जैव विविधता और पर्यावरण
अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट
- 28 Mar 2023
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट, अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल, मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस। मेन्स के लिये:भूमि क्षरण का कारण और इसे रोकने की पहल। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के अवसर पर अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया, साथ ही वानिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण की समस्या का समाधान करने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना का अनावरण किया।
अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट:
- परिचय:
- यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली राज्यों को शामिल करते हुए अरावली पर्वत शृंखला के चारों ओर 1,400 किमी लंबी और 5 किमी. चौड़ी ग्रीन बेल्ट बफर बनाने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है।
- पहले चरण में 75 जल निकायों का कायाकल्प किया जाएगा, जिसकी शुरुआत अरावली परिदृश्य के प्रत्येक ज़िले में पाँच जल निकायों से होगी।
- यह गुड़गाँव, फरीदाबाद, भिवानी, महेंद्रगढ़ और हरियाणा के रेवाड़ी ज़िलों में निम्नीकृत भूमि को शामिल करेगा।
- यह योजना अफ्रीका की 'ग्रेट ग्रीन वॉल' परियोजना से प्रेरित है, जो सेनेगल (पश्चिम) से लेकर जिबूती (पूर्व) तक विस्तृत है, यह वर्ष 2007 में लागू हुई थी।
- उद्देश्य:
- भारत की ग्रीन वॉल परियोजना का व्यापक उद्देश्य भूमि क्षरण की बढ़ती दरों और थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर विस्तार को नियंत्रित करना है।
- पोरबंदर से पानीपत तक के लिये हरित पट्टी की योजना बनाई जा रही है, जो अरावली पर्वत शृंखला में वनीकरण के माध्यम से बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने में सहायता करेगी। यह पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के रेगिस्तान से आने वाली धूल के लिये एक अवरोधक के रूप में भी काम करेगा।
- इसका उद्देश्य पेड़-पौधे लगाकर अरावली शृंखला की जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करना है, जो कार्बन पृथक्करण में मदद करेगा, वन्यजीवों के लिये आवास प्रदान करेगा और जल की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार करेगा।
- वनीकरण, कृषि-वानिकी और जल संरक्षण गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी से सतत् विकास को बढ़ावा दे सकती है।
- इसके अतिरिक्त यह आय और रोज़गार के अवसर पैदा करने, खाद्य सुरक्षा में सुधार करने तथा सामाजिक लाभ प्रदान करने में मदद करेगा।
- पृष्ठभूमि:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा निर्मित मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस के अनुसार, वर्ष 2018-19 के दौरान भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (TGA) 328.72 mha का लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर (29.7%) भूमि अवनयन से गुज़री।
- अरावली को 26 मिलियन हेक्टेयर (mha) भूमि को बहाल करने के भारत के लक्ष्य के तहत हरियाली के लिये उठाए जाने वाले प्रमुख अवक्रमित क्षेत्रों में से एक के रूप में पहचाना गया है।
- ISRO की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट ने भी संकेत दिया था कि दिल्ली, गुजरात और राजस्थान पहले ही अपनी 50% से अधिक भूमि को निम्नीकृत कर चुके हैं।
अरावली पर्वत शृंखला:
- परिचय:
- अरावली, पृथ्वी पर सबसे पुराना वलित पर्वत है।
- यह गुजरात से दिल्ली (राजस्थान और हरियाणा के माध्यम से) तक 800 किमी. से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है।
- अरावली शृंखला की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर गुरु पीक है।
- जलवायु पर प्रभाव:
- अरावली का उत्तर- पश्चिमी भारत और उससे आगे की जलवायु पर प्रभाव है।
- मानसून के दौरान पर्वत शृंखला धीरे-धीरे मानसूनी बादलों को शिमला और नैनीताल की तरफ पूर्व की ओर ले जाती है, इस प्रकार यह उप-हिमालयी नदियों का पोषण करने और उत्तर भारतीय मैदानों को उर्वरता प्रदान करने में मदद करती है।
- सर्दियों के महीनों में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों (पार-सिंधु और गंगा) को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पछुआ पवनों के हमले से रक्षा करती है।
- सर्दियों के महीनों में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों (सिंधु और गंगा) को मध्य एशिया से ठंडी पश्चिमी हवाओं के हमले से बचाती है।
अफ्रीका की महान ग्रीन वॉल (GGW):
- परिचय:
- अफ्रीका की महान ग्रीन वॉल (GGW) अफ्रीकी संघ द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है जो महाद्वीप के बिगड़े हुए परिदृश्य को बहाल करने और साहेल में लाखों लोगों के जीवन को परिवर्तित करने के लिये है।
- इस परियोजना में अफ्रीका में 8,000 किमी. के क्षेत्र में फैले पेड़ों की 8 किमी. चौड़ी पट्टी के विस्तार की योजना है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य वर्तमान में खराब भूमि के 100 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को बहाल करना है।
- इसके अलावा परियोजना में 250 मिलियन टन कार्बन को अनुक्रमित करने एवं वर्ष 2030 तक 10 मिलियन ग्रीन रोज़गार सृजित करने की परिकल्पना की गई है।
- भाग लेने वाले देश:
- साहेल-सहारा क्षेत्र के ग्यारह देश- जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया, सूडान, चाड, नाइजर, नाइजीरिया, माली, बुर्किना फासो, मॉरितानिया एवं सेनेगल भूमि क्षरण का मुकाबला करने और परिदृश्य में देशी पौधों को बहाल करने के लिये शामिल हैं।