लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

अपशिष्ट जल प्रबंधन

  • 19 Nov 2022
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अपशिष्ट जल प्रबंधन, एसबीएम 2.0, खुले में शौच से मुक्त (ODF) की स्थिति, अमृत मिशन, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूट्रोफिकेशन, बायोरेमेडिएशन, फाइटोरेमेडिएशन।

मेंन्स के लिये:

अपशिष्ट जल प्रबंधन और संबंधित सरकारी पहल में चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

दुनिया की लगभग आधी या 43% नदियाँ सक्रिय दवा सामग्री की सांद्रता से दूषित हैं जो स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती हैं।

  • दवा उद्योग को एंटीबायोटिक प्रदूषण और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को सीमित करने के लिये अपशिष्ट जल प्रबंधन एवं प्रक्रिया नियंत्रण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • भारत के विभिन्न राज्यों में विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे फार्मास्युटिकल केंद्रों में व्यापक पैमाने पर दवा प्रदूषण की सूचना मिली है।

अपशिष्ट जल:

  • परिचय:
    • अपशिष्ट जल वर्षा जल अपवाह और मानव गतिविधियों से उत्पन्न जल का प्रदूषित रूप है, इसे सीवेज भी कहा जाता है।
    • इसे आमतौर पर घरेलू सीवेज, औद्योगिक सीवेज या तूफान सीवेज (तूफानी पानी) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • आमतौर पर एक जल निकाय में डंप किया गया सीवेज आत्म-शुद्धिकरण की प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से खुद को साफ कर सकता है।
    • लेकिन जनसंख्या में वृद्धि, साथ ही बड़े पैमाने पर शहरीकरण ने सीवेज निर्वहन में वृद्धि की है जो प्राकृतिक शुद्धिकरण की दर से कहीं अधिक है।
    • इस प्रकार उत्पन्न अतिरिक्त पोषक तत्त्व जल निकाय में यूट्रोफिकेशन और जल की गुणवत्ता में धीरे-धीरे गिरावट का कारण बनते हैं।
      • यूट्रोफिकेशन एक जल निकाय की प्रक्रिया है जो खनिजों और पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध हो जाती है जो शैवाल की अत्यधिक वृद्धि को प्रेरित करती है, जिससे जल निकायों में ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • अपशिष्ट जल उपचार:
    • अपशिष्ट जल उपचार, जिसे सीवेज उपचार भी कहा जाता है, के तहत जलभृतों या जल के प्राकृतिक निकायों जैसे नदियों, झीलों, मुहानों और महासागरों तक अपशिष्ट जल या सीवेज अशुद्धियों को पहुँचने से पहले साफ़ किया जाता है।
    • ऑन-साइट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) अपशिष्ट जल का शोधन और उसे शुद्ध करे पुन: उपयोग के लिये उपयुक्त बनाते हैं।
      • STP मुख्य रूप से घरेलू सीवेज से अपशिष्ट जल से दूषित पदार्थों को हटाते हैं।

Waste-Water

भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन की स्थिति:

  • परिचय:
    • 2021 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% है तथा (अन्य 5.2% क्षमता के साथ) सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है।
      • यद्यपि भारत की अपशिष्ट और सीवेज उपचार क्षमता लगभग 20% के वैश्विक औसत से अधिक है, यह पर्याप्त नहीं है और त्वरित उपायों द्वारा सीवेज उपचार क्षमता को नहीं बढ़ाया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में शहरी क्षेत्रों में 5% अपशिष्ट जल अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित रहता है।
    • 2019 की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान के तहत स्थापित अधिकांश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहे हैं तथा उत्पन्न 33000 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) कचरे में से केवल 7000 MLD एकत्र और उपचारित किया जाता है।
  • नियम:
    • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (1988 में संशोधित):
      • यह कानून जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण एवं जल की पूर्णता को बनाए रखने या बहाल करने के लिये पेश किया गया था।
    • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977 (2003 में संशोधित)
      • इसका उद्देश्य कुछ उद्योगों को चलाने वाले व्यक्तियों और स्थानीय अधिकारियों द्वारा खपत किये गए जल पर उपकर लगाने एवं संग्रह करने का प्रावधान है।
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:
      • यह केंद्र सरकार को सीवेज और प्रवाह निर्वहन मानकों को निर्धारित करने, जाँच करने एवं अनुपालन सुनिश्चित करने तथा अनुसंधान करने का अधिकार देता है।
      • यह अधिनियम जल, भूमि, वायु और शोर सहित सभी प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण पर लागू होता है।
  • सरकार की पहल:
    • भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन 2.0 (SBM 2.0) के तहत अपना ध्यान ठोस अपशिष्ट, कीचड़ और ग्रेवाटर प्रबंधन पर केंद्रित किया।
      • खुले में शौच से मुक्त (ODF) स्थिति प्राप्त करने पर निरंतर ध्यान देने के बाद आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने शहरों के लिये ODF+, ODF++ एवं जल+ स्थिति प्राप्त करने के लिये विस्तृत मानदंड विकसित किये।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) के लिये अटल मिशन के तहत MoHUA द्वारा सीवरेज एवं सेप्टेज प्रबंधन परियोजनाएँ शुरू की गईं।

अपशिष्ट जल प्रबंधन में चुनौतियाँ:

