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जैव विविधता और पर्यावरण

अरावली पहाड़ियों में पुनः उत्खनन शुरू करने की अपील

  • 03 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) से अपील की है कि उसे कोविड-19 महामारी से कमज़ोर हो चुकी अपनी अर्थव्यवस्था को पुनः सुदृढ़ करने के लिये अरावली हिल्स (Aravalli Hill) में उत्खनन करने की अनुमति दी जाए।

प्रमुख बिंदु

  • अरावली रेंज के विषय में:
    • अवस्थिति:
      • इस रेंज का विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान, और दिल्ली (लगभग 720 किमी.) तक है।
    • बनावट:
      • अरावली रेंज लाखों साल पुरानी है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ।
    • आयु:
      • कार्बन डेटिंग से पता चला है कि इस रेंज की तांबे और अन्य धातुओं की खानें कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हैं।
    • विशेषताएँ:
      • अरावली रेंज विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, जो अब एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में है, इसकी ऊँचाई 300 मीटर से 900 मीटर के बीच है।
      • अरावली रेंज की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर (1,722 मीटर) है।
      • यह मुख्य रूप से वलित पर्वत है, जिसका निर्माण दो प्लेटों के अभिसरण के कारण हुआ है।
    • विस्तार:
      • अरावली रेंज को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जाता है- सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज, यहाँ अरावली रेंज का विस्तार लगभग 560 किमी. है।
      • दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक फैले अरावली का अदृश्य भाग गंगा और सिंधु नदियों के जल के बीच एक विभाजन बनाता है।
  • इनका महत्त्व:
    • मरुस्थलीकरण को रोकने में:
      • अरावली पूर्व के उपजाऊ मैदान और पश्चिम के रेतीले मरुस्थल के बीच एक अवरोध के रूप में स्थित है।
      • ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली रेंज ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदान की ओर फैलने से रोक कर रखा है।
    • जैव विविधता से समृद्ध:
      • इस रेंज में 300 स्थानीय पौधों की प्रजातियाँ, 120 पक्षियों की प्रजातियाँ और सियार तथा नेवले जैसे कई विशेष जानवरों का आवास है।
    • पर्यावरण पर प्रभाव:
      • अरावली रेंज का उत्तर-पश्चिम भारत और इसके आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु पर विशेष प्रभाव है।
      • यह रेंज मानसून के दौरान बादलों को शिमला और नैनीताल की ओर मोड़ने में सहायता करता है, जिससे उप-हिमालयी नदियों को जल प्राप्त होता है और इस जल से उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों को पानी की प्राप्ति होती है।
      • यह रेंज सर्दी के महीनों में उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं से बचाती है।
    • भूजल का पुनर्भरण:
      • अरावली रेंज अपने आसपास के क्षेत्रों के लिये भूजल पुनर्भरण के रूप में भी कार्य करती है जो वर्षा जल को सोखकर भूजल स्तर को पुनर्जीवित करती है।
    • प्रदूषण पर नियंत्रण:
      • यह रेंज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की प्रदूषित हवा के लिये "फेफड़े" का काम करती है।
      • हरियाणा में भारत के कुल वन आवरण का लगभग 3.59% (वन स्थिति रिपोर्ट, 2017) वन आवरण है, जो भारत में किसी अन्य राज्य की तुलना में सबसे कम है। हरियाणा के इस वन आवरण में अरावली रेंज का प्रमुख योगदान है।
  • संकट:
    • अरावली रेंज पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, लेकिन इसे वर्षों से उत्खनन और पर्यावरण क्षरण का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
    • सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (Central Empowered Committee) की वर्ष 2018 की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 1967-68 के बाद से राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली रेंज का 25% हिस्सा नष्ट हो गया है।
    • उत्खनन के परिणामस्वरूप जलस्तर में ह्रास और वनों का विनाश हुआ है। अरावली रेंज की बनास, लूनी, साहिबी और सखी जैसी कई नदियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं।
  • उठाए गए कदम:
    • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2002 के आदेश के अनुसार, जब तक स्पष्ट रूप से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनुमति नहीं दी जाती, अरावली क्षेत्र में उत्खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालाँकि इस क्षेत्र में अवैध उत्खनन अब भी जारी है।
    • पोरबंदर से पानीपत तक ग्रीन वॉल (Green Wall) की योजना बनाई जा रही है, जिसका उद्देश्य अरावली रेंज के साथ-साथ बढ़ते भूमि क्षरण और थार रेगिस्तान के पूर्वी विस्तार को रोकना है।
    • पारिस्थितिकीविदों द्वारा अरावली के संरक्षण में शामिल एक नागरिक कार्रवाई समूह “आई एम गुरुग्राम” (I Am Gurgaon) के स्वयंसेवकों और इस क्षेत्र के निवासियों को अरावली की पारिस्थितिकी को बनाए रखने में मदद की गई थी। इस क्षेत्र के पर्यावरण में आ रही गिरावट को रोकने के लिये समाज संचालित यह मॉडल अधिक प्रभावी हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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