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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल साउथ के लिये भारतीय दृष्टिकोण का केंद्र अफ्रीका

  • 05 Apr 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल साउथ, भारत-अफ्रीका संबंध, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्, ब्रांट लाइन, ग्रुप-77, अफ्रीकी संघ, हॉर्न ऑफ अफ्रीका

मेन्स के लिये:

ग्लोबल साउथ के लिये भारत का दृष्टिकोण, ग्लोबल साउथ के दृष्टिकोण में अफ्रीका को प्राथमिकता देना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारत ने अपनी विभिन्न राजकीय यात्राओं के दौरान अफ़्रीका के प्रति बढ़ते रुझान पर प्रकाश डाला है। यह बदलाव महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के बढ़ते कद को प्रदर्शित करता है, जो ग्लोबल साउथ/वैश्विक दक्षिण के हितों का समर्थन करने का अवसर प्रदान करता है। 

ग्लोबल साउथ के लिये भारत का दृष्टिकोण क्या है?  

  • ग्लोबल साउथ को मौका देनाः भारत स्वयं को विकासशील देशों के प्रतिनिधि के रूप में देखता है, यह सुनिश्चित करता है कि उनके मुद्दों को G20 जैसे बड़े मंचों पर सुना जाए।
    • इसमें "वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट" जैसी पहल शामिल है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों के लिये आम चुनौतियों पर चर्चा करने हेतु एक मंच का निर्माण करना है।
  • समर्थन और सुधारः भारत विकासशील देशों के हितों को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये वैश्विक संस्थानों में सुधारों का समर्थन करता है।
    • इसमें अंतर्राष्ट्रीय कराधान, जलवायु वित्त जैसे क्षेत्रों में परिवर्तन या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे संगठनों के भीतर विकासशील देशों को अत्यधिक निर्णय लेने की शक्ति देना शामिल हो सकता है।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोगः भारत सर्वोत्तम प्रथाओं, प्रौद्योगिकियों और संसाधनों को साझा करके विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • वर्ष 2017 में शुरू किया गया भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष अल्प विकसित देशों और छोटे द्वीप वाले विकासशील देशों को प्राथमिकता देते हुए दक्षिणी नेतृत्व वाली सतत् विकास परियोजनाओं में सहायता करता है।
  • जलवायु परिवर्तन शमनः वैश्विक दक्षिण के लिये भारत के दृष्टिकोण में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सहयोगात्मक प्रयास शामिल हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों के माध्यम से भारत का उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना है, जो सतत् विकास एवं जलवायु लचीलापन में योगदान देता है।

ग्लोबल साउथ क्या है?

  •  परिचय: ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है।
    • ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
    • "ग्लोबल नॉर्थ" अधिक समृद्ध राष्ट्र हैं जो ज़्यादातर उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, इनमें ओशिनिया तथा अन्य जगहों पर कुछ नए देश भी शामिल हैं।
    • ये राष्ट्र आमतौर पर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन क्षेत्र और एशिया (एशिया के जापान तथा दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च आय वाले देशों को छोड़कर) में स्थित हैं।

  • ऐतिहासिक संदर्भ: 
    • ऐसा प्रतीत होता है कि ग्लोबल साउथ शब्द का प्रयोग पहली बार 1969 में राजनीतिक कार्यकर्त्ता कार्ल ओग्लेस्बी द्वारा किया गया था।
    • ब्रांट लाइन (Brandt Line): यह रेखा 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
    • G-77: वर्ष 1964 में 77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्त्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।

अपने ग्लोबल साउथ विजन में अफ्रीका को प्राथमिकता देने से भारत को कैसे फायदा हो सकता है? 

  • आर्थिक क्षमता: अफ्रीका भारत के लिये एक बड़े आर्थिक अवसर का प्रतिनिधित्व करता है। 2023 में अफ्रीका में भारतीय निवेश 98 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने और कुल 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ, यह महाद्वीप भारतीय व्यवसायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार के रूप में कार्य करता है।
  • उन्नत रणनीतिक संबंध: वैश्विक मंचों पर अफ्रीका का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे यह भारत की वैश्विक आकांक्षाओं के लिये एक रणनीतिक भागीदार बन गया है।
    • G20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे मंचों पर अफ्रीकी प्रतिनिधित्व के लिये भारत की वकालत समावेशी वैश्विक शासन के लिये साझा दृष्टिकोण को दर्शाती है।
    • इस संबंध में भारत ने कई कूटनीतिक विजय प्राप्त की हैं, जैसे सितंबर 2023 में अफ्रीकी संघ (AU) को G20 में शामिल करना।
  • युवा जनसांख्यिकी का दोहन: अफ्रीका की 60% युवा आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है, जो शिक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार में सहयोग की अपार संभावनाएँ प्रस्तुत करती है।
    • अफ्रीकी युवाओं को सशक्त बनाने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास तथा शिक्षण पहलों में भारत के अनुभव का लाभ उठाया जा सकता है।
  • संभावित संसाधन सहयोग: अफ्रीका में नवीकरणीय ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के समृद्ध भंडार सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं।
    • नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भारत की विशेषज्ञता को नवाचार तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये अफ्रीका के संसाधनों के साथ जोड़ा जा सकता है।
  • मज़बूत भू-राजनीतिक प्रभाव: अफ्रीका के साथ एक मज़बूत भागीदारी वैश्विक मंच पर भारत की रणनीतिक स्थिति को बढ़ाती है। 
    • यह भारत को वैश्विक शासन को आकार देने और ग्लोबल साउथ के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाने की अनुमति देता है।
    • अफ्रीका के साथ भारत के बढ़ते संबंध महाद्वीप (विशेष रूप से हॉर्न ऑफ अफ्रीका) पर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में सहायता कर सकते हैं।

ग्लोबल साउथ में एक नेता के रूप में भारत के लिये चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • आंतरिक विकास के मुद्दे: आलोचकों का तर्क है कि भारत को दूसरों का नेतृत्व करने से पूर्व असमान धन वितरण, बेरोज़गारी तथा अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे अपने घरेलू विकास के मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • भारत की विशाल ग्रामीण जनसंख्या के पास गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक पहुँच का अभाव है, जिससे अन्य विकासशील देशों में इसी तरह के मुद्दों को संबोधित करने की इसकी क्षमता पर प्रश्न उठ रहे हैं।
  • विविध आवश्यकताएँ एवं प्राथमिकताएँ: ग्लोबल साउथ एक समरूप समूह नहीं है। भिन्न-भिन्न देशों की ज़रूरतें और प्राथमिकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इन विविध मांगों को संतुलित करना कठिन हो सकता है।
    • अफ्रीकी देश ऋण राहत को प्राथमिकता दे सकते हैं, जबकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देश प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
    • भारत को एकीकृत मोर्चे को बढ़ावा देते हुए इन विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके खोजने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक भागीदारी को संतुलित करना: भारत के अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों के साथ मज़बूत आर्थिक संबंध हैं। इससे ग्लोबल साउथ की वकालत करने और साथ ही इन महत्त्वपूर्ण संबंधों को यथासंभव बनाए रखने के बीच संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
    • भारत कठोर व्यापार नियमों पर ज़ोर देने से बचने का प्रयास कर सकता है जो संभावित रूप से विकसित देशों के निर्यात को हानि पहुँचा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर विश्वसनीयता: प्रति व्यक्ति कम CO2 उत्सर्जन के बावजूद, भारत CO2 का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। ग्लोबल साउथ के अंर्तगत कठोर जलवायु कार्रवाई की वकालत करते समय यह इसकी स्थिति को और अधिक कमज़ोर करता है।

आगे की राह

  • मितव्ययी तकनीकी नवाचार: भारत ग्लोबल साउथ में आम चुनौतियों जैसे मोबाइल स्वास्थ्य निदान अथवा दूरस्थ शिक्षण प्लेटफॉर्मों के लिये कम लागत, स्केलेबल तकनीकी समाधान विकसित करने पर केंद्रित प्रयोगशालाओं की स्थापना करके मितव्ययी नवाचार में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है।
  • घूर्णनशील नेतृत्व: ऐकिक नेतृत्व के स्थान पर भारत ग्लोबल साउथ के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व के साथ एक घूर्णनशील नेतृत्व परिषद का समर्थन करता है। यह अधिक सहयोगात्मक एवं समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा।
  • ग्लोबल साउथ सैटेलाइट नेटवर्क: भारत विकासशील देशों के संघ द्वारा प्रक्षेपित एवं संचालित कम लागत वाले उपग्रहों के नेटवर्क का विकास कर सकता है। यह नेटवर्क पारंपरिक बुनियादी ढाँचे तथा इंटरनेट सुविधाओं की कमी वाले क्षेत्रों के लिये आवश्यक डेटा तथा सेवाएँ प्रदान कर सकता है।
    • भारत ग्लोबल साउथ के अंर्तगत त्वरित आपदा प्रतिक्रिया नेटवर्क विकसित करने हेतु रिसैट (RISAT) जैसी उन्नत उपग्रह तकनीक का भी उपयोग कर सकता है।
  • दक्षिण-दक्षिण व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: ग्लोबल साउथ में रणनीतिक स्थानों पर व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के साथ ही स्थानीय आवश्यकताओं के लिये प्रासंगिक कौशल विकास कार्यक्रम प्रस्तुत करना।
    • यह व्यक्तियों को रोज़गार बाज़ार में आगे बढ़ने तथा उनकी अर्थव्यवस्थाओं में योगदान करने हेतु आवश्यक कौशल सृजित करता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न. ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में भारत आम विकास चुनौतियों का समाधान करने, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और दक्षिण-दक्षिण साझेदारी बढ़ाने के लिये किन रणनीतियों एवं पहलों को प्राथमिकता दे सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं?

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019)

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