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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इन डेप्थ/विशेष : चंद्रयान

  • 26 Oct 2018
  • 23 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

थुंबा से शुरू हुआ भारत का अंतरिक्ष सफर काफी आगे निकल चुका है। इसी कड़ी में भारत ने 22 अक्तूबर, 2008 को पहले चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। 22 अक्तूबर, 2018 को पहले चन्द्र मिशन के दस साल पूरे हो गए हैं। इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार हुआ। प्रक्षेपण के सिर्फ आठ महीनों में ही चंद्रयान-1 ने मिशन के सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल कर लिया। आज भी इस मिशन से जुटाए आँकड़ों का अध्ययन दुनिया के वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस मिशन से दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी। इसके साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों का मनोबल भी बढ़ा। इसी का नतीजा है कि अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानी इसरो चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग की तैयारियों में जुटा है।

चंद्रयान मिशन-1

  • 10 साल पहले भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि हासिल की जो कि कुछ ही चुनिंदा देशों के पास थी।
  • 10 साल पूर्व देश के पहले चंद्र अभियान में किसी अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक दाखिल कराया गया जो कि भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिये मील का पत्थर साबित हुआ था।
  • भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार भारतीय मून मिशन के लिये इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान -1 को मंज़ूरी दी।
  • इसके करीब 5 साल बाद 22 अक्तूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  • चंद्रयान-1 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, यानी PSLV-C 11 रॉकेट के ज़रिये सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया।
  • चंद्रयान-1 पाँच दिन बाद 27 अक्तूबर, 2008 को चंद्रमा के पास पहुँचा था। वहाँ पहले तो उसने चंद्रमा से 1000 किलोमीटर दूर रहकर एक वृत्ताकार कक्षा में उसकी परिक्रमा की।
  • तत्पश्चात वह चंद्रमा के और नज़दीक गया और 12 नवंबर, 2008 से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर से हर 2 घंटे में चंद्रमा की परिक्रमा पूरी करने लगा।
  • इस अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी लगाया गया था। इस अंतरिक्ष यान का वज़न 1380 किलोग्राम था।
  • चंद्रयान-1 पृथ्वी की कक्षा से परे भारत का पहला अंतरिक्ष यान मिशन था। इसका मकसद पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह के बारे में अपने ज्ञान का विस्तार करना था।

चंद्रयान-1 का उद्देश्य

चंद्रयान-1 का प्राथमिक उद्देश्य था-

  1. चंद्रमा के चारों ओर की कक्षा में मानव रहित अंतरिक्ष यान स्थापित करना
  2. चंद्रमा की सतह के खनिज और रसायनों का मानचित्रण करना।
  3. देश में तकनीकी आधार को उन्नत बनाना।

चंद्रयान-1 मिशन से क्या हासिल हुआ?

  • चंद्रयान-1 के ज़रिये चंद्रमा की सतह पर जल तथा बर्फ की तलाश के साथ खनिज और रासायनिक तत्त्वों का पता लगाना तथा चंद्रमा के दोनों ओर की 3-डी तस्वीर तैयार करना था।
  • सभी प्रमुख उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद 19 मई, 2009 को चंद्रयान-1 की कक्षा 100 से 200 किलोमीटर तक बढ़ाई गई थी।
  • चंद्रमा की सतह पर एक हॉरिजॉन्टल गुफा जैसी संरचना प्राप्त हुई जिसे लावा क्यूब कहते हैं। यह लगभग 1.7 किलोमीटर की लम्बाई और 120 मीटर की चौड़ाई में पाई गई।
  • इस मिशन को 2 साल के लिये भेजा गया था लेकिन 29 अगस्त, 2009 को इसने अचानक रेडियो संपर्क खो दिया। इसके कुछ दिनों बाद ही इसरो ने आधिकारिक रूप से इस मिशन को ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी।
  • उस वक्त तक अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की 3400 से ज़्यादा बार परिक्रमा पूरी कर ली थी। वह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन तक रहा और परिष्कृत सेंसरों से व्यापक स्तर पर डेटा भेजता रहा। इस वक्त तक यान ने अधिकांश वैज्ञानिक मकसदों को पूरा कर लिया था।
  • यान ने चंद्रमा की सतह की 70 हज़ार से ज़्यादा तस्वीरों को भेजने के अलावा चंदमा के ध्रुवीय क्षेत्र के स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में पहाड़ों और क्रेटर के लुभावने दृश्यों को कैमरे में कैद किया।
  • इस अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा पर पाई गई रासायनिक और खनिज सामग्री से संबंधित मूल्यवान डेटा भी उपलब्ध कराया।
  • यान से मिले डेटा की गुणवत्ता काफी अच्छी थी। चंद्रयान-1 के सभी प्राथमिक लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रक्षेपण के 8 महीने के दौरान ही सफलतापूर्वक हासिल कर लिया गया था।
  • चंद्रयान-1 का डेटा यूज़ करके चाँद पर बर्फ संबंधी जानकारी एकत्र की गई।

चंद्रमा पर बर्फ की पुष्टि

  • अगस्त 2018 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पुष्टि की है कि 10 साल पहले भारत द्वारा शुरू किये गए मिशन चंद्रयान -1 (अंतरिक्ष यान) से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के सबसे अंधकारमय और ठंडे हिस्सों में बर्फ जमी होने के बारे में पता लगाया है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन पीएनएएस (PNAS) नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
  • ‘पीएनएएस (PNAS)’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि चंद्रमा पर पाई गई यह बर्फ इधर-उधर बिखरी हुई है। यह बर्फ ऐसे स्थान पर पाई गई है, जहाँ चंद्रमा के घूर्णन अक्ष के बहुत कम झुके होने के कारण सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुँचती।
  • यहाँ का अधिकतम तापमान कभी -156 डिग्री सेल्सियस से अधिक नही हुआ। इससे पहले भी कई आकलनों में अप्रत्यक्ष रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ की मौजूदगी की संभावना जताई गई थी।
  • दक्षिणी ध्रुव पर अधिकतर बर्फ लूनार क्रेटर्स के पास जमी हुई है। उत्तरी ध्रुव की बर्फ अधिक व्यापक तौर पर फैली हुई लेकिन अधिक बिखरी हुई भी है।

मून मिनरेलॉजी मैपर (Moon Mineralogy Mapper-M3) का किया गया अध्ययन

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation -ISRO) द्वारा 2008 में प्रक्षेपित चंद्रयान-1 (अंतरिक्षयान) के साथ M3 उपकरण भेजा गया था।
  • वैज्ञानिकों ने नासा के मून मिनरेलॉजी मैपर (एम3) से प्राप्त आँकड़ों का इस्तेमाल कर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चंद्रमा की सतह पर जल हिम के रूप में मौजूद है।
  • M3 उपकरण न केवल ऐसे डेटा को एकत्र करने में सक्षम है जो बर्फ के परावर्तक गुणों को प्रदर्शित करते हैं बल्कि यह अपने अणुओं को इन्फ्रारेड लाइट को अवशोषित करने के विशिष्ट तरीके को भी मापने में सक्षम है, इसलिये यह जल या वाष्प और ठोस बर्फ के बीच अंतर कर सका।

      मून इम्पैक्ट क्राफ्ट

  • 14 नवंबर, 2008 को ही चंद्रयान-1 ने मून इम्पैक्ट क्राफ्ट नाम का 29 किलोग्राम का एक भारी परीक्षण उपकरण चंद्रमा की उत्तरी ध्रुव पर गिराया।
  • एक मास स्पेक्ट्रोमीटर, वीडियो कैमरे और एक ऊँचाई मापी रडार से लैस इस उपकरण ने नीचे गिरते समय चंद्रमा के उपरी सतह के अनेक चित्र लिये।
  • चंद्रमा के अत्यंत विरल वायुमंडल के अवयवों का विश्लेषण किया और दूसरे कई आँकड़े भी ऊपर परिक्रमा कर चंद्रयान-1 को भेजे।
  • चंद्रमा की भौगोलिक बनावट के बारे में चंद्रयान-1 से भेजी गई जानकारियों के आधार पर 2009 में पहला महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला गया कि चंद्रमा के ध्रुवों के पास बर्फ के रूप में भारी मात्रा में पानी है।

चंद्रयान-2 का उद्देश्य

  1. मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह में मौजूद तत्त्वों का अध्ययन कर यह पता लगाना कि उसके चट्टान और मिट्टी किन तत्त्वों से बनी है।
  2. वहाँ मौजूद खाइयों और चोटियों की संरचना का अध्ययन।
  3. चंद्रमा की सतह का घनत्व और उसमें होने वाले परिवर्तन का अध्ययन।
  4. ध्रुवों के पास की तापीय गुणों, चंद्रमा के आयनोंस्फीयर में इलेक्ट्रानों की मात्रा का अध्ययन।
  5. चंद्रमा की सतह पर जल, हाइड्रॉक्सिल के निशान ढूंढने के अलावा चंद्रमा के सतह की त्रिआयामी तस्वीरें लेना।

चंद्रयान-2 की तैयारियों में जुटा इसरो

  • इसरो चंद्रयान-1 की सफलता के बाद से ही अपने अब तक के चुनौतीपूर्ण अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 की तैयारी में जुट गया था।
  • चंद्रयान-2 के तहत इसरो पहली बार चंद्रमा में ऑर्बिटर, रोवर और लून लैंडर भेजेगा। इस अभियान से नई तकनीकों के इस्तेमाल और परीक्षण के साथ-साथ नए प्रयोगों को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • चंद्रयान-2 मिशन 3 जनवरी, 2019 को लॉन्च हो सकता है। हालाँकि तकनीकी ज़रूरतों के पूरा न होने पर इसे और आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
  • लॉन्च होने के 40 दिन बाद यह चाँद पर लैंड करेगा। इस मिशन के तहत इसरो पहली बार अपने यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश करेगा।
  • पहले चंद्रयान को इसी साल अंतरिक्ष में भेजा जाना था लेकिन इसके डिज़ाइन में कुछ बदलाव किये जाने के कारण इसमें देरी हुई है।
  • नए डिज़ाइन में लगभग 600 किलोग्राम की बढ़ोतरी की गई है। दरअसल प्रयोगों के दौरान पता चला था कि उपग्रह से जब चंद्रमा पर उतरने वाला हिस्सा बाहर निकलेगा तो उपग्रह हिलने लगेगा। इसके लिये डिज़ाइन में सुधार और वज़न बढ़ाने की ज़रूरत महसूस की गई।
  • पहले कुल प्रक्षेपण वजन 3250 किलोग्राम तय था अब यह 3850 किलोग्राम होगा।
  • यान के ऑर्बिटर का वज़न 2379 किग्रा., लैंडर का 1471 किग्रा. और रोवर का 27 किग्रा. होगा।
  • अलग-अलग प्रयोगों के लिये ऑर्बिटर में 8, लैंडर में 4 तथा रोवर में 2 पे-लोड होंगे।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने दूसरे चन्द्र मिशन चंद्रयान-2 के लिये महत्त्वपूर्ण ‘पेलोड के ए बैंड रडार अल्टीमीटर’ तैयार किया है
  • यह पे-लोड चंद्रयान-2 के लैंडर में लगेगा। इस पे-लोड का इंटीग्रेशन लैंडर में किया जाएगा और उसके बाद परीक्षण की प्रक्रियाएँ शुरू होंगी।
  • केए बैंड रडार अल्टीमीटर और एचडीए प्रोसेसर चंद्रयान-2 के लैंडर का एक मुख्य पे-लोड है जिसका विकास पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से अहमदाबाद के अंतरिक्ष अनुप्रयोग ने किया है। मिशन में इसकी भूमिका अहम होगी।
  • चंद्रयान-2 के लैंडर का नामकरण इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’ किया गया है।

चंद्रयान-1

  • भारत के प्रथम चंद्र मिशन चंद्रयान-1 को 22 अक्तूबर, 2008 को PSLV C-11 से सफलतापूर्वक विमोचित किया गया था।
  • यह अंतरिक्षयान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज और प्रकाश-भौमिकी मानचित्रण के लिये चंद्रमा की परिक्रमा करता है।
  • इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत मानचित्र एवं पानी की उपस्थिति और हीलियम की खोज करने के साथ ही चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आयरन और टाइटेनियम जैसे खनिजों और रासायनिक तत्त्वों का वितरण तथा यूरेनियम और थोरियम जैसे उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्त्वों की खोज करना था।

