सामाजिक न्याय
‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020'
- 13 May 2020
- 10 min read
प्रीलिम्स के लिये:‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020', कुपोषण मेन्स के लिये:कुपोषण और खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रश्न |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' (Global Nutrition Report 2020) के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
मुख्य बिंदु:
- पोषण लक्ष्य: वर्ष 2012 में विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) में माँ, शिशु और किशोर बच्चों में 6 पोषण लक्ष्यों की पहचान की गई, जिन्हें वर्ष 2025 तक प्राप्त किया जाना था।
1. 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वृद्धिरोध या बौनापन (Stunting) के मामलों में 40% की कमी,
2. 19-50 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया (Anaemia) के मामलों में 50% की कमी,
3. कम वज़न के शिशुओं के जन्म के मामलों में 30% की कमी को सुनिश्चित करना,
4. बच्चों में मोटापे के मामलों में वृद्धि को पूरी तरह से रोकना,
5. शिशु के जन्म के पहले 6 महीनों में अनन्य स्तनपान (जन्म के शुरुआती 6 माह में शिशु को केवल माँ का दूध) की दर को 50% तक बढ़ाना,
6. बाल निर्बलता/दुबलापन (Child wasting) के मामलों में कमी लाना और इसे 5% से कम बनाए रखना।
‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020’ और भारत:
- वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में जिन चार मानकों के आँकड़ों उपलब्ध हैं, भारत उनमें से किसी भी लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकेगा।
- ये चार मानक 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वृद्धिरोध, प्रजनन योग्य आयु (Reproductive Age) की महिलाओं में एनीमिया के मामले, बच्चों में मोटापा और अनन्य स्तनपान (Exclusive Breastfeeding) हैं।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत कुपोषण के मामले में सबसे अधिक स्थानीय असमानता वाले देशों में से एक है।
- हालाँकि पूर्व में भारत में बच्चों और किशोरों में कम वजन के मामलों की दर में कमी लाने में सफलता प्राप्त हुई थी।
कुपोषण (Malnutrition):
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुपोषण किसी व्यक्ति में ऊर्जा और/या पोषक तत्त्वों की कमी, अधिकता अथवा असंतुलन को दर्शाता है।
- सामान्य रूप से कुपोषण को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है:
- अल्प-पोषण (Undernutrition): इसमें निर्बलता/दुबलापन (लंबाई के अनुपात में वज़न में कमी ), वृद्धिरोध (आयु के अनुपात में लंबाई में कमी) और वज़न में कमी शामिल है।
- सूक्ष्म पोषक तत्त्व संबंधी कुपोषण (Micronutrient-Related Malnutrition): इसमें शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) या अधिकता (Excess) शामिल है।
- वजन की अधिकता: इसमें मोटापा या आहार संबंधी गैर-संचारी रोग (जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कुछ कैंसर) आदि शामिल हैं।
भारतीय बच्चों में कम वजन और कुपोषण:
- वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2016 तक लड़कों में कम वज़न के मामलों की दर 66% से घटकर 58.1% तक पहुँच गई साथ ही इसी दौरान लड़कियों में कम वज़न के मामलों की दर 54.2% से घटकर 50.1% तक पहुँच गई थी।
- हालाँकि कम वज़न के मामलों में आई यह कमी अभी भी एशिया के औसत (लड़कों में 35.6% और लड़कियों में 31.8%) से काफी ज़्यादा है।
- इसके अतिरिक्त भारत में 37.9% बच्चों में वृद्धिरोध या बौनेपन और 20.8% में निर्बलता या दुबलेपन के मामले देखे गए है जबकि एशिया में यह औसत क्रमशः 22.7% और 9.4% है।
एनीमिया:
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रजनन योग्य आयु की दो में से एक महिला में एनीमिया के मामले देखे गए है।
मोटापा:
- भारतीयों में वजन बढ़ने और मोटापे के मामलों की दर में काफी वृद्धि (पुरुषों में17.8% और महिलाओं में 21.6%) देखी गई है, जिसके कारण लगभग हर 5 में से एक वयस्क इस समस्या से प्रभावित है।
कुपोषण और असमानता:
- इस रिपोर्ट में कुपोषण और पक्षपात या अन्याय (Inequity) के बीच संबंधों पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
- इनमें भौगोलिक स्थिति, आयु, लिंग, जातीय असमानता, शिक्षा और आर्थिक आधार आदि प्रमुख हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, भोजन और स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त पक्षपात पोषण परिणामों में असमानता को बढ़ाता है, जिससे समाज में अधिक पक्षपात को बढ़ावा मिल सकता है और इस तरह यह समाज में पक्षपात तथा असमानता के एक अंतहीन दुष्चक्र को जन्म देता है।
भारत के संदर्भ में:
- इस रिपोर्ट में भारत की पहचान नाइजीरिया और इंडोनेशिया के साथ उन तीन सबसे खराब देशों में की गई है, जहाँ वृद्धिरोध के मामलों में सबसे अधिक असमानता देखी गई, इनमें विभिन्न समुदायों के बीच वृद्धिरोध के स्तर का अंतर लगभग चार गुना था।
- उत्तर प्रदेश राज्य में वृद्धिरोध के मामलों की दर 40% से अधिक थी, साथ ही उच्चतम आय वर्ग की तुलना में निम्नतम आय वर्ग के लोगों में ऐसे मामलों की दर दोगुने से भी अधिक थी।
- वर्ष 2019 में ‘केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (United Nations World Food Programme- WFP) के सहयोग से जारी ‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा विश्लेषण, भारत 2019’ (Food and Nutrition Security Analysis, India, 2019) रिपोर्ट में भी भारत में कुपोषण के मामलों पर चिंताजनक आँकड़े जारी किये गए थे।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में पिछड़े वर्गों से आने वाले लोगों में वृद्धिरोध के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि (अनुसूचित जाति में 43.6%, अनुसूचित जनजाति में 42.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों में 38.6%) देखी गई थी।
आगे की राह:
- पिछले कुछ वर्षों में भारत में कृषि उपज में भारी वृद्धि हुई है परंतु देश का प्रशासनिक तंत्र कुपोषण को समाप्त करने में सफल नहीं रहा है, इसका सबसे बड़ा कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत किस्म के खाद्य पदार्थों की पहुँच में कमी, जागरूकता का अभाव और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की निष्क्रियता है।
- देश के विकास में महिला की भूमिका को देखते हुए महिला सशक्तिकरण और जागरूकता के कार्यक्रमों में वृद्धि की जानी चाहिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में एएनएम् (ANM) और अन्य स्थानीय कार्यकर्ताओं तथा आँगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये पोषक भोजन की पहुँच में वृद्धि की जानी चाहिये। सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आँगनबाड़ी केंद्रों की पहुँच में विस्तार की बात कही गई है जो इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
- प्रतिवर्ष देश में विभिन्न सरकारी खाद्य भंडार केंद्रों में उपयुक्त भंडारण संसाधनों या समन्वय के अभाव में बड़ी मात्रा में अनाज बर्बाद हो जाता है, अतः वितरण प्रणाली में सुधार के साथ-साथ भंडारण केंद्रों की नियमित जाँच कर उपयुक्त समाधान किये जाने चाहिये।
- COVID-19 महामारी के बाद देश में एक बार पुनः ‘1 देश 1 राशनकार्ड’ की मांग तेज़ हुई है, इस कार्यक्रम के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे प्रवासी मज़दूरों को सस्ती दरों पर पोषक तत्त्वों से युक्त अनाज उपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त होगी।