भूगोल
भारत में बढ़ता जल संकट
- 17 Sep 2022
- 18 min read
यह एडिटोरियल 15/09/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s growing water crisis, the seen and the unseen” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बढ़ते जल संकट और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ:
संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट (United Nations World Water Development Report), 2022 के अनुसार जलधाराओं, झीलों, जलभृतों और मानव-निर्मित जलाशयों से ताज़े जल (fresh water) की तेज़ी से निकासी के साथ-साथ विश्व भर में आसन्न जल तनाव (Water stress) और जल की कमी के संबंध में वैश्विक चिंता बढ़ती जा रही है। बदलती जलवायु प्रवृत्तियों, बार-बार उभर रही प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों की अचानक तेज़ वृद्धि से यह स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है।
5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर भारत के संक्रमण में सतत आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना सर्वोपरि है। इस प्रयास में जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन होने की भूमिका रखता है। विश्व की लगभग 17% आबादी का वहन करने वाला भारत विश्व के ताज़े जल संसाधनों का मात्र 4% ही रखता है, जो स्पष्ट रूप से इसके विवेकपूर्ण उपयोग और कुशल जल जोखिम प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करता है।
जल तनाव और जल जोखिम:
- जल तनाव या ‘वाटर स्ट्रेस’ (Water Stress) की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी अवधि में जल की मांग उपलब्ध जल की मात्रा से अधिक हो जाती है या जब जल की खराब गुणवत्ता इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर देती है।
- जल तनाव के घटक:
- उपलब्धता (Availability)
- गुणवत्ता (Quality)
- अभिगम्यता या पहुँच (Accessibility)
- जल तनाव के घटक:
- जल जोखिम (Water Risk) बिगड़ते जल स्वास्थ्य और अक्षम जल शासन (water governance) के कारण किसी जल निकाय के समक्ष उत्पन्न जल-संबंधी चुनौती (जैसे जल की कमी, जल तनाव, बाढ़, अवसंरचना का क्षय, सूखा आदि) की संभावना को संदर्भित करता है।
फाल्केनमार्क इंडिकेटर (Falkenmark Indicator) या वाटर स्ट्रेस इंडेक्स (Water Stress Index):
- यह किसी देश में ताज़े जल की कुल मात्रा को उसकी कुल आबादी से सहसंबद्ध करता है और उस दबाव को इंगित करता है जो आबादी द्वारा ((पारिस्थितिक तंत्र की आवश्यकताओं सहित) जल संसाधनों पर डाला जाता है।
- किसी देश में यदि प्रति व्यक्ति नवीकरणीय जल की मात्रा—
- 1,700 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल तनाव (water stress) का सामना कर रहा है।
- 1,000 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल की कमी (water scarcity) का सामना कर रहा है।
- 500 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल की पूर्ण कमी (absolute water scarcity) का सामना कर रहा है।
भारत में जल प्रबंधन की स्थिति
- वर्तमान स्थिति: भारत विश्व में भूजल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। यह मात्रा विश्व के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े भूजल निष्कर्षण-कर्ता (चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका) के संयुक्त निष्कर्षण से भी अधिक है।
- हालाँकि भारत में निष्कर्षित भूजल का केवल 8% ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इसका 80% भाग सिंचाई में उपयोग किया जाता है
- शेष 12% भाग उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है।
- नीति आयोग (NITI Aayog) के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index) ने भारत में उभरते जल संकट के बारे में आगाह किया है जहाँ देश के 600 मिलियन से अधिक लोग जल की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।
- यह आकलन भी किया गया है कि वर्ष 2030 तक देश की जल मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी।
- संवैधानिक प्रावधान:
- मूल अधिकार: जल मनुष्य के अस्तित्व के लिये मूलभूत आवश्यकता है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का एक अंग है
- संघ सूची की प्रविष्टि 56: केंद्र सरकार अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों को उस सीमा तक विनियमित और विकसित कर सकती है जहाँ तक संसद द्वारा व्यापक जनहित में इसे उचित निर्धारित किया जाए।
- राज्य सूची की प्रविष्टि 17: यह जल आपूर्ति, सिंचाई, नहर, अपवाह, तटबंध, जल भंडारण और जल शक्ति से संबंधित है।
- अनुच्छेद 262: इसमें कहा गया है कि जल से संबंधित विवादों के मामले में—
- संसद, विधि द्वारा, किसी अंतर्राज्यीय नदियों या नदी घाटियों के या उसमें जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या परिवाद के न्यायनिर्णयन के लिये उपबंध कर सकेगी।
- संसद, विधि द्वारा, उपबंध कर सकेगी कि सर्वोच्च न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय ऐसे किसी निर्दिष्ट विवाद या परिवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा।
विधिक प्रावधान:
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (Inter-State Water Dispute Act), 1956: अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम राज्यों को अंतर्राज्यीय सहयोग में मुद्दों को हल करने के लिये एक सलाहकारी नदी बोर्ड (Advisory River Board) की स्थापना कर सकने हेतु केंद्र सरकार को नामांकित करने में सक्षम बनाता है।
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम [Water (Prevention and Control of Pollution) Act], 1974: यह जल गुणवत्ता के मानकों को बनाए रखते हुए जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण एक संस्थागत संरचना की स्थापना करता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) एक सांविधिक संगठन है जिसका गठन जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत सितंबर, 1974 में किया गया था।
भारत में जल प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
- ग्रामीण-शहरी संघर्ष की संभावना: तीव्र शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासियों के बड़े प्रवाह ने शहरों में जल के प्रति व्यक्ति उपयोग में वृद्धि कर दी है। इस परिदृश्य में जल की कमी की पूर्ति के लिये ग्रामीण जल निकायों से शहरी क्षेत्रों में जल स्थानांतरित किया जा रहा है।
- शहरी क्षेत्रों में जल स्तर की गिरावट को देखते हुए, संभावित है कि भविष्य में कच्चे जल की आपूर्ति के लिये शहर ग्रामीण क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर होंगे, जो ग्रामीण-शहरी संघर्ष को जन्म दे सकता है।
- नदी-जल विवाद: चूँकि भारत की अधिकांश नदियाँ दो या दो से अधिक राज्यों से होकर बहती हैं, उनके जल के उपयोग, वितरण और नियंत्रण के संबंध में विभिन्न राज्यों के बीच विवाद की स्थिति रही है।
- कुछ प्रमुख अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद हैं:
- कृष्णा नदी - महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना
- कावेरी नदी - केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी
- पेरियार नदी - तमिलनाडु, केरल
- नर्मदा नदी- मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान
- भारत न केवल अपने राज्यों के बीच बल्कि अपने पड़ोसी देशों के साथ भी नदी जल विवादों का सामना करता रहा है। उदाहरण के लिये:
- ब्रह्मपुत्र नदी- भारत, चीन
- तीस्ता नदी- भारत, बांग्लादेश
- कुछ प्रमुख अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद हैं:
- अप्रभावी अपशिष्ट जल प्रबंधन: अत्यधिक जल-तनाव के परिदृश्य में अपशिष्ट जल का अप्रभावी उपयोग भारत को अपने जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग कर सकने में असमर्थ बना रहा है। शहरों में यह जल मुख्यतः ‘ग्रेवाटर’ के रूप में पाया जाता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट (मार्च 2021) के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% और सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है (जहाँ अतिरिक्त 5.2% क्षमता जोड़ी जा रही है)।
- लेकिन फिर भी अधिकांश सीवेज उपचार संयंत्र अधिकतम क्षमता पर कार्य नहीं कर रहे हैं और निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट (मार्च 2021) के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% और सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है (जहाँ अतिरिक्त 5.2% क्षमता जोड़ी जा रही है)।