चंद्रयान-2

  • यह चंद्रमा पर भेजा जाने वाला भारत का दूसरा तथा चंद्रयान-1 का उन्नत संस्करण है, जिसे अप्रैल 2018 में भेजे जाने की योजना बनाई गई है।
  • इसके द्वारा पहली बार चंद्रमा पर एक ऑर्बिटर यान, एक लैंडर और एक रोवर ले जाया जाएगा।
  • ऑर्बिटर जहाँ चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करेगा, वहीं लैंडर चंद्रमा के एक निर्दिष्ट स्थान पर उतरकर रोवर को तैनात करेगा।
  • इस यान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के मौलिक अध्ययन (Elemental Study) के साथ-साथ वहाँ पाए जाने वाले खनिजों का भी अध्ययन (Mineralogical Study) करना है।
  • इसे GSLV-MK-II द्वारा पृथ्वी के पार्किंग ऑर्बिट (Earth Parking Orbit - EPO) में एक संयुक्त स्टैक के रूप में भेजे जाने की योजना बनाई गई है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2010 के दौरान भारत और रूस के बीच यह सहमति बनी थी कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ‘Roscosmos’ चंद्र लैंडर (Lunar Lander) का निर्माण करेगी तथा इसरो द्वारा ऑर्बिटर और रोवर के निर्माण के साथ ही जी.एस.एल.वी. द्वारा इस यान की लॉन्चिंग की जाएगी।
  • किंतु, बाद में यह निर्णय लिया गया कि चंद्र लैंडर का विकास (Lunar Lander development) भी इसरो द्वारा ही किया जाएगा। इस प्रकार चंद्रयान-2 अब पूर्णरूपेण एक भारतीय मिशन है।
  • इस मिशन की कुल लागत लगभग 800 करोड़ रुपए है। इसमें लॉन्च करने की लागत 200 करोड़ रुपए तथा सेटेलाइट की लागत 600 करोड़ रुपए शामिल है। विदेशी धरती से इस मिशन को लॉन्च करने की तुलना में यह लागत लगभग आधी है।
  • चंद्रयान-2 एक लैंड रोवर और प्रोव से सुसज्जित होगा और चंद्रमा की सतह का निरीक्षण कर आँकड़े भेजेगा जिनका उपयोग चन्द्रमा की मिट्टी का विश्लेषण करने के लिये किया जाएगा।

  टीम दृष्टि इनपुट

  • चंद्रयान-1 से किस प्रकार भिन्न होगा चंद्रयान-2?
  • चंद्रयान-2, चंद्रयान-1 की अपेक्षा कहीं बड़ा और भारी होगा और अपने साथ चंद्रमा पर उतरने वाला एक लैंडर भी लेकर जाएगा जिसमें चंद्रमा पर विचरण करने वाला एक रोवर भी होगा।
  • दोनों में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि चंद्रयान-1 चाँद के ऊपर सिर्फ ऑर्बिट करता था लेकिन चंद्रयान-2 में एक पार्ट चाँद पर लैंड करेगा। उसके बाद एक रिमोट कार की तरह चाँद में इधर उधर घूमेगा।
  • चंद्रयान-1 के समान ही चंद्रयान-2 भी चंद्रमा से 100 किलोमीटर दूर रहकर उसकी परिक्रमा करेगा। लैंडर कुछ समय बाद मुख्य यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर धीरे से उतरेगा और सब कुछ ठीक रहने पर उसमें रखा रोवर बाहर निकलकर लैंडर के आस-पास घूमता हुआ तस्वीरें लेगा।
  • लैंडर चाँद की धरती पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा जिसके बाद रोवर निकलकर चाँद के सतह पर कई प्रयोगों को अंजाम देगा।
  • इसके अलावा वह चंद्रमा की ज़मीनी बनावट के नमूने लेकर अलग-अलग उपकरणों की सहायता से उसकी जाँच-परख करेगा।
  • चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-2 की जगह जीएसएलवी मार्क-3 से होगा। इस दिशा में इसरो ने एक और महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया है।
  • चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण जिस भारी रॉकेट यानी जीएसएलवी मार्क-3 से किया जाएगा उसमें इस्तेमाल किये जाने वाले क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण पूरा हो गया है।
  • परीक्षण के दौरान क्रायोजेनिक इंजन की सभी प्रणालियों ने सामान्य ढंग से कार्य किया।

