भारतीय अर्थव्यवस्था
सकल मूल्य वर्द्धन: चुनौतियाँ व महत्त्व
- 12 Jun 2020
- 14 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सकल मूल्य वर्द्धन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये राष्ट्रीय आय के अनंतिम अनुमान (Provisional Estimates) जारी कर दिये गए हैं। NSO के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Real Gross Domestic Product) की दर 4.2 प्रतिशत व्यक्त की गई थी, परंतु वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत तक सीमित रही। यह 11 वर्षों में विकास की सबसे धीमी वृद्धि दर थी। NSO के द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 की चार तिमाहियों के साथ ही दो पूर्ववर्ती वर्षों के तुलनात्मक त्रैमासिक आँकड़ों के आधार पर सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added-GVA) संबंधी अनुमान को भी जारी किया गया है।
इस आलेख में सकल मूल्य वर्द्धन, जारी किये गए नवीनतम आँकड़े, आर्थिक विकास के मापन में GVA की कमियाँ तथा GVA की प्रासंगिकता व महत्त्व पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।
NSO द्वारा जारी किये गए नवीनतम आँकड़े
- फरवरी 2020 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तीन तिमाहियों के लिये क्रमशः 5.4 प्रतिशत, 4.8 प्रतिशत और 4.5 प्रतिशत GVA वृद्धि दर की संभावना व्यक्त की गई थी।
- हालाँकि NSO द्वारा जारी किये गए नवीनतम अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तीन तिमाहियों में गिरावट दर्ज़ की गई और संशोधित वृद्धि दर क्रमशः 4.8 प्रतिशत, 4.3 प्रतिशत और 3.5 प्रतिशत का आकलन किया गया।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में सुस्त प्रदर्शन के कारण फरवरी, 2020 में जारी 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर के पूर्वानुमान को संशोधित करते हुए समग्र वार्षिक GVA वृद्धि दर अनुमान में 1 प्रतिशत की गिरावट के साथ 3.9 प्रतिशत की वृद्दि का आकलन किया है।
- समग्र वार्षिक GVA वृद्धि दर में संशोधन सेवा क्षेत्र के कमज़ोर प्रदर्शन का परिणाम है।
- सेवा क्षेत्र के बड़े भागीदार यथा- वित्त, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं की वृद्धि दर में तीव्र गिरावट हुई है।
- प्रथम, द्वितीय व तृतीय तिमाही में वृद्धि दर क्रमशः 6.9 प्रतिशत, 7.1 प्रतिशत और 7.3 प्रतिशत के सापेक्ष गिरावट दर्ज़ करते हुए 6 प्रतिशत, 6 प्रतिशत और 3.3 प्रतिशत का आकलन किया गया है।
- वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाएँ समग्र GVA की गणना में लगभग एक-चौथाई का योगदान करती हैं।
- व्यापार, होटल, परिवहन और प्रसारण से संबंधित संचार सेवाओं की वृद्धि दर में भी भारी गिरावट दर्ज़ की गई है।
- प्रथम, द्वितीय व तृतीय तिमाही में वृद्धि दर क्रमशः 5.7 प्रतिशत, 5.8 प्रतिशत और 5.9 प्रतिशत के सापेक्ष गिरावट दर्ज़ करते हुए 3.5 प्रतिशत, 4.1 प्रतिशत और 4.3 प्रतिशत का आकलन किया गया है।
- व्यापार, होटल, परिवहन और प्रसारण से संबंधित संचार सेवाएँ समग्र GVA की गणना में लगभग 20 प्रतिशत का योगदान करती हैं।
हालाँकि नवीनतम आँकड़ों में, कृषि व लोक प्रशासन जैसे क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन भी हुए हैं।
सकल मूल्य वर्द्धन क्या है?
- वित्तीय वर्ष 2015-16 से सकल मूल्य वर्द्धन की अवधारणा को प्रारंभ किया गया है।
- सकल मूल्य वर्द्धन किसी देश की अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों, यथा- प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र द्वारा किया गया कुल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है।
- साधारण शब्दों में कहा जाए तो GVA से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल निष्पादन और आय का पता चलता है। दरअसल जब किसी उत्पाद के मूल्य से उसकी इनपुट लागत और कच्चे माल की लागत में कटौती के बाद जो राशि शेष बचती है उसे GVA कहते हैं। उदाहरण के लिये अगर कोई कंपनी 20 रुपये में ब्रेड का पैकेट बेचती है और इसे बनाने में 16 रुपये इनपुट और कच्चे माल की लागत के रूप में प्रयोग होता है तो उस स्थिति में GVA का संग्रहण 4 रुपये माना जाएगा।
- सकल मूल्य वर्द्धन = GDP + उत्पादों पर सब्सिडी - उत्पादों पर कर
- GVA की गणना आधार वर्ष 2011-12 को आधार मानकर की जाती है।
- NSO , सकल मूल्य वर्द्धन के लिये तिमाही और वार्षिक दोनों अनुमान प्रदान करता है । यह आठ व्यापक श्रेणियों पर क्षेत्रवार वर्गीकरण डेटा प्रदान करता है जिसमें अर्थव्यवस्था में उपलब्ध कराई गई वस्तुओं और सेवाएँ दोनों शामिल हैं। आठ श्रेणियाँ इस प्रकार हैं-
- कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन,
- खनन एवं उत्खनन,
- विनिर्माण,
- बिजली, गैस, पानी की आपूर्ति और अन्य जनोपयोगी सेवाएँ,
- निर्माण,
- व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाएँ,
- वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाएँ,
- लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाएँ।
सकल घरेलू उत्पाद से तात्पर्य
- किसी अर्थव्यवस्था या देश के लिये सकल घरेलू उत्पाद या GDP एक निर्धारित अवधि में उस देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। यह अवधि आमतौर पर एक साल की होती है।
- विदित है कि GDP के आकलन के लिये मूल्य की आवश्यकता होती है और मूल्य के लिये बाज़ार की ज़रूरत पड़ती है। अतः GDP केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को प्रतिबिंबित करता है जो विपणन योग्य हैं और जिनके बाज़ार हैं। ज़ाहिर है, जिसका बाज़ार नहीं होता, उसे GDP में शामिल नहीं किया जाता।
- इसको समझने के लिये पर्यावरणीय क्षरण का उदाहरण लेते हैं, जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है लेकिन पर्यावरणीय क्षरण की गणना बाज़ार मूल्य में नहीं की जा सकती, अतः इसे GDP में शामिल नहीं किया जाता।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय
- वर्ष 2019 में सरकार ने सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office- CSO) के साथ विलय करने का निर्णय लिया और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) के गठन को मंज़ूरी दी।
- एक एजेंसी के रूप में NSO को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission-NSC) द्वारा निर्धारित सांख्यिकीय मानकों को लागू करने और बनाए रखने के लिये तथा राज्य एजेंसियों की सांख्यिकीय गतिविधियों का पर्यवेक्षण करने के लिये सर्वप्रथम डॉ. सी. रंगराजन द्वारा परिकल्पित किया गया था।
संरचना
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अंतर्गत 4 डिविजन बनाई गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
- सर्वे डिज़ाइन एंड रिसर्च डिविजन (Survey Design and Research Division-SDRD)
- फील्ड ऑपरेशंस डिविजन (Field Operations Division-FOD)
- डेटा प्रोसेसिंग डिविजन (Data Processing Division-DPD)
- सर्वे कॉर्डिनेशन डिविजन (Survey Coordination Division-SCD)
उद्देश्य
- इसका उद्देश्य मंत्रालय के वर्तमान नोडल कार्यों को सुव्यवस्थित और मज़बूत करना है और मंत्रालय के भीतर प्रशासनिक कार्यों को एकीकृत कर बेहतर तालमेल स्थापित करना है।
- यह सांख्यिकीय प्रणाली की आवश्यकता को पूरा करने में मदद करेगा क्योंकि इन दो निकायों पर नियंत्रण की कमी वर्तमान में एक चुनौती थी।
- यह अन्य देशों के साथ भारत की सांख्यिकीय प्रणाली को संरेखित करेगा।
GDP और GVA में मुख्य अंतर
- सकल मूल्य वर्द्धन पद्धति के अंतर्गत जहाँ उत्पादक या आपूर्ति पक्ष की तरफ से आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर पेश की जाती है, वहीं सकल घरेलू उत्पाद पद्धति के अंतर्गत उपभोक्ता पक्ष या मांग पक्ष के परिप्रेक्ष्य में आर्थिक गतिविधियों का अनुमान लगाया जाता है।
- इस प्रकार सकल मूल्य वर्द्धन पद्धति पूर्ति आधारित जबकि सकल घरेलू उत्पाद पद्धति मांग आधारित अर्थव्यवस्था को मापने का तरीका है।
GVA की चुनौतियाँ
- सभी प्रकार के आर्थिक आँकड़े व समग्र राष्ट्रीय उत्पादन की माप के रूप में GVA की सटीकता आँकड़ों के स्रोत और विभिन्न मानकों की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है। यदि आँकड़ों के संग्रहण में किसी भी प्रकार की लापरवाही होती है तो GVA की सटीकता निश्चित रूप से प्रभावित हो जाएगी।
- किसी अनुचित या त्रुटिपूर्ण तरीकों के प्रयोग से GVA की प्रभावकारिता नकारात्मक परिणाम प्रदर्शित कर सकती है।
- GVA के नकारात्मक परिणाम अर्थव्यवस्था की राजकोषीय व मौद्रिक नीति को भी प्रभावित कर देंगे, जिससे मुद्रास्फ़ीति संबंधी अनुमान भी गलत हो जाएँगे।
GVA की प्रासंगिकता
- GVA को अर्थव्यवस्था का बेहतर मापक माना जाता है। GDP वास्तविक आर्थिक परिदृश्य को मापने में विफल है क्योंकि उत्पादन में तेज वृद्धि उच्च कर संग्रहण व बेहतर अनुपालन के कारण भी हो सकती है, जो वास्तविक उत्पादन की स्थिति को प्रतिबिंबित करे यह आवश्यक नहीं।
- GVA आठ व्यापक श्रेणियों पर क्षेत्रवार वर्गीकरण डेटा प्रदान करता है जिससे नीति निर्माताओं को यह तय करने में मदद मिलती है कि किन क्षेत्रों को प्रोत्साहन की आवश्यकता है और तदनुसार क्षेत्र विशिष्ट नीतियाँ तैयार की जा सकती हैं।
- वैश्विक डेटा मानकों और एकरूपता के परिप्रेक्ष्य में GVA किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन को मापने में एक अभिन्न और आवश्यक पैरामीटर है।
- कोई भी देश जो अन्य देशों से पूँजी और निवेश आकर्षित करना चाहता है , उसे राष्ट्रीय आय लेखांकन में सर्वोत्तम वैश्विक मानकों के अनुरूप होना ही चाहिये।
प्रश्न- सकल मूल्य वर्द्धन से आप क्या समझते हैं? सकल घरेलू उत्पाद व सकल मूल्य वर्द्धन में अंतर को स्पष्ट करते हुए इसकी चुनौतियों और प्रासंगिकता का विश्लेषण कीजिये।