मंत्रिमंडलीय समितियाँ
प्रिलिम्स के लिये:मंत्रिमंडलीय समितियाँ, मंत्रिपरिषद, कार्य आवंटन नियमावली (1961) मेन्स के लिये:मंत्रिमंडलीय समितियों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
मंत्रिपरिषद में बड़े पैमाने पर फेरबदल के बाद प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडलीय समितियों में कुछ बदलाव किये हैं।
प्रमुख बिंदु:
- आठ मंत्रिमंडलीय समितियाँ:
- मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति।
- आवास संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति।
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति।
- संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति।
- राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति।
- निवेश और विकास पर मंत्रिमंडलीय समिति।
- रोज़गार और कौशल विकास पर मंत्रिमंडलीय समिति।
- आवास संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति और संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को छोड़कर सभी समितियों का नेतृत्त्व प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है।
- दूसरे शब्दों में उनका संविधान में उल्लेख नहीं है। हालाँकि ‘रूल ऑफ बिज़नेस’ उनकी स्थापना के लिये प्रावधान करता है।
- भारत में कार्यपालिका भारत सरकार की कार्य आवंटन नियमावली, 1961 के तहत काम करती है।
- ये नियम संविधान के अनुच्छेद 77(3) से प्रेरित हैं। जिसमें कहा गया है कि "राष्ट्रपति भारत सरकार के कार्यों को अधिक सुविधाजनक और उक्त कार्यों को मंत्रियों के बीच आवंटन के लिये नियम बनाएगा।"
- प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की स्थायी समितियों का गठन करता है और उन्हें सौंपे गए विशिष्ट कार्यों को निर्धारित करता है। वह समितियों की संख्या को बढ़ा या घटा सकता है।
- समितियों के अलावा विभिन्न मुद्दों/विषयों को देखने के लिये मंत्रियों के कई समूह (GoMs) गठित किये जाते हैं।
- मंत्रिमंडलीय समितियों की भूमिका:
- इन समितियों का प्रयोग मंत्रिमंडल के अत्यधिक कार्यभार को कम करने के लिये एक संगठनात्मक उपकरण के रूप में किया जाता है। वे नीतिगत मुद्दों की गहन जाँच और प्रभावी समन्वय की सुविधा प्रदान करती हैं। ये समितियाँ श्रम विभाजन एवं प्रभावी प्रतिनिधित्त्व के सिद्धांतों पर आधारित हैं।
- वे न केवल मुद्दों को हल करती हैं और मंत्रिमंडल के विचार के लिये प्रस्ताव तैयार करती हैं, बल्कि महत्त्वपूर्ण निर्णय भी लेती हैं, हालाँकि मंत्रिमंडल इनके फैसलों की समीक्षा कर सकती है।
- मंत्री समूह (GoM):
- ये कुछ आकस्मिक मुद्दों और महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर मंत्रिमंडल को सिफारिशें देने के लिये गठित तदर्थ निकाय हैं।
- इनमें से कुछ GoMs को मंत्रिमंडल की ओर से निर्णय लेने का अधिकार है, जबकि अन्य केवल मंत्रिमंडल को सिफारिशें देते हैं।
- ये विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का एक व्यवहार्य और प्रभावी साधन बन गया है।
- संबंधित मंत्रालयों का नेतृत्त्व करने वाले मंत्रियों को संबंधित GoMs में शामिल किया जाता है और उद्देश्य की पूर्ति के पश्चात् उन्हें भंग कर दिया जाता है।