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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तीसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन

  • 29 Jan 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

77 देशों का समूह (G77) और चीन, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD), सतत विकास के लिये 2030 एजेंडा

मेन्स के लिये:

तीसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

स्रोत: अफ्रीका न्यूज़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन और 77 देशों के समूह (G77) के सदस्य तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन (South Summit) के लिये कंपाला, युगांडा में एकत्रित हुए।

  • व्यापार, निवेश, सतत् विकास, जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहित अन्य विषयों पर दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करने के लिये, तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन में चीन तथा G77 के 134 सदस्यों को एक साथ लाया गया। इस शिखर सम्मेलन की थीम, "लीविंग नो वन बिहाइंड" थी।

 G77 क्या है?

  • स्थापना:
    • 15 जून 1964 को  77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development - UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
      • G77 समूह में चीन को छोड़कर 134 सदस्य हैं क्योंकि चीनी सरकार खुद को सदस्य नहीं मानती है, बल्कि एक भागीदार मानती है जो समूह को राजनीतिक और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। हालाँकि समूह (G 77) चीन को अपना सदस्य बताता है।
  • उद्देश्य:
    • G77 विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
    • इसे विकासशील देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने की उनकी क्षमता में सुधार करने के लिये बनाया गया था।
  • संरचना:
    • एक अध्यक्ष, जो इसके प्रवक्ता के रूप में कार्य करता है, प्रत्येक चैप्टर में समूह की कार्रवाई का समन्वय करता है।
    • इसकी अध्यक्षता, जो समूह 77 की संगठनात्मक संरचना के भीतर सर्वोच्च राजनीतिक निकाय है, क्षेत्रीय आधार पर (अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के बीच) घूमती (rotate) है और चैप्टर द्वारा एक वर्ष के लिये आयोजित की जाती है।
      • चैप्टर, जो क्षेत्रीय प्रभागों को संदर्भित करते हैं, वर्तमान में, युगांडा अध्यक्ष है, प्रवक्ता के रूप में कार्य करता है और अफ्रीकी सम्मलेन के भीतर सदस्य देशों की ओर से जी77 के कार्यों का समन्वय करता है।
      • G77 में चैप्टर विभिन्न स्थानों पर समूह के कार्यालय हैं जहाँ वे अपनी गतिविधियों का समन्वय करते हैं और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • G77 के चैप्टर जिनेवा (UN), रोम (FAO), वियना (UNIDO), पेरिस (यूनेस्को), नैरोबी (UNEP) और 24 के समूह में वाशिंगटन, DC (IMF और विश्व बैंक) में हैं। 
      • वर्ष 2024 के लिये युगांडा गणराज्य के पास G77 की अध्यक्षता है।
  • दक्षिण शिखर सम्मेलन:
    • दक्षिण शिखर सम्मेलन 77 के समूह का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
      • पहला और दूसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन क्रमशः वर्ष 2000 में हवाना, क्यूबा में और वर्ष 2005 में दोहा, कतर में आयोजित किया गया था।

तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन के आउटकम डॉक्यूमेंट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान:
    • सदस्य देशों ने इस तथ्य पर बल दिया गया कि "शांति के बिना सतत् विकास असंभव हैं तथा  सतत् विकास के बिना शांति स्थापना असंभव हैं" एवं "इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के न्यायसंगत व शांतिपूर्ण समाधान" का आह्वान किया।
  • विभिन्न एजेंडा का सार्वभौमिक कार्यान्वयन:
  • निर्धनता उन्मूलन:
    • सदस्य देशों ने गरीबी उन्मूलन को सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती तथा सतत् विकास के लिये एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में प्रदर्शित कर इसकी दिशा में प्रगति करने पर बल दिया।
    • कार्यान्वयन हेतु पर्याप्त साधनों के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए नेताओं ने विकसित देशों से विकास के लिये एक सुदृढ़ तथा विस्तारित वैश्विक साझेदारी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के एक नए चरण के लिये प्रतिबद्ध होने का आग्रह किया।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना:
    • शिखर सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में सुधार हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly- UNGA) और आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) की भूमिका को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली विकासशील देशों के लिये वैश्विक सुरक्षा तंत्र प्रदान करने में विफल रही। व्यापक सुधार प्रस्तावित किये गए जिनमें वार्षिक रूप से 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर का SDG प्रोत्साहन, MDB का पर्याप्त वित्तपोषण तथा ज़रूरतमंद देशों के लिये आकस्मिक वित्तपोषण के विस्तार की सुविधा शामिल है।
    • जलवायु वित्त में सार्थक योगदान के लिये आह्वान किया गया, जिसमें प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आबंटन तथा वर्ष 2025 तक अनुकूलन वित्त को दोगुना करना, वर्ष 2024 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC COP 29) में एक नए महत्त्वाकांक्षी वित्त लक्ष्य को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • वित्त पोषण संबंधी आवश्यकताएँ और ऋण समाधान:
    • सदस्य देशों ने बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDB) से रियायती वित्त तथा अनुदान के माध्यम से निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों सहित सभी विकासशील देशों की वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने का आग्रह किया।
    • नेताओं ने जलवायु तथा प्रकृति के लिये स्वैप सहित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के लिये ऋण स्वैप (Debt Swap) को बढ़ाने का आह्वान किया।
  • समावेशन और समानता हेतु तत्काल सुधार:
    • शिखर सम्मेलन में नेताओं ने समावेशन तथा समानता पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय तंत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए ग्लोबल साउथ के महत्त्व को पहचानने एवं उसका लाभ उठाने के लिये बहुपक्षीय संगठनों में तत्काल सुधार का आह्वान किया।

ग्लोबल साउथ क्या है?

  • परिचय:
    • ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
      • हालाँकि यह मात्र अवस्थिति द्वारा परिभाषित नहीं है, यह मुख्य तौर पर विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
      • ग्लोबल साउथ में शामिल कई देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, जैसे- भारत, चीन तथा अफ्रीका के अर्द्ध उत्तरी हिस्से में स्थित सभी देश।
        • हालाँकि ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं किंतु ये ग्लोबल साउथ में शामिल नहीं हैं।
  •   ऐतिहासिक संदर्भ:
    • ब्रांट लाइन: यह रेखा वर्ष 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
      • यह रेखा वैश्विक आर्थिक विभाजन का प्रतीक है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर, अफ्रीका, मध्य पूर्व, भारत तथा चीन के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए महाद्वीपों में ज़िगजैग बनाती हुई अर्थात् टेढ़ी-मेढ़ी रेखा बनाती हुई गुज़रती है।

  • G77 मुख्य रूप से ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों का एक गठबंधन है, जिसका गठन संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक और विकास के मुद्दों को सामूहिक रूप से हल करने के लिये किया गया है।
  • ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान:
    • आर्थिक संचरण:
      • कोविड-19 जनित आर्थिक असंतुलन: कोविड महामारी ने मौजूदा आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया, सीमित स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे, बाधित आपूर्ति शृंखलाओं और लॉकडाउन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर भारी निर्भरता के कारण वैश्विक दक्षिण देशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
      • व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव: महामारी के बाद और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे हालिया भू-राजनीतिक संघर्षों के संदर्भ में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्मूल्यांकन ने उत्पादन केंद्रों को फिर से स्थापित करने पर वार्ता शुरू की, जिससे कुछ ग्लोबल साउथ अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्गठन तथा अपनी भूमिकाओं को बढ़ाने का अवसर मिला।
    • भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ:
      • ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ ने G20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लोकप्रियता हासिल की, जिससे शक्ति के संचरण में बदलाव के साथ उनके दृष्टिकोण व हितों पर अधिक मंथन को बढ़ावा मिला।
    • पर्यावरण एवं जलवायु प्रभाव:
      • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित है, जिससे जलवायु अनुकूलन, समुत्थानशक्ति-निर्माण और न्यायसंगत वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् विकास: वैश्विक दक्षिण के भीतर सतत् विकास लक्ष्यों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश और पर्यावरण संरक्षण पहल पर ज़ोर ने वैश्विक ध्यान एवं समर्थन आकर्षित किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है। विस्तार से समझाइये। (2019)

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