इलेक्ट्रिक वाहन संभावनाएँ और चुनौतियाँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाए जाने से जुड़े संभावित लाभ, इसकी चुनौतियों व संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

सदर्भ: 

हाल ही में भारत सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाज़ार में महत्त्वपूर्ण भूमिका रखने वाली अमेरिकी कार निर्माता कंपनी ‘टेस्ला’ (Tesla) को भारत में परिचालन कार्य शुरू करने की अनुमति दी गई है। इस निर्णय के बाद वर्ष 2021 के शुरूआती महीनों में ही टेस्ला के भारतीय बाज़ार में कदम रखने का अनुमान है। सरकार का यह कदम भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।  

टेस्ला के भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने के साथ ही आने वाले समय में इसके कारण EV क्षेत्र पर शोध और नवोन्मेष के लिये निवेश में वृद्धि देखी जा सकती है तथा भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (जैसे- कार, मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर आदि) के क्षेत्र में प्रमुख निर्माता देश बनकर उभर सकता है। 

इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ने के लिये दिये जाने वाले तर्क बहुत ही सीधे और स्पष्ट हैं, जिनमें बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना तथा ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियाँ (खनिज तेल आयात पर निर्भरता) आदि जैसे कारक शामिल हैं। हालाँकि इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक स्तर पर अपनाए जाने के मार्ग में अभी भी कई बाधाएँ है, ऐसे में परिवहन क्षेत्र के इस बड़े बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर सरकार के समर्थन की आवश्यकता होगी।     

इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभ: 

ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) द्वारा जारी एक विश्लेषण के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से प्रदूषण में गिरावट के साथ, तेल के आयात में कमी लाने, कार्बन उत्सर्जन और सड़क जाम में कमी करने में सहायता प्राप्त होगी

  • प्रदूषण नियंत्रण:  ‘वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट (World Air Quality Report), 2019’ के अनुसार, वायु प्रदूषण के मामले में  विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित 30 शहरों में से 21 भारत में हैं। इन शहरों में अधिकांश प्रदूषण को वाहनों से होने वाले उत्सर्जन से जोड़कर देखा जा सकता है। 
    • इस संदर्भ में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से कुल उत्सर्जन में गिरावट आएगी और साथ ही यह पेरिस समझौते (Paris Agreement) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सहायक होगा। 
  • ऊर्जा सुरक्षा: परिवहन क्षेत्र में यह बदलाव देश के लिये तेल आयात की निर्भरता को कम करने के प्रयासों को मज़बूती प्रदान करेगा 
    • गौरतलब है कि देश भर में वाहन खरीदने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के साथ ही तेल की कीमतों में भी उछाल देखने को मिला है
    • वर्तमान में वैश्विक बाज़ार में तेल के मूल्यों की अस्थिरता के कारण पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में तीव्र परिवर्तन देखा जा रहा है ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन धन की बचत के लिये एक उपयुक्त विकल्प हो सकते हैं

इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • चार्जिंग अवसंरचना की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों में सबसे बड़ी समस्या बैटरी की सीमित रेंज (एक बार चार्ज करने पर अधिकतम दूरी तय करने की क्षमता) का होना है। ऐसे में पर्याप्त संख्या में चार्जिंग पॉइंट्स का न होना एक बड़ी समस्या है।
    • इसके अतिरिक्त वाहनों की चार्जिंग में भी काफी समय लगता है, जो डीज़ल/पेट्रोल वाहन मालिकों के लिये इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने की दिशा में एक और चुनौती प्रस्तुत करता है।  क्योंकि इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन की सीमित संख्या के विपरीत पारंपरिक ईंधन पंप की संख्या अधिक होने के कारण वे बड़ी आसानी से ही मिल जाते हैं।     
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की उच्च लागत: खनिज तेल से चलने वाले पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत बहुत अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरियों का उपयोग किया जाना है।
    • इसके अतिरिक्त लिथियम के अधिकांश भंडार कुछ ही देशों में स्थित हैं। उदाहरण के लिये विश्व में कुल ज्ञात लिथियम भंडार का 65% बोलिविया और चिली में स्थित हैं तथा इसी प्रकार 60% ज्ञात कोबाल्ट भंडार काॅन्गो में स्थित है।
    • इन अतिआवश्यक धातुओं की सीमित आपूर्ति ने इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों में काफी वृद्धि की है। 
    • इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी समस्या यह है कि वर्तमान में सड़कों पर मौज़ूद पारंपरिक वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से बदलने के लिये विश्व में पर्याप्त लीथियम और कोबाल्ट भंडार नहीं हैं।
  • चीन पर निर्भरता: गौरतलब है भारतीय कारों में 10-15% चीन से आयात किये गए कल-पुर्जों का प्रयोग किया जाता है, जबकि भारत द्वारा इलेक्ट्रिक स्कूटर के लगभग 90% पुर्जों का आयात चीन से किया जाता है। ऐसे में इलेक्ट्रिक कारों और अन्य वाहनों के कारण चीन पर भारत की निर्भरता 70% या इससे भी अधिक बढ़ सकती है।
    • इसके अतिरिक्त स्थानीय बैटरी विनिर्माण इकाइयों की स्थापना में भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि स्थानीय विनिर्माण इकाइयों के माध्यम से सब्सिडी प्राप्त आयातित बैटरियों के मूल्य से बराबरी कर पाना आसान नही होगा।  
  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र में व्यवधान: व्यापक पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाए जाने से पहले भारत को ऑटोमोबाइल क्षेत्र में आने वाले बदलाव के लिये स्वयं को तैयार करना होगा।
    • एक इलेक्ट्रिक वाहन में सामान्यतः लगभग 20 गतिशील पुर्जे होते हैं, जबकि पारंपरिक डीज़ल/पेट्रोल वाहन में 2000 से अधिक पुर्ज़े होते हैं।
    • ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन पारंपरिक वाहन कलपुर्ज़ों के निर्माण और व्यापार से जुड़े उद्यमों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

आगे की राह:  

  • चार्जिंग तंत्र अवसंरचना का विस्तार: इलेक्ट्रिक वाहनों की व्यापक स्वीकार्यता को सुलभ बनाने हेतु चार्जिंग तंत्र अवसंरचना के विस्तार के लिये सरकार का सहयोग आवश्यक होगा।
    • वहनीय और सुविधाजनक चार्जिंग ही उपभोक्ताओं के लिये इस इलेक्ट्रिक वाहनों के आकर्षण को बढ़ाएगी। 
  • बैटरी हस्तांतरण प्रणाली:  चार्जिंग की समस्या से निपटने के लिये हस्तांतरणीय बैटरियों और स्विचिंग स्टेशन की स्थापना एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। 
    • बैटरियों की चार्जिंग एक बड़ी समस्या रही है क्योंकि इसमें काफी समय लग सकता है। अतः एक ऐसे तंत्र की स्थापना की आवश्यकता होगी, जहाँ कुछ ही मिनटों में इलेक्ट्रिक वाहनों की डिस्चार्ज या खाली हुई बैटरियों को फुल चार्ज बैटरियों से बदला जा सकेगा।
  • उन्नत बैटरी तकनीकी में शोध और विकास:  कम समय में तेज़ी से चार्ज होने वाली बैटरियों पर शोध और विकास में निवेश किया जाना बहुत ही आवश्यक है।
    • इस संदर्भ में फ्यूल सेल का प्रयोग भी एक सकारात्मक विकल्प हो सकता है। गौरतलब है कि हाइड्रोजन से चलने वाली फ्यूल सेल कार में उपोत्पाद के रूप में केवल गर्म हवा और जलवाष्प ही प्राप्त होता है।    
  • आवश्यक धातुओं की निर्बाध आपूर्ति: बैटरी निर्माण हेतु आवश्यक धातुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये भारत अन्य देशों से समझौते पर हस्ताक्षर कर सकता है या भारत द्वारा चिली, काॅन्गो, बोलिविया और ऑस्ट्रेलिया में खदानों को खरीदने पर विचार किया जा सकता है।    
  • पुनर्प्रशिक्षण: इलेक्ट्रिक वाहनों में वृद्धि के साथ ही भारत को वाहन मैकेनिकों को चौथी औद्योगिक क्रांति की आवश्यकता के अनुरूप प्रशिक्षण प्रदान करना होगा। उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों की मरम्मत करने हेतु आवश्यक प्रशिक्षण के साथ उन्नत इलेक्ट्रिक उपकरण भी रखने होंगे।   
  • निष्कर्ष: वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल दिखाई देता है क्योंकि यह खनिज तेल पर हमारी निर्भरता को कम करने में सहायक हो सकता है, जो वैश्विक प्रदूषण को बड़े पैमाने पर कम करने के साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में सहायक हो सकता है। इलेक्ट्रिक कारों के संदर्भ में उनकी ऊर्जा (विद्युत) भंडारण क्षमता सबसे बड़ी चुनौती रही है।  यह एक मुख्य कारण था जिसके चलते पिछली शताब्दी में डीज़ल/पेट्रोल कारों को प्रमुखता प्राप्त हुई। इलेक्ट्रिक वाहन परिवहन क्षेत्र का भविष्य हो सकते हैं परंतु इसके लिये किफायती और अगली पीढ़ी की बैटरी तकनीकी का उपलब्ध होना बहुत ही आवश्यक होगा।

अभ्यास प्रश्न: लेक्ट्रिक वाहन परिवहन क्षेत्र का भविष्य हो सकते हैं परंतु यह तभी संभव होगा जब किफायती और अगली पीढ़ी की बैटरी तकनीकी उपलब्ध हो । टिप्पणी कीजिये।