बाज़ार एवं जलवायु परिवर्तन

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ आर्थिक विकास में स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) की भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

दिसंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP-25) होने जा रहा है। इसे कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP) के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष सम्मेलन का आयोजन स्पेन की राजधानी मेड्रिड में किया जाना है। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के समक्ष बाज़ार को जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम बनाने की चुनौती है। वर्तमान स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) उपर्युक्त चुनौती का समाधान प्रस्तुत करता है, किंतु इस स्थिति में पेरिस समझौते के लागू होने के बाद परिवर्तन आ सकता है।

स्वच्छ विकास तंत्र

(Clean Development Mechanism-CDM)

  • इस तंत्र का निर्माण क्योटो प्रोटोकॉल के तहत किया गया था। यह क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद-12 से संबंधित है। इसे मुख्यतः विकसित एवं विकासशील देशों द्वारा अपनाया गया है। इस तंत्र के अंतर्गत (क्योटो प्रोटोकॉल के तहत) उत्सर्जन कटौती या उत्सर्जन नियंत्रण हेतु प्रतिबद्ध कोई विकासशील देश जो सूची-1 (Annex-1) में शामिल है अथवा इन विकसित देशों की कोई भी कंपनी, अन्य विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती वाली परियोजना में निवेश कर कार्बन क्रेडिट प्राप्त कर सकती हैं।
  • ऐसे प्रोजेक्ट में एक विक्रय-योग्य सर्टिफाइड उत्सर्जन कटौती (Certified Emission Reduction-CER) यूनिट की खरीद की जा सकती हैं जिसे बोल-चाल की भाषा में कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। यह एक टन CO2 के बराबर होता है।
  • इस तंत्र से उद्योगों को लाभ पहुँचाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सहायता मिल सकती है। वर्तमान में चीन, ब्राज़ील के साथ-साथ भारत भी CDM के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
  • स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) ने पिछले दो दशकों में भारत में ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित कई परियोजनाओं में वित्तीय सहायता प्रदान की है।

क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol)

  • क्योटो प्रोटोकॉल UNFCCC से जुड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो अंतर्राष्ट्रीय रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों के प्रति पक्षकारों कों प्रतिबद्ध करता है। यह प्रोटोकॉल जापान के क्योटो में वर्ष 1997 में अपनाया गया तथा वर्ष 2005 में प्रभाव में आया। इस प्रोटोकॉल से संबंधित विस्तृत नियम मराकेश (मोरक्को) में वर्ष 2001 में आयोजित COP-7 के दौरान अपनाए गए थे, अतः इसे मराकेश अकॉर्ड भी कहते हैं।
  • औद्योगिक रूप से विकसित देशों द्वारा अतीत में किये गए क्रियाकलापों के आधार पर साझा परंतु विभेदी उत्तरदायित्त्व का सिद्धांत इसी प्रोटोकॉल के अंतर्गत अपनाया गया।
  • इसकी प्रतिबद्धता दो चरणों में पूर्ण हुई। प्रथम चरण वर्ष 2008 से आरंभ होकर वर्ष 2012 में समाप्त हुआ, इसके अंतर्गत औद्योगिक रूप से विकसित देशों को अपने हरित गृह गैसों के उत्सर्जन को वर्ष 1990 की तुलना में 5 प्रतिशत कम करना था। दूसरे चरण की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई तथा यह वर्ष 2020 में पूर्ण होगा, इस चरण में उत्सर्जन को 18 प्रतिशत तक कम करना है।
  • उपर्युक्त उत्सर्जन कटौती का उद्योगों पर विपरीत प्रभाव न पड़े इसके लिये स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) की संकल्पना को अपनाया गया।

CDM से जुड़ी चुनौतियाँ

  • पेरिस जलवायु समझौते में एक नवीन बाज़ार तंत्र का प्रावधान किया गया है। यह समझौता वर्ष 2021 से प्रभाव में आएगा। इसके प्रभाव में आने के पश्चात् CDM का भविष्य निर्धारित करना संभवतः कठिन होगा।
  • अधिकांश विकसित देश CDM परियोजनाओं तथा उनके क्रेडिट्स को पेरिस समझौते के अंतर्गत लाने के प्रबल विरोधी हैं। उनका तर्क है कि CDM ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को हतोत्साहित किया है।
  • स्वच्छ विकास तंत्र पर आधारित परियोजनाओं से प्राप्त कार्बन क्रेडिट्स यदि बिना विक्रय के रह जाते हैं, इससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
  • नए तंत्र के अंतर्गत CDM परियोजनाओं को दोबारा सत्यापन और पंजीकरण के दौर से गुजरना पड़ेगा, इससे इनकी वित्तीय एवं प्रशासनिक लागत में वृद्धि होगी।

भारत और स्वच्छ विकास तंत्र

  • वर्तमान में भारत के पास UNFCCC द्वारा CDM के अंतर्गत जारी किये गए लगभग 250 मिलियन कार्बन क्रेडिट उपलब्ध हैं। भारत में कुल 1376 CDM परियोजनाएँ पंजीकृत हैं, इनमें से 89 प्रतिशत परियोजनाएँ वर्तमान में सक्रिय हैं।
  • पिछले दो दशक से यूरोपीय संघ CDM क्रेडिट्स का सबसे बड़ा क्रेता था। किंतु पिछले कुछ समय से इसके मांग में कमी आ रही है। इसके लिये विनियमन से जुड़ी बाधाओं को ज़िम्मेदार माना जा सकता है।
  • विश्व में CDM क्रेडिट्स का मूल्य लगभग 5 बिलियन डॉलर आँका गया है। यदि वर्ष 2020 में CDM परियोजनाओं तथा क्रेडिट्स पर रोक लगा दी जाती है तो इससे भारत को भारी हानि उठानी पड़ सकती है।

CDM का विरोध क्यों?

  • यह पर्यावरणीय लाभों को प्रदर्शित करने में विफल रहा है।
  • पेरिस समझौते के प्रभाव में आने के पश्चात् नवीन तंत्र को अपनाया जाएगा। नवीन तंत्र में CDM का संक्रमण एक जटिल कार्य हो सकता है।
  • CDM से होने वाली दोहरी गणना हरित गृह गैसों में कटौती करने के वैश्विक लक्ष्यों को संकट में डाल सकती है।

दोहरी गणना (Double Counting)

जलवायु परिवर्तन शमन के संदर्भ में दोहरी गणना का उपयोग ऐसी स्थिति के लिये किया जाता है जहाँ केवल एक हरितगृह गैस के उत्सर्जन में कमी की गणना एक से अधिक स्थानों पर की जाती है। स्वच्छ विकास तंत्र के आगमन के पश्चात् जलवायु परिवर्तन शमन के विभिन्न कार्यक्रमों के चलते गैस उत्सर्जन में कमी की दोहरी गणना कर ली जाती है। इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के संदर्भ में सही आँकड़ों को प्राप्त करने में समस्या आती है। परिणामतः हरितगृह गैसों के उत्सर्जन में कमी के लिये किये जा रहे प्रयास हतोत्साहित होते हैं।

स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) का पक्ष

  • CDM परियोजनाओं को तब तक जारी रखने पर विचार किया जा सकता है जब तक इनके द्वारा तय किये गए उत्सर्जन कमी के मानक प्राप्त नहीं कर लिये जाते।
  • CDM परियोजनाओं को केवल तकनीक से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिये। इसके तहत किये गए निवेश तथा बाज़ार संबंधी बाधाओं को दूर करने की इसकी क्षमता पर भी विचार करना चाहिये। वर्तमान में CDM ने उपर्युक्त चुनौतियों को स्वीकार किया है तथा सफलता भी प्राप्त की है।
  • CDM का नवीन व्यवस्था से संक्रमण कुछ अधिक बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शित किया जाता है तथा यह कहा जाता है कि CDM क्रेडिट्स की अधिकता भविष्य में कार्बन क्रेडिट्स के बाज़ार को क्षति पहुँचा सकती है। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि नवीन तकनीकी व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न परियोजनाओं को शुरू करने में कम-से-कम तीन वर्ष से अधिक का समय लगेगा।
  • यदि CDM परियोजनाओं से संबंधित सभी कार्बन क्रेडिट्स एक साथ बाज़ार के लिये उपलब्ध होंगे तो इनके व्यापार में अत्यधिक वृद्धि होगी, ये पेरिस समझौते से जुड़े दायित्त्वों को पूरा करने में भी सहायक होंगे।
  • CORSIA (Carbon Offsetting and Reduction Scheme for International Aviation), के अंतर्गत वैश्विक विमानन उद्योग द्वारा होने वाले उत्सर्जन को कम किया जाना है। इसे अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (ICAO) द्वारा अपनाया गया है। विमानन कंपनियाँ अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिये इस प्रकार के कार्बन क्रेडिट्स पर निर्भर हैं। विमानन कंपनियों द्वारा कार्बन क्रेडिट्स की मांग से ही वर्ष 2022 तक लगभग 60 प्रतिशत कार्बन क्रेडिट्स का उपयोग कर लिया जाएगा।

चुनौतियाँ

  • पेरिस समझौते के अंतर्गत पर्यावरणीय सत्यनिष्ठा को बाज़ार तंत्र का एक प्रमुख ध्येय माना गया है। स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के अंतर्गत दोहरी गणना पर्यावरण के प्रति विभिन्न देशों की निष्ठा पर प्रश्न चिह्न खड़े करती है। तकनीक के स्तर पर CDM में समस्या नहीं है यदि इसके अंतर्गत होने वाली दोहरी गणना की समस्या का समाधान खोज लिया जाए तो जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु किये जाने वाले प्रयासों और आर्थिक विकास के मध्य बेहतर संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
  • ICAO द्वारा वर्ष 2015 के पश्चात् जारी किये गए कार्बन क्रेडिट्स को सीमित करने पर विचार किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि कार्बन क्रेडिट्स के लिये विमानन उद्योग को एक अच्छा बाज़ार माना जाता है। ऐसे में यदि ICAO इस प्रकार का कदम उठाता है तो यह भविष्य में CDM के कार्बन बाज़ार को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत के लिये स्वच्छ विकास तंत्र न केवल कार्बन क्रेडिट्स को प्राप्त करने का ज़रिया है बल्कि इससे प्राप्त संसाधनों का उपयोग देश में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को बल देने के लिये किया जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि पेरिस समझौते के पश्चात् कि वर्तमान तंत्र में कुछ परिवर्तन हो सकता है, साथ ही कुछ देश इस प्रकार के कार्बन क्रेडिट के उपयोग तथा इनके सृजन को पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं मानते हैं। भारत को भविष्य के कार्बन बाज़ार को ध्यान में रखकर नीति बनानी चाहिये, साथ ही यूरोपीय संघ जहाँ कार्बन क्रेडिट्स की मांग में निरंतर कमी आ रही है, के स्थान पर क्रेडिट्स के लिये किसी अन्य बाज़ार की तलाश की जानी चाहिये।

प्रश्न: स्वच्छ विकास तंत्र क्या है। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत की लड़ाई में इसकी भूमिका का आकलन कीजिये।