डेली न्यूज़ (21 Aug, 2024)



मेघों के प्रकार

Types of Clouds

और पढ़ें: विशाल उपतट मेघ निर्माण 


कैंसर की बढ़ती चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

कैंसर, कैंसर का वैश्विक प्रभाव, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, भारत में कैंसर के विभिन्न रूपों के बढ़ते मामले और स्वास्थ्य क्षेत्र पर इसका प्रभाव।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

कैंसर पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पूर्वानुमान किया गया है कि वर्ष 2022 के अनुमान की तुलना में 2050 तक वैश्विक स्तर पर पुरुषों में कैंसर के मामलों में 84.3% की वृद्धि होगी तथा कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या में 93.2% की वृद्धि होगी।

  • यह चिंताजनक प्रवृत्ति एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती को रेखांकित करती है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कैंसर के मामलों और मृत्यु में अनुमानित वृद्धि: अध्ययन में बताया गया है कि 2050 तक पुरुषों में कैंसर के मामले बढ़कर 19 मिलियन हो जाएंगे, जबकि कैंसर से होने वाली मृत्यु 10.5 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • विशिष्ट कैंसर प्रकारों का अनुमान: वर्ष 2022 से 2050 तक मेसोथेलियोमा (फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम प्रकार) के मामलों में 105.5% की वृद्धि और प्रोस्टेट कैंसर से होने वाली मौतों में 136.4% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि वृषण कैंसर में सबसे कम वृद्धि होगी, जिसमें घटनाओं में 22.7% और मृत्यु में 40% की वृद्धि होगी।
  • फेफड़े के कैंसर का प्रभुत्व: फेफड़े के कैंसर के घटना और मृत्यु दर दोनों में अग्रणी प्रकार का कैंसर बने रहने की उम्मीद है, वर्ष 2022 की तुलना में इसमें 87% से अधिक की वृद्धि का अनुमान है।
  • आयु और क्षेत्र के आधार पर असमानताएँ: रिपोर्ट में आयु और क्षेत्र के आधार पर कैंसर की दरों में महत्त्वपूर्ण असमानताएँ बताई गईं हैं, जिसमें वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर पुरुषों में लगभग 10.3 मिलियन मामले और 5.4 मिलियन मौतें शामिल हैं।
    • इनमें से लगभग दो-तिहाई मामले 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के वयस्कों में थे।
  • मानव विकास सूचकांक (HDI) का प्रभाव: रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2022 से 2050 तक बहुत उच्च HDI देशों में कैंसर के मामलों में 50.2% की वृद्धि होगी और निम्न HDI देशों में 138.6% की वृद्धि होगी
    • बहुत उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों में कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में 63.9% तथा निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देशों में 141.6% की वृद्धि होने की संभावना है।
  • उच्च मृत्यु दर-घटना अनुपात: रिपोर्ट में उच्च मृत्यु दर-घटना अनुपात पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें वृद्ध पुरुषों का अनुपात 61% है और निम्न HDI देशों में यह अनुपात 74% है। अग्नाशय के कैंसर जैसे दुर्लभ कैंसर का अनुपात और भी अधिक 91% है, जो खराब उत्तरजीविता परिणामों को दर्शाता है।
    • मृत्यु-से-घटना अनुपात (MIR) एक माप है जो एक निर्दिष्ट अवधि में कैंसर से होने वाली मौतों (मृत्यु दर) की संख्या की तुलना नए कैंसर मामलों (घटना) की संख्या से करता है।

भारत में कैंसर की व्यापकता की स्थिति क्या है?

  • भारत में 2022 में 1,413,316 नए मामले सामने आए, जिनमें महिला रोगियों (6,91,178 पुरुष और 7,22,138 महिलाएँ) का अनुपात अधिक था।
  • 1,92,020 नए मामलों के साथ स्तन कैंसर का अनुपात सबसे अधिक है, जो सभी रोगियों में 13.6 प्रतिशत और महिलाओं में 26 प्रतिशत से अधिक है।
  • भारत में स्तन कैंसर के बाद होंठ और मुख गुहा (1,43,759 नए मामले, 10.2%), गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) और गर्भाशय (Uterine), फेफड़े और ग्रासनली कैंसर के मामले सामने आए।
    • एशिया में कैंसर के बोझ का आकलन करने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक हालिया अध्ययन, जिसे द लैंसेट रीजनल हेल्थ में प्रकाशित किया गया था, में पाया गया कि अकेले भारत में वर्ष 2019 में वैश्विक मृत्यु के 32.9% और होंठ और मौखिक गुहा कैंसर के 28.1% नए मामले सामने आए।
    • इसका कारण भारत, बांग्लादेश और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों में खैनी, गुटखा, पान और पान मसाला जैसे धूम्ररहित तंबाकू (Smokeless Tobacco- SMT)) का व्यापक उपभोग है। 
      • विश्व भर में मौखिक कैंसर के 50% मामलों के लिये SMT ज़िम्मेदार है।
  • लैंसेट ग्लोबल हेल्थ 2023 के अनुसार वैश्विक स्तर पर गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के कारण होने वाली मौतों में से 23% भारत में होती हैं।
    • भारत में गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की पाँच वर्ष की उत्तरजीविता दर 51.7% है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देशों की तुलना में कम है।

कैंसर:

  • यह एक जटिल और व्यापक शब्द है, जिसका उपयोग शरीर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि तथा प्रसार से होने वाली बीमारियों के एक समूह का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • ये असामान्य कोशिकाएँ, जिन्हें कैंसर कोशिकाएँ कहा जाता है, स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर आक्रमण करने तथा उन्हें नष्ट करने में सक्षम होती हैं।
  • एक स्वस्थ शरीर में कोशिकाएँ विनियमित तरीके से विकसित होती हैं, विभाजित होती हैं और नष्ट हो जाती हैं, जिससे ऊतकों तथा अंगों के सामान्य संचालन की अनुमति मिलती है।
    • हालाँकि कैंसर के मामले में कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन या असामान्यताएँ इस सामान्य कोशिका चक्र को बाधित करती हैं, जिससे कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विभाजित और बढ़ती हैं।

भारत में कैंसर नियंत्रण के लिये सरकार की क्या पहल हैं?

भारत में कैंसर का शीघ्र पता लगाने पर नीति आयोग की रिपोर्ट की मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • कैंसर जाँच में कमी: नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (HWC) में कैंसर जाँच में महत्त्वपूर्ण कमी है।
    • इनमें से 10% से भी कम केंद्रों द्वारा कैंसर सहित गैर-संक्रामक रोगों के लिये एक ही बार जाँच की गई थी।
  • स्क्रीनिंग प्रथाएँ:
    • स्तन कैंसर: स्क्रीनिंग स्व-परीक्षण के माध्यम से की जाती है।
    • ग्रीवा कैंसर: स्क्रीनिंग पूरी तरह से लागू नहीं की गई है।
    • ओरल कैंसर: स्क्रीनिंग केस-दर-केस आधार पर की जाती है, जो दिखाई देने वाले लक्षणों पर निर्भर करती है।
  • बुनियादी अवसरंचना और संसाधन: परिचालन दिशानिर्देशों के अनुसार स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में बुनियादी अवसरंचना, उपकरणों, दवाओं और नैदानिक ​​परीक्षणों का अभाव था।
  • स्टाफ प्रशिक्षण और जागरूकता: स्क्रीनिंग विधियों पर सहायक नर्स मिडवाइफ (ANM) का प्रशिक्षण एवं निगरानी अपर्याप्त है।
    • इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र के कर्मचारियों में उच्च रक्तचाप और मधुमेह की वार्षिक जाँच की आवश्यकता के बारे में जागरूकता सीमित थी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. कैंसर नियंत्रण रणनीतियों में प्रारंभिक पहचान और जाँच के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और रोग के बढ़ते बोझ को संबोधित करने में भारत की वर्तमान कैंसर नियंत्रण नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016)

(a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण
(b) पूरे देश में स्मार्ट सिटि का निर्माण
(c) बाहरी अंतरिक्ष में पृथ्वी-सदृश ग्रहों के लिए भारत की स्वयं की खोज
(d) नई शिक्षा-नीति

