोषण क्षमता कम हो जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन वाष्पीकरण को बढ़ाता है तथा वायुमंडलीय जल धारण क्षमता को बढ़ाता है, जिससे सूखे की स्थिति और खराब हो जाती है।
      • सूखे से ब्राज़ील, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका जैसे क्षेत्र काफी प्रभावित हुए हैं।
  • भू-जल का अत्यधिक दोहन: सिंचाई के लिये भू-जल पर अत्यधिक निर्भरता, विशेष रूप से अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में, इसके क्षय का कारण बनी है, क्योंकि दोहन अक्सर प्राकृतिक पुनःपूर्ति से अधिक हो जाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, भू-जल पर निर्भर उद्योग और शहरी केंद्र भी जल क्षरण को और बढ़ा देते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति:  प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों, जैसे आर्द्रभूमि और वनों का विनाश, भूमि की जल धारण करने की क्षमता को कम कर देता है। 
  • वन क्षेत्र के नष्ट होने से मृदा का अपरदन होता है, जिससे भूमि की वर्षा जल को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, तथा जल निकायों की पुनःपूर्ति में भी कमी आती है।
  • कृषि पद्धतियाँ और प्रदूषण: विश्व के उपलब्ध ताजे जल का 70% भाग  कृषि में खपत हो जाता है, लेकिन अकुशल सिंचाई पद्धतियों और अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलों की खेती के कारण जल की काफी बर्बादी होती है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित अपशिष्ट जल भी जल निकायों के प्रदूषण में योगदान करते हैं, जिसका जल की गुणवत्ता एवं उपलब्धता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।

ताज़े जल में गिरावट के निहितार्थ क्या हैं?

  • जैव विविधता पर प्रभाव: विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1970 के बाद से ताज़े जल की प्रजातियों में 84% की गिरावट आई है, जिसका कारण आवास की हानि, प्रदूषण और बाँधों जैसी प्रवास बाधाएँ हैं। 
  • ये कारक पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर करते हैं, जैव विविधता और उनकी आवश्यक सेवाओं को खतरा पहुँचाते हैं।
  • मानव समुदाय पर प्रभाव: जल तनाव पर वर्ष 2024 की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जल की उपलब्धता में कमी से किसानों और समुदायों पर दबाव पड़ता है, जिससे अकाल, संघर्ष, गरीबी और जल जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • जल की कमी उद्योगों को भी बाधित करती है, जिससे आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन प्रभावित होता है। वर्ष 2025 तक 1.8 बिलियन लोगों को "पूर्ण जल संकट" का सामना करना पड़ सकता है, जो तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, अकुशल जल उपयोग तथा खराब प्रबंधन के कारण और भी बदतर हो सकता है।
    • शहरी क्षेत्र भी जल संकट से अछूते नहीं हैं। चेन्नई और बेंगलुरु सहित भारत के कई शहरों में हाल के वर्षों में जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा है, जिससे दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और जल परिवहन और प्रबंधन की लागत बढ़ गई है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: ताजे जल के पारिस्थितिकी तंत्र पोषक चक्रण का समर्थन करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ती है। यह आर्द्रभूमि बाढ़ को कम करने एवं जलवायु अनुकूलन की वृद्धि में भी मदद करता है। 
  • इनके क्षरण से इन महत्त्वपूर्ण सेवाओं को खतरा है, तथा पर्यावरणीय एवं सामुदायिक स्थिरता दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • भू-राजनीतिक संघर्ष: वैश्विक ताजे जल का 60% से अधिक हिस्सा दो या उससे अधिक देशों के बीच साझा किया जाता है। इन संसाधनों में गिरावट, चाहे सूखे, अत्यधिक निकासी या प्रदूषण के कारण ही क्यों न हो, जल के अधिकार तथा उपयोग को लेकर विवादों को जन्म दे सकती है।  
    • जल की कमी से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है, जैसा कि मिस्र, सूडान और इथियोपिया के बीच नील नदी विवाद में देखा गया है। 
      • इथियोपिया द्वारा ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम के निर्माण से मिस्र में जल आपूर्ति को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे संभवतः व्यापक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है। 
    • इसी प्रकार भारत में नदी जल बँटवारे को लेकर विवाद (जैसे कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (IWT) तथा कावेरी और कृष्णा नदियों पर अंतर्राज्यीय विवाद) से राज्यों के बीच निरंतर संघर्षों बढ़ावा मिलता है। 
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: ताजे जल के संसाधनों में कमी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रणालियाँ प्रभावित होती हैं, जो डेटा केंद्रों को ठंडा रखने के लिये जल पर निर्भर हैं। 
  • अनुमान है कि वर्ष 2027 तक AI क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4.2 से 6.6 बिलियन क्यूबिक मीटर जल की खपत होगी, जिससे पहले से ही सीमित जल आपूर्ति पर दबाव और बढ़ जाएगा।

जल संरक्षण से संबंधित पहल क्या हैं?

आगे की राह

  • नीति पुनर्संरचना: देशों को जल को एक सामान्य वस्तु के रूप में मानना ​​होगा तथा जल के मूल्य निर्धारण, सब्सिडी एवं खरीद के संदर्भ में सार्वजनिक नीतियों को पुनर्संरचित करना होगा ताकि जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • यह सुनिश्चित करना कि कमज़ोर समुदायों को स्वच्छ जल और स्वच्छता उपलब्ध हो, जल-संबंधी असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ ताजे जल की आपूर्ति को पूरा करने के लिये एक व्यावहारिक समाधान (विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में) प्रस्तुत करती हैं।
  • विलवणीकरण को अनुकूलतम बनाना: यद्यपि विलवणीकरण ऊर्जा-गहन और महँगा है फिर भी यह तटीय क्षेत्रों में जल की कमी का समाधान प्रदान करता है। 
    • रिवर्स ऑस्मोसिस जैसी ऊर्जा-कुशल तकनीकों को लागत एवं पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के क्रम में अनुकूलित किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त कम ऊर्जा-गहन प्रक्रियाओं के साथ कुशल जल शोधन हेतु नैनो-प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण विकसित किये जा सकते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: बाँध, बावड़ी, जलाशय और जलसेतु जैसे बुनियादी ढाँचे को अनुकूलित करने से जल भंडारण और वितरण में सुधार हो सकता है लेकिन पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिये सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है। 
    • नई बाँध परियोजनाओं में पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन, तलछट प्रबंधन एवं न्यायसंगत जल वितरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • बोतलबंद जल के विकल्प: बोतलबंद जल की मांग को कम करने एवं पर्यावरण अनुकूल उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिये जल फिल्टर तथा पुनः भरने योग्य कंटेनरों जैसे धारणीय विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: परीक्षण कीजिये कि जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार ताजे जल की कमी को बढ़ावा मिलता है तथा बताइये कि समाज को जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु क्या उपाय अपनाने चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a)


प्रश्न. 'वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?   

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न 1. जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (2020)

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020)


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