अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता
- 09 Aug 2021
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प्रिलिम्स के लिये:ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, इसका महत्त्व और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि भारत में वामपंथी दल भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध करने के अपने निर्णय के मामले में चीन से प्रभावित थे।
- हालाँकि भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के साथ भारत को एक विशेष परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) से छूट मिली जबकि ग्रीनफील्ड परियोजनाओं की प्रगति धीमी है।
ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ:
- ग्रीनफील्ड परियोजना’ का तात्पर्य ऐसी परियोजना से है, जिसमें किसी पूर्व कार्य/परियोजना का अनुसरण नहीं किया जाता है।
- अवसंरचना में अप्रयुक्त भूमि पर तैयार की जाने वाली परियोजनाएँ जिनमें मौजूदा संरचना को फिर से तैयार करने या ध्वस्त करने की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें ‘ग्रीन फील्ड परियोजना’ कहा जाता है।
परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG):
- यह परमाणु आपूर्तिकर्त्ता देशों का एक समूह है जो परमाणु निर्यात और परमाणु संबंधित निर्यात के लिये दिशा-निर्देशों के दो सेटों के कार्यान्वयन के माध्यम से परमाणु हथियारों के अप्रसार में योगदान करना चाहता है।
- यह वर्ष 1974 में एक गैर-परमाणु-हथियार राज्य (भारत) द्वारा परमाणु उपकरण के विस्फोट के बाद बनाया गया था, जिसने प्रदर्शित किया कि शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये हस्तांतरित परमाणु तकनीक का दुरुपयोग किया जा सकता है।
- समूह में 48 प्रतिभागी सरकारें शामिल हैं और NSG दिशा-निर्देश प्रत्येक सदस्य द्वारा अपने राष्ट्रीय कानूनों तथा प्रथाओं के अनुसार लागू किये जाते हैं। NSG सर्वसम्मति से निर्णय लेता है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- अमेरिका लंबे समय से भारत को गुटनिरपेक्ष खेमे (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) का नेता मानता रहा और यह मानता था कि वह USSR की ओर तथा बाद में रूस की ओर रुख कर रहा है।
- भारत ने अपने अधिकांश हथियार रूस से खरीदे और उसके पास छद्म-समाजवादी आर्थिक शासन था।
- शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद के वर्षों में अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर रहा।
- हालाँकि चीन के उदय के बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन (US) ने भारत को पश्चिम के खेमे में शामिल करने और चीन को नियंत्रित करने में मदद के लिये इसे आकर्षित करने का फैसला किया।
- इसलिये अमेरिका ने भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और यूरेनियम तक पहुँच की पेशकश की, वह ईंधन जो उसके परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के लिये आवश्यक था।
- भारत सरकार 123 समझौते (या यू.एस.-भारत असैनिक परमाणु समझौते) पर हस्ताक्षर करने के लिये सहमत हुई।
- वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा दिया, जो तब से मज़बूती से आगे बढ़ रहे हैं।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता:
- NSG छूट: भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख पहलू यह था कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) ने भारत को एक विशेष छूट दी, जिसने उसे एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया।
- अलग कार्यक्रम: इसने भारत को अपने नागरिक और सैन्य कार्यक्रमों को अलग करने में सक्षम बनाया तथा अपनी असैनिक परमाणु सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत रखा।
- प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण: यह भारत को उन राज्यों के संवर्द्धन और उन्हें पुनर्संसाधन प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण से रोकता है जो कि उनके पास नहीं हैं तथा भारत को उनके प्रसार को सीमित करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का भी समर्थन करना चाहिये।
सौदे का महत्त्व:
- अन्य देशों के साथ सौदे:
