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शासन व्यवस्था

पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) तथा भारत

  • 13 Mar 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (CSR), जलवायु परिवर्तन, UNPRI, BRSR, गरीबी, असमानता 

मेन्स के लिये:

पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) तथा भारत 

चर्चा में क्यों?

विश्वभर में लोग इस विचार को स्वीकार कर रहे हैं कि व्यवसाय को पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) के पैमाने पर मापा जाना चाहिये, हालाँकि ESG विधि और विनियम अभी भी भारत में प्रारंभिक अवस्था में हैं और इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना है।

ESG क्या है? 

  • परिचय: 
    • ESG लक्ष्य कंपनी के संचालन के लिये मानकों का एक समूह है जो कंपनियों को बेहतर शासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण के अनुकूल उपायों और सामाजिक उत्तरदायित्त्व का पालन करने के लिये मजबूर करता है।
      • पर्यावरणीय मानदंड इस बात पर विचार करते हैं कि एक कंपनी प्रकृति के प्रबंधक के रूप में कैसा प्रदर्शन करती है।
      • सामाजिक मानदंड जाँच करते हैं कि यह कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों और उन समुदायों के साथ संबंधों का प्रबंधन कैसे करता है जहाँ ये क्रियान्वित हैं।
      • शासन एक कंपनी के नेतृत्त्व, कार्यकारी वेतन, लेखापरीक्षा, आंतरिक नियंत्रण  और शेयरधारक अधिकारों से संबंधित है। 
    • यह गैर-वित्तीय कारकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो निवेश निर्णयों के मार्गदर्शन के लिये एक पैमाने के रूप में है, जिसमें वित्तीय प्रतिलाभ में वृद्धि अब निवेशकों का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। 
    • वर्ष 2006 में ‘यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट’ (UNPRI) की शुरुआत के बाद से ESG ढाँचे को आधुनिक व्यवसायों की एक अटूट कड़ी के रूप में मान्यता दी गई है।
  • CSR से अलग: 
    • भारत में एक मज़बूत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (Corporate Social Responsibility- CSR) नीति है जो यह अनिवार्य करती है कि निगम समाज के कल्याण में योगदान देने वाली पहलों में शामिल हों।
    • इस शासनादेश को कंपनी अधिनियम, 2013 के वर्ष 2014 और 2021 के संशोधनों के पारित होने के साथ कानून में संहिताबद्ध किया गया था।
      • संशोधनों में कंपनियों को किसी भी वित्तीय वर्ष में CSR गतिविधियों पर पिछले तीन वर्षों में अपने शुद्ध लाभ का कम-से-कम 2% खर्च करने की आवश्यकता है।
    • जबकि ESG नियम प्रक्रिया और प्रभाव में भिन्न हैं।  

भारत में ESG की आवश्यकता: 

  • भारत वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई एवं जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ ही गरीबी, असमानता, भेदभाव तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसी सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, साथ ही इन मुद्दों को संबोधित करने तथा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने हेतु समर्पित कंपनियों में निवेश के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
  • भारत में एक जटिल विनियामक और कानूनी वातावरण है तथा भारत में काम करने वाली कंपनियों को भ्रष्टाचार, विनियामक अनुपालन एवं कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिये इन जोखिमों को कम करने हेतु मज़बूत प्रशासन प्रथाओं वाली कंपनियों को मान्यता देने की आवश्यकता है।

भारत में ESG अनुपालन से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • सीमित जागरूकता: भारत में कई कंपनियों को ESG कारकों के महत्त्व के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं है या उनके पास अपने व्यवसाय प्रथाओं में ESG के विचारों को एकीकृत करने हेतु संसाधन नहीं हैं। 
  • अपर्याप्त डेटा: भारत में कंपनियों के लिये ESG कारकों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा सीमित हो सकता है, जिससे निवेशकों हेतु ESG प्रदर्शन का मूल्यांकन करना और निवेश निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। 
  • कमज़ोर नियामक वातावरण: कंपनियों द्वारा ESG अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भारत का नियामक वातावरण पूरी तरह से विकसित या लागू नहीं हो सका है। इससे कॉर्पोरेट प्रथाओं में जवाबदेही तथा पारदर्शिता की कमी हो सकती है।
  • सांस्कृतिक कारक: भारत में विविध सांस्कृतिक परिदृश्य है और कुछ पारंपरिक व्यावसायिक प्रथाएँ ESG सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हो सकती हैं। ESG नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये कंपनियों को इन सांस्कृतिक कारकों को नेविगेट करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • सीमित ESG-केंद्रित निवेश विकल्प: निवेशकों के पास सीमित निवेश विकल्प हो सकते हैं जो विशेष रूप से भारत में ESG कारकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे निवेश निर्णय लेने में ESG विचारों को पूरी तरह से एकीकृत करना मुश्किल हो जाता है।

ESG अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु की गई पहल:

  • कंपनियों के लिये ESG प्रकटीकरण आवश्यकताओं की पहचान करने की दिशा में प्रारंभिक मील के पत्थर में से एक कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) द्वारा वर्ष 2011 में व्यापार की सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक ज़िम्मेदारियों (NVGs) पर राष्ट्रीय स्वैच्छिक दिशा-निर्देश जारी करना था। 
  • सेबी ने वर्ष 2012 में व्यावसायिक उत्तरदायित्त्व रिपोर्ट (BRR) की स्थापना की, जिसमें बाज़ार पूंजीकरण (जो वर्ष 2015 में शीर्ष 500 सूचीबद्ध संस्थाओं तक विस्तारित किया गया था) द्वारा शीर्ष 100 सूचीबद्ध संस्थाओं को अपनी वार्षिक रिपोर्ट के हिस्से के रूप में BRR फाइल करने की आवश्यकता थी।
  • वर्ष 2021 में SEBI ने मौजूदा BRR रिपोर्टिंग की आवश्यकता को एक व्यापक एकीकृत तंत्र, व्यावसायिक उत्तरदायित्त्व और स्थिरता रिपोर्ट (BRSR) के साथ परिवर्तित किया।
    • यह वित्त वर्ष 2022-23 से शीर्ष 1,000 सूचीबद्ध संस्थाओं (बाज़ार पूंजीकरण द्वारा) पर अनिवार्य रूप से लागू होगा।
  • BRSR, सूचीबद्ध कंपनियों से ESG प्रकटीकरण पर यह मांग करता है कि "उत्तरदायी व्यावसायिक आचरण पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश" (NGBRCs) के नौ सिद्धांतों की तुलना में उन्होंने कैसा प्रदर्शन किया।

आगे की राह  

  • भारत में ESG को प्रोत्साहित करने के लिये व्यवसायों, निवेशकों और नियामकों द्वारा स्थायी निवेश हेतु ESG कारकों के महत्त्व को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है।
  • भारत में कंपनियों को ESG कारकों को अधिक व्यापक और सुसंगत तरीके से प्रकट करना चाहिये, ताकि निवेशक अपने ESG प्रदर्शन का अधिक प्रभावी ढंग से मूल्यांकन कर सकें।
  • व्यवसायों द्वारा बढ़े हुए ESG अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिये भारत के नियामक ढाँचे को मज़बूत करने की आवश्यकता है। इसके लिये उचित ESG मानकों को स्थापित करना, अधिक मज़बूत रिपोर्टिंग की आवश्यकता और विनियमों को अधिक सख्ती से लागू करना आवश्यक हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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