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बिहार

बिहार में विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर

  • 12 Jul 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले में “विश्व के सबसे बड़े रामायण मंदिर” के निर्माण का दूसरा चरण शुरू हुआ। 3.76 लाख वर्ग फीट क्षेत्र में फैले तीन मंजिला मंदिर का निर्माण जून 2023 में शुरू हुआ और 2025 में पूरा होने की आशा है।

मुख्य बिंदु:

  • विराट रामायण मंदिर अयोध्या के राम मंदिर से तीन गुना बड़ा होगा।
    • 500 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में 33 फुट ऊँचा शिवलिंग स्थापित किया जाएगा।
    • मंदिर परिसर में विभिन्न देवताओं के लिये 22 गर्भगृह होंगे।
  • दूसरे चरण में प्लिंथ स्तर तक निर्माण कार्य शामिल होगा, जो ज़मीनी स्तर से लगभग 26 फीट की ऊँचाई तक जाएगा।
  • तीसरे चरण में शिखरों का निर्माण तथा संपूर्ण मंदिर का अंतिम परिष्करण कार्य पूर्ण किया जाएगा।
    • मंदिर में कुल 12 शिखर होंगे, जिनमें मुख्य शिखर 270 फीट ऊँचा होगा।
  • मंदिर की वास्तुकला कंबोडिया के अंकोर वाट, तमिलनाडु के रामेश्वरम के रामनाथस्वामी मंदिर और मदुरै के मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर से प्रेरित है।

अंकोर वाट मंदिर 

  • अंकोर वाट कंबोडिया में स्थित एक मंदिर परिसर है तथा यह विश्व के सबसे बड़े धार्मिक स्मारकों में से एक है।
  • इसकी स्थापना मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिये भगवान विष्णु को समर्पित एक हिंदू मंदिर के रूप में की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे 12वीं शताब्दी के अंत तक इसे एक बौद्ध मंदिर में बदल दिया गया था।
  • 12वीं शताब्दी की शुरुआत में खमेर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा खमेर साम्राज्य की राजधानी यशोधरपुर (वर्तमान में अंकोर), में इसका निर्माण उनके राज्य मंदिर और संभावित मकबरे के रूप में करवाया गया था।

मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर

  • यह तमिलनाडु के मदुरै में वैगई नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है।
  • यह मंदिर देवी मीनाक्षी, जो शक्ति/पार्वती का एक रूप है तथा उनके पति शिव, जो सुंदरेश्वर के रूप में हैं, को समर्पित है।
  • इसका निर्माण पांड्य सम्राट सदायवर्मन कुलशेखरन प्रथम (1190 ई.-1205 ई.) ने करवाया था।

रामनाथस्वामी मंदिर

  • यह तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है।
  • यह बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है।
  • इसका निर्माण राजा मुथुरामलिंगा सेतुपति ने करवाया था।
  • मंदिर का विस्तार 12वीं शताब्दी के दौरान पांड्या राजवंश द्वारा किया गया था और इसके मुख्य मंदिर के गर्भगृह का जीर्णोद्धार जयवीर सिंकैरियान तथा उनके उत्तराधिकारी गुणवीर सिंकैरियान, जो ज़ाफना साम्राज्य के सम्राट थे, द्वारा किया गया था।

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