शासन व्यवस्था
भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना
- 23 Jul 2024
- 30 min read
यह एडिटोरियल 22/07/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Shock-proof state: On an outage and a democratic digital infrastructure” लेख पर आधारित है। इसमें विभिन्न सेवाओं पर एक सॉफ्टवेयर ग्लिच के व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है और मज़बूत ‘फेल-सेफ’ एवं आपातकालीन प्रोटोकॉल की आवश्यकता पर बल दिया गया है। लेख में ऐसे प्रत्यास्थी आधारभूत संरचना को सुनिश्चित करने के लिये ‘डिजिटल इंडिया’ पहल का आह्वान किया गया है जो प्रौद्योगिकीय अंतर्संबंधों और सामाजिक असमानताओं को संबोधित करे।
प्रिलिम्स के लिये:डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, डिजिटल इंडिया, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), आधार कार्यक्रम, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता, ई-संजीवनी, डिजिटल इंडिया भाषिनी, डिजिटल रुपया, इंडिया स्टैक, डिजीलॉकर, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023। मेन्स के लिये:भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में वृद्धि हेतु उपाय। |
भारत ने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को अपनी G20 अध्यक्षता के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थापित किया और समावेशी विकास के लिये इसे मॉडल के रूप में वैश्विक स्तर पर अपनाए जाने का समर्थन किया। देश ने अपनी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। हालाँकि, 19 जुलाई 2024 को वैश्विक सॉफ्टवेयर ग्लिच (software glitch) ने महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में परस्पर जुड़ी प्रणालियों की भेद्यता को उजागर कर दिया, जिससे डिजिटल अवसंरचना के लिये अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
‘डिजिटल इंडिया’ पहल को न केवल प्रौद्योगिकीय उन्नति के लिये, बल्कि डिजिटल निजता, डेटा संप्रभुता और प्रौद्योगिकी अंगीकरण को प्रभावित करने वाली सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को संबोधित करने के लिये विकसित किया जाना चाहिये। भारत को इस संबंध में श्रमपूर्वक कार्य करने की ज़रूरत है, जहाँ ऐसे ‘शॉक-प्रूफ’ डिजिटल अवसंरचना के सृजन पर ध्यान केंद्रित किया जाए जो आवश्यक सेवाओं को बनाए रखे, अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करे और ओपन-सोर्स समाधानों एवं इंटीग्रिटी टेस्टिंग (integrity testing) के माध्यम से आम लोगों के भरोसे का निर्माण करे।
डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना क्या है?
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure- DPI) से तात्पर्य सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा प्रदत्त मूलभूत डिजिटल प्रणालियों और सेवाओं से है जो डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं समाज के कार्यकरण को समर्थन देने तथा उसे आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। इसमें शामिल हैं:
- डिजिटल पहचान प्रणालियाँ (Digital Identity Systems): व्यक्तियों की पहचान को ऑनलाइन माध्यम से सत्यापित करने और उसे प्रबंधित करने के लिये विभिन्न प्लेटफॉर्म; जैसे भारत में आधार (Aadhaar)।
- डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ (Digital Payment Systems): डिजिटल वॉलेट, पेमेंट गेटवे और बैंकिंग प्लेटफॉर्म सहित सुरक्षित वित्तीय लेनदेन का समर्थन करने वाली बुनियादी संरचना।
- सार्वजनिक डिजिटल सेवाएँ (Public Digital Services): सरकार द्वारा प्रदत्त ऑनलाइन सेवाएँ, जैसे ई-गवर्नेंस पोर्टल, सार्वजनिक स्वास्थ्य सूचना और डिजिटल शिक्षा प्लेटफॉर्म।
- डेटा अवसंरचना (Data Infrastructure): डेटा को सुरक्षित रूप से संग्रहित करने, प्रबंधित करने और साझा करने के लिये प्रणालियाँ, जो डेटा संप्रभुता एवं निजता सुनिश्चित करती हैं।
- साइबर सुरक्षा संबंधी ढाँचे (Cybersecurity Frameworks): साइबर खतरों से डिजिटल परिसंपत्तियों और व्यक्तिगत सूचनाओं की सुरक्षा के लिये विभिन्न उपाय एवं प्रोटोकॉल।
- ब्रॉडबैंड और कनेक्टिविटी: सभी क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट तक व्यापक एवं समतामूलक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये आधारभूत संरचना।
भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में प्रमुख प्रगतियाँ:
- एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI): UPI ने भारत में डिजिटल भुगतान में क्रांति ला दी है और इसके आरंभ से ही इसमें तेज़ वृद्धि देखी गई है।
- UPI लेनदेन वित्त वर्ष 2017-18 में 92 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 8,375 करोड़ तक पहुँच गया।
- यह प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विस्तारित हो चुकी है, जहाँ संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और फ्राँस जैसे देश कई देश UPI को अपना रहे हैं या इस दिशा में विचार कर रहे हैं।
- हाल के प्रगति क्रम में क्रेडिट कार्ड के साथ UPI का एकीकरण और ऑफलाइन लेनदेन के लिये ‘यूपीआई लाइट’ (UPI Lite) का शुभारंभ शामिल है।
- इन प्रगतियों ने न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ाया है, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर डिजिटल भुगतान में अग्रणी देश भी बना दिया है।
- आधार पारिस्थितिकी तंत्र: भारत की बायोमीट्रिक पहचान प्रणाली के रूप में ‘आधार’ विभिन्न सरकारी एवं निजी क्षेत्र सेवाओं की रीढ़ बन गया है।
- 1.3 बिलियन से अधिक नामांकन के साथ, यह दुनिया की सबसे बड़ी बायोमीट्रिक आईडी प्रणाली है।
- डिजीलॉकर (DigiLocker) के साथ ‘आधार’ के एकीकरण से दस्तावेजों का सुरक्षित भंडारण और साझाकरण संभव हो गया है।
- इस पारिस्थितिकी तंत्र ने कल्याण वितरण में धोखाधड़ी को व्यापक रूप से कम कर दिया है और विभिन्न क्षेत्रों में KYC प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर दिया है।
- ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): ONDC ई-कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाने के भारत के महत्त्वाकांक्षी प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है।
- कई शहरों में पायलट चरण में शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य 30 मिलियन विक्रेताओं और 10 मिलियन व्यापारियों को ऑनलाइन लाना है।
- ONDC एक खुले नेटवर्क का सृजन कर मौजूदा ई-कॉमर्स एकाधिकार को चुनौती देता है और छोटे एवं मध्यम उद्यमों के लिये प्रतिस्पर्द्धा का एकसमान अवसर प्रदान करता है।
- अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क (Account Aggregator Framework): अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क भारत में वित्तीय डेटा साझाकरण में परिवर्तन ला रहा है।
- यह विभिन्न संस्थाओं के बीच वित्तीय सूचना की सुरक्षित एवं सहमति-आधारित साझेदारी को सक्षम बनाता है।
- वर्ष 2023 तक विभिन्न बैंकों के 1.1 बिलियन से अधिक खाते AA-सक्षम हो गए थे।
- इस प्रणाली से MSMEs को विशेष रूप से लाभ प्राप्त हुआ है, क्योंकि इससे ऋण प्रोसेसिंग समय में तेज़ी आई है और ऋण तक पहुँच में सुधार हुआ है।
- डिजिटल स्वास्थ्य पहलें: आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के इर्द-गिर्द केंद्रित भारत का डिजिटल स्वास्थ्य पारितंत्र व्यापक प्रगति कर रहा है।
- दिसंबर 2023 तक 50 करोड़ व्यक्तियों के पास उनके विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान-पत्र के रूप में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता (ABHA) उपलब्ध हो गया था।
- कोविन (CoWIN) प्लेटफॉर्म (जिसे मूलतः कोविड-19 टीकाकरण के लिये विकसित किया गया था) को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रमों के लिये नवीन रूप दिया गया है।
- टेलीमेडिसिन परामर्शों की वृद्धि हुई है, जहाँ ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्म 100 मिलियन से अधिक परामर्श आयोजित कर रहे हैं।
- इन पहलों से पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच एवं दक्षता में सुधार हो रहा है।
- डिजिटल इंडिया भाषिनी: भाषिणी (BHASHa INterface for India) एक AI-संचालित भाषा अनुवाद प्लेटफॉर्म है जिसका उद्देश्य डिजिटल संचार में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करना है।
- इसे विभिन्न सरकारी वेबसाइटों और ऐप्स में एकीकृत किया जा रहा है, जिससे इसकी पहुँच में सुधार हो रहा है।
- केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (Central Bank Digital Currency- CBDC): भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिसंबर 2022 में डिजिटल रुपया (Digital Rupee) का पायलट लॉन्च किया, जिसके साथ ही भारत का CBDC क्षेत्र में प्रवेश हो गया है।
- CBDC पायलट के आरंभ के बाद से वर्ष 2023 के मध्य तक 2.2 करोड़ से अधिक लेनदेन संसाधित किये जा चुके हैं।
- इस पहल का उद्देश्य मुद्रा प्रबंधन की लागत को कम करना तथा अधिक रियल-टाइम एवं लागत-प्रभावी सीमा-पार लेनदेन को सक्षम बनाना है।
- सरकारी ई-मार्केटप्लेस (Government e-Marketplace- GeM): GeM पोर्टल पर खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वाढ 2024-25 की पहली तिमाही में 1.24 लाख करोड़ रुपए को पार कर गई।
- इस प्रणाली से सार्वजनिक खरीद लागत में 10% की बचत हुई है।
- GeM की सफलता के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने इसे अपना लिया है, जबकि अन्य देशों द्वारा भी इसके मॉडल का अध्ययन किया जा रहा है।
नोट: इंडिया स्टैक (India Stack)—जो ओपन APIs और ‘डिजिटल पब्लिक गुड्स’ का एक समूह है, भारत की डिजिटल अवसंरचना की रीढ़ के रूप में विकसित हो रहा है। इसमें प्रमाणीकरण के लिये ‘आधार’, भुगतान के लिये UPI और दस्तावेज़ सत्यापन के लिये ‘डिजीलॉकर’ शामिल हैं।
- ‘कंसेंट लेयर’ (Consent Layer), जो डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) का एक अंग है, सुरक्षित डेटा साझाकरण को सक्षम बनाता है।
भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- डिजिटल डिवाइड संबंधी दुविधा: ‘डिजिटल डिवाइड’ एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, जहाँ प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता तक पहुँच में असमानताएँ मौजूद हैं।
- इंटरनेट इन इंडिया रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में इंटरनेट की पहुँच लगभग 52% थी, यानी इसकी लगभग आधी आबादी ऑफलाइन थी।
- डिजिटल अंगीकरण के मामले में ग्रामीण क्षेत्र शहरी केंद्रों से पीछे हैं। उदाहरण के लिये, जबकि शहरों में UPI लेन-देन तेज़ी से बढ़ रहा है, कई ग्रामीण निवासी अभी भी नकदी पर निर्भर हैं।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 में पाया गया कि केवल 33% भारतीय महिलाएँ इंटरनेट का उपयोग करती हैं, जबकि 57% पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं।
- डिजिटल साक्षरता की दिशा में पिछड़ापन: अवसंरचनात्मक विकास महत्त्वपूर्ण है, लेकिन डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसी पहलों के बावजूद जनसंख्या का एक बड़ा भाग डिजिटल रूप से निरक्षर बना हुआ है।
- इससे UPI से लेकर ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म तक डिजिटल सेवाओं को अपनाने और उनके प्रभावी उपयोग पर असर पड़ता है।
- बाह्य आघातों के प्रति भेद्यता: हाल ही में ‘क्राउडस्ट्राइक’ (CrowdStrike) के दोषपूर्ण सॉफ्टवेयर अपडेट के कारण वैश्विक आईटी सिस्टम आउतेज की स्थिति बनी, जिससे विभिन्न विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) में व्यापक व्यवधान उत्पन्न हुआ।
- इस अति निर्भरता ने डोमिनो प्रभाव पैदा किया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सेवाएँ बाधित हुईं।
- एक मज़बूत ‘फेल-सेफ’ (fail-safe) तंत्र की कमी ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया, जिससे एक अधिक प्रत्यास्थी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की तत्काल आवश्यकता अनुभव की गई।
- बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ साइबर सुरक्षा जोखिम भी बढ़ गया है।
- भारतीय व्यवसायों को प्रति सप्ताह 3,000 से अधिक साइबर हमलों का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में एम्स दिल्ली पर हुए रैनसमवेयर हमले ने महत्त्वपूर्ण अवसंरचना में विद्यमान भेद्यताओं को उजागर कर दिया।
- भाषा संबंधी मुद्दे: 22 आधिकारिक भाषाओं और कई बोलियों वाले विशाल देश में भाषा भी डिजिटल अंगीकरण में एक महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में प्रकट होती है।
- यद्यपि ‘भाषिणी’ जैसी पहल इस समस्या के समाधान पर लक्षित है, फिर भी सभी डिजिटल प्लेटफॉफार्मों पर व्यापक भाषा सपोर्ट सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, कई सरकारी ऐप्स और वेबसाइट अभी भी मुख्यतः अंग्रेज़ी या हिंदी में हैं, जिससे उनकी पहुँच सीमित बनी हुई है।
- डिजिटल संप्रभुता संबंधी संघर्ष: जैसा कि मसौदा नीतियों में देखा गया है, डेटा स्थानीयकरण के लिये भारत का प्रयास डिजिटल संप्रभुता सुनिश्चित करने पर लक्षित है।
- हालाँकि, इससे वैश्विक टेक कंपनियों के लिये चुनौतियाँ पैदा होंगी और संभावित रूप से सीमा-पार डेटा प्रवाह पर असर पड़ेगा।
- उदाहरण के लिये, भुगतान डेटा को स्थानीय स्तर पर संग्रहित करने के भारतीय रिज़र्व बैंक के आदेश के कारण अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रदाताओं के लिये अनुपालन संबंधी जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- इसके अलावा, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित देशों को छोड़कर, भारत के बाहर व्यक्तिगत डेटा के हस्तांतरण की अनुमति देता है।
- यह तंत्र उन देशों में डेटा संरक्षण मानकों का पर्याप्त मूल्यांकन सुनिश्चित नहीं कर सकता जहाँ व्यक्तिगत डेटा के हस्तांतरण की अनुमति है।
- व्यक्तिगत डेटा निजता संबंधी विरोधाभास: जैसे-जैसे डिजिटल सेवाओं का विस्तार हो रहा है, डेटा निजता एवं सुरक्षा के बारे में चिंताएँ भी बढ़ रही हैं।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनिम, 2023 के प्रावधानों को अभी भी पूरी तरह से लागू किया जाना शेष है।
- वर्ष 2018 में आधार डेटा के उल्लंघन की बात सामने आई थी, जिसने सार्वजनिक चिंता की वृद्धि की।
भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना की प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिये कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?
- उन्नत साइबर सुरक्षा उपाय: भारत को डिजिटल सुरक्षा के बढ़ते महत्त्व को प्रतिबिंबित करने के लिये अपने साइबर सुरक्षा बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि करनी चाहिये।
- सभी महत्त्वपूर्ण अवसंरचना क्षेत्रों के लिये अनिवार्य साइबर सुरक्षा ऑडिट से भेद्यताओं की पहचान करने और सुरक्षा को मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
- नियमित ड्रिल या अभ्यास के साथ एक सुदृढ़ राष्ट्रीय साइबर घटना प्रतिक्रिया योजना के कार्यान्वयन से बड़े पैमाने पर साइबर हमलों से निपटने के लिये भारत की तैयारी में वृद्धि होगी।
- अंतर-संचालनीयता संबंधी मानक: सभी डिजिटल सेवाओं के लिये राष्ट्रीय अंतर-संचालनीयता मानकों (national interoperability standards) का विकास एवं प्रवर्तन, सभी प्लेटफॉर्मों पर निर्बाध एकीकरण और डेटा विनिमय सुनिश्चित करेगा।
- सरकारी सेवाओं के लिये एक ओपन API नीति, जैसे रक्षा क्षेत्र के लिये माया ओएस (Maya OS) है, बनाई जानी चाहिये ताकि नवाचार को प्रोत्साहित किया जा सके और थर्ड-पार्टी डेवलपर्स को मौजूदा अवसंरचना पर आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके।
- वित्तीय सेवाओं की अंतर-संचालनीयता के परीक्षण के लिये रेगुलरिटी सैंडबॉक्स की स्थापना से सुरक्षा और अनुपालन सुनिश्चित करते हुए नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकेगा।
- विभिन्न क्षेत्रों में IndEA (India Enterprise Architecture) ढाँचे को अपनाने से डिजिटल परिवर्तन के लिये एक साझा आधार उपलब्ध होगा।
- समावेशी डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: भारत को व्यावहारिक डिजिटल कौशल पर केंद्रित एक राष्ट्रव्यापी ‘डिजिटल साक्षरता अभियान 2.0’ शुरू करना चाहिये, जहाँ दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँच के लिये गैर-सरकारी संगठनों और टेक कंपनियों के साथ साझेदारी की जाए।
