भारत में नगरीय ऊष्मा द्वीप

प्रीलिम्स के लिये:

नगरीय ऊष्मा द्वीप

मेन्स के लिये :

नगरीय जलवायु में परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology-IIT) खड़गपुर ने ‘भारत में नगरीय ऊष्मा द्वीपों के विस्तार में मानवजनित कारक’ नाम से एक शोधपत्र जारी किया।

मुख्य बिंदु:

  • इस शोध में नगरीय और उपनगरीय भूमि के सतही तापांतर का अध्ययन किया गया।
  • यह शोध वर्ष 2001-2017 के दौरान 44 प्रमुख शहरों में किये गए अध्ययन पर आधारित है।

अध्ययन में मुख्य निष्कर्ष:

  • पहली बार शहरी ऊष्मा द्वीपों का सतही औसत दैनिक तापमान (इसे Urban Heat Island-UHI तीव्रता भी कहते हैं।) 2°C से अधिक होने के प्रमाण पाए गए। दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नई जैसे सभी नगरों में ऐसे प्रमाण मिले हैं।
  • यह विश्लेषण मानसून और उत्तर- मानसून काल में उपग्रह आधारित तापमान मापन पर आधारित है।

नगरीय ऊष्मा द्वीप:

urban-heat

नगरीय ऊष्मा द्वीप वह सघन जनसंख्या वाला नगरीय क्षेत्र होता है, जिसका तापमान उपनगरीय या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2°C अधिक होता है।

ऐसा क्यों होता है?

  • फुटपाथ, सड़क, छत जैसी अवसंरचनाएँ कंक्रीट, डामर (टार) और ईंटों जैसी अपारदर्शी सामग्री से निर्मित होती हैं जो प्रकाश को संचारित नहीं होने देती हैं।
  • इनकी ऊष्मा-क्षमता (किसी वस्तु के विकिरण को अवशोषित कर गर्म होने की क्षमता) एवं तापीय-चालकता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में उच्च होती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक खुला स्थान, पेड़-पौधे और घास पाई जाती है। और पेड़-पौधों में वाष्पी-वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) की क्रियाएँ होती हैं जबकि नगरों में इन क्रियाओं का अभाव रहता है, अतः नगरों का तापमान अधिक हो जाता है।

वाष्पी-वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration):

यह शब्द दो शब्दों, वाष्पीकरण (Evaporation) और वाष्पोत्सर्जन (Transpiration से मिलकर बना है।

वाष्पीकरण:

  • इसमें स्थल भाग से आसपास की वायु में जल की आवाजाही होती है।

वाष्पोत्सर्जन:

  • पौधे के भीतर जल की गतिशीलता तथा उसकी पत्तियों में स्टोमेटा (Stomata: पत्ती की सतह पर पाए जाने वाले छिद्रों) के माध्यम से जल में होने वाली कमी।

UHI का जलवायु पर प्रभाव:

  • UHI के कारण नगरीय वायु गुणवत्ता में भी कमी आती है।
  • नगरीय उच्च तापमान के कारण UHI में उच्च तापमान पसंद करने वाली प्रजातियों यथा- चींटियों जैसे-कीड़े, छिपकली और जेकॉस (Geckos) का अतिक्रमण बढ़ता है। ऐसी प्रजातियों को एक्टोथर्म (Ectotherms) कहा जाता है।
  • इसके अलावा नगरीय क्षेत्र में ऊष्मा का अनुभव किया जाता है जो मानव और पशु दोनों के स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक हैं, इसके कारण शरीर में ऐंठन, अनिद्रा और मृत्यु दर में वृद्धि देखी जाती है।
  • UHI आसपास के जल क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है जहाँ से गर्म जल शहर की सीवर नालियों से होता हुआ आसपास की झीलों और खाड़ियों में पहुँचता है और इनके जल स्रोतों के जल की गुणवत्ता खराब करता है।

UHI नगर की केस स्टडी:

  • बंगलूरू जो कभी अपनी स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु के लिये जाना जाता था अब यह नगर UHI से प्रभावित है।
  • नगर के आसपास के उपनगरों में इमारतों, औद्योगिक पार्कों और अपार्टमेंट्स का तेजी से विस्तार हुआ है, जैसे-इलेक्ट्रॉनिक सिटी और व्हाइटफील्ड (Whitefield) उपनगरों के विस्तार ने नगर को अस्वास्थ्यकर बना दिया है। इसकी कुछ सुंदर झीलों का जल गँदला और रोगकारक हो गया हैं।
  • नगर में जहाँ पहले रात में एयर कंडीशन या पंखों की जरूरत नहीं रहती थी वहाँ आज UHI की स्थिति है। औद्योगिक पार्क, कारखानें और संबंधित इमारतों से युक्त आसपास का क्षेत्र जो कभी एक विशाल उपनगर था वर्तमान में इसे तीसरे नगर ‘साइबराबाद’ (Cyberabad) के रूप में जाना जाता है।
  • इनकी वजह से न केवल नगर में UHI का निर्माण हुआ है बल्कि ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (Air Quality Index-AQI) में भी भारी कमी आई है। हालाँकि बंगलूरू में AQI का स्तर सुरक्षित (Safe) श्रेणी पर है परंतु इस स्तर को बनाए रखने के लिये अभी से कदम उठाने की आवश्यकता है। AQI का ‘सुरक्षित’ स्तर 61-90 अंको के बीच माना जाता है।

UHI का शमन और नियंत्रण:

औद्योगीकरण और आर्थिक विकास देश के लिये महत्त्वपूर्ण विषय हैं, लेकिन साथ ही UHI स्थिति पर नियंत्रण पाना भी आवश्यक है। इसके लिये निम्न तरीके कारगर हो सकते हैं:

  • हल्के रंग के कंक्रीट ( डामर के साथ चूना पत्थर) का उपयोग करना , हरित छतों का उपयोग करना, सड़क की सतह धूसर या गुलाबी रंग करना, ये काले रंग की अपेक्षा 50% बेहतर होते हैं क्योंकि ये कम ऊष्मा को अवशोषित करते हैं और अधिक सूर्यताप को परावर्तित करते हैं। इसी तरह हमें छतों को हरे रंग में रंगना चाहिये और हरे रंग की पृष्ठभूमि वाले सौर पैनल स्थापित करने चाहिये।
  • अधिक-से-अधिक पेड़ और पौधे लगाने चाहिये। ‘ट्री पीपल संगठन’ (Tree people) ने पेड़ और पौधों से होने वाले ऐसे 22 लाभों को सूचीबद्ध किया है जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
    • पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में सहायता करते हैं।
    • वे प्रदूषक गैसों को अवशोषित करके आसपास की हवा को साफ करते हैं (यथा- NXOy, O3, NH3, SO2 आदि)।
    • वे शहर और सड़कों को ठंडा रखते हैं, इस तरह ऊर्जा संरक्षण में मदद करते हैं (एयर कंडीशनिंग लागत में 50% की कटौती)।
    • जल संरक्षण को बढ़ाते हैं और जल प्रदूषण को रोकते हैं।
    • मृदा अपरदन को रोकना।
    • पराबैंगनी किरणों से लोगों और बच्चों की रक्षा करने।
    • नगर में अप्रत्यक्षतः व्यापारिक क्रियाओं को बढ़ाने में मदद करना।

अतः अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिये परंतु पौधारोपण के साथ-साथ उनकी निरंतर देखभाल भी की जानी चाहिये तथा ‘टोकन पौधारोपण’ (विशेष एकल किस्म के पौधों को बढ़ावा देना) नहीं करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस