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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

आवाज़ देश की: वैश्विक सेवा निर्यात

  • 23 May 2024
  • 39 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सकल मूल्य वर्द्धन, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, विश्व व्यापार संगठन (WTO), सेवा क्षेत्र, बाहरी क्षेत्र, चालू खाता घाटा, वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC), गिफ्ट सिटी, घाटा, माल निर्यात, नॉलेज-बेस्ड इकाॅनमी, GDP, साइबर सुरक्षा, हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा, विदेशी पर्यटक आगमन

मेन्स के लिये:

वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

चर्चा में क्यों?

भारत का सेवा क्षेत्र लगातार उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कर रहा है, हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) की रिपोर्ट ने 2023 में सेवा निर्यात में 11.4% की वृद्धि के साथ वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी दोगुनी होने पर प्रकाश डालते हुए इस कथन को मज़बूत किया है।

प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • अनुमानित वृद्धि: गोल्डमैन सैक्स (एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत का सेवा निर्यात 800 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो पिछले वर्ष के 340 बिलियन डॉलर से काफी अधिक है, इस वृद्धि से आपूर्ति पक्ष के खिलाफ बाहरी क्षेत्र को बढ़ावा मिलने और रुपए की अस्थिरता कम होने की उम्मीद है।
  • निर्यात गंतव्य:  एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बढ़ते बाज़ारों के साथ भारत, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप को सबसे अधिक सेवाएँ निर्यात करता है।
  • चालू खाता घाटा: वर्ष 2024 से 2030 तक चालू खाता घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का औसतन 1.1% रहने का अनुमान है। पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और ईरान को कृषि निर्यात में कमी के कारण सेवाओं के निर्यात से होने वाले संभावित लाभ की भरपाई के बावजूद 2024 के लिये सकल घरेलू उत्पाद के 1.3% पर अपरिवर्तित बने हुए हैं।
  • वैश्विक सेवा निर्यात में योगदान: पिछले 18 वर्षों में वैश्विक सेवा निर्यात में भारत का योगदान दोगुना से अधिक हो गया है। वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2005 में 2% से बढ़कर वर्ष 2023 में 4.6% हो गई, जो माल निर्यात की वृद्धि दर को पार कर गई, जबकि सेवा निर्यात में चीन की दर में 10.1% की गिरावट आई।
  • ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) की भूमिका: ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (Global Capability Centers- GCC) के उद्भव ने भारत की सेवा निर्यात वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • इन केंद्रों ने वैश्विक सेवा बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • सेवा क्षेत्रों में विकास के रुझान:
    • व्यावसायिक परामर्श: व्यावसायिक परामर्श भारत के सेवा निर्यात में सबसे तेज़ी से बढ़ते खंड के रूप में उभरा है।
    • यात्रा सेवाएँ: सेवा क्षेत्रों में यात्रा सेवाओं में सबसे धीमी वृद्धि देखी गई है।
    • वित्तीय सेवाएँ: वित्तीय सेवाओं में विशेष रूप से गुजरात, भारत में वित्तीय केंद्र गिफ्ट सिटी जैसे विकास के साथ महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी जा सकती है।

 सेवा क्षेत्र क्या है?

  • परिचय 
    • सेवा क्षेत्र में ऐसे उद्योग शामिल हैं जो मूर्त वस्तुओं के आलावा अमूर्त सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • इसमें वित्त, बैंकिंग, बीमा, रियल एस्टेट, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन, आतिथ्य, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (Business Process Outsourcing- BPO) जैसे विविध प्रकार के उद्योग शामिल हैं।
  • सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) और सकल मूल्यवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) में योगदान:
    • भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा सेवा निर्यातक है और वित्त वर्ष 2011 में कुल सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 54% थी।
    • सेवा क्षेत्र भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है, जो वर्ष 2000 और 2021 के बीच कुल अंतर्वाह का 53% था।

भारत के लिये सेवा क्षेत्र का महत्त्व क्या है?