- इस पहल के तहत माध्यमिक स्तर से ही स्कूली पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता मॉड्यूल शामिल किया जाना चाहिये, जिससे भावी पीढ़ियों के लिये एक सुदृढ़ आधार सुनिश्चित हो सके।
- डिजिटल विभाजन को दूर करने के लिये महिलाओं, वृद्धजनों और हाशिये पर स्थित समुदायों के लिये लक्षित कार्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये।
- ये प्रयास सामूहिक रूप से एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज के निर्माण की दिशा में कार्य करेंगे, जिससे सभी नागरिक भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग ले सकेंगे और इससे लाभान्वित हो सकेंगे।
- साइबर सुरक्षा बोर्ड: भारत में एक साइबर सुरक्षा बोर्ड (Cyber Security Board) की स्थापना की जाए, जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्र के सदस्य शामिल हों। इस बोर्ड को महत्त्वपूर्ण साइबर घटनाओं का विश्लेषण करने और सुधार की अनुशंसा करने का दायित्व सौंपा जाए।
- इसके साथ ही, एक ‘ज़ीरो-ट्रस्ट आर्किटेक्चर’ विकसित किया जाए, एक मानकीकृत घटना प्रतिक्रिया पुस्तिका लागू हो और राज्य नेटवर्क एवं प्रतिक्रिया नीतियों को तत्काल आधुनिक बनाया जाए।
- सुदृढ़ एवं सक्रिय विनियामक ढाँचा: भारत को एक बहु-हितधारक डिजिटल अर्थव्यवस्था टास्क फोर्स की स्थापना करनी चाहिये, ताकि ऐसे अनुकूल नीतिनिर्माण को सक्षम बनाया जा सके जो तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखे।
- ऐसे सिद्धांत-आधारित विनियमनों का विकास किया जाए जो ‘टेक्नोलॉजी-न्यूट्रल’ और ‘फ्यूचर-प्रूफ’ हों। वे आवश्यक निगरानी बनाए रखते हुए प्रत्यास्थता प्रदान कर सकेंगे।
- अवसंरचना का विस्तार: सभी 600,000 गाँवों को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ने के लिये भारतनेट (BharatNet) परियोजना के कियान्वयन में गति लाई जाए, जो डिजिटल डिवाइड को दूर करने के लिये अत्यंत आवश्यक है।
- एज कंप्यूटिंग समाधानों (edge computing solutions) को बढ़ावा देने से दूरदराज के क्षेत्रों में बेहतर सेवा प्रदान करना संभव होगा, लैटेसी या विलंबता कम होगी और उपयोगकर्ता अनुभव में सुधार होगा।
- 5G के कुशल क्रियान्वयन और उससे आगे के लिये एक राष्ट्रीय रणनीति विकसित करने से यह सुनिश्चित होगा कि भारत वायरलेस प्रौद्योगिकी परिनियोजन में अग्रणी देश बना रहेगा।
- स्थानीय भाषा में डिजिटल कंटेंट: सभी सरकारी डिजिटल सेवाओं के लिये बहुभाषी सपोर्ट को अनिवार्य करने से समावेशिता और व्यापक पहुँच सुनिश्चित होगी।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिये AI-संचालित रियल-टाइम अनुवाद उपकरण विकसित करने से भाषा संबंधी बाधाएँ दूर होंगी और निर्बाध संचार संभव हो सकेगा।
- डिजिटल सेवाओं के लिये वॉइस-बेस्ड इंटरफेस को लागू करने से डिजिटल साक्षरता संबंधी बाधाएँ दूर होंगी और प्रौद्योगिकी व्यापक आबादी तक पहुँच सकेगी।
- हरित डिजिटल अवसंरचना (Green Digital Infrastructure): डेटा केंद्रों और डिजिटल अवसंरचना के लिये ऊर्जा दक्षता मानक निर्धारित करने से तेजी से बढ़ते तकनीकी क्षेत्र में संवहनीयता को बढ़ावा मिलेगा।
- डिजिटल अवसंरचना को ऊर्जा प्रदान करने में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने से भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के कार्बन फुटप्रिंट में कमी आएगी।
- आईटी क्षेत्र में हरित प्रौद्योगिकी के अंगीकरण को प्रोत्साहित करने से भारत का डिजिटल विकास पर्यावरणीय संवहनीयता लक्ष्यों के साथ संरेखित हो सकेगा।
अभ्यास प्रश्न: प्रौद्योगिकीय व्यवधानों और साइबर खतरों के मद्देनजर भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना की प्रत्यास्थता एवं सुदृढ़ता को बढ़ाने के लिये किन महत्त्वपूर्ण रणनीतियों की आवश्यकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. G-20 के बारे में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत में किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |