विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
जल शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ
- 26 Mar 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:जल की शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ, रिवर्स ऑस्मोसिस (RO), TDS (कुल घुले हुए ठोस पदार्थ), मृत जल, WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)। मेन्स के लिये:जल शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) द्वारा न केवल जल से अशुद्धियों एवं रोगजनको को समाप्त करने की क्षमता हेतु लोकप्रियता प्राप्त की है, बल्कि TDS (संपूर्ण घुलनशील ठोस पदार्थ), के स्तर को भी कम करने की क्षमता भी प्राप्त की है, हालाँकि कैल्शियम एवं मैग्नीशियम जैसे आवश्यक खनिजों की हानि के कारण चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
RO जल शुद्धिकरण विधि क्या है?
- परिचय:
- RO एक जल शुद्धिकरण प्रक्रिया है जो अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली का उपयोग करके जल से दूषित पदार्थों को निकालती है।
- एक सामान्य RO प्रक्रिया में एक अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली होती है, जिसके छिद्रों का आकार 0.0001 से 0.001 माइक्रोन होता है।
- इस विधि में जल का प्रवाह दबाव युक्त झिल्ली के माध्यम से किया जाता है, जबकि घुले हुए ठोस पदार्थ, रसायन, सूक्ष्मजीव एवं अन्य अशुद्धियाँ जैसे प्रदूषक अलग हो जाते हैं।
- यह झिल्ली बड़े अणुओं एवं आयनों को अवरुद्ध करते हुए जल के अणुओं को गुज़रने देती है।
- RO प्रक्रिया प्रभावी ढंग से लवण, भारी धातुओं, बैक्टीरिया, वायरस एवं कार्बनिक यौगिकों सहित अशुद्धियों की एक विस्तृत शृंखला को हटा देती है, जिससे स्वच्छ और शुद्ध जल प्राप्त होता है।
- प्राप्त जल, खाना पकाने के साथ-साथ विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु जल की गुणवत्ता में सुधार के लिये आवासीय तथा औद्योगिक दोनों प्रक्रिया में इस तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- RO एक जल शुद्धिकरण प्रक्रिया है जो अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली का उपयोग करके जल से दूषित पदार्थों को निकालती है।
- RO जल की बढ़ती मांग के कारण:
- खराब जल गुणवत्ता: कई क्षेत्र, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र, खराब गुणवत्ता वाले भूजल अथवा नल के जल की चुनौतियों का सामना करते हैं। खारा स्वाद, अप्रिय गंध एवं क्लोरीन या भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों से संदूषण जैसे मुद्दे लोगों को स्वच्छ पेयजल के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने हेतु प्रेरित करते हैं।
- अनुमानित स्वास्थ्य लाभ: उपभोक्ताओं के बीच एक सामान्य धारणा है कि अनुपचारित अथवा नगरपालिका द्वारा आपूर्ति किये गए जल की तुलना में RO जल पीने के लिये अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक और सुरक्षित है।
- इस विश्वास का समर्थन करने वाले सीमित वैज्ञानिक प्रमाणों के बावजूद, RO जल की खपत से जुड़े बेहतर स्वास्थ्य परिणामों की धारणा इसकी लोकप्रियता में योगदान करती है।
- सुविधा और पहुँच: जल शोधन संयंत्रों और उपयोग योग्य घरेलू RO सिस्टम के माध्यम से स्वच्छ जल आसानी से उपलब्ध है।
- यह सुविधा, स्थापना और रखरखाव में आसानी के साथ स्वच्छ पेयजल तक निर्बाध पहुँच के चलते उपभोक्ताओं के लिये इसे एक पसंदीदा विकल्प बनाती है।
- बढ़ता शहरीकरण: तेज़ी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण साफ जल की मांग बढ़ गई है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहाँ भूजल संदूषण तथा नगरपालिका जल की गुणवत्ता के मुद्दे प्रचलित हैं।
- परिणामस्वरूप, शहरी आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RO जल शोधन प्रणालियों की मांग बढ़ जाती है।
- प्रौद्योगिकी प्रगति: RO प्रौद्योगिकी में निरंतर प्रगति से अधिक कुशल और लागत प्रभावी जल शोधन प्रणालियों का विकास हुआ है।
- ये नवाचार RO जल को उपभोक्ताओं की एक विस्तृत शृंखला के लिये अधिक सुलभ और आकर्षक बनाते हैं।
RO प्रक्रिया से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- आवश्यक खनिजों की हानि:
- RO सिस्टम जल से कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिजों सहित अशुद्धियों तथा रोगजनकों को हटाने में अत्यधिक प्रभावी हैं।
- जबकि यह शुद्धिकरण प्रक्रिया स्वच्छ जल सुनिश्चित करती है, इससे आवश्यक खनिजों में भी कमी आती है जो मानव स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद होते हैं।
- खनिजों की यह हानि, विशेष रूप से कैल्शियम और मैग्नीशियम, संभावित रूप से सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी में योगदान कर सकती है तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ लोग पहले से ही ऐसी कमियों से परेशान हैं।
- अत्यधिक कम TDS स्तर:
- कई अध्ययनों में यह पाया गया कि कई स्थानों पर कुल घुलनशील ठोस (TDS) का स्तर 50 मिलीग्राम/लीटर से नीचे था, जो कैल्शियम और मैग्नीशियम के स्तर में महत्त्वपूर्ण कमी का संकेत देता है।
- देश भर में लगभग 4,000 स्थानों पर किये गए एक अध्ययन में TDS का स्तर 25 से 30 मिलीग्राम/लीटर तक देखा गया, जो जल में आवश्यक खनिजों की कमी का संकेत देता है।
- विभिन्न मामलों में RO जल में TDS का स्तर 18 से 25 मिलीग्राम/लीटर पाया गया जो आवश्यक खनिजों की कमी का संकेत देता है। इसे "मृत जल" (Dead Water) कहा जाता है जो बैटरी के उपयोग जैसे उद्देश्यों के लिये उपयुक्त होता है किंतु मानव द्वारा उपभोग के लिये उपयुक्त नहीं है।
- कई अध्ययनों में यह पाया गया कि कई स्थानों पर कुल घुलनशील ठोस (TDS) का स्तर 50 मिलीग्राम/लीटर से नीचे था, जो कैल्शियम और मैग्नीशियम के स्तर में महत्त्वपूर्ण कमी का संकेत देता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- किये गए शोध के अनुसार RO सिस्टम महत्त्वपूर्ण मात्रा में जल के लाभकारी कैल्शियम और मैग्नीशियम का न्यूनीकरण कर सकता है जिससे जोड़ों का दर्द, कोरोनरी हृदय रोग, पीठ दर्द एवं विटामिन B12 की कमी जैसी संभावित स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ऐसे मामलों पर प्रकाश डाला है जहाँ लोगों ने RO सिस्टम का उपयोग करने के बाद हृदय संबंधी विकारों और मांसपेशियों में ऐंठन सहित स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव किया जो मैग्नीशियम की अत्यधिक कमी का संकेत देता है।
जल के शुद्धिकरण से संबंधित अन्य विधियाँ क्या हैं?
सुरक्षित पेयजल के लिये TDS हेतु अनुशंसित सीमाएँ क्या हैं?
- भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के अनुसार सुरक्षित पेयजल के लिये TDS की अधिकतम सीमा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर (ppm) है।
- हालाँकि किसी वैकल्पिक जल स्रोत के अभाव में 2,000 मिलीग्राम/लीटर की TDS सीमा स्वीकार्य है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वर्ष 2017 में जारी पेयजल मानकों के अनुसार पीने के जल में TDS की मात्रा 600 से 1,000 मिलीग्राम/लीटर के बीच होनी चाहिये।
- यूरोप, अमेरिका और कनाडा के देशों ने TDS मानक 500 से 600 मिलीग्राम/लीटर निर्धारित किये हैं।
RO सिस्टम के अंतर्गत खनिज-संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये कौन-सी तकनीकें उपलब्ध हैं?
- TDS से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिये, RO निर्माताओं ने वाणिज्यिक और आवासीय मशीनों के लिये TDS नियंत्रक (अथवा मॉड्यूलेटर) एवं मिनरल इन्फ्यूज़ंन कार्ट्रिज (अथवा मिनरलाइज़र) पेश किये। TDS नियंत्रक शुद्ध जल में TDS स्तर निर्धारित करने में मदद करते हैं, जबकि मशीन के अंदर मौजूद मिनरल कार्ट्रिज शुद्धिकरण के दौरान जल में विशिष्ट खनिज का अंतर्वाह करते हैं।
- TDS स्तर कम होने से pH भी कम हो जाता है, जिससे जल की अम्लता बढ़ जाती है। इसलिये जल में बाइकार्बोनेट और हाइड्रोजन ऑक्साइड जैसे यौगिकों को शामिल करने के लिये नए RO सिस्टम में एल्कलाइन/क्षारीय कार्ट्रिज होते हैं।
आगे की राह
- RO की आवश्यकता का आकलन करते समय क्षेत्र और जल की स्थिति पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- RO केवल उन क्षेत्रों में आवश्यक है जहाँ सतह या भू-जल कठोर है। कई स्थानों पर जहाँ सतही जल पीने के जल का स्रोत है, जल शुद्धिकरण के लिये कैंडल्स, सक्रिय कार्बन और UV फिल्टर का संयोजन पर्याप्त है।
- जबकि RO आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे विषाक्त पदार्थों को समाप्त करता है, लेकिन अगर ये ज़हरीले तत्त्व ही एकमात्र चिंता का विषय हैं तो यह सबसे उपयुक्त समाधान नहीं हो सकता है।
- झारखंड और ओडिशा जैसे क्षेत्रों में, जहाँ आर्सेनिक या फ्लोराइड संदूषण प्रचलित है, इन संदूषकों को विशेष रूप से लक्षित करने के लिये वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को नियोजित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये ऐसे क्षेत्रों में हैंडपंप अभी भी आमतौर पर उपयोग किये जाते हैं। हालाँकि एक बार जब पाइप से जल हर घर तक उपलब्ध होता है, तो यह सुनिश्चित करना स्थानीय अधिकारियों जैसे- नगर निगम या पंचायत, की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि आपूर्ति किया जाने वाला जल BIS मानकों के अनुरूप हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न 1. जैव ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिये एक मानक मापदंड है ? (2017) (a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिये उत्तर: (c) प्रश्न 2. सूक्ष्मजैविक ईंधन कोशिकाओं को स्थायी ऊर्जा का एक स्रोत माना जाता है। क्यों? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भूमि एवं जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन से मानवीय दुखों में भारी कमी आएगी। विवेचना कीजिये। (2016) |