  • भारतीय संविधान की अनुसूची 7 जल को राज्य के मामले के रूप में निर्धारित करती है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से संघ सूची में उल्लिखित प्रावधानों के अधीन है।
    • यह संसद को जनहित में अंतर्राज्यीय जल को विनियमित करने और विकसित करने के लिये कानून बनाने में सक्षम बनाता है, जबकि राज्य जल आपूर्ति, सिंचाई, जल निकासी एवं तटबंधों, जल भंडारण आदि जैसे मामलों पर राज्य के भीतर जल के उपयोग के संबंध में कानून बनाने की स्वायत्तता रखते हैं।
    • अपशिष्ट जल और इसके दुष्परिणामों के प्रति यह विघटित दृष्टिकोण राज्यों के भीतर भी देखा जा सकता है। 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियमों के अनुसार, जल संसाधनों का शासन स्थानीय स्तर, ग्रामीण तथा शहरी स्तर पर और अधिक खंडित है।
    • इन संवैधानिक तंत्रों के परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति असंतुलन हुआ है, जिससे संघीय न्यायिक अस्पष्टता पैदा हुई है।
      • विशेष रूप से अपशिष्ट जल प्रबंधन के मामले में एक राज्य की निष्क्रियता एक या अधिक अन्य राज्यों के हितों को प्रभावित करती है और विवादों का कारण बनती है।
  • जबकि केंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार समाधानों के लिये एक केंद्रीय स्थान में एकत्र किये जाने वाले अपशिष्ट जल के लिये परस्पर जुड़े सीवरों और जल निकासी के एक अच्छी तरह से विकसित नेटवर्क की आवश्यकता होती है। यह उन्हें महँगा, श्रम प्रधान एवं समय लेने वाला बनाता है।

आगे की राह

  • हालाँकि अपशिष्ट जल के मुद्दों के बेहतर मूल्यांकन और निवारण के लिये एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, लेकिन नीतियों के कुशल संचालन एवं जल निकायों के समग्र विकास के लिये जल प्रशासन को सभी स्तरों पर मान्यता देने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में अपशिष्ट जल को न केवल पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिये बल्कि जल क्षेत्र के मामले के रूप में सभी केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा सुसंगत रूप से संबोधित किया जाना चाहिये।
  • सस्ते वैकल्पिक समाधानों के साथ केंद्रीकृत उपचार संयंत्रों का पूरक होना अत्यावश्यक है जैसे:
    • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र छोटे कस्बों, शहरी और ग्रामीण समूहों, गेटेड कॉलोनियों, कारखानों एवं औद्योगिक पार्कों में स्थापित किये जा सकते हैं। उन्हें सीधे साइट पर स्थापित किया जा सकता है, इस प्रकार अपशिष्ट जल को सीधे उसके स्रोत पर उपचारित किया जा सकता है।
    • प्रदूषकों और खतरनाक अपशिष्टों को अपघटित करने के लिये बायोरेमेडिएशन कवक और बैक्टीरिया जैसे रोगाणुओं का उपयोग करता है।
    • फाइटोरेमेडिएशन का तात्पर्य संदूषकों की सांद्रता या विषाक्त प्रभावों को कम करने के लिये पौधों और संबंधित मृदा के रोगाणुओं के उपयोग से है, साथ ही यह पूरे देश में झीलों एवं तालाबों की सफाई में काफी प्रभावी साबित हुआ है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिये एक मानक मापदंड है? (2017)

(a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिये
(b) वन पारिस्थितिक तंत्रें में ऑक्सीजन स्तरों के अभिकलन के लिये
(c) जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिये
(d) उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिये

उत्तर: C

उत्तर:

  • जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) एक निश्चित समय अवधि में एक निश्चित तापमान पर जल के दिये गए नमूने में कार्बनिक पदार्थ को विघटित करने के लिये वायुजीवी(एरोबिक) जीवों द्वारा आवश्यक घुलित ऑक्सीजन की मात्रा है।
  • BOD जल में प्रदूषित जैविक सामग्री के लिये सबसे आम उपायों में से एक है। BOD जल में मौज़ूद सड़ने योग्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को इंगित करती है। इसलिये कम BOD अच्छी गुणवत्ता वाले जल का सूचक है, जबकि उच्च BOD प्रदूषित जल को इंगित करता है।
  • सीवेज और अनुपचारित जल के निर्वहन के परिणामस्वरूप घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है क्योंकि उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की अधिकता अवक्रमण प्रक्रिया में वायुजीवी (एरोबिक) बैक्टीरिया द्वारा उपभोग की जाती है, ऑक्सीजन पर निर्भर अन्य जलीय जीवों को ऑक्सीजन से वंचित करके ही वे जीवित रह सकते हैं।

अतः विकल्प C सही उत्तर है।


प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक का/के कौन-सा/से लाभ है/हैं? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है।
  2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है।
  3. जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने के लिये आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

व्याख्या:

  • जैवोपचारण एक उपचार प्रक्रिया है जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों (खमीर, कवक या बैक्टीरिया) का उपयोग खतरनाक पदार्थों को कम विषाक्त या गैर-विषैले पदार्थों में विखंडित करने, निम्नीकरण करने के लिये करती है।
  • सूक्ष्मजीव कार्बनिक प्रदूषकों को अहानिकर उत्पादों-मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में विखंडित कर देते हैं। यह एक लागत प्रभावी, प्राकृतिक प्रक्रिया है जो कई सामान्य जैविक कचरे पर लागू होती है। उत्सर्जन स्रोत पर ही कई जैवोपचारण तकनीकों का संचालन किया जा सकता है। अतः कथन 1 सही है।
  • सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके सभी संदूषकों को जैवोपचारण द्वारा आसानी से उपचारित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही और पूरी तरह उपचारित नहीं किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • जैवोपचारण के विशिष्ट उद्देश्यों के लिये डिज़ाइन किये गए सूक्ष्मजीवों को बनाने हेतु जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिये जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प C सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2