उत्तर: (a)


प्रश्न. कैंसर के ट्यूमर के इलाज के संदर्भ में साइबरनाइफ नामक एक उपकरण चर्चा में बना हुआ है। इस संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2010)

(a) यह एक रोबोटिक इमेज़ गाइडेड सिस्टम है। 
(b) यह विकिरण की अत्यंत सटीक खुराक प्रदान करता है। 
(c) इसमें सब-मिलीमीटर सटीकता प्राप्त करने की क्षमता है। 
(d) यह शरीर में ट्यूमर के प्रसार को मैप कर सकता है।

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'RNA अंतर्क्षेप [RNA इंटरफेर्रेंस (RNAi)]' प्रौद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता हासिल कर ली है। क्यों? (2019)

  1. यह जीन अनभिव्यक्तिकरण (जीन साइलेंसिंग) रोगोपचारों के विकास में प्रयुक्त होता है।
  2. इसे कैंसर की चिकित्सा में रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
  3. इसे हॉर्मोन प्रतिस्थापन रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
  4. इसे ऐसी फसल पादपों को उगाने के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है, जो विषाणु रोगजनकों के लिये  प्रतिरोधी हो।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) 1, 2 और 4
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न 1. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021)

प्रश्न 2. नैनो टेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं? यह तकनीक स्वास्थ्य के क्षेत्र में किस प्रकार सहायता कर रही है?  (2020)


पॉलीग्राफ टेस्ट

प्रिलिम्स के लिये:

पॉलीग्राफ टेस्ट, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), नार्को-विश्लेषण परीक्षण, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

मेन्स के लिये:

पॉलीग्राफ, नार्को टेस्ट, वैधानिक निहितार्थ, संबंधित न्यायालय के निर्णय, कार्यान्वयन में चुनौतियाँ और आगे की राह 

स्रोत: इकॉनोमिक्स टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को कोलकाता मेडिकल कॉलेज में एक स्नातकोत्तर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या मामले में मुख्य संदिग्ध पर पॉलीग्राफ टेस्ट करने के लिये अधिकृत किया गया है। 

  • पॉलीग्राफ टेस्ट जाँचकर्त्ताओं को संदिग्ध के बयानों की एकरूपता की जाँच करने और संभावित छल या धोखे की पहचान करने में मदद करेगा।

पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है?

  • परिचय:
    • पॉलीग्राफ या लाय डिटेक्टर टेस्ट (झूठ का पता लगाने हेतु परिक्षण) की प्रक्रिया के तहत व्यक्ति से कई सवाल पूछे जाते हैं और जब वह उनका जवाब देता है तो उस दौरान उसके शारीरिक संकेतकों, जैसे: रक्तचाप, नाड़ी, श्वसन और त्वचा की चालकता आदि का आकलन कर रिकॉर्ड किया जाता है। 
    • यह परीक्षण इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो जो शारीरिक क्रियाएँ होती हैं, वह आमतौर पर होने वाली क्रियाओं से भिन्न होती हैं।
    • प्रत्येक क्रिया को एक संख्यात्मक मान दिया जाता है, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि व्यक्ति सच बोल रहा है, धोखा दे रहा है, या अनिश्चित है।
    • पॉलीग्राफ जैसा एक परीक्षण सबसे पहले 19वीं शताब्दी में इतालवी अपराध विज्ञानी शेजारे लोम्ब्रोजो द्वारा किया गया था, जिन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के रक्तचाप में परिवर्तन को मापने के लिये एक मशीन का प्रयोग किया था।
  • नार्को-विश्लेषण परीक्षण से अलग:
    • नार्को विश्लेषण परीक्षण में अभियुक्त को सोडियम पेंटोथल इंजेक्ट करना शामिल है, जो एक सम्मोहन या बेहोशी की स्थिति उत्पन्न करता है और आपराधिक संदिग्धों की कथित तौर पर कल्पना को बेअसर कर देता है।
    • इस अवस्था में व्यक्ति झूठ बोलने में असमर्थ हो जाता है और केवल सटीक तथ्य ही बताता है।
  • परीक्षणों की सटीकता:
    • पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण वैज्ञानिक रूप से 100% सटीक साबित नहीं हुए हैं और चिकित्सा क्षेत्र में विवादास्पद बने हुए हैं।
    • इसके बावज़ूद जाँच एजेंसियों ने हाल ही में संदिग्धों से सच्चाई उगलवाने के लिये यातना के बजाय ‘आसान विकल्प’ के रूप में इन परीक्षणों का प्रयोग किया है।

नोट:

  • ब्रेन मैपिंग: यह एक ऐसा परीक्षण है, जो मस्तिष्क की शारीरिक रचना और कार्य का अध्ययन करने के लिये इमेजिंग का उपयोग करता है। यह डॉक्टरों को यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि मस्तिष्क का कार्य सामान्य है या नहीं और मस्तिष्क के उन क्षेत्रों की पहचान करता है जो गति, भाषण और दृष्टि को नियंत्रित करते हैं।

पॉलीग्राफ टेस्ट की कानूनी स्वीकार्यता क्या है?

  • अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन: आरोपी की सहमति के बिना किये गए पॉलीग्राफ, नार्को-एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग टेस्ट भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन करते हैं, जो आत्म-दोष के विरुद्ध अधिकार की रक्षा करता है।
    • यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी अपराध के लिये आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य बनने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।
  • सहमति की आवश्यकता: चूँकि इन परीक्षणों में आरोपी द्वारा संभावित रूप से आत्म-दोषपूर्ण जानकारी प्रदान करना शामिल है, इसलिये संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन से बचने के लिये उनकी सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है।
  • न्यायिक और मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: नार्को-एनालिसिस और इसी तरह के परीक्षणों का उपयोग न्यायिक प्रामाणिकता और मानवाधिकारों, विशेष रूप से व्यक्तिगत अधिकारों तथा स्वतंत्रता के संबंध में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न करता है।
  • न्यायालय की आलोचना: न्यायालयों ने प्रायः इन परीक्षणों की आलोचना की है क्योंकि ये मानसिक यातना दे सकते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

पॉलीग्राफ टेस्ट से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामला 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने नार्को परीक्षणों की वैधता और स्वीकार्यता पर फैसला सुनाया जिसमें स्थापित किया गया कि नार्को या लाय डिटेक्टर परीक्षणों का अनैच्छिक प्रशासन किसी व्यक्ति की "मानसिक गोपनीयता" में घुसपैठ है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नार्को परीक्षण संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषी ठहराए जाने के खिलाफ मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी अपराध के लिये आरोपी को स्वयं के खिलाफ साक्ष्य/गवाह बनने के लिये मज़बूर नहीं किया जाएगा।
      • आत्म-दोष एक कानूनी सिद्धांत है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले में स्वयं के विरुद्ध सूचना देने या गवाही देने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि अनैच्छिक रूप से पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण कराना अनुच्छेद 21 या जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में क्रूर, अमानवीय तथा अपमानजनक व्यवहार माना जाएगा।
  • बॉम्बे राज्य बनाम काठी कालू ओघद, 1961 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अधिकार भौतिक साक्ष्य (जैसे उंगलियों के निशान, लिखावट, रक्त और आवाज़ के नमूने) स्वैच्छिक रूप से दी गई जानकारी और पहचान प्रक्रियाओं (जैसे लाइन-अप एवं फोटो एरे) तक विस्तारित नहीं होता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की अन्य टिप्पणियाँ: नार्को परीक्षण साक्ष्य के रूप में विश्वसनीय या निर्णायक नहीं हैं क्योंकि वे मान्यताओं एवं संभावनाओं पर आधारित हैं।
    • स्वैच्छिक रूप से प्रशासित परीक्षण परिणामों की सहायता से बाद में खोजी गई कोई भी जानकारी या सामग्री साक्ष्य अधिनियम, 1872 (अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम) की धारा 27 के अंतर्गत स्वीकार की जा सकती है।
      • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के अनुसार पुलिस हिरासत में अभियुक्त द्वारा दी गई जानकारी तभी स्वीकार्य होगी जब उससे किसी तथ्य का पता चले। 
      • केवल सूचना का वह भाग ही सिद्ध किया जा सकता है जो प्रकट किये गए तथ्य से सीधे संबंधित हो, भले ही वह स्वीकारोक्ति हो या न हो।
    • न्यायालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित ‘अभियुक्त पर पॉलीग्राफ परीक्षण के लिये दिशानिर्देशों’ का सख्ती से पालन किया जाना चाहिये।

पॉलीग्राफ टेस्ट के संबंध में NHRC द्वारा जारी दिशा-निर्देश

  • स्वैच्छिक सहमति: अभियुक्त को पॉलीग्राफ परीक्षण के लिये स्वेच्छा से अपनी सहमति देनी होगी तथा उनके पास परीक्षण से मना करने का विकल्प भी होना चाहिये।
  • सूचित सहमति: परीक्षण के लिये सहमति देने से पहले आरोपी को इसके उद्देश्य, प्रक्रिया एवं विधिक निहितार्थों के विषय में पूरी सूचना होनी चाहिये। यह सूचना पुलिस तथा आरोपी के अधिवक्ता द्वारा प्रदान की जानी चाहिये।
  • अभिलिखित सहमति: पॉलीग्राफ परीक्षण के लिये अभियुक्त की सहमति न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अभिलिखित की जानी चाहिये।
  • दस्तावेज़: न्यायालय की कार्यवाही के समय पुलिस को यह साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे कि आरोपी पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिये सहमत था। यह दस्तावेज़ अधिवक्ता द्वारा न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं।
  • बयानों का स्पष्टीकरण: अभियुक्त को यह समझना चाहिये कि पॉलीग्राफ परीक्षण के समय दिये गए बयानों को पुलिस को दिये गए बयान माना जाता है, न कि स्वीकारोक्ति।
  • न्यायिक विचार: पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणामों पर विचार करते समय न्यायाधीश अभियुक्त की अभिरक्षा की अवधि एवं पूछताछ जैसे कारकों पर विचार करता है।

दृष्टि मेन्स टेस्ट:

प्रश्न: पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है? आपराधिक जाँच में पॉलीग्राफ टेस्ट के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।


मोबिलिटी वृद्धि का ग्रामीण लड़कियों की शिक्षा पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

जर्नल ऑफ ट्रांसपोर्ट जियोग्राफी में प्रकाशित हालिया शोध से पता चलता है कि पिछले दशक में ग्रामीण लड़कियों में साइक्लिंग (साइकिल चलाने) के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘साइलेंट रिवॉल्यूशन अर्थात् मूक क्रांति’ के रूप में वर्णित इस प्रवृत्ति ने ग्रामीण लड़कियों की मोबिलिटी (चलिष्णुता)/ गतिशीलता और शिक्षा पर सरकारी हस्तक्षेप एवं बदलते सामाजिक मानदंडों के प्रभाव को उजागर किया है।

ग्रामीण लड़कियों के बीच साइक्लिंग की बढ़ती प्रवृत्ति ने शिक्षा को किस प्रकार प्रभावित किया है?

  • विकास अवलोकन: ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल जाने वाली लड़कियों का प्रतिशत वर्ष 2007 में 4.5% से दोगुना होकर 2017 में 11% हो गया।
    • राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों में बीच साइक्लिंग का स्तर 6.6% से बढ़कर 11.2% हो गया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 6.3% से 12.3% तक दोगुनी वृद्धि देखी गई। शहरी क्षेत्रों में 7.8% से 8.3% तक मामूली वृद्धि देखी गई।
  • साइक्लिंग में वृद्धि में योगदान देने वाले कारक: 
    • साइकिल वितरण योजना (Bicycle Distribution Schemes- BDS) ने 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (पत्र में आंध्र प्रदेश को अविभाजित राज्य माना गया है) में से 20 ने साइक्लिंग को प्रोत्साहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे विशेष रूप से लड़कियों के बीच साइक्लिंग को बढ़ावा मिला है।
      • राज्य द्वारा 14-17 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों को साइकिल प्रदान किया जाता है, ताकि स्कूल में नामांकन में सुधार हो, विशेष रूप से लड़कियों के बीच, क्योंकि इनमें स्कूल छोड़ने की दर अधिक है।
      • प्रभाव: पश्चिम बंगाल के BDS ने लड़कियों के साइक्लिंग के स्तर में 15.4% से 27.6% की वृद्धि की, जिससे यह ग्रामीण लड़कियों द्वारा साइकिल चलाने के मामले में शीर्ष राज्य बन गया जबकि बिहार में आठ गुना वृद्धि देखी गई।
  • व्यापक सामाजिक परिवर्तनों पर प्रभाव:
    • शिक्षा: BDS लड़कियों के बीच स्कूल में नामांकन और प्रतिधारण दर में सुधार करने में प्रभावी रही है। लड़कियों के लिये स्कूल आना-जाना आसान बनाकर, इन योजनाओं ने स्कूल-ड्रॉप आउट दरों को कम करने और निरंतर शिक्षा को प्रोत्साहित करने में मदद की।
      • शिक्षा तक पहुँच बढ़ने से लड़कियों के लिये बेहतर व दीर्घकालिक परिणाम होते हैं, जिससे उन्हें बेहतर नौकरी की संभावनाएँ और आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है। इससे सशक्तीकरण और सामुदायिक आर्थिक विकास का चक्र बढ़ता है।
    • लैंगिक मानदंडों का खंडन: ग्रामीण लड़कियों में साइक्लिंग की प्रवृत्ति में वृद्धि पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो परंपरागत रूप से महिलाओं की गतिशीलता को प्रतिबंधित करते हैं। यह वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लैंगिक समानता की ओर परिवर्तन का संकेत देती है।

भारत में लड़कियों में स्कूल नामांकन को बढ़ावा देने के लिये अन्य योजनाएँ क्या हैं?

  • मिड-डे मील योजना
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
  • सुकन्या समृद्धि योजना
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना: इसे वर्ष 2004 में शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों में वंचित समुदायों की लड़कियों के लिये उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालय स्थापित करने के हेतु शुरू किया गया था।
    • इस योजना में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या अल्पसंख्यक लड़कियों के लिये 75% आरक्षण प्रदान किया जाता है, जबकि शेष 25% बीपीएल परिवारों की लड़कियों के लिये है।
    • यह स्कूल स्थापित करने के लिये प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपए का आवर्ती अनुदान और 5 लाख रुपए का एकमुश्त अनुदान प्रदान करता है।
  • माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना: केंद्र सरकार ने कक्षा 10 से ऊपर की लड़कियों के लिये माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों की उच्च दर की समस्या को हल करना है।
    • इस योजना के तहत बालिका के नाम पर 3,000 रुपए की सावधि जमा की जाती है। सावधि जमा से परिपक्व राशि निकालने के लिये न्यूनतम मानदंड दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करना और 18 वर्ष की आयु प्राप्त करना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में लड़कियों के बीच स्कूल नामांकन और प्रतिधारण बढ़ाने में सरकारी योजनाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न.1 “महिला को सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. 2 भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015)


SSLV विकास परियोजना का समापन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की तीसरी विकासात्मक उड़ान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित की।

  • इसने पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-08 को कक्षा में सटीक रूप से स्थापित किया, साथ ही इसरो/अंतरिक्ष विभाग की SSLV विकास परियोजना के पूरा होने का भी संकेत दिया।

SSLV के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • इसरो का SSLV एक तीन-चरणीय प्रक्षेपण यान है, जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों (Solid Propulsion Stages) के साथ अभिकल्पित (design) किया गया है।
      • इसमें एक टर्मिनल चरण के रूप में द्रव प्रणोदन-आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (Velocity Trimming Module -VTM) भी ​​है, जो उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये वेग को समायोजित करने में सहायता करता है।
  • SSLV की आवश्यकता:
    • SSLV का लक्ष्य कम लागत वाले प्रक्षेपण यान बनाना है, जिनका निर्माण शीघ्र हो तथा जिनके लिये न्यूनतम बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता हो।
    • SSLV मिनी, माइक्रो या नैनोसैटेलाइट (10 से 500 किलोग्राम वजन) को 500 किलोमीटर की कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है।
    • व्यवसायों, सरकारी एजेंसियों, विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण के लिये  छोटे पेलोड की आवश्यकता होती है।
      •  न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) इसरो की वाणिज्यिक शाखा है, जिसका प्राथमिक दायित्व भारतीय उद्योगों को उन्नत प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियाँ शुरू करने में सुविधा प्रदान करना है।
  • SSLV के लाभ:

PSLV और GSLV क्या हैं?

  • PSLV: यह भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण यानों की तीसरी पीढ़ी है।
    • पहली बार इसका प्रयोग वर्ष 1994 में किया गया था जिसके बाद 50 से अधिक सफल PSLV प्रक्षेपण हो चुके हैं।
      • इसे लगातार विभिन्न उपग्रहों को उच्च सफलता दर के साथ निम्न पृथ्वी कक्षाओं (2,000 किमी. से कम ऊँचाई) में प्रक्षेपित करने के लिये ‘ISRO का वर्कहॉर्स’ भी कहा जाता है।
    • इसने दो अंतरिक्ष यान ‘चंद्रयान-1’ (वर्ष 2008 में) और ‘मार्स ऑर्बिटर मिशन’ (वर्ष 2013 में)" सफलतापूर्वक लॉन्च किये। 
    • यह 600 किमी. की ऊँचाई के सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षाओं (SSPO) में 1,750 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है। 
      • SSPO सूर्य के साथ समकालिक है यानी ये प्रतिदिन एक ही स्थानीय समय पर पृथ्वी क्षेत्र से गुजरते हैं।
  • GSLV: इसे उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में लॉन्च करने के लिये ISRO द्वारा विकसित तथा संचालित किया गया है।
    • GTO एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा है, जिसमें कोई अंतरिक्षयान पृथ्वी के चारों ओर स्थित भू- तुल्यकालिक कक्षा या भू-स्थिर कक्षा में जाने से पूर्व प्रवेश करता है।  
    • GSLV एक तीन चरण वाला प्रक्षेपण यान है। 
      • पहले चरण में सॉलिड बूस्टर, दूसरे चरण में एक लिक्विड इंजन और तीसरे चरण में क्रायोजेनिक प्रणोदक ले जाने वाला स्वदेशी रूप से निर्मित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS) शामिल है। 

न्यू-स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL)

  • NSIL भारत सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जो अंतरिक्ष विभाग (Department of Space: DOS) के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
  • NSIL के प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्रों में शामिल हैं:
    • उद्योग के लिये ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) और लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) का निर्माण।
    • अंतरिक्ष आधारित सेवाओं का निर्माण और विपणन, जिसमें प्रक्षेपण सेवाएँ तथा अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोग जैसे ट्रांसपोंडर लीजिंग, रिमोट सेंसिंग एवं मिशन सहायता सेवाएँ शामिल हैं।
    • उपयोगकर्त्ता की आवश्यकताओं के अनुसार उपग्रहों (संचार और पृथ्वी अवलोकन दोनों) का निर्माण।
    • ISRO केंद्रों/इकाइयों और अंतरिक्ष विभाग के संस्थानों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण।

और पढ़ें: भारतीय अंतरिक्ष स्थिति आकलन रिपोर्ट 2023, भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान की मांग और आपूर्ति, अंतरिक्ष पर्यटन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष  के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किन कार्यकलापों में भारतीय दूर संवेदन (IRS) उपग्रहों का प्रयोग किया जाता है? (2015)

  1. फसल की उपज का आकलन
  2. भौम जल (ग्राउंडवॉटर) संसाधनों का स्थान-निर्धारण
  3. खनिज का अन्वेषण
  4. यातायात अध्ययन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 4 और 5
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं, जो पृथ्वी संसाधनों की मोनिटरिंग में उपयोगी हैं जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  2.  PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
  3.  GSLV Mk III एक चार स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)


भारत और मलेशिया के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता, फिनटेक, आयुर्वेद, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अनुच्छेद 370, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध, अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, दक्षिण चीन सागर

मेन्स के लिये:

भारत-मलेशिया संबंध और हालिया घटनाक्रम, भारत की एक्ट ईस्ट नीति और आसियान संबंध

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में भारत और मलेशिया ने अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करके इसे आगे बढ़ाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। 

  • यह घटनाक्रम मलेशियाई प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान हुआ। भारत और मलेशिया के प्रधानमंत्री के बीच चर्चा ने गहन सहयोग और आपसी हितों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिये मंच तैयार किया है।

मलेशियाई प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के मुख्य परिणाम क्या हैं?

  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी: वर्ष 2015 में स्थापित मौजूदा उन्नत रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में अपग्रेड किया गया।
  • आर्थिक और व्यापार संवर्द्धन: भारत और मलेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार 19.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया। यह उपलब्धि मज़बूत आर्थिक संबंधों और व्यापार संबंधों के विस्तार में आपसी रुचि को रेखांकित करती है।
    • दोनों नेताओं ने आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने के लिये फिनटेक, ऊर्जा, डिजिटल प्रौद्योगिकियों और स्टार्ट-अप सहित विभिन्न क्षेत्रों में और अधिक निवेश को प्रोत्साहित किया।
  • आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (AITIGA): अभिकर्त्ताओं ने AITIGA की समीक्षा प्रक्रिया का समर्थन करने एवं उसे तेज़ करने पर सहमति जताई ताकि इसे और अधिक प्रभावी व व्यापार के अनुकूल बनाया जा सके। इसका उद्देश्य वर्ष 2025 तक समीक्षा पूरी करना और भारत और आसियान देशों के बीच आपूर्ति शृंखला कनेक्शन को बढ़ाना है।
  • समझौता ज्ञापन और समझौते: कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये कई समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए:
    • श्रमिकों की भर्ती, रोज़गार और वापसी: दोनों देशों के बीच श्रमिकों की आवाज़ाही और प्रबंधन से संबंधित प्रक्रियाओं को कारगर बनाने हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। 
    • आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ: आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के क्षेत्र में सहयोग हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। 
      • भारत मलेशिया में यूनिवर्सिटी टुंकू अब्दुल रहमान में आयुर्वेद चेयर की स्थापना करेगा, जिससे पारंपरिक चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
    • डिजिटल प्रौद्योगिकी: हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन में साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डिजिटल लेनदेन हेतु भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (UPI) को मलेशिया के पेनेट से जोड़ने पर कार्य करने पर सहमति) सहित विभिन्न डिजिटल क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • संस्कृति, कला और विरासत: सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विरासत के संरक्षण को प्रोत्साहित करना।
    • पर्यटन: पर्यटन को बढ़ावा देना और देशों के बीच आसान यात्रा की सुविधा प्रदान करना।
      • भारत ने मलेशिया द्वारा वर्ष 2026 को विजिट मलेशिया वर्ष के रूप में नामित करने पर ध्यान दिया।
    • लोक प्रशासन और शासन सुधार: शासन और प्रशासनिक सुधारों में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना।
    • युवा और खेल: युवा जुड़ाव और खेल सहयोग को बढ़ावा देना
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: नेताओं ने नियमित आदान-प्रदान, संयुक्त अभ्यास और क्षमता निर्माण पहल के माध्यम से रक्षा सहयोग को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की। 
    • रक्षा उद्योग और अनुसंधान एवं विकास (R&D) सहयोग का विस्तार करने की भी प्रतिबद्धता थी।
    • दोनों देशों ने आतंकवाद की निंदा की और आतंकवाद और अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के साथ इसके संबंधों का मुकाबला करने के लिये मिलकर काम करने का संकल्प लिया।
  • शैक्षिक सहयोग: मलेशिया ने साइबर सुरक्षा, AI और मशीन लर्निंग जैसे क्षेत्रों में मलेशियाई छात्रों के लिये भारत के तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत 100 सीटों के विशेष आवंटन का स्वागत किया।
  • बहुपक्षीय सहयोग: मलेशिया ने ASEAN की केंद्रीयता और वर्ष 2025 में आगामी ASEAN अध्यक्षता के लिये भारत के समर्थन की सराहना की। वे ASEAN के नेतृत्व वाले तंत्रों के माध्यम से जुड़ाव को सुदृढ़ करने पर सहमत हुए। भारत BRICS में शामिल होने के मलेशिया के अनुरोध पर उसके साथ कार्य करेगा।
    • नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र में सहयोग बढ़ाने के लिये प्रतिबद्धता जताई, जिसमें सुधारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिये भारत की बोली का समर्थन भी शामिल है।
  • सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई: उन्होंने सतत् ऊर्जा पहल और जलवायु परिवर्तन शमन पर सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें मलेशिया अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस (IBCA) में शामिल हो गया।

भारत के सामरिक हितों के लिये इस यात्रा का क्या महत्त्व है?

  • भारत की एक्ट ईस्ट नीति: यह यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। मलेशिया के साथ जुड़कर, भारत ने एशिया में अपने प्रभाव और संपर्क को बढ़ाते हुए, ASEAN क्षेत्र की ओर अपनी सामरिक धुरी को जारी रखा है।
  • पिछले संघर्ष: इससे पहले भारत मलेशिया संबंधों को जम्मू और कश्मीर (अनुच्छेद 370) और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर भारत की नीतियों की मलेशिया द्वारा आलोचना के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
    • वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मलेशिया ने भारत पर कश्मीर पर ‘आक्रमण और कब्ज़ा’ करने का आरोप लगाया।
    • जवाबी कार्रवाई में भारत ने मलेशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, मलेशियाई पाम ऑयल के आयात को कम कर दिया। इसका एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, मलेशिया के पाम तेल क्षेत्र में भारत को निर्यात में गिरावट का अनुभव हुआ। 
      • दोनों देशों के बीच राजनयिक विवाद पश्चात् चार महीने के अंतराल पर भारत ने मलेशियाई पाम तेल की खरीद फिर से शुरू कर दी है।
      • विश्व में पाम ऑयल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते मलेशिया पर भारत के आयात में कमी का नकारात्मक प्रभाव पड़ा; तथापि पाकिस्तानी आयात ने भारतीय क्रय पर प्रतिबंध से पैदा हुई कमी को पूरा कर दिया।
    • कोविड-19 महामारी ने भारत में मलेशियाई लोगों की लॉकडाउन-संबंधी रोक के साथ तनाव को बढ़ा दिया था।
    • हालिया यात्रा विशेष रूप से पिछले नेतृत्व के दौरान तनावपूर्ण संबंधों की अवधि के बाद के राजनयिक संबंधों को पुनर्जीवित करने और सुदृढ़ करने का अवसर प्रदान करती है।
  • हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI): प्रगति के बावज़ूद भारत द्वारा वर्ष 2019 में सात स्तंभों (समुद्री सुरक्षा, समुद्री पारिस्थितिकी, समुद्री संसाधन, क्षमता निर्माण, संसाधन साझाकरण, आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन, व्यापार संपर्क, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) एक चूका/खोया हुआ अवसर बना हुआ है।
    • वियतनाम और फिलीपींस ने IPOI को मंजूरी दे दी है, लेकिन मलेशिया की संभावित भागीदारी इंडो-पैसिफिक में इसकी स्थिति को मज़बूत कर सकती है और इसके रणनीतिक लक्ष्यों में योगदान दे सकती है।
  • दक्षिण चीन सागर संबंधी चिंताओं का समाधान: दक्षिण चीन सागर के विषय में चर्चा से चीन के बढ़ते प्रभाव पर मलेशिया की स्थिति की जानकारी मिलेगी।
    • मलेशिया के परिप्रेक्ष्य को समझने से भारत को जटिल क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता को समझने और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीति तैयार करने में सहायता मिलेगी।
  • व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना: अप्रैल 2000 से सितंबर 2023 तक 1.18 बिलियन अमरीकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के साथ मलेशिया भारत में 31वें सबसे बड़े निवेशक के रूप में स्थान रखता है।
    • भारत में लगभग 70 मलेशियाई कंपनियाँ निर्माण से लेकर मानव संसाधन तक के विविध क्षेत्रों में कार्य करती हैं।
    • मलेशिया आसियान के भीतर भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेशिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • इस यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ाते हुए इन निवेशों को और सुरक्षित तथा विस्तारित करना है।

भारत मलेशिया संबंधों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ऐतिहासिक संबंध: भारत और मलेशिया के बीच ऐतिहासिक संबंध एक सहस्राब्दी से भी अधिक पुराने हैं, जो चोल साम्राज्य (9वीं-13वीं शताब्दी) से काफी प्रभावित हैं।
    • चोलों ने व्यापक समुद्री व्यापार मार्ग स्थापित किये जो दक्षिण भारत को मलय प्रायद्वीप से जोड़ते थे जिससे सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता था।
      • राजराजा चोल प्रथम और राजेंद्र चोल प्रथम जैसे सम्राटों के शासनकाल में, चोलों ने वर्तमान मलेशिया सहित दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंध: मलेशिया भारत का 13वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तथा भारत मलेशिया के शीर्ष दस व्यापारिक साझेदारों में शामिल है तथा आसियान में तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • भारत से निर्यात: इसमें खनिज ईंधन, एल्यूमीनियम, माँस, लोहा व इस्पात, तांबा, कार्बनिक रसायन और मशीनरी शामिल हैं।
    • भारत में आयात: इसमें पाम ऑयल, खनिज ईंधन, विद्युत मशीनरी, पशु या वनस्पति वसा और लकड़ी शामिल हैं।
    • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA), जो वर्ष 2011 में प्रभावी हुआ, वस्तुओं, सेवाओं और निवेश को शामिल करता है।
    • भारतीय रुपए में व्यापार निपटान: जुलाई 2022 से भारत और मलेशिया के बीच व्यापार अन्य मुद्राओं के अलावा भारतीय रुपए में भी किया जा सकेगा, जिसकी सुविधा मलेशिया के इंडिया इंटरनेशनल बैंक द्वारा दी जाएगी।
    • आसियान-भारत व्यापार शिखर सम्मेलन 2023: भारतीय और मलेशियाई हितधारकों की महत्त्वपूर्ण भागीदारी के साथ आसियान-भारत जुड़ाव के 30 वर्षों का जश्न मनाया जाएगा।
  • रक्षा सहयोग: रक्षा सहयोग पर वर्ष 1993 का समझौता ज्ञापन संयुक्त उद्यमों, विकास परियोजनाओं और खरीद के लिये आधारशिला रहा है।
    • जुलाई 2023 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा के परिणामस्वरूप वर्ष 1993 के समझौता ज्ञापन में संशोधन किया गया और कुआलालंपुर में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के क्षेत्रीय कार्यालय का उद्घाटन किया गया।
    • संयुक्त अभ्यास: हरिमौ शक्ति (सेना), समुद्र लक्ष्मण (नौसेना) और उदार शक्ति (वायुसेना) ये अभ्यास अंतर-सेवा सहयोग और रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करते हैं।
    • क्षेत्रीय सहयोग: भारतीय नौसेना रॉयल मलेशियाई नौसेना के साथ नियमित रूप से सहयोगात्मक समुद्री संबंध को बढ़ावा देती है।
  •  भारतीय समुदाय: मलेशिया में लगभग 2.9 मिलियन भारतीय रहते हैं, जो इसे विश्व स्तर पर भारतीय मूल के व्यक्तियों (PIO) (लगभग 2.75 मिलियन PIO) का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय बनाता है।
    • यह समुदाय मुख्यतः तमिल भाषी है तथा बड़ी संख्या में लोग तेलुगु, मलयालम, पंजाबी और अन्य भाषाएँ भी बोलते हैं।
    • सामुदायिक मुद्दे: चिंताओं में अवैध आव्रजन, श्रमिकों का शोषण और मानव तस्करी शामिल हैं। भारतीय समुदाय को कई हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों के साथ धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
  • सांस्कृतिक सहयोग: भारतीय सांस्कृतिक केंद्र कुआलालंपुर, जिसकी स्थापना वर्ष 2010 में हुई थी और जिसका नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (NSCBICC) कर दिया गया है, भारत और मलेशिया दोनों के शिक्षकों के साथ कर्नाटक गायन, कथक नृत्य, योग और हिंदी की कक्षाएँ प्रदान करता है।
    • रामायण ने भारत में अपनी उत्पत्ति से आगे बढ़कर मलेशिया सहित दक्षिण-पूर्व एशिया की संस्कृतियों को प्रभावित किया है, तथा हिकायत सेरी राम (हिंदू रामायण महाकाव्य का मलय साहित्यिक रूपान्तरण) जैसे संस्करण स्थानीय रूपांतरणों को दर्शाते हैं।
      • महाकाव्य के विषय स्थानीय कहानियों, कलाओं और प्रदर्शनों में प्रतिबिंबित होते हैं, तथा साझा सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हैं।
      • मलेशिया में श्री वीर हनुमान मंदिर साझी सांस्कृतिक विरासत का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी वास्तुकला और कहानियाँ भारतीय परंपराओं में गहराई से निहित हैं।

मलेशिया के बारे में मुख्य तथ्य

  • स्थान: दक्षिण पूर्व एशिया; प्रायद्वीपीय मलेशिया और पूर्वी मलेशिया में विभाजित, दक्षिण चीन सागर द्वारा अलग किया गया।
  • राजधानी: कुआलालंपुर।
  • उच्चतम बिंदु: माउंट किनाबालु, 13,455 फीट (4,101 मीटर)।
  • प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ: मेन रेंज, क्रॉकर, बिंटांग, होज़।
  • प्रमुख नदियाँ: राजंग, सुगुट, पहांग, क्लैंग।
  • प्रकृति: उष्णकटिबंधीय वर्षावन, यह विश्व के 17 महाविविधता वाले देशों का एक हिस्सा है, जो मलायन बाघों, बौने हाथियों और बोर्नियन ओरांगुटान जैसी प्रजातियों का घर है।
  • मलेशिया एक संवैधानिक राजतंत्र है जिसने वर्ष 1957 में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
  • प्रायद्वीपीय मलेशिया थाईलैंड के साथ स्थलीय और समुद्री सीमा साझा करता है, तथा सिंगापुर, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ समुद्री सीमा साझा करता है।
    • पूर्वी मलेशिया ब्रुनेई और इंडोनेशिया के साथ स्थलीय तथा समुद्री सीमा साझा करता है, एवं फिलीपींस व वियतनाम के साथ समुद्री सीमा साझा करता है।
  • मलक्का जलडमरूमध्य मलय प्रायद्वीप (प्रायद्वीपीय मलेशिया) और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के बीच से होकर गुजरता है। यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच शिपिंग का मुख्य चैनल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत-मलेशिया संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करने का क्या महत्त्व है? क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)


अरावली के समक्ष गंभीर खतरे

प्रिलिम्स के लिये:

अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट, भारत में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण, एक सतत् भविष्य के लिये वनों का संरक्षण, भारत में पर्वत श्रेणियाँ, विश्व में पर्वत शृंखलाएँ

मेन्स के लिये:

वनस्पतियों और जीवों की हानि, जैवविविधता पर वनों की कटाई का प्रभाव, क्षेत्रीय पारिस्थितिकी, जलवायु और जल प्रणालियों में अरावली की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अरावली में भूमि उपयोग गतिशीलता पर एक हालिया वैज्ञानिक अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि पहाड़ियों के निरंतर विनाश के परिणामस्वरूप जैव विविधता, मृदा क्षरण, तथा वनस्पति आवरण में कमी आई है।

अरावली से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पहाड़ियों की क्षति: वर्ष 1975 और 2019 के बीच अरावली पहाड़ियों का लगभग 8% (5,772.7 वर्ग किमी) हिस्सा लुप्त हो गया है, जिसमें 5% (3,676 वर्ग किमी) बंजर भूमि में परिवर्तित हो गया है और 1% (776.8 वर्ग किमी) बस्तियों में बदल गया है।
  • खनन क्षेत्र में वृद्धि: वर्ष 1975 में 1.8% से  2019 में 2.2% तक।
    • ‘वृहत’ शहरीकरण और अवैध खनन अरावली पहाड़ियों के निरंतर विनाश में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
    • राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का 25 प्रतिशत से अधिक भाग तथा 31 पर्वत शृंखलाएँ अवैध उत्खनन के कारण लुप्त हो गई हैं।
    • खनन कार्य श्वसनीय कण पदार्थ (Respirable Particulate Matter- RPM) के माध्यम से NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदान देता है।
  • मानव बस्तियों में वृद्धि: वर्ष 1975 में 4.5% से वर्ष 2019 में 13.3% तक।
  • वन क्षेत्र: वर्ष 1975-2019 के बीच मध्य क्षेत्र में 32% की गिरावट आई, जबकि कृषि योग्य भूमि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
    • वर्ष 1999 से 2019 के दौरान वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का 0.9% तक कम हो गया। 
    • अध्ययन अवधि के दौरान औसत वार्षिक निर्वनीकरण दर 0.57% थी।
  • जल निकायों पर प्रभाव: जल निकायों का विस्तार वर्ष 1975 में 1.7% से बढ़कर वर्ष 1989 में 1.9% हो गया, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आई है।
    • अत्यधिक खनन के कारण जलभृतों में छिद्र हो गए हैं, जिससे जल प्रवाह बाधित हुआ है, झीलें सूख गई तथा अवैध खननकर्त्ताओं द्वारा छोड़े गए गड्ढों के परिणामस्वरूप नए जल निकाय निर्मित हो गए हैं।
  • अरावली में संरक्षित क्षेत्रों का प्रभाव: मध्य अरावली पर्वतमाला में टॉडगढ़-राओली और कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्यों ने पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव डाला, जिससे वनों का क्षरण न्यूनतम हुआ।
  • संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक  (EVI): ऊपरी मध्य अरावली क्षेत्र (नागौर ज़िला) में EVI का न्यूनतम मान 0 से -0.2 है, जो अस्वस्थ वनस्पति को दर्शाता है।
  • भविष्य के अनुमान: वर्ष 2059 तक अरावली क्षेत्र का कुल नुकसान 22% (16,360 वर्ग किमी) तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें से 3.5% (2,628.6 वर्ग किमी) क्षेत्र का उपयोग खनन के लिये होने की संभावना है।
  • अरावली के सामने आने वाली अन्य प्रमुख चुनौतियाँ:
    • तेंदुए, धारीदार लकड़बग्घा, सुनहरे सियार और अन्य प्रजातियों सहित वनस्पतियों एवं जीवों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • अरावली से निकलने वाली कई नदियाँ जैसे बनास, लूनी, साहिबी और सखी अब मृत हो चुकी हैं।
    • अरावली के किनारे प्राकृतिक वनों के खत्म होने से मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है।

संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक (EVI) क्या है ?

  • परिचय
    • EVI एक संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक है, जो बायोमास, वायुमंडलीय पृष्ठभूमि और मृदा स्थिति के प्रति उच्च संवेदनशीलता के साथ बनाया गया है।
    • इसे सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (NDVI) का संशोधित संस्करण माना जाता है, जिसमें सभी बाह्य शोर को हटाकर वनस्पति निगरानी की उच्च क्षमता है।
  • EVI मान सीमा
    • 0 से 1 तक की सीमा जिसमें 1 के करीब मान स्वास्थ्यकर वनस्पति को दर्शाता है और 0 के करीब मान अस्वास्थ्यकर वनस्पति को दर्शाता है।

नोट: 

  • एक काँटेदार सुगंधित झाड़ी लैंटाना कैमरा जिसकी लंबाई 20 फीट तक होती है, राजस्थान और दक्षिण दिल्ली में अरावली पहाड़ियों के बड़े क्षेत्रों पर आक्रामक रूप से पनप गई है। 

अरावली के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: 
    • अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक विस्तृत है जिसकी लंबाई 692 किमी. है और चौड़ाई 10 से 120 किमी. के बीच है।
      • यह पर्वतमाला एक प्राकृतिक हरित दीवार (green wall) के रूप में कार्य करती है, जिसका 80% हिस्सा राजस्थान में और 20% हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में स्थित है।
    • अरावली पर्वतमाला दो मुख्य पर्वतमालाओं में विभाजित है - राजस्थान में सांभर सिरोही पर्वतमाला और सांभर खेतड़ी पर्वतमाला, जहाँ इनका विस्तार लगभग 560 किमी. है।
    • यह थार रेगिस्तान और गंगा के मैदान के बीच एक इकोटोन के रूप में कार्य करती है।
      • इकोटोन वे क्षेत्र हैं, जहाँ दो या दो से अधिक पारिस्थितिकी तंत्र, जैविक समुदाय या जैविक क्षेत्र मिलते हैं।
    • इस पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर (राजस्थान) है, जिसकी ऊँचाई 1,722 मीटर है।

अरावली का महत्त्व:

  • अरावली थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों पर अतिक्र मण करने से रोकती है, जो ऐतिहासिक रूप से नदियों और मैदानों के लिये जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है।
  • इस पर्वतमाला में 300 स्थानीय पादप प्रजातियाँ, 120 पक्षी प्रजातियाँ और गीदड़ एवं नेवले जैसे विशेष जीव-जंतु पाए जाते हैं।
  • मानसून के दौरान अरावली के कारण बादल पूर्व की ओरमुड़ जाते हैं, जिससे उप-हिमालयी नदियाँ और उत्तर भारतीय मैदान लाभांवित होते हैं। सर्दियों में ये उपजाऊ घाटियों को पश्चिमी शीत पवनों से बचाते हैं।
  • यह पर्वतमाला वर्षा जल को अवशोषित करके भू-जल पुनःपूर्ति में सहायता करती है, जिससे भू-जल स्तर में सुधार होता है।
  • अरावली दिल्ली-NCR के लिये ‘फेफड़ों’ के रूप में कार्य करती है, जो इस क्षेत्र में गंभीर वायु प्रदूषण के कुछ प्रभावों को कम करती है।

अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और कानूनी अधिसूचनाएँ क्या हैं?

  • वर्ष 2018 का निर्णय: हरियाणा में अरावली पर्वतमाला में अवैध निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया। कांत एन्क्लेव को ध्वस्त करने और निवेशकों को प्रतिपूर्ति करने का निर्देश दिया गया।
  • वर्ष 2009 का आदेश: पूरे अरावली में खनन पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • वर्ष 2002 का आदेश: बड़े पैमाने पर क्षरण के कारण हरियाणा में खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • वर्ष 1996 का निर्णय: यह अनिवार्य किया गया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के बिना बड़खल झील के 2-5 किलोमीटर के दायरे में खनन पट्टों का नवीनीकरण नहीं किया जा सकता।
  • निवारक सिद्धांत (वर्ष 1996): सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि सरकारों को वैज्ञानिक साक्ष्य (वेल्लोर नागरिक कल्याण मंच बनाम भारत संघ) की प्रतीक्षा किये बिना पर्यावरणीय क्षरण को पूर्वानुमानित करना चाहिये और उसे रोकना चाहिये।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (वर्ष 2010): NGT अधिनियम की धारा 20 के तहत पर्यावरणीय निर्णयों के लिये निवारक सिद्धांत को अपनाया गया।
  • पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अधिसूचना (वर्ष 1992): पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की पूर्व अनुमति के बिना अरावली पर्वतमाला में नए उद्योगों, खनन, निर्वनीकरण और निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदम: क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिये NCR में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन। 
    • अरावली में अवैध खनन को रोकने हेतु गुरुग्राम में सात सदस्यीय "अरावली कायाकल्प बोर्ड" की स्थापना की गई है।

आगे की राह 

  • अरावली ग्रीन वॉल परियोजना को लागू करें: अरावली पर्वतमाला के चारों ओर 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी ग्रीन वॉल विकसित करना।
    • हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में 75 जल निकायों और बंजर भूमि का पुनरुद्धार करना।
    • अफ्रीका की 'ग्रेट ग्रीन वॉल' से प्रेरित इस परियोजना का उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना और मरुस्थलीकरण से निपटना है।
  • सफल बहाली मॉडल अपनाएँ: गुरुग्राम में जैवविविधता पार्क के सफल उदाहरण का अनुसरण करते हुए नागरिक समाज को कॉरपोरेट्स और निवासियों के साथ मिलकर वृक्षारोपण एवं आवास बहाली के लिये भागीदारी बनाना।
    • अरावली क्षेत्र में आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये पारिस्थितिकीविदों और स्थानीय स्वयंसेवकों को शामिल करना।
  • कानूनी और विनियामक उपायों को मज़बूत करना: अवैध खनन और निर्माण को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के मौज़ूदा फैसलों एवं कानूनी अधिसूचनाओं को लागू करना।
    • पर्यावरण नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना और अरावली पर्वतमाला को और अधिक क्षरण से बचाने के लिए निवारक सिद्धांतों को एकीकृत करना।
    • अरावली में अतिक्रमण और अवैध बस्तियों को रोकने के लिये सख्त ज़ोनिंग कानून (zoning laws) लागू करना।
  • अवैध खनन के खतरे से निपटने के लिये अरावली कायाकल्प बोर्ड जैसी संस्थाओं को सशक्त बनाना।

निष्कर्ष

अरावली पर्वतमाला का भविष्य पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिये तत्काल और प्रभावी कार्रवाई पर निर्भर करता है। अनुमानों के अनुसार वर्ष 2059 तक 22% की हानि होगी और खनन एवं शहरीकरण का विस्तार होगा, इसलिये कानूनी उपायों को सख्ती से लागू करना तथा अरावली ग्रीन वॉल जैसी बड़े पैमाने पर बहाली परियोजनाओं में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। अभिनव संरक्षण मॉडल को लागू करके और न्यायिक निर्णयों का पालन करके, हम इस महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक अवरोध की रक्षा कर सकते हैं, जैवविविधता की रक्षा कर सकते हैं तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रतिकूल जलवायु प्रभावों को कम कर सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. अरावली पर्वतमाला पर अवैध खनन और शहरीकरण के प्रभाव की जाँच करें तथा इन मुद्दों को कम करने में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।


तीसरा वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS)

प्रिलिम्स के लिये:

वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन, वसुधैव कुटुंबकम, ग्लोबल साउथ, प्राकृतिक खेती, सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), डिजिटल परिवर्तन, ब्रांट लाइन, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

मेन्स के लिये:

वैश्विक भागीदार के रूप में भारत के उदय में ग्लोबल साउथ का महत्त्व और संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत ने 17 अगस्त, 2024 को वर्चुअल प्रारूप में तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (Voice of Global South Summit- VOGSS) की मेजबानी की, जिसकी व्यापक विषयवस्तु थी, "An Empowered Global South for a Sustainable Future अर्थात् एक सतत् भविष्य के लिये सशक्त वैश्विक दक्षिण"।

  • तीसरे VOGSS में 123 देशों ने भाग लिया। हालाँकि, चीन और पाकिस्तान को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया था ।
  • भारत ने 12-13 जनवरी 2023 को प्रथम VOGSS और 17 नवंबर 2023 को द्वितीय VOGSS की मेज़बानी की थी, उल्लेखनीय है इन दोनों सम्मेलनों की मेज़बानी भी वर्चुअल प्रारूप में ही की गई थी।

वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन क्या है?

  • सम्मेलन के बारे में: यह भारत के नेतृत्व में एक नवीन और अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य ग्लोबल साउथ/वैश्विक दक्षिण के देशों को एक साथ लाना तथा विभिन्न मुद्दों पर पर उनके दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं के प्रकटन हेतु एक साझा मंच प्रदान करना है।
  • VOGSS की आवश्यकता: हाल के वैश्विक घटनाक्रमों, जैसे कि कोविड महामारी, यूक्रेन में जारी संघर्ष, बढ़ता ऋण, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों आदि ने विकासशील देशों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। 
    • व्यापक अनदेखी: प्रायः विकासशील देशों की चिंताओं को वैश्विक मंचों पर उचित महत्त्व नहीं मिलता।
    • अपर्याप्त संसाधन: प्रासंगिक मौजूदा मंच विकासशील देशों की चुनौतियों और चिंताओं का समाधान करने के क्रम में अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं।
    • नवीनीकृत सहयोग: भारत का प्रयास विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली चिंताओं, हितों एवं प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करने तथा विचारों व समाधानों का आदान-प्रदान करने के लिये एक साझा मंच प्रदान करना है।
  • तीसरे VOGSS 2024 के मुख्य परिणाम :
    • वैश्विक विकास समझौता: भारत के प्रधानमंत्री ने चार तत्त्वों से युक्त एक व्यापक चार-स्तरीय वैश्विक विकास समझौते (Global Development Compact-GDC) का प्रस्ताव रखा:
      • विकास के लिये व्यापार
      • सतत् विकास के लिये क्षमता निर्माण
      • प्रौद्योगिकी साझाकरण
      • परियोजना विशिष्ट रियायती वित्त एवं अनुदान।
    • वित्तपोषण और समर्थन: भारत के प्रधानमंत्री ने ग्लोबल साउथ के देशों के साथ अपनी विकास साझेदारी को आगे बढ़ाने में भारत द्वारा कई महत्त्वपूर्ण पहलों की घोषणा की, जिनमें शामिल हैं:
      • व्यापार संवर्द्धन गतिविधियों के संवर्द्धन हेतु 2.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड
      • व्यापार नीति और व्यापार वार्ता में  क्षमता निर्माण हेतु 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड
    • स्वास्थ्य देखभाल संवर्द्धन: भारत ग्लोबल साउथ के देशों को सस्ती एवं प्रभावी जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने, दवा नियामकों के प्रशिक्षण का समर्थन करने तथा कृषि क्षेत्र में 'प्राकृतिक खेती' से जुड़े अनुभव व प्रौद्योगिकी साझाकरण की दिशा में कार्य करेगा।
    • वैश्विक संस्थानों में सुधार: प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तनावों और संघर्षों का समाधान न्यायसंगत एवं समावेशी वैश्विक शासन पर निर्भर करता है।
      • वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है ताकि उनकी प्राथमिकताओं में ग्लोबल साउथ की चिंताओं के समाधान को वरीयता दी जाए साथ ही विकसित देशों को भी अपने उत्तरदायित्वों एवं प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की आवश्यकता है।
    • सतत् विकास लक्ष्यों के लिये सहयोग: तीसरा VOGSS ग्लोबल साउथ के साझा दृष्टिकोण से प्रेरित था, जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरी तरह से प्राप्त करना तथा वर्ष 2030 से आगे तीव्र विकास पथ पर अग्रसर होना शामिल है
      • इसमें विकास वित्त, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी, शासन, ऊर्जा, व्यापार, युवा सशक्तीकरण और डिजिटल परिवर्तन सहित वैश्विक दक्षिण के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान हेतु सामूहिक प्रयासों को सशक्त करने पर ज़ोर दिया गया। 
  • ग्लोबल साउथ क्या है?
  • ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी विद्वान कार्ल ओग्लेसबी (Carl Oglesby) द्वारा वर्ष 1969 में ग्लोबल नॉर्थ के ‘प्रभुत्व’ (राजनीतिक और आर्थिक शोषण के माध्यम से) से प्रभावित देशों के समूह को दर्शाने के लिये किया गया था।
  • "ग्लोबल साउथ" वाक्यांश मोटे तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो ब्रांट रेखा द्वारा पृथक्कृत होते हैं। 
    • यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर के क्षेत्रों को दर्शाता है, जो अधिकांशतः निम्न आय वाले तथा प्रायः राजनीतिक या सांस्कृतिक रूप से हाशिये पर हैं।
  • चीन और भारत ग्लोबल साउथ के अग्रणी समर्थक हैं।
  • ब्रांट रेखा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर, समृद्ध उत्तरी देशों और निर्धन दक्षिणी देशों के बीच विश्व के आर्थिक विभाजन का एक दृश्य प्रतिनिधित्व है। 
    • इसे 1970 के दशक में विली ब्रांट द्वारा प्रस्तावित किया गया था और यह लगभग 30° उत्तरी अक्षांश पर विश्व को घेरे हुए है।

‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ के रूप में भारत के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने में भारत को चीन के प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखा जा रहा है। 
    • चीन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से अपनी पैठ बना रहा है।
  •  खाद्य सुरक्षा दुविधा: ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक खाद्य सुरक्षा को हल करना है।
    • जुलाई 2023 में चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने के भारत के निर्णय की आलोचना की गई है, क्योंकि यह उसकी नेतृत्वकारी भूमिका के अनुरूप नहीं है, विशेष रूप से वैश्विक खाद्य चुनौतियों से निपटने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को देखते हुए।
    • आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के कदम ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने के भारत के दावे को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • फार्मास्यूटिकल चुनौती: भारतीय निर्माताओं से जुड़े दूषित दवाओं के विवाद के कारण विश्व की फार्मेसी’ के रूप में भारत की प्रतिष्ठा भी जाँच के दायरे में आ गई है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने घटिया दवाओं के बारे में कई चेतावनियाँ जारी की हैं, जिसमें भारत द्वारा अपने दवा निर्यात में उच्च मानक बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • आंतरिक विकास के मुद्दे: आलोचकों का तर्क है कि भारत को अन्य मुद्दों से पहले असमान धन वितरण, बेरोज़गारी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे अपने घरेलू विकास के मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • भारत की विशाल ग्रामीण आबादी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच का अभाव है, जिससे अन्य विकासशील देशों में इसी प्रकार की समस्याओं के समाधान की इसकी क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।

आगे की राह

  • रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना: भारत को प्रौद्योगिकी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सहयोगी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक दक्षिण के देशों के साथ गठबंधन बनाना तथा मज़बूत करना जारी रखना चाहिये।
    • इससे चीन के प्रभाव का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) प्रमुख है।
  • संतुलित विकास मॉडल: भारत को एक ऐसे विकास मॉडल का समर्थन करना चाहिये जो स्थिरता और समावेशिता को प्राथमिकता दे तथा खुद को चीन के ऋण जाल दृष्टिकोण से अलग रखे।
    • भारत स्वयं को अधिक नैतिक और जन-केंद्रित नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • निर्यात नीतियों का पुनर्मूल्यांकन: वैश्विक दक्षिण में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये भारत को घरेलू खाद्य सुरक्षा और वैश्विक ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना चाहिये।
    • कृषि नवाचार और प्रौद्योगिकी में निवेश से घरेलू खाद्य उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भारत अपनी घरेलू आवश्यकताओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं दोनों को पूरा कर सके।
  • घरेलू चुनौतियों को प्राथमिकता देना: गरीबी, बेरोज़गारी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे घरेलू मुद्दों का समाधान करना भारत के लिये उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक है।
    • एक मज़बूत, सुविकसित भारत के पास अन्य विकासशील देशों को मार्गदर्शन देने के लिये अधिक विश्वसनीयता और नैतिक अधिकार होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: ग्लोबल साउथ में नेतृत्व की भूमिका निभाने में भारत को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत को एक ज़िम्मेदार और प्रभावी अग्रेता के रूप में स्थापित करने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. "यदि विगत कुछ दशक एशिया की विकास की कहानी के रहे, तो परवर्ती कुछ दशक अफ्रीका के हो सकते हैं।" इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव की परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न.  शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)