- खाद्य सुरक्षा जोखिम: फसल और पशुधन उत्पादन के लिये जल आवश्यक है। कृषि में सिंचाई के लिये जल का वृहत उपयोग किया जाता है और जल घरेलू उपभोग का भी एक प्रमुख स्रोत है। तेज़ी से गिरते भूजल स्तर और अक्षम नदी जल प्रबंधन के संयोजन से खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- जल एवं खाद्य की कमी के उत्पन्न प्रभाव आधारभूत आजीविका को भेद्य कर सकते हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ा सकते हैं।
- बढ़ता जल प्रदूषण: घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्टों की एक बड़ी मात्रा जल निकायों में बहाई जाती है, जिससे जलजनित रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा, जल प्रदूषण से सुपोषण या यूट्रोफिकेशन (eutrophication) की स्थिति बन सकती है जो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
- भूजल का अत्यधिक दोहन: केंद्रीय भूजल बोर्ड के नवीनतम अध्ययन के अनुसार भारत के 700 ज़िलों में से 256 ज़िलों ने गंभीर या अत्यधिक दोहित भूजल स्तर की सूचना दी है।
- अति-निर्भरता और निरंतर खपत के कारण भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है और इसके परिणामस्वरूप कुएँ, पोखर, तालाब आदि सूख रहे हैं। इससे जल संकट गहरा होता जा रहा है।
जल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान सरकारी पहलें
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- जलशक्ति अभियान- ‘कैच द रेन’ अभियान
- अटल भूजल योजना
आगे की राह
- संवहनीय भूजल प्रबंधन: भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण एवं घरेलू स्तर पर वर्षा जल संचयन, सतही जल एवं भूजल के संयुक्त उपयोग और जलाशयों के विनियमन के लिये एक उपयुक्त तंत्र और ग्रामीण-शहरी एकीकृत परियोजनाओं को आकार देने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा, जल अवसंरचना (कुएँ, बांध, भंडारण टैंक, पाइपलाइन आदि ) में सुधार करने की भी आवश्यकता है, जो न केवल स्वच्छ जल की बर्बादी को कम करेगा बल्कि उन लोगों की संख्या भी कम होगी जिन्हें प्रतिदिन स्वच्छ जल पाने के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
- ‘स्मार्ट’ कृषि: ड्रिप सिंचाई एक प्रभावशाली तकनीक है जो फरो/फ्लड सिंचाई की तुलना में फसल की पैदावार में 20-50% की वृद्धि करते हुए जल की खपत को 20-40% तक कम कर सकती है।
- इसके साथ ही, जल की कमी वाले क्षेत्रों में दलहन, बाजरा और तिलहन जैसी कम जल-गहन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- नील-हरित अवसंरचना (Blue-Green Infrastructure): आधुनिक अवसंरचना योजना में नील-हरित तत्वों का संयोजन वाटरशेड प्रबंधन और पर्यावरण अनुकूल अवसंरचना के लिये एक संवहनीय प्राकृतिक समाधान प्रदान करने का एक प्रभावशाली तरीका हो सकता है।
- नील-हरित अवसंरचना में हरित शब्द उद्यानों, पारगम्य फुटपाथ, हरी छतों आदि को इंगित करता है जबकि नील नदियों, नहरों, तालाबों जैसे जल निकायों और आर्द्रभूमि को इंगित करता है।
- जल संरक्षण क्षेत्र (Water Conservation Zone): क्षेत्रीय, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर जल निकायों की स्थिति के संबंध में बेहतर डेटा अनुशासन और कुशल जल शासन की ओर ध्यान केंद्रित करने और विभिन्न जल संरक्षण क्षेत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
- आधुनिक जल प्रबंधन तकनीकों का लाभ उठाना: सूचना प्रौद्योगिकी को जल-संबंधी डेटा प्रणालियों से जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी की सफलताओं ने ऐसे जल को भी उपभोग के लिये स्वच्छ एवं सुरक्षित बना दिया है जो पहले उपभोग के लिये अनुपयुक्त थे।
- इस तरह की सर्वाधिक प्रयुक्त तकनीकों में इलेक्ट्रोडायलिसिस रिवर्सल (EDR), डिसैलिनाइज़ेशन, नैनोफिल्ट्रेशन और सोलर एवं यूवी फिल्ट्रेशन आदि शामिल हैं।
अभ्यास प्रश्न: जल तनाव (Water Stress) क्या है? भारत में जल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न.1 निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन शहर बाँधों की एक शृंखला बनाकर और जुड़े जलाशयों में पानी को प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली के लिये जाना जाता है? (2021) (A) धौलावीरा उत्तर: (A) प्रश्न.2 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (C) मेन्स:प्रश्न.1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएंँ क्या हैं? (2020) प्रश्न.2 घटते परिदृश्य के तहत जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में इसका विवेकपूर्ण उपयोग करने के लिये सुधार के उपाय सुझाइए। (2020) |