- छूट के बाद भारत ने अमेरिका, फ्रांँस, रूस, कनाडा, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, वियतनाम, बांग्लादेश, कज़ाखस्तान और कोरिया के साथ शांतिपूर्ण उपयोग के लिये परमाणु सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- इसके बाद फ्रांँस, कज़ाखस्तान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और रूस से यूरेनियम के आयात के लिये विशिष्ट समझौते हुए हैं।
- भारत को मान्यता:
- इसने भारत को मज़बूत अप्रसार साख के साथ एक ज़िम्मेदार परमाणु हथियार राज्य होने की मान्यता दी।
- भारत-अमेरिका संबंधों में मज़बूती:
- इसने दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा दिया।
- इसने सैन्य सहयोग को भी बढ़ावा दिया जिससे रक्षा व्यापार का विस्तार हुआ; इसमें वर्ष 2014 के बाद से नवीकरणीय प्रौद्योगिकी सहित ऊर्जा सहयोग में वृद्धि शामिल है।
- तकनीकी विकास:
- भारत ने दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर’ (Pressurized Heavy Water Reactor- PHWR) विकसित किये, जो वर्तमान में भारतीय परमाणु ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ हैं।
- PHWR एक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर है, जो आमतौर पर अपने ईंधन के रूप में गैर-समृद्ध प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग करता है। यह अपने शीतलक और मॉडरेटर के रूप में भारी पानी (ड्यूटेरियम ऑक्साइड D2O) का उपयोग करता है।
- यूरेनियम आयात में वृद्धि:
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने भारत को विभिन्न देशों से यूरेनियम आयात करने में सक्षम बनाया।
मुद्दे:
- दायित्व:
- वेस्टिंगहाउस को वर्ष 2008-09 में वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
- इसके बीच वेस्टिंगहाउस के नए खरीदारों ने पहले ही भारत में व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया है।
- वे भारत में परमाणु ऊर्जा परियोजना का निर्माण नहीं करेंगे और केवल रिएक्टरों तथा घटकों की आपूर्ति करेंगे, जिसके कारण भारत में एक रिएक्टर के निर्माण में लगभग 10 वर्ष लगेंगे।
- इसे देखते हुए भारत में फुकुशिमा-प्रकार (Fukushima-Type) की परमाणु दुर्घटना के मामले में अमेरिकी कंपनियाँ जो दायित्व वहन करेंगी, वह अत्यधिक अनिश्चित है।
- भारत की आवश्यकताएँ:
- भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते से भारत की आवश्यकताओं में काफी बदलाव आया है।
- साथ ही भारत को रूस के एटमस्ट्रॉयएक्सपोर्ट (Russia’s Atomstroyexport) के साथ अपने मौजूदा समझौते से भी काफी राहत मिली है।
- लागत:
- एक अन्य मुद्दा उस लागत से संबंधित है जिसे भारत विदेशी सहयोग के माध्यम से परमाणु ऊर्जा के लिये भुगतान करने हेतु तैयार है।
- महाराष्ट्र के जैतापुर में 1,650 मेगावाट के छह यूरोपीय दबाव रिएक्टर्स (European Pressurised Reactors- EPR) के लिये भारत-फ्राँस वार्ता परमाणु ऊर्जा विभाग और EDF के बीच मतभेदों के कारण विलंबित है जो प्रति यूनिट लागत से संबंधित है।
वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2008 के समझौते के बाद से अमेरिका द्वारा भारत को परमाणु रिएक्टरों की बिक्री पर चर्चा की जा रही है, इसके बाद के दो समझौतों पर केवल वर्ष 2016 और वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कंपनी (WEC) के सहयोग से छह रिएक्टर स्थापित करने के लिये एक परियोजना प्रस्ताव की घोषणा की गई है, लेकिन अभी काम शुरू होना बाकी है।
- फ्राँसीसी राज्य के स्वामित्व वाली ऑपरेटर अरेवा (Areva) से जुड़ी एक अन्य बड़ी परियोजना, जिसे बाद में फ्राँसीसी बिजली उपयोगिता EDF ने अधिग्रहण कर लिया था, में भी देरी हो रही है।
- इसने जैतापुर, महाराष्ट्र में छह रिएक्टरों के निर्माण हेतु इंजीनियरिंग अध्ययन और उपकरणों की आपूर्ति के लिये न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
आगे की राह
- ऐतिहासिक परमाणु समझौते (2008) के बावजूद असैन्य परमाणु सहयोग आगे नहीं बढ़ा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी शत्रु केवल स्थायी हित होते हैं। ऐसे में भारत को रणनीतिक हेजिंग की अपनी विदेश नीति को जारी रखना चाहिये।
- 21वीं सदी में विश्व व्यवस्था को आकार देने के लिये भारत-अमेरिका संबंध महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों सरकारों को अब अधूरे समझौतों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये और व्यापक रणनीतिक वैश्विक साझेदारी के लिये पाठ्यक्रम निर्धारित करना चाहिये।