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शासन व्यवस्था

मध्याह्न भोजन योजना (पीएम पोषण योजना)

  • 03 Oct 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे, केंद्र प्रायोजित योजना, कुपोषण, सर्व शिक्षा अभियान। 

मेन्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना और संबद्ध चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने मध्याह्न भोजन योजना के तहत प्रति बच्चा खाना पकाने की लागत में 9.6% की बढ़ोतरी को मंज़ूरी दी है। 

  • वर्ष 2020 की शुरुआत में पिछली बढ़ोतरी के बाद से प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा I-V) में खाना पकाने की लागत 4.97 रुपए प्रति बच्चा और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में 7.45 रुपए (कक्षा VI-VIII) रही है। बढ़ोतरी के प्रभावी होने के बाद प्राथमिक स्तर तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर यह लागत क्रमशः 5.45 रुपए एवं 8.17 रुपए होगी। 

मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme) 

  • परिचय: 
    • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी। 
    • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है। 
    • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है। 
    • वर्ष 2021 में इसका नाम बदलकर 'प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण' योजना (पीएम पोषण योजना) कर दिया गया और इसमें पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं के बालवाटिका (3–5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे) के छात्र भी शामिल हैं। 
  • उद्देश्य: 
    • भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना। 
  • गुणवत्ता की जाँच: 
    • एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है। 
  • खाद्य सुरक्षा: 
    • यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी। 
  • विनियमन: 
    • राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है। 
  • पोषण स्तर: 
    • प्राथमिक (I-V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन।  
  • कवरेज़: 
    • सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसे एवं मकतब जो सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं। 

मुद्दे और चुनौतियाँ: 

  • भ्रष्ट आचरण: 
    •  नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं। 
  • जाति पूर्वाग्रह और भेदभाव:  
    • भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है। 
  • कोविड-19:  
    • कोविड -19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। 
    • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने मध्याह्न भोजन (Mid-Day Meals) सहित कई आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बाधित कर दिया है। 
    • हालाँकि इसके बजाय परिवारों को सूखा खाद्यान्न (Dry foodgrains) या नकद हस्तांतरण प्रदान किया जाता है, साथ ही इसका स्कूल परिसर में गर्म पके हुए भोजन के समान प्रभाव नहीं होगा, विशेष रूप से उन लड़कियों के लिये जो घर पर अधिक भेदभाव का सामना करती हैं तथा अधिकांश को स्कूल बंद होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। 
  • कुपोषण का खतरा:  
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है। 
    • भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का केंद्र है। 
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020:  
    •  ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे। 
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (GHI)- 2020:   

आगे की राह 

  • लड़कियों और युवतियों के मां बनने के वर्षों पूर्व  मातृत्त्व सुरक्षा और शिक्षा में आवश्यक सुधार किया जाना चाहिये। 
    • बौनापन (स्टंटिंग) के विरुद्ध लड़ाई अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण को बढ़ावा देने पर केंद्रित होती है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि मातृ स्वास्थ्य और कल्याण उनकी संतानों में बौनापन (स्टंटिंग) को कम करने की कुंजी है। 
  • अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं,  उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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