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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम

  • 20 Apr 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम, लाइफ कैंपेन, कार्बन क्रेडिट, क्योटो प्रोटोकॉल, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर

मेन्स के लिये:

ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के तहत कवर की गई गतिविधियाँ, ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम से संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने स्पष्ट किया है कि ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) के तहत केवल वृक्षारोपण के बजाय पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम क्या है?

  • परिचय:
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) एक अभिनव बाज़ार-आधारित तंत्र है, जिसे व्यक्तियों, समुदायों, निजी क्षेत्र के उद्योगों और कंपनियों जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 'LiFE' पहल के हिस्से के रूप में एक स्थायी जीवनशैली और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • कवर की गई गतिविधियाँ: ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम में पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के उद्देश्य से आठ प्रमुख गतिविधियाँ शामिल हैं:
    • वृक्षारोपण: हरित आवरण को बढ़ाने और वनाच्छादन से निपटने के लिये पेड़ लगाना।
    • जल प्रबंधन: जल संसाधनों के कुशलतापूर्वक प्रबंधन और संरक्षण के लिये रणनीतियों को लागू करना।
    • सतत् कृषि: पर्यावरण-अनुकूल और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।
    • अपशिष्ट प्रबंधन: पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू करना।
    • वायु प्रदूषण में कमी: पहल का उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना और वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
    • मैंग्रोव संरक्षण और पुनर्स्थापना: पारिस्थितिक संतुलन हेतु मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और पुनर्स्थापन।
  • शासन एवं प्रशासन:
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के परिचालन ढाँचे में एक ऐसी प्रक्रिया शामिल है, जहाँ व्यक्तियों और निगमों दोनों को 'निम्नीकृत' समझे जाने वाले वनों की बहाली के प्रयासों में वित्तीय रूप से योगदान करने का अवसर दिया जाता है।
      • इसे पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र इकाई, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) के अनुप्रयोगों के माध्यम से सुविधाजनक बनाया गया है।
      • ICFRE वन बहाली के लिये निर्देशित वित्तीय योगदान की देख-रेख हेतु ज़िम्मेदार है, जिसे बाद में संबंधित राज्य वन विभागों द्वारा निष्पादित किया जाता है।
    • वनीकरण प्रयासों के बाद दो वर्ष की अवधि के पश्चात् ICFRE लगाए गए पेड़ों का मूल्यांकन करता है।
      • सफल मूल्यांकन पर प्रत्येक पेड़ को एक 'ग्रीन क्रेडिट' के बराबर मूल्य दिया जाता है। इन अर्जित ग्रीन क्रेडिट का उपयोग फंडिंग ऑर्गनाईज़ेशन द्वारा कुछ तरीकों से किया जा सकता है:
        • सबसे पहले ये उन संगठनों के लिये एक अनुपालन तंत्र के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिन्हें वन कानूनों द्वारा वनीकरण के लिये भूमि का एक तुलनीय क्षेत्र प्रदान करके गैर-वानिकी उद्देश्यों हेतु वन भूमि के अपयोजन को ऑफसेट करने के लिये अनिवार्य किया गया है।
        • वैकल्पिक रूप से इन क्रेडिट को पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों के पालन की रिपोर्ट करने या कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के दायित्वों को पूरा करने के लिये एक मीट्रिक के रूप में नियोजित किया जा सकता है।
  • ग्रीन क्रेडिट से प्राप्त आय एवं गणना: ग्रीन क्रेडिट अर्जित करने के लिये प्रतिभागियों को एक समर्पित वेबसाइट के माध्यम से अपनी पर्यावरणीय गतिविधियों को पंजीकृत करने की आवश्यकता होती है।
    • इसके बाद एक नामित एजेंसी इस परिचालन का सत्यापन करेगी। इस एजेंसी की रिपोर्ट के आधार पर प्रशासक आवेदक को ग्रीन क्रेडिट प्रमाणपत्र प्रदान करेगा।
    • ग्रीन क्रेडिट की गणना वांछित पर्यावरणीय परिणामों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक संसाधन आवश्यकताओं, पैमाने, दायरे, आकार के साथ अन्य प्रासंगिक मापदंडों जैसे कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री तथा ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म: इस कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण घटक ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री की स्थापना करना है, जो अर्जित क्रेडिट को ट्रैक एवं प्रबंधित करने में सहायता प्रदान करेगा।
    • इसके अतिरिक्त प्रशासक घरेलू बाज़ार में ग्रीन क्रेडिट्स के व्यापार को सुनिश्चित करने के लिये एक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण करेगा और उसे बनाए रखेगा।
  • महत्त्व: 
    • भारत की पर्यावरण संरेखित नीतियाँ: भारत की पर्यावरण नीतियाँ, जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 एवं राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती हैं।
      • GCP के साथ-साथ इन नीतियों का उद्देश्य वनों, वन्य जीवन एवं समग्र प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना है।
    • भारत के जलवायु उद्देश्यों के अनुरूप: GCP वैश्विक दायित्वों को बनाए रखने के भारत के प्रयासों का एक उदाहरण है, जो कि COP26 पर सहमति के अनुरूप है।
    • अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिकी तंत्र बहाली का पूरक: GCP संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक (वर्ष 2021-2030) के अनुरूप है, जो बहाली गतिविधियों को बढ़ाने पर ज़ोर देता है।
      • इस संबंध में भारत के दृष्टिकोण में बहाली प्रक्रिया में सभी हितधारकों को शामिल करना तथा पारंपरिक ज्ञान एवं संरक्षण का लाभ प्राप्त करना शामिल है।

क्या ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम कार्बन क्रेडिट को भी कवर करता है? 

  • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, 2023 के तहत प्रदान किये गए कार्बन क्रेडिट से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है, जो वर्ष 2001 के ऊर्जा संरक्षण अधिनियम द्वारा शासित होता है।
    • कार्बन क्रेडिट, जिसे कार्बन ऑफसेट के रूप में भी जाना जाता है, ऐसे परमिट होते हैं जो मालिक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति देते हैं।
      • एक क्रेडिट 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के बराबर उत्सर्जन की अनुमति देता है।
  • ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने वाली पर्यावरणीय गतिविधि में जलवायु सह-लाभ हो सकते हैं, जैसे कार्बन उत्सर्जन को कम करना या हटाना, जिससे संभावित रूप से ग्रीन क्रेडिट के अलावा कार्बन क्रेडिट का अधिग्रहण हो सकता है।

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के साथ क्या चुनौतियाँ हैं?

  • वन पारिस्थितिकी पर प्रभाव: आलोचकों ने चिंता जताई है कि ग्रीन क्रेडिट नियम वन पारिस्थितिकी के लिये हानिकारक हो सकते हैं। ये नियम राज्य वन विभागों को ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिये वृक्षारोपण के लिये 'निम्नीकृत भूमि पार्सल' की पहचान करने का निर्देश देते हैं। 
    • हालाँकि इस दृष्टिकोण की अवैज्ञानिक और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये संभावित विनाशकारी के रूप में आलोचना की गई है।
    • झाड़ियों और खुले वनों के लिये ''निम्नीकृत' जैसे शब्दों का उपयोग अस्पष्ट माना जाता है और इससे औद्योगिक पैमाने पर वृक्षारोपण हो सकता है जो मृदा की गुणवत्ता को अपरिवर्तनीय रूप से बदल सकता है, स्थानीय जैवविविधता को प्रतिस्थापित कर सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • हरित रेगिस्तानों का निर्माण: ऐसी आशंका है कि ग्रीन क्रेडिट नियमों से 'हरित रेगिस्तानों' का निर्माण हो सकता है।
    • यह शब्द उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहाँ मूल परिदृश्य की पारिस्थितिक जटिलताओं और जैवविविधता पर विचार किये बिना वृक्षारोपण किये जाते हैं।
    • इस तरह के वृक्षारोपण पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित कर सकते हैं और प्राकृतिक वन की तरह विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का समर्थन नहीं करते हैं।
    • वनों को केवल पेड़ों की गिनती के आधार पर मापने के लिये नियमों की आलोचना की गई है, जो एक कार्यात्मक वन और उससे जुड़े वन्यजीवों की बहुस्तरीय संरचना को नज़रअंदाज़ करता है।
  • पद्धति संबंधी चिंताएँ: ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने की पद्धति, विशेष रूप से वृक्षारोपण के माध्यम से इसकी पर्यावरणीय सुदृढ़ता पर प्रश्न उठाया गया है। 
    • आलोचकों को चिंता है कि यह कार्यप्रणाली संभावित नियामक कमियों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है और इससे पर्यावरणीय गिरावट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • 'बंजर भूमि' पर दबाव: 'अपघटित भूमि खंडों' पर पेड़ लगाने पर ज़ोर उन क्षेत्रों पर दबाव डालता है जिन्हें अक्सर बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ये क्षेत्र घास के मैदानों की तरह कार्बन पृथक्करण और अद्वितीय जैवविविधता का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों में वनीकरण पर ज़ोर देने से स्थानिक प्रजातियों तथा पारिस्थितिक कार्यों का नुकसान हो सकता है।

आगे की राह

  • जैवविविधता आधारित वनीकरण: पेड़ों की गणना से हटकर जैवविविधता-आधारित वनीकरण पर ध्यान केंद्रित करना, जहाँ लक्ष्य केवल बड़ी संख्या में पेड़ लगाने के बजाय विविध मूल प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करना है।
    • यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि नव स्थापित वृक्षारोपण प्राकृतिक वनों की नकल करते हैं और वन्यजीवों की एक विस्तृत शृंखला का समर्थन करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: वृक्षारोपण के लिये उपयुक्त वास्तव में निम्नीकृत भूमि की पहचान करने के लिये सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) और उपग्रह इमेज़री का उपयोग करना, जिससे मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचने का जोखिम कम हो सके।
  • पारदर्शिता और ज्ञान साझा करना: कार्यक्रम दिशा-निर्देशों के अंतर्गत "अपघटित भूमि (Degraded land)" और "बंजर भूमि (Wasteland)" जैसे शब्दों की स्पष्ट और पारदर्शी परिभाषा सुनिश्चित करना।
    • पर्यावरण की दृष्टि से ज़िम्मेदार प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये वन विभाग, व्यवसायों और गैर सरकारी संगठनों सहित हितधारकों के बीच ज्ञान साझा करने तथा क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम को लागू करने के संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि ऐसे कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के बीच प्रभावी ढंग से संतुलन बनाते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: (b)


प्रश्न. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है? (2011)

(a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में संपुष्ट की गई थी।
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को प्रदान किया जाता है जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाकर उसे उत्सर्जन अभ्यंश के नीचे ला चुके होते हैं।
(c) कार्बन क्रेडिट का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हो रही वृद्धि पर अंकुश लगाना है।
(d) कार्बन क्रेडिट का क्रय-विक्रय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर नियत मूल्यों के आधार पर किया जाता है।

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. क्या यू.एन.एफ.सी.सी.सी. के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्त्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिये, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है ? आर्थिक संवृद्धि  के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)

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