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भारत में गैर-संचारी रोगों में चिंताजनक वृद्धि

  • 19 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), गैर-संचारी रोग, मधुमेह, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), सतत् विकास

मेन्स के लिये:

गैर-संचारी रोगों का प्रभाव, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

चर्चा में क्यों?  

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से मद्रास डायबिटीज़ रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में भारत में गैर-संचारी रोगों में चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह अध्ययन 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करने वाला पहला व्यापक महामारी विज्ञान शोध पत्र है। अध्ययन विभिन्न क्षेत्रों के डेटा को एकत्रित करके देश में मधुमेह जैसे गैर-संचारी रोग के प्रसार और प्रभाव पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन की मुख्य बातें: 

  • 25-26.4% की दर के साथ गोवा, पुद्दुचेरी और केरल में मधुमेह के मामले सबसे अधिक हैं।
  • मधुमेह: भारत में मधुमेह के रोगियों की संख्या अब 101 मिलियन है।
  • प्रीडायबिटीज़: इस अध्ययन में प्री-डायबिटीज़ वाले 136 मिलियन लोगों की पहचान की गई है।
  • उच्च रक्तचाप: अध्ययन के अनुसार, उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों की संख्या 315 मिलियन पाई गई है।
  • मोटापा: 254 मिलियन लोगों को आमतौर पर मोटे के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जबकि पेट के मोटापे अथवा एब्डोमिनल ओबेसिटी वाले लोगों की संख्या 351 मिलियन बताई गई है।
    • सामान्य तौर पर मोटापे से पीड़ित आबादी की संख्या 28.6% है, जबकि पेट के मोटापे से पीड़ित भारतीयों की संख्या 39.5% है। महिलाओं में पेट के मोटापे की शिकायत सबसे अधिक, 50% है।
  • हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया: इससे पीड़ित व्यक्तियों की संख्या 213 मिलियन है, जिनमें  धमनियों में वसा जमा होने से दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि 24% भारतीय हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया से पीड़ित हैं।
  • उच्च LDL कोलेस्ट्रॉल: 185 मिलियन व्यक्तियों में लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया।
    • LDL "खराब कोलेस्ट्रॉल" है क्योंकि रक्त में इसकी बहुत अधिक मात्रा धमनियों में पट्टिका के निर्माण में योगदान कर सकती है।
    • कोलेस्ट्रॉल "लिपोप्रोटीन" नामक प्रोटीन पर रक्त के माध्यम से प्रवाह करता है। 
  • अध्ययन का महत्त्व: 
    • इस अध्ययन में विविध क्षेत्रों के 1,13,043 व्यक्तियों के एक बड़े नमूने का डेटा शामिल है।
    • इससे पता चलता है कि मधुमेह और अन्य मेटाबॉलिक NCD भारत में पहले के अनुमान से अधिक प्रचलित हैं।
    • प्री-डायबिटीज़ को छोड़कर, जबकि वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में मेटाबॉलिक NCD की उच्च दर है तथा यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में अगले पाँच वर्षों में मधुमेह के मामलों में वृद्धि होने का अनुमान है।
    • अंतर-राज्यीय और अंतर-क्षेत्रीय बदलाव राज्य-विशिष्ट नीतियों एवं हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

  •  अध्ययन का भारत पर प्रभाव: 
    • यह अध्ययन NCD और स्ट्रोक सहित जीवन परिवर्तित वाली चिकित्सा स्थितियों के लिये जनसंख्या में वृद्धि को एक प्रारंभिक चेतावनी के रूप में दर्शाता है।
    • फास्ट फूड, सुस्त जीवनशैली, नींद की कमी, व्यायाम और NCD प्रसार में योगदान देने वाले तनाव के कारण भारत कुपोषण एवं मोटापे की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है।
  • जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव: 
    • NCD जैसे मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर और पुरानी साँस की बीमारियाँ देश में समग्र रोग बोझ में योगदान करती हैं।
    • NCD अकसर अक्षमता का कारण बनता है, व्यक्तियों की कार्यात्मक क्षमताओं को कम करता है तथा उनकी दैनिक गतिविधियों को भी प्रभावित करता है।
    • NCD के प्रबंधन हेतु लंबे समय तक चिकित्सा देखभाल, दवाओं एवं जीवनशैली में संशोधन की आवश्यकता होती है जो व्यक्तियों और उनके परिवारों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • NCD से स्वास्थ्य संबंधी खर्च में वृद्धि हो सकती है जिससे व्यक्तियों और परिवारों की वित्तीय स्थिति प्रभावित हो सकती है।
    • NCD का दवाब व्यक्तियों की उत्पादकता और सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा डाल सकता है जिससे रोज़गार एवं आर्थिक विकास के अवसर प्रभावित हो सकते हैं।
    • सही प्रकार से प्रबंधित और नियंत्रित न किये जाने पर NCD जीवन प्रत्याशा को काफी कम कर सकता है।