  • व्यापार घाटा संतुलन:
    • सेवा व्यापार में अधिशेष ने ऐतिहासिक रूप से माल शिपमेंट में भारत के महत्त्वपूर्ण घाटे को कम कर दिया है।
    • इस अधिशेष का लाभ उठाकर, देश व्यापारिक निर्यात के कारण होने वाले घाटे की भरपाई कर सकता है और अधिक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
  • विकास की संभावना:
    • नए सिरे से सरकारी फोकस एवं रणनीतिक हस्तक्षेप के साथ, सेवा व्यापार अधिशेष में और वृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं।
    • यह अधिशेष, जो वित्त वर्ष 2011 में लगभग $89 बिलियन था, इसका विस्तार हो सकता है, जो भारत के आर्थिक प्रदर्शन के लिये सकारात्मक प्रक्षेपवक्र का संकेत है।
  • ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन:
    • सेवा क्षेत्र भारत के मुख्य रूप से 'असेंबली इकोनॉमी' से ‘नॉलेज- बेस्ड इकोनॉमी' बनने के परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और शिक्षा जैसी सेवाओं पर ज़ोर देकर, भारत नवाचार, बौद्धिक पूंजी एवं उच्च-मूल्य सेवाओं द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।
  • रोज़गार सृजन:
    • सेवा क्षेत्र भारत की आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख चालक है, जो लगभग 26 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और भारत के कुल वैश्विक निर्यात में लगभग 40% का योगदान देता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
    • उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी समाधानों के सेवा प्रदाता के रूप में देश की प्रतिष्ठा ने विश्व भर के व्यवसायों को आकर्षित किया है, जिससे निर्यात तथा विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि हुई है।
  • राजस्व प्रवाह का विविधीकरण:
    • सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिये प्रवाह स्रोतों का विविधीकरण प्रदान करता है, जिससे किसी एक उद्योग या बाज़ार पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • जीवन स्तर में सुधार:
    • सेवा क्षेत्र का विकास स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और वित्त जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके जीवन स्तर में सुधार में योगदान देता है।
    • यह एक मज़बूत सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास की सुविधा प्रदान करता है, जिससे नागरिकों के लिये जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

सेवा क्षेत्र में भारत के लिये संभावित अवसर क्या हैं?

  • पर्यटन क्षेत्र:
    • पर्यटन क्षेत्र आर्थिक विकास के एक महत्त्वपूर्ण चालक के रूप में कार्य करता है, जो सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) विदेशी मुद्रा आय और रोज़गार के अवसरों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
    • वर्ष 2017 में भारत के पर्यटन क्षेत्र ने अच्छा प्रदर्शन किया, जिसमें विदेशी पर्यटक आगमन (Foreign Tourist Arrivals- FTA) 14% बढ़कर 10.04 मिलियन तक पहुँच गया और विदेशी मुद्रा आय (Foreign Exchange Earnings- FEE) 19.1% बढ़कर 27.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई।
  • बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग सेवाएँ:
    • भारत में बंदरगाह मात्रा के हिसाब से निर्यात-आयात कार्गो का लगभग 90% और मूल्य के हिसाब से 70% संभालते हैं, कुल बंदरगाह यातायात ने 2015-16 और 2018-19 के बीच लगभग 6% की निरंतर वृद्धि को बनाए रखा।
  • अंतरिक्ष:
    • भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में पिछले छह दशकों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जिसमें प्रक्षेपण यान, पृथ्वी अवलोकन के लिये उपग्रह, दूरसंचार, नेविगेशन और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विभिन्न अनुप्रयोग शामिल हैं।
    • भारत ने वर्ष 2019-20 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर लगभग 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किये और जून 2020 में भारत सरकार (Government of India- GOI) ने सभी अंतरिक्ष गतिविधियों में भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम करने के लिये अंतरिक्ष क्षेत्र को सक्षम बना दिया।
  • रसद एवं परिवहन:
    • भारत अपनी प्राकृतिक तटरेखा और व्यापक अपवाह तंत्र से लाभान्वित होता है, जो घरेलू एवं  अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह से परिवहन तथा रसद सेवाओं में एक प्रतिस्पर्द्धी लाभ प्रदान करता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी/व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन (Business Process Management- BPM) (IT-BPM/Fintech):
    • भारतीय IT-BPM उद्योग भारत के निर्यात में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता रहा है, जिसमें पिछले दो दशकों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है।
    • इस क्षेत्र ने वर्ष 2019-20 में 190.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व अर्जित किया, जिसमें सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग सेवाओं की हिस्सेदारी 21% थी, जो राजस्व में 40.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

सेवा निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

  • भारत से सेवा निर्यात योजना:
    • इसे अप्रैल 2015 में भारत की विदेश व्यापार नीति वर्ष 2015-2020 के तहत 5 वर्षों के लिये पेश किया गया था।
    • पहले इस योजना को वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये सर्व्ड फ्रॉम इंडिया स्कीम (SFIS) नाम दिया गया था।
    • इसके तहत, भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत स्थित सेवा निर्यातकों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
    • सब्सिडी संसाधनों को अधिक ज़रूरतों वाले क्षेत्रों की ओर पुनर्निर्देशित करने से संसाधन आवंटन को अनुकूलित किया जा सकता है और समावेशी विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • कौशल भारत पहल:
    • कौशल भारत पहल (Skill India Programme) का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक युवाओं को बाज़ार-प्रासंगिक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
    • इसका उद्देश्य उन्हें सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के लिये आवश्यक कौशल से सुसज्ज़ित करना है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers Index- PMI):
    • क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers Index- PMI) विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधि के संकेतक के रूप में कार्य करता है।
    • यह निर्णय लेने और नीति निर्माण में सहायता करते हुए इन क्षेत्रों के स्वास्थ्य एवं प्रदर्शन में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • मुक्त-व्यापार समझौते (FTA):
    • सरकार भारतीय सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये UK, EU, ऑस्ट्रेलिया और UAE जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से मुक्त-व्यापार समझौता(FTA) कर रही है।
    • इन समझौतों का उद्देश्य अनुकूल व्यापार स्थितियाँ बनाना और वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना है।

भारत में सेवा क्षेत्रों के लिये विभिन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा IT और BPO जैसे सेवा क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जैसे भारतीय IT कंपनियों को चीन एवं पूर्वी यूरोप जैसे उभरते तकनीकी केंद्रों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे बाज़ार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिये निरंतर नवाचार तथा लागत-प्रभावशीलता की आवश्यकता होती है।
  • कौशल बेमेल: कौशल भारत जैसी पहल के बावजूद, कार्यबल कौशल और सेवा उद्योग द्वारा मांग किये गए कौशल के बीच एक अंतर है। जैसे IT क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं डेटा एनालिटिक्स जैसे विशेष कौशल की मांग है, जो अक्सर उपलब्ध प्रतिभा से आगे निकल जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव और डिजिटल विभाजन: बुनियादी ढाँचे का अभाव, विशेष रूप से स्वास्थ्य और पर्यटन में क्षेत्रीय विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जैसा कि ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं में देखा जाता है, जिससे पहुँच में असमानताएँ होती हैं तथा सेवा की गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य परिणामों पर प्रभाव पड़ता है।
    • इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्रगति के बावजूद शहरी-ग्रामीण डिजिटल अंतर बना हुआ है, ग्रामीण क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा संसाधनों तक सीमित पहुँच है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है तथा डिजिटल सेवा अपनाने में बाधा आ रही है।
  • नियामक जटिलताएँ: जटिल नियम सेवा क्षेत्र में व्यावसायिक संचालन में बाधा उत्पन्न करते हैं। कानूनी उद्योग में कड़े नियम विदेशी कानून फर्मों की भागीदारी को सीमित करते हैं, भारतीय वकीलों के लिये विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के अवसरों में बाधा डालते हैं और कानूनी सेवा निर्यात को सीमित करते हैं।

आगे की राह

  • निवेश की अनिवार्यता:
    • भारत को सेवा उद्योग की क्षमता और निरंतरता, बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता को पहचानते हुए इसके विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • जबकि इस क्षेत्र में निवेश में आमतौर पर लंबी अवधि की आवश्यकता होती है, परिणामी बुनियादी ढाँचा शेष अर्थव्यवस्था के साथ महत्त्वपूर्ण संबंध स्थापित करके गुणक प्रभाव उत्पन्न करता है।
  • घरेलू विनियमों में सुधार:
    • घरेलू उत्पादन और सेवाओं के निर्यात दोनों को सुविधाजनक बनाने के लिये घरेलू नियमों में सुधार महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हालाँकि यह ज़रूरी है कि ये नियम प्रतिबंधात्मक व्यापार बाधाओं के रूप में काम न करें, जिससे बाज़ार पहुँच में बाधा उत्पन्न न हो। WTO और द्विपक्षीय बैठकों जैसे मंचों पर बाज़ार पहुँच प्रतिबंधों पर बातचीत करना आवश्यक हो जाता है।
  • रोज़गार के अवसर बढ़ाना:
    • सेवा क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़ाने के प्रयासों में गुणवत्ता को प्राथमिकता देते हुए अकुशल/अर्द्धकुशल और कुशल रोज़गार दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। 
    • रोज़गार की संभावनाओं और कार्यबल क्षमताओं को बढ़ाने के लिये स्किल इंडिया जैसी पहल को सेवा क्षेत्र की आवश्यकताओं के साथ जोड़ा जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न.1 "बंद अर्थव्यवस्था" एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011)

(a) मुद्रा आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है
(b) घाटे का वित्तपोषण होता है
(c) केवल निर्यात होता है
(d) न तो निर्यात होता है और न ही आयात

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)

प्रिलिम्स के लिये:

सकल मूल्य वर्द्धन, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, विश्व व्यापार संगठन (WTO), सेवा क्षेत्र, बाहरी क्षेत्र, चालू खाता घाटा, वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC), गिफ्ट सिटी, घाटा, माल निर्यात, नॉलेज-बेस्ड इकाॅनमी, GDP, साइबर सुरक्षा, हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा, विदेशी पर्यटक आगमन

मेन्स के लिये:

वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

चर्चा में क्यों?

भारत का सेवा क्षेत्र लगातार उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कर रहा है, हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) की रिपोर्ट ने 2023 में सेवा निर्यात में 11.4% की वृद्धि के साथ वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी दोगुनी होने पर प्रकाश डालते हुए इस कथन को मज़बूत किया है।

प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • अनुमानित वृद्धि: गोल्डमैन सैक्स (एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत का सेवा निर्यात 800 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो पिछले वर्ष के 340 बिलियन डॉलर से काफी अधिक है, इस वृद्धि से आपूर्ति पक्ष के खिलाफ बाहरी क्षेत्र को बढ़ावा मिलने और रुपए की अस्थिरता कम होने की उम्मीद है।
  • निर्यात गंतव्य:  एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बढ़ते बाज़ारों के साथ भारत, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप को सबसे अधिक सेवाएँ निर्यात करता है।
  • चालू खाता घाटा: वर्ष 2024 से 2030 तक चालू खाता घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का औसतन 1.1% रहने का अनुमान है। पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और ईरान को कृषि निर्यात में कमी के कारण सेवाओं के निर्यात से होने वाले संभावित लाभ की भरपाई के बावजूद 2024 के लिये सकल घरेलू उत्पाद के 1.3% पर अपरिवर्तित बने हुए हैं।
  • वैश्विक सेवा निर्यात में योगदान: पिछले 18 वर्षों में वैश्विक सेवा निर्यात में भारत का योगदान दोगुना से अधिक हो गया है। वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2005 में 2% से बढ़कर वर्ष 2023 में 4.6% हो गई, जो माल निर्यात की वृद्धि दर को पार कर गई, जबकि सेवा निर्यात में चीन की दर में 10.1% की गिरावट आई।
  • ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) की भूमिका: ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (Global Capability Centers- GCC) के उद्भव ने भारत की सेवा निर्यात वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • इन केंद्रों ने वैश्विक सेवा बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • सेवा क्षेत्रों में विकास के रुझान:
    • व्यावसायिक परामर्श: व्यावसायिक परामर्श भारत के सेवा निर्यात में सबसे तेज़ी से बढ़ते खंड के रूप में उभरा है।
    • यात्रा सेवाएँ: सेवा क्षेत्रों में यात्रा सेवाओं में सबसे धीमी वृद्धि देखी गई है।
    • वित्तीय सेवाएँ: वित्तीय सेवाओं में विशेष रूप से गुजरात, भारत में वित्तीय केंद्र गिफ्ट सिटी जैसे विकास के साथ महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी जा सकती है।

