विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन
- 26 Dec 2020
- 9 min read
चर्चा में क्यों?
जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (Aquifer Mapping Programme) के अंतर्गत उन्नत हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण (हेलीकॉप्टर द्वारा सर्वेक्षण) तथा अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों के लिये केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB), जल शक्ति मंत्रालय और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR-NGRI) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भूभौतिकीय डेटा का उपयोग पृथ्वी की सतह और उपसतह के भौतिक गुणों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये किया जाता है। इस प्रकार भूभौतिकीय डेटा हाइड्रोकार्बन, खनिज, संग्रह तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने में मदद कर सकता हैं।
- उदाहरण के लिये- भूजल मानचित्रण तथा खनिज मानचित्रण।
प्रमुख बिंदु:
- अध्ययन का उद्देश्य:
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय अध्ययनों का उपयोग करके हाई-रेज़ोल्यूशन जलभृत मानचित्रण तथा आर्टिफिशियल रिचार्ज हेतु साइट्स की पहचान करना।
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण का मुख्य लाभ यह है कि यह यह तेज़, अत्यधिक डेटा सघन, सटीक और किफायती है।
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय अध्ययनों का उपयोग करके हाई-रेज़ोल्यूशन जलभृत मानचित्रण तथा आर्टिफिशियल रिचार्ज हेतु साइट्स की पहचान करना।
- 3D भू-भौतिकीय मॉडल तैयार करना तथा क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर मैदानों के आधार पर भू-भौतिकीय थिमैटिक मानचित्रण करना।
- असंतृप्त और संतृप्त जलभृतों के सीमांकन के साथ प्रमुख जलभृतों की जलभृत जियोमेट्री।
- जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है। ये आमतौर पर बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूना पत्थर से बने होते हैं।
- पैलियोचैनल (नदी का तल) नेटवर्क का स्थानिक और गहन वितरण, अगर जलभृत प्रणाली के साथ इसका कोई संबंध हो।
- पैलियोचैनल, किसी सूखी नदी या धारा चैनल का एक अवशेष होता है और नवीन तलछट द्वारा भर जाता है।
- कृत्रिम या प्रबंधित जलभृत रिचार्ज के माध्यम से भूजल निकासी और जल संरक्षण के लिये उपयुक्त स्थलों का चयन करना।
- इस अध्ययन के माध्यम से बहुत ही कम समय में भूजल आँकड़ों का निर्माण होने की संभावना है और इसके माध्यम से CGWB को जल की कमी वाले क्षेत्रों में भूजल प्रबंधन योजना को तेज़ी के साथ आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- असंतृप्त और संतृप्त जलभृतों के सीमांकन के साथ प्रमुख जलभृतों की जलभृत जियोमेट्री।
भारत और भूजल:
- भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है तथा प्रतिवर्ष 253 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) की दर से भूजल का दोहन किया जा रहा है।
- यह वैश्विक भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% है।
- कुल 6584 मूल्यांकन इकाइयों में से 1034 को 'अति-शोषित', 253 को 'क्रिटिकल', 681 को 'सेमी-क्रिटिकल' और 4520 को 'सेफ' श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
- शेष 96 मूल्यांकन इकाइयों को लवणता की समस्याओं के कारण ताज़ा भूजल की अनुपलब्धता की वजह से ‘सेलाइन’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- जल की उपलब्धता:
- भारत में लगभग 1123 bcm जल संसाधन उपलब्ध हैं, जिनमें से 690 bcm सतही जल और शेष 433 bcm भूजल है।
- उपलब्ध कुल भूजल में से 90% सिंचाई प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है जो मुख्य रूप से कृषि उद्देश्यों के लिये है।
- शेष 10% का घरेलू और औद्योगिक दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उपयोग किया जाता है।
- भारत में जल संकट:
- वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) की रिपोर्ट के अनुसार, 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे, जिससे लगभग 100 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की संभावना है।
- CWMI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2030 तक देश में जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने की संभावना है, इससे लाखों लोगों के लिये गंभीर जल अभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6% की हानि हो सकती है।
- महाराष्ट्र सहित लगभग आधा देश जल अभाव का सामना कर रहा है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान के अलावा गुजरात, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में अभूतपूर्व स्तर पर जल की कमी है।
- वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) की रिपोर्ट के अनुसार, 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे, जिससे लगभग 100 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की संभावना है।
राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना
(National Aquifer Mapping and Management Programme- NAQUIM)
- जल राज्य सूची का विषय है, अतः देश में जल प्रबंधन के क्षेत्र में भूजल संरक्षण और कृत्रिम जल पुनर्भरण संबंधी पहल करना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है।
- NAQUIM देश के संपूर्ण भूजल स्तर मापन प्रणालियों के मानचित्रण और प्रबंधन के लिये जल शक्ति मंत्रालय की एक पहल है।
- इसे केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB) द्वारा लागू किया जा रहा है।
- इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर भूमि जल स्तर की पहचान करना, उपलब्ध भूजल संसाधनों की मात्रा निर्धारित करना तथा भागीदारी प्रबंधन के लिये संस्थागत व्यवस्था करना और भूमि जल स्तर की विशेषताओं के मापन के लिये उपयुक्त योजनाओं का प्रस्ताव करना है।
केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB):
- CGWB, जल संसाधन मंत्रालय (जल शक्ति मंत्रालय), भारत सरकार का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- इस अग्रणी राष्ट्रीय अभिकरण को देश के भूजल संसाधनों के वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, अन्वेषण, माॅनीटरिंग, आकलन, संवर्द्धन एवं विनियमन का दायित्व सौंपा गया है ।
- वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका विलय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के भूजल खंड के साथ कर दिया गया था।
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड एक बहु संकाय वैज्ञानिक संगठन है जिसमें भूजल वैज्ञानिक, भू-भौतिकीविद्, रसायनशास्त्री, जल वैज्ञानिक, जल मौसम वैज्ञानिक तथा अभियंता कार्यरत हैं।
राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR-NGRI):
- राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक संघटक अनुसंधान प्रयोगशाला है।
- इसकी स्थापना पृथ्वी तंत्र की अत्यधिक जटिल संरचना एवं प्रक्रियाओं के बहुविषयी क्षेत्रों तथा उसके व्यापक रूप से आपस में जुड़े उपतंत्रों में अनुसंधान करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में की गई थी।
- अनुसंधान गतिविधियाँ मुख्य रूप से तीन विषयों भूगतिकी, भूकंप जोखिम और प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत की जाती हैं।
- NGRI उन प्राथमिक भू-संसाधनों की पहचान के लिये तकनीकी कार्यान्वयन को समाविष्ट करता है, जो मानवीय सभ्यता के स्तंभ हैं और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों एवं खनिजों के साथ-साथ भूजल, हाइड्रोकार्बन आर्थिक वृद्धि के स्रोत हैं।