चाँद पर इंसानी मिशन फिर भेजने की तैयारी

  • 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया। यह चाँदनी के घर में आदिकाल से लुभाते चले आ रहे चाँद से आदमी की पहली मुलाकात थी। इसके बाद अमेरिका ने पाँच और अभियान चाँद पर भेजे।
  • हालाँकि चाँद पर मानवीय मिशन भेजे जाते रहे हैं। 1969 से 1972 के बीच 12 अंतरिक्ष यात्री चाँद की सतह पर उतरे।
  • कई मानव रहित विमान और रोबोरोवर यानी रोबोटिक वाहन भी चाँद की सतह पर प्रयोग हेतु और वहाँ का वातावरण समझने के लिये भेजे गए। इनमें भारत का चंद्रयान मिशन भी शामिल है।
  • इंसान ने चाँद की सतह पर हवा, पानी की मौजूदगी को लेकर तमाम तरह के प्रयोग किये हैं। अमेरिका, यूरोप और रूस के अलावा इन प्रयोगों को करने में भारत भी शामिल है।
  • चाँद के अनछुए पहलुओं को जानने के लिये करीब आधी सदी के बाद अमेरिका ने फिर से ऐलान किया है कि वह चाँद पर इंसानी मिशन भेजेगा।
  • इस ऐतिहासिक मिशन के लिये दुनिया की दो प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियाँ-नेशनल एरोनोटिक्स एंड स्पेस मिशन यानी नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी यानी ESA आपस में सहयोग करेंगी।
  • नासा के मुताबिक 2018 में इस मिशन का परीक्षण किया जाएगा और 2021 में इंसान को चाँद पर भेजा जाएगा।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और एयरबस जैसी कम्पनियाँ भी इस मिशन के लिये नासा का सहयोग करेंगी।
  • इस अभियान के तहत सबसे पहले 2018 में ओरियन यान का परीक्षण किया जाएगा। इसके ज़रिये ही इंसानों को चाँद पर भेजा जाएगा।
  • परीक्षण की शुरुआत में पहले इस यान को चाँद पर पहुँचाया जाएगा। इस दौरान कोई इंसान इसके अंदर नहीं होगा। इसके बाद 2021 में ओरियन चार अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद पर लेकर जाएगा।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी इस यान का सप्लाई मोड्यूल तैयार कर रही है। दरअसल, अपोलो यान के रिटायर होने के बाद दुनिया में ऐसा कोई दूसरा यान नहीं है जो इंसान को चाँद या मंगल ग्रह पर ले जा सके।

निष्कर्ष

चाँद हमेशा से ही इंसान के लिये एक कौतूहल का विषय रहा है। चाँद को लेकर हमेशा से ही वैज्ञानिकों और पूरी मानव जाति जिज्ञासु रही है। पृथ्वी के सबसे करीब और सबसे ठंडे इस ग्रह को पृथ्वी से बाहर जीवन के लिये काफी उपयुक्त माना जाता रहा है। यही वज़ह है कि अनेक देशों की अंतरिक्ष एजेंसियाँ समय-समय पर चाँद पर अपने यान भेजती रही हैं। भारत भी इस कार्य में पीछे नहीं है। भारत ने अंतरिक्ष में लगातार नई उपलब्धियाँ हासिल की है। पहले चंद्रमिशन चंद्रयान-1 के बाद इसरो दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 की तैयारी में जुटा है। तमाम चुनौतियों को पार करता हुआ भारत आज अंतरिक्ष की दुनिया में काफी ऊँची छलांग लगाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर अपनी मज़बूत पहचान बना चुका है।

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