भूगोल
आर्कटिक सागर की बर्फ का पिघलना
- 12 Jun 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक प्रवर्द्धन, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), IndARC, अल्बीडो, ध्रुवीय जेट स्ट्रीम मेन्स के लिये:आर्कटिक वार्मिंग के कारण, आर्कटिक महासागर की बर्फ का पिघलना, भारत पर इसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले दशकों में गर्मियों में आर्कटिक महासागर की बर्फ का पिघलना निश्चित है।
- ग्लोबल वार्मिंग (आर्कटिक प्रवर्द्धन) के कारण आर्कटिक महासागर की बर्फ के नुकसान ने वैश्विक जलवायु और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
आर्कटिक महासागर की बर्फ से संबंधित नई खोज:
- महासागर की बर्फ में कमी आना:
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट में आर्कटिक महासागर की बर्फ के घटने की स्पष्ट तौर पर पुष्टि की गई है।
- वैश्विक उत्सर्जन के कारण 4.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने के कारण वर्ष 2050 से पहले ही "महासागरीय-बर्फ मुक्त गर्मी (sea-ice free summer)" का अनुभव होने का अनुमान है।
- सैटेलाइट रिकॉर्ड की मानें तो आर्कटिक बर्फ के नुकसान की वार्षिक दर लगभग 13% है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट में आर्कटिक महासागर की बर्फ के घटने की स्पष्ट तौर पर पुष्टि की गई है।
- उत्सर्जन में अपर्याप्त कमी:
- द नेचर स्टडी स्पष्ट करती है कि किसी भी प्रकार का उत्सर्जन परिदृश्य गर्मियों में आर्कटिक महासागर के बर्फ के नुकसान को रोक नहीं सकता है।
- यदि उत्सर्जन में पर्याप्त कमी नहीं की जाती है, तो 2030 के दशक की शुरुआत में ही हम बर्फ मुक्त गर्मी का अनुभव कर सकते हैं।
- पिघलने की दर का सही आकलन न कर पाना:
- बर्फ पिघलने में मानव-प्रेरित कारकों का योगदान लगभग 90% है, शेष के लिये प्राकृतिक परिवर्तनशीलता उत्तरदायी है।
- IPCC द्वारा उपयोग किये गए जलवायु मॉडल सहित, पिघलने की गति को कम करके आँका गया।
- यदि इस आकलन को सही मायनों में संशोधित किया जाए तो वर्ष 2080 तक अगस्त और अक्तूबर माह में बर्फ मुक्त होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
आर्कटिक महासागर की बर्फ का महत्त्व:
- जलवायवीय प्रभाव:
- आर्कटिक महासागर का बर्फ वैश्विक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है, जिससे पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन तथा ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों को बनाए रखने में मदद मिलती है।
- समुद्री बर्फ एक बाधा के रूप में कार्य करती है जो ऊपर की ठंडी हवा को नीचे के गर्म पानी से अलग करके हवा को ठंडा रखती है।
- जैवविविधता और स्वदेशी समुदाय:
- समुद्री बर्फ में परिवर्तन जैवविविधता को प्रभावित करता है विशेष रूप से ध्रुवीय भालू और वालरस जैसे स्तनधारी प्राणियों को।
- शिकार, प्रजनन और प्रवासन के लिये समुद्री बर्फ पर निर्भर स्वदेशी आर्कटिक आबादी प्रभावित होती है।
- आर्थिक अवसर और प्रतिस्पर्द्धा:
- बर्फ का कम आवरण जहाज़ों के लिये रास्ता खोलता है और आर्कटिक में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
- इस कारण क्षेत्र में प्रभाव और संसाधनों के दोहन के लिये देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती है।
- बर्फ का कम आवरण जहाज़ों के लिये रास्ता खोलता है और आर्कटिक में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
आर्कटिक प्रवर्द्धन:
- परिचय:
- आर्कटिक प्रवर्द्धन उस घटना को संदर्भित करता है जहाँ सतह की वायु के तापमान में परिवर्तन और शुद्ध विकिरण संतुलन ध्रुवों पर विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र में बड़े प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- कारण:
- यह पूर्व-औद्योगिक दौर से मानवजनित बलों या मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है, जिससे पृथ्वी के औसत तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
