डेली न्यूज़ (20 Jan, 2025)



भारत-यूरोपीय संघ संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संघ, हिंद-प्रशांत, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, गिनी की खाड़ी, बौद्धिक संपदा अधिकार, शेंगेन क्षेत्र, यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद 

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति, यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध, हिंद-प्रशांत क्षेत्र

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

चूँकि लोकतांत्रिक देशों के रूप में, भारत और यूरोपीय संघ पर सत्तावादी शासनों का दबाव बढ़ता जा रहा है इसलिये भारत तथा संघ का एक दूसरे को सहयोग किया जाना महत्त्वपूर्ण हो गया है। यूरोपीय संघ और भारत की सहभागिता यूरोप और भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है एवं इसमें अपार संभावनाएँ तो हैं किंतु इसके निरंतर कार्यान्वन के समक्ष अनेक समस्याएँ हैं।

भारत-यूरोपीय संघ संबंध को कौन-से कारक परिभाषित करते है?

  • साझा मूल्य: भारत और यूरोपीय संघ दोनों लोकतंत्र, बहुपक्षवाद और समृद्धि पर ज़ोर देते हैं।
  • आर्थिक तालमेल: भारत यूरोपीय संघ को बढ़ते बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार की भूमिका निभाता है जबकि यूरोपीय संघ भारत के आर्थिक विकास में सहायता करते हुए निवेश, प्रौद्योगिकी और बाज़ार पहुँच में योगदान देता है। 
    • इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र और हरित प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों में यूरोपीय संघ के निवेश और सहयोग करता है।
  • व्यापार और आर्थिक संबंध:
    • द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2023-24 में, यूरोपीय संघ के साथ भारत का माल व्यापार 137.41 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिससे यूरोपीय संघ भारत का माल व्यापार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना। वर्ष 2023 में सेवा क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार 51.45 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): यूरोपीय संघ भारत में एक प्रमुख निवेशक है, जिसका कुल FDI अंतर्वाह में 17% हिस्सा है तथा इससे रोज़गार के महत्त्वपूर्ण अवसर सर्जित होते हैं।
  • समुद्री सुरक्षा: यूरोपीय संघ की एशिया सुरक्षा सहयोग वर्द्धन (Enhancing Security Cooperation in and with Asia- ESIWA) पहल से, समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने हेतु भारत सहित एशिया के साथ सुरक्षा सहयोग सुदृढ़ होता है, क्योंकि हिंद महासागर यूरोपीय संघ के लिये एक महत्त्वपूर्ण मार्ग है।
  • सैन्य अभ्यास: वर्ष 2023 में गिनी की खाड़ी में पहला भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आयोजित किया गया।

यूरोपीय संघ 

  • स्थापना: द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद वर्ष 1951 में छह देशों (बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड) द्वारा इसकी स्थापना की गई।
  • वर्तमान सदस्य देश: वर्तमान में इसमें 27 देश (ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस गणराज्य, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन और स्वीडन) शामिल हैं।
    • ब्रिटेन 1973 में यूरोपीय संघ में शामिल हुआ और वर्ष 2020 में इससे अलग हो गया (ब्रेक्सिट)।
  • जनसांख्यिकी: यूरोपीय संघ में, जर्मनी की जनसंख्या सबसे अधिक है और फ्राँस क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा है जबकि सबसे छोटा देश माल्टा है।
  • खुली सीमाएँ: साइप्रस और आयरलैंड के अतिरिक्त शेंगेन क्षेत्र में यूरोपीय संघ के अधिकांश सदस्यों के मुक्त आवागमन की अनुमति है। 
    • चार गैर-यूरोपीय संघ देश (आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन) भी शेंगेन का हिस्सा हैं।
  • एकल बाज़ार: यूरोपीय संघ के भीतर माल, सेवाओं, पूंजी और लोगों का स्वतंत्र आवागमन होता है।
  • जलवायु लक्ष्य: इसने वर्ष 2050 तक जलवायु-तटस्थ होने और वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 55% की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

EU_Member_States

भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक मतभेद: यूरोपीय संघ व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकार सहयोग सहित एक व्यापक साझेदारी की परिकल्पना करता है, जबकि भारत रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है और गहरे गठबंधन से बचता है।
    • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के संबंध में भारत का तटस्थ रुख यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण के विपरीत है, जिसने रूस के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए हैं तथा यूक्रेन पर रूस के हमलों तथा लोकतंत्र पर हमलों के कारण कठिन संबंधों का सामना किया है।
      • इससे विश्वास की कमी उत्पन्न होती है और भारत तथा यूरोपीय संघ के बीच नीति-स्तरीय समन्वय में जटिलता आ जाती है।
    • भारत सीमा विवादों और आर्थिक प्रतिद्वंद्विता के कारण चीन को एक रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखता है, जबकि यूरोप चीन के मानवाधिकारों और आर्थिक प्रथाओं पर चिंताओं के बावजूद उसके साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार जारी रखता है।
      • यह विरोधाभास हिंद-प्रशांत नीतियों पर एकीकृत दृष्टिकोण में बाधा डालता है।
  • आर्थिक एवं व्यापार बाधाएँ: भारत और यूरोपीय संघ के बीच वर्ष 2007 में शुरू हुई FTA वार्ता में मतभेदों के कारण देरी हुई है। 
    • सख्त यूरोपीय संघ के बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) मानदंड किफायती जेनेरिक फार्मास्यूटिकल्स पर भारत के फोकस के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे कठोर श्रम और पर्यावरण मानकों पर यूरोपीय संघ का ज़ोर भारत के घरेलू उद्योगों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
  • रक्षा एवं सामरिक मतभेद: रूसी रक्षा प्रणालियों पर भारत की निर्भरता उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी पर यूरोप के साथ गहन सहयोग को सीमित करती है।
    • फ्राँस फ्रांस के साथ पनडुब्बी सहयोग और स्पेन के साथ C-295 विमान जैसी परियोजनाओं के बावजूद, यूरोपीय संघ-भारत रक्षा संबंध अमेरिका या रूस के साथ संबंधों से पीछे हैं। 
    • समर्पित रणनीतिक वार्ता का अभाव तथा ज्ञान साझा करने के प्रति यूरोपीय संघ का प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण सहयोग में और बाधा डालता है, जबकि रूस भारत के साथ संयुक्त विनिर्माण का समर्थन करता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार अंतराल: भारत किफायती प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देता है, जबकि यूरोप स्थिरता और उन्नत विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। 
  • संरचनात्मक बाधाएँ: यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच मतभेद भारत के प्रति एकीकृत विदेश नीति दृष्टिकोण को जटिल बनाते हैं। यह विखंडन प्रभावी सहयोग में बाधा डालता है।

भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को मज़बूत करने की क्या आवश्यकता है? 

  • सत्तावाद का मुकाबला: लोकतंत्र के रूप में, भारत और यूरोपीय संघ को विशेष रूप से भारत के लिये चीन और यूरोपीय संघ के लिये रूस जैसे सत्तावादी शासनों से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • संबंधों को मज़बूत करने से दोनों पक्षों को लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और निरंकुश विस्तारवाद का विरोध करने में एकजुट मोर्चा बनाने में मदद मिलेगी।
  • आर्थिक विकास: भारत और यूरोपीय संघ के बीच सफल FTA से व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। यूरोपीय संघ सबसे बड़ा आर्थिक समूह है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 
    • वे एक-दूसरे को बाज़ार पहुँच, तकनीकी आदान-प्रदान, आर्थिक विकास प्रदान करते हैं तथा चीन पर निर्भरता कम करने के लिये वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाएँ बनाते हैं।
  • तकनीकी सहयोग: तकनीकी नवाचार में भारत का उदय और यूरोपीय संघ की अनुसंधान एवं विकास क्षमताएँ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष में संयुक्त पहल को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे चीन के प्रभुत्व का मुकाबला किया जा सकता है। 
    • यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के माध्यम से सहयोग को मज़बूत करने से उभरती प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा, हरित प्रौद्योगिकी और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने संबंधी रणनीतियों को संरेखित किया जा सकता है।
      • भारत के उभरते क्षेत्र यूरोप में विनिर्माण को पुनर्जीवित करने में सहायता कर सकते हैं, जिससे दोनों क्षेत्रों को लाभ होगा।
  • पर्यावरणीय कार्रवाई: भारत और यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा, कार्बन न्यूनीकरण और सतत् विकास पर संयुक्त पहल के माध्यम से वैश्विक जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ा सकते हैं, तथा भारत की नवीकरणीय क्षमता और यूरोपीय संघ के पर्यावरणीय नेतृत्व का लाभ उठा सकते हैं।
    • भारत और यूरोपीय संघ संयुक्त रूप से सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और सतत् कृषि जैसी हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्थिरता में योगदान मिलेगा।

आगे की राह

  • सत्तावाद के विरुद्ध एकता: लोकतंत्रों के लिये खतरे के रूप में बढ़ते सत्तावाद की एक साझा समझ भारत, यूरोप और अमेरिका को एकजुट कर सकती है।
    • यह संरेखण समिट फॉर डेमोक्रेसी जैसी पहलों के माध्यम से अटलांटिक और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा दे सकता है ।
  • TTC का लाभ उठाना: यूरोपीय संघ-भारत TTC, महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल के समान, प्रौद्योगिकी एजेंडों को संरेखित करने का अवसर प्रस्तुत करता है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों में नवाचार और उन्नति को बढ़ावा देने के लिये उच्च स्तरीय सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
  • सामरिक आर्थिक साझेदारी: FTA से आगे, भारत और यूरोपीय संघ फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण कच्चे माल जैसे क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों की संभावना तलाश सकते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) के समान, यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत के साथ एक समान समझौते पर हस्ताक्षर कर सकता है।
  • रक्षा: अमेरिका, रूस और क्वाड सदस्यता के साथ भारत की रक्षा साझेदारी को भारत के रक्षा क्षेत्र में यूरोपीय संघ के निवेश और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों द्वारा पूरित किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  वैश्विक सत्तावाद से निपटने में यूरोपीय संघ-भारत साझेदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिये और विश्लेषण कीजिये कि उनके व्यापार संबंधों को कैसे मज़बूत किया जा सकता है।

भारत और यूरोपीय संघ

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

यूरोपीय संघ का 'स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी ऐंड ग्रोथ पैक्ट)' ऐसी संधि है, जो

  1. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है
  2. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है
  3. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है

उपर्युक्त में से कितने कथन सही है?

(a) केवल एक
(b) केवल दो 
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

व्याख्या: (a)

  • स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता एक राजनीतिक समझौता है जो यूरोपीय मौद्रिक संघ (EMU) के सदस्य राज्यों के राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण पर सीमाएँ निर्धारित करता है। अतः कथन 1 सही है।
  • इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य EMU के भीतर सार्वजनिक वित्त का सुदृढ़ प्रबंधन सुनिश्चित करना है, ताकि किसी एक सदस्य देश की गैर-ज़िम्मेदार बजटीय नीतियों का प्रभाव पूरे यूरो क्षेत्र पर न पड़े और पूरे यूरो क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता को नुकसान न पहुँचे।
  • यूरोपीय संघ स्थिरता और व्यापार समझौता में बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी के साझाकरण से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है।
  • अतः कथन 2 और 3 सही नहीं हैं।

भारत के रबड़ उद्योग को बढ़ावा देना

प्रिलिम्स के लिये:

रबर बोर्ड , रबड़, राष्ट्रीय रबड़ नीति (NRP), 2019,  यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR), ईयू, यूरोपीय आयोग, वनों की कटाई एवं वन उन्मूलन,  पाम ऑयल , गैर-टैरिफ बाधा ,  भारत-ईयू FTA वार्ता, उष्णकटिबंधीय वृक्ष , अमेज़ॅन वर्षावन, दोमट या लैटेराइट मृदा, कृषि प्रबंधन, मिश्रित कृषि, उच्च उपज 

मेन्स के लिये:

वैश्विक रबड़ मानकों को पूरा करने के लिये रबड़ उद्योग को बढ़ावा देने की पहल।

स्रोत: बी.एल.

चर्चा में क्यों?

रबर बोर्ड ने भारतीय रबर की वैश्विक प्रमुखता को बढ़ावा देने के साथ-साथ घरेलू उत्पादन में वृद्धि करने के लिये भारतीय सतत् प्राकृतिक रबड़ (iSNR) और INR कनेक्ट प्लेटफॉर्म जैसी नई पहल शुरू की है।

  • यह राष्ट्रीय रबड़ नीति (NRP), 2019 के अनुरूप है जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय रूप से सतत्, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी रबड़ उद्योग का निर्माण करना है।

भारत के रबर उद्योग में हाल ही में की गई पहल क्या हैं? 

  • iSNR पहल: यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR) मानकों को पूरा करने के लिये भारतीय सतत प्राकृतिक रबड़ (iSNR) पहल शुरू की गई ।
    • यह रबड़ उत्पादों की उत्पत्ति और अनुपालन की पुष्टि करने वाले प्रमाणपत्रों के साथ पता लगाने की सुविधा प्रदान करता है और यूरोपीय संघ के बाजारों को लक्षित करने वाले हितधारकों के लिये अनुपालन प्रक्रिया को सरल बनाता है ।
    • यह सतत् रबड़ उत्पादन को बढ़ावा देता है, तथा भारतीय प्राकृतिक रबड़ को वैश्विक बाज़ार में एक प्रतिस्पर्द्धी एवं उत्तरदायी विकल्प के रूप में स्थापित करता है।
  • INR कनेक्ट प्लेटफॉर्म: यह एक वेब-आधारित प्लेटफॉर्म है जिसका उद्देश्य अप्रयुक्त रबड़ उत्पादकों को इच्छुकअपनाने वालों के साथ जोड़कर उत्पादकता बढ़ाना है।
    • यह भारत में अनुपस्थित जमींदारों द्वारा अप्रयुक्त एवं उपेक्षित बागानों के 20-25% को लक्षित करता है , ताकि कीमतों में गिरावट एवं उच्च लागत की समस्या का समाधान किया जा सके।
  • mRube: mRube को प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र में विपणन एवं व्यापार दक्षता बढ़ाने के लिये रबड़ बोर्ड के डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • सब्सिडी में वृद्धि: सरकार रबड़ की खेती के लिये चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी बढ़ाने की योजना बना रही है ।

ध्यान दीजिये: अनुपस्थित मकान मालिकों के पास संपत्ति होती है, लेकिन वे उसमें रहते या उसका प्रबंधन नहीं करते हैं, तथा रखरखाव, किराया वसूली और अन्य कार्यों के लिये वे संपत्ति प्रबंधकों, किरायेदारों या स्थानीय एजेंटों पर निर्भर रहते हैं।

EUDR क्या है?

  • EUDR के बारे में: EUDR यूरोपीय आयोग द्