 सेवा क्षेत्र क्या है?

  • परिचय 
    • सेवा क्षेत्र में ऐसे उद्योग शामिल हैं जो मूर्त वस्तुओं के आलावा अमूर्त सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • इसमें वित्त, बैंकिंग, बीमा, रियल एस्टेट, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन, आतिथ्य, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (Business Process Outsourcing- BPO) जैसे विविध प्रकार के उद्योग शामिल हैं।
  • सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) और सकल मूल्यवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) में योगदान:
    • भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा सेवा निर्यातक है और वित्त वर्ष 2011 में कुल सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 54% थी।
    • सेवा क्षेत्र भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है, जो वर्ष 2000 और 2021 के बीच कुल अंतर्वाह का 53% था।

भारत के लिये सेवा क्षेत्र का महत्त्व क्या है?

  • व्यापार घाटा संतुलन:
    • सेवा व्यापार में अधिशेष ने ऐतिहासिक रूप से माल शिपमेंट में भारत के महत्त्वपूर्ण घाटे को कम कर दिया है।
    • इस अधिशेष का लाभ उठाकर, देश व्यापारिक निर्यात के कारण होने वाले घाटे की भरपाई कर सकता है और अधिक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
  • विकास की संभावना:
    • नए सिरे से सरकारी फोकस एवं रणनीतिक हस्तक्षेप के साथ, सेवा व्यापार अधिशेष में और वृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं।
    • यह अधिशेष, जो वित्त वर्ष 2011 में लगभग $89 बिलियन था, इसका विस्तार हो सकता है, जो भारत के आर्थिक प्रदर्शन के लिये सकारात्मक प्रक्षेपवक्र का संकेत है।
  • ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन:
    • सेवा क्षेत्र भारत के मुख्य रूप से 'असेंबली इकोनॉमी' से ‘नॉलेज- बेस्ड इकोनॉमी' बनने के परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और शिक्षा जैसी सेवाओं पर ज़ोर देकर, भारत नवाचार, बौद्धिक पूंजी एवं उच्च-मूल्य सेवाओं द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।
  • रोज़गार सृजन:
    • सेवा क्षेत्र भारत की आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख चालक है, जो लगभग 26 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और भारत के कुल वैश्विक निर्यात में लगभग 40% का योगदान देता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
    • उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी समाधानों के सेवा प्रदाता के रूप में देश की प्रतिष्ठा ने विश्व भर के व्यवसायों को आकर्षित किया है, जिससे निर्यात तथा विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि हुई है।
  • राजस्व प्रवाह का विविधीकरण:
    • सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिये प्रवाह स्रोतों का विविधीकरण प्रदान करता है, जिससे किसी एक उद्योग या बाज़ार पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • जीवन स्तर में सुधार:
    • सेवा क्षेत्र का विकास स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और वित्त जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके जीवन स्तर में सुधार में योगदान देता है।
    • यह एक मज़बूत सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास की सुविधा प्रदान करता है, जिससे नागरिकों के लिये जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

सेवा क्षेत्र में भारत के लिये संभावित अवसर क्या हैं?

  • पर्यटन क्षेत्र:
    • पर्यटन क्षेत्र आर्थिक विकास के एक महत्त्वपूर्ण चालक के रूप में कार्य करता है, जो सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) विदेशी मुद्रा आय और रोज़गार के अवसरों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
    • वर्ष 2017 में भारत के पर्यटन क्षेत्र ने अच्छा प्रदर्शन किया, जिसमें विदेशी पर्यटक आगमन (Foreign Tourist Arrivals- FTA) 14% बढ़कर 10.04 मिलियन तक पहुँच गया और विदेशी मुद्रा आय (Foreign Exchange Earnings- FEE) 19.1% बढ़कर 27.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई।
  • बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग सेवाएँ:
    • भारत में बंदरगाह मात्रा के हिसाब से निर्यात-आयात कार्गो का लगभग 90% और मूल्य के हिसाब से 70% संभालते हैं, कुल बंदरगाह यातायात ने 2015-16 और 2018-19 के बीच लगभग 6% की निरंतर वृद्धि को बनाए रखा।
  • अंतरिक्ष:
    • भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में पिछले छह दशकों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जिसमें प्रक्षेपण यान, पृथ्वी अवलोकन के लिये उपग्रह, दूरसंचार, नेविगेशन और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विभिन्न अनुप्रयोग शामिल हैं।
    • भारत ने वर्ष 2019-20 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर लगभग 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किये और जून 2020 में भारत सरकार (Government of India- GOI) ने सभी अंतरिक्ष गतिविधियों में भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम करने के लिये अंतरिक्ष क्षेत्र को सक्षम बना दिया।
  • रसद एवं परिवहन:
    • भारत अपनी प्राकृतिक तटरेखा और व्यापक अपवाह तंत्र से लाभान्वित होता है, जो घरेलू एवं  अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह से परिवहन तथा रसद सेवाओं में एक प्रतिस्पर्द्धी लाभ प्रदान करता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी/व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन (Business Process Management- BPM) (IT-BPM/Fintech):
    • भारतीय IT-BPM उद्योग भारत के निर्यात में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता रहा है, जिसमें पिछले दो दशकों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है।
    • इस क्षेत्र ने वर्ष 2019-20 में 190.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व अर्जित किया, जिसमें सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग सेवाओं की हिस्सेदारी 21% थी, जो राजस्व में 40.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

सेवा निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

  • भारत से सेवा निर्यात योजना:
    • इसे अप्रैल 2015 में भारत की विदेश व्यापार नीति वर्ष 2015-2020 के तहत 5 वर्षों के लिये पेश किया गया था।
    • पहले इस योजना को वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये सर्व्ड फ्रॉम इंडिया स्कीम (SFIS) नाम दिया गया था।
    • इसके तहत, भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत स्थित सेवा निर्यातकों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
    • सब्सिडी संसाधनों को अधिक ज़रूरतों वाले क्षेत्रों की ओर पुनर्निर्देशित करने से संसाधन आवंटन को अनुकूलित किया जा सकता है और समावेशी विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • कौशल भारत पहल:
    • कौशल भारत पहल (Skill India Programme) का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक युवाओं को बाज़ार-प्रासंगिक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
    • इसका उद्देश्य उन्हें सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के लिये आवश्यक कौशल से सुसज्ज़ित करना है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers Index- PMI):
    • क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers Index- PMI) विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधि के संकेतक के रूप में कार्य करता है।
    • यह निर्णय लेने और नीति निर्माण में सहायता करते हुए इन क्षेत्रों के स्वास्थ्य एवं प्रदर्शन में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • मुक्त-व्यापार समझौते (FTA):
    • सरकार भारतीय सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये UK, EU, ऑस्ट्रेलिया और UAE जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से मुक्त-व्यापार समझौता(FTA) कर रही है।
    • इन समझौतों का उद्देश्य अनुकूल व्यापार स्थितियाँ बनाना और वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना है।

भारत में सेवा क्षेत्रों के लिये विभिन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा IT और BPO जैसे सेवा क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जैसे भारतीय IT कंपनियों को चीन एवं पूर्वी यूरोप जैसे उभरते तकनीकी केंद्रों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे बाज़ार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिये निरंतर नवाचार तथा लागत-प्रभावशीलता की आवश्यकता होती है।
  • कौशल बेमेल: कौशल भारत जैसी पहल के बावजूद, कार्यबल कौशल और सेवा उद्योग द्वारा मांग किये गए कौशल के बीच एक अंतर है। जैसे IT क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं डेटा एनालिटिक्स जैसे विशेष कौशल की मांग है, जो अक्सर उपलब्ध प्रतिभा से आगे निकल जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव और डिजिटल विभाजन: बुनियादी ढाँचे का अभाव, विशेष रूप से स्वास्थ्य और पर्यटन में क्षेत्रीय विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जैसा कि ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं में देखा जाता है, जिससे पहुँच में असमानताएँ होती हैं तथा सेवा की गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य परिणामों पर प्रभाव पड़ता है।
    • इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्रगति के बावजूद शहरी-ग्रामीण डिजिटल अंतर बना हुआ है, ग्रामीण क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा संसाधनों तक सीमित पहुँच है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है तथा डिजिटल सेवा अपनाने में बाधा आ रही है।
  • नियामक जटिलताएँ: जटिल नियम सेवा क्षेत्र में व्यावसायिक संचालन में बाधा उत्पन्न करते हैं। कानूनी उद्योग में कड़े नियम विदेशी कानून फर्मों की भागीदारी को सीमित करते हैं, भारतीय वकीलों के लिये विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के अवसरों में बाधा डालते हैं और कानूनी सेवा निर्यात को सीमित करते हैं।

आगे की राह

  • निवेश की अनिवार्यता:
    • भारत को सेवा उद्योग की क्षमता और निरंतरता, बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता को पहचानते हुए इसके विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • जबकि इस क्षेत्र में निवेश में आमतौर पर लंबी अवधि की आवश्यकता होती है, परिणामी बुनियादी ढाँचा शेष अर्थव्यवस्था के साथ महत्त्वपूर्ण संबंध स्थापित करके गुणक प्रभाव उत्पन्न करता है।
  • घरेलू विनियमों में सुधार:
    • घरेलू उत्पादन और सेवाओं के निर्यात दोनों को सुविधाजनक बनाने के लिये घरेलू नियमों में सुधार महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हालाँकि यह ज़रूरी है कि ये नियम प्रतिबंधात्मक व्यापार बाधाओं के रूप में काम न करें, जिससे बाज़ार पहुँच में बाधा उत्पन्न न हो। WTO और द्विपक्षीय बैठकों जैसे मंचों पर बाज़ार पहुँच प्रतिबंधों पर बातचीत करना आवश्यक हो जाता है।
  • रोज़गार के अवसर बढ़ाना:
    • सेवा क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़ाने के प्रयासों में गुणवत्ता को प्राथमिकता देते हुए अकुशल/अर्द्धकुशल और कुशल रोज़गार दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। 
    • रोज़गार की संभावनाओं और कार्यबल क्षमताओं को बढ़ाने के लिये स्किल इंडिया जैसी पहल को सेवा क्षेत्र की आवश्यकताओं के साथ जोड़ा जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न.1 "बंद अर्थव्यवस्था" एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011)

(a) मुद्रा आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है
(b) घाटे का वित्तपोषण होता है
(c) केवल निर्यात होता है
(d) न तो निर्यात होता है और न ही आयात

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)

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