- आर्कटिक प्रवर्द्धन के प्राथमिक कारणों में आइस-ऐल्बीडो फीडबैक, लैप्स रेट फीडबैक, जल वाष्प फीडबैक और महासागर ताप प्रवाह शामिल हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक में समुद्री बर्फ का कम होना वार्मिंग प्रभाव को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- समुद्री बर्फ और बर्फ में उच्च ऐल्बीडो होता है जो अधिकांश सौर विकिरण को दर्शाता है, जबकि जल तथा भूमि अधिक विकिरण को अवशोषित करते हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
- समुद्री बर्फ में कमी आर्कटिक महासागर को अधिक सौर विकिरण को अवशोषित करने की अनुमति देती है, जिससे वार्मिंग प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
- लैप्स रेट वह रेट है जिस पर तापमान ऊँचाई और वार्मिंग के साथ घटता है जो आर्कटिक प्रवर्द्धन में योगदान देता है।
- समुद्री बर्फ और बर्फ में उच्च ऐल्बीडो होता है जो अधिकांश सौर विकिरण को दर्शाता है, जबकि जल तथा भूमि अधिक विकिरण को अवशोषित करते हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि आइस-ऐल्बीडो फीडबैक और लैप्स रेट फीडबैक खाता क्रमशः ध्रुवीय प्रवर्द्धन का 40% और 15% है।
- परिणाम:
- ध्रुवीय जेट स्ट्रीम का कमज़ोर होना:
- कम समुद्री बर्फ ध्रुवीय जेट स्ट्रीम को कमज़ोर करती है, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप में तापमान और हीटवेव की घटनाएँ बढ़ती हैं।
- उत्तर पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश के कमज़ोर होने के पीछे यही कारण है।
- बर्फ का पिघलना:
- ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है, साथ ही पूर्ण रूप से पिघलने से समुद्र के स्तर में संभावित रूप से सात मीटर की वृद्धि हो सकती है।
- समुद्री जल की संरचना में परिवर्तन:
- लवणता और अम्लीकरण में परिवर्तन के साथ-साथ आर्कटिक महासागर और समुद्रों का गर्म होना, समुद्री एवं आश्रित प्रजातियों सहित यह जैवविविधता को प्रभावित करता है।
- जीवों को प्रभावित करना:
- आर्कटिक प्रवर्द्धन के कारण वर्षा में वृद्धि लाइकेन की उपलब्धता और पहुँच को प्रभावित करती है, जिससे आर्कटिक जीवों में भुखमरी और मृत्यु हो जाती है।
- गैसीय उत्सर्जन:
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से कार्बन और मीथेन निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग हेतु ज़िम्मेदार ग्रीनहाउस गैसें हैं।
- यह लंबे समय तक सुप्त बैक्टीरिया और वायरस भी वातावरण में छोड़ सकता है, जिससे बीमारी के प्रकोप की संभावना होती है।
- ध्रुवीय जेट स्ट्रीम का कमज़ोर होना:
भारत पर प्रभाव:
- अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ:
- अध्ययन में पाया गया कि बेरेंट-कारा समुद्री क्षेत्र में कम समुद्री बर्फ मानसून के उत्तरार्द्ध में सितंबर और अक्तूबर में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को जन्म दे सकती है।
- अरब सागर का गर्म होना:
- अरब सागर में उच्च तापमान के साथ-साथ समुद्री बर्फ के पिघलने के कारण वायु परिसंचरण में परिवर्तन से नमी और तीव्र वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होती है।
- वर्ष 2014 में भारत ने आर्कटिक महासागर में परिवर्तनों के प्रभाव की निगरानी हेतु कोंग्सफर्डन फोजर्ड, स्वालबार्ड में दलदली जल के नीचे भारत की पहली वेधशाला IndARC को तैनात किया।
- अरब सागर में उच्च तापमान के साथ-साथ समुद्री बर्फ के पिघलने के कारण वायु परिसंचरण में परिवर्तन से नमी और तीव्र वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होती है।
- भारतीय तट के साथ समुद्र के स्तर में वृद्धि:
- वर्ष 2021 में वैश्विक जलवायु की स्थिति' रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर वैश्विक औसत दर से तेज़ी से बढ़ रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। मेन्स:प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021) |