NCD से संबंधित पहलें: 

  • भारत की पहल: 
    • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases- NP-NCD), जिसे पहले कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) के रूप में जाना जाता था, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (State Cancer Institutes- SCI) और तृतीयक देखभाल केंद्रों (Tertiary Care Centres- TCCC) की स्थापना का समर्थन करने के लिये तृतीयक देखभाल कैंसर सुविधा योजना को सुदृढ़ कर रही है।
    • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) के तहत नए AIIMS और कई उन्नत संस्थानों के मामले में ऑन्कोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • उपचार के लिये सस्ती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण (Affordable Medicines and Reliable Implants for Treatment- AMRIT) हेतु दीनदयाल आउटलेट 159 संस्थानों/अस्पतालों में खोले गए हैं, जिसका उद्देश्य कैंसर और हृदय रोग की दवाएँ तथा प्रत्यारोपण रोगियों को रियायती कीमतों पर उपचार उपलब्ध कराना है।
    • फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा कम कीमतों पर जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु जन औषधि स्टोर स्थापित किये गए हैं।
  • वैश्विक: 
    • सतत् विकास हेतु एजेंडा: राज्य एवं सरकार के प्रमुख सतत् विकास हेतु एजेंडा 2030 (SDG लक्ष्य 3.4) के हिस्से के रूप में रोकथाम और उपचार के माध्यम से NCDs के कारण समय-पूर्व होने वाली मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करने तथा वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया विकसित करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
      • WHO, NCD के खिलाफ वैश्विक लड़ाई हेतु समन्वय और प्रचार में एक प्रमुख नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है।
    • वैश्विक कार्ययोजना: वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO की वैश्विक कार्ययोजना को वर्ष 2013-2020 की अवधि से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया है और NCD की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु प्रगति में तेज़ी लाने के लिये कार्यान्वयन रोडमैप वर्ष 2023 से 2030 के विकास का आह्वान किया।
      • यह NCD की रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में सबसे अधिक प्रभाव वाले नौ वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामूहिक कार्यों का समर्थन करता है।

गैर-संचारी रोग: 

  • परिचय
    • गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases- NCD) लंबी अवधि तक व्याप्त रहते हैं, जिसे पुरानी बीमारियों के रूप में भी जाना जाता है और आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरण तथा व्यवहार संबंधी कारकों के संयोजन का परिणाम हैं।
    • NCD में प्रमुख रूप से हृदय रोग (जैसे- दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, पुराने श्वसन रोग (जैसे- प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग एवं अस्थमा) तथा मधुमेह शामिल हैं।
  • कारण: 
    • तंबाकू का उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार, शराब का सेवन, शारीरिक निष्क्रियता और वायु प्रदूषण जैसी स्थितियाँ जोखिम में योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं।  

आगे की राह

  • इस बढ़ती महामारी का मुकाबला करने के लिये तंदुरूस्ती और एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना आवश्यक है।
  • स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हृदय रोगों, कैंसर, पुरानी साँस की बीमारियों और मधुमेह को प्रमुख NCD के रूप में पहचाना है, उन्हें स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य संवर्द्धन, जागरूकता बढ़ाना, रोकथाम, शीघ्र निदान और उचित स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से संबोधित किया है।
  • राज्य-विशिष्ट नीतियाँ NCD से निपटने के प्रयासों की प्रभावशीलता को अधिकतम करते हुए प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों और जोखिम कारकों को संबोधित करने के लिये अनुरूप हस्तक्षेप की अनुमति देती हैं।
    • प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार, संसाधनों का आवंटन करके राज्य-विशिष्ट रणनीतियाँ संसाधन उपयोग का अनुकूलन करती हैं, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाती हैं और NCD के खिलाफ लड़ाई में अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करती हैं।

स्रोत: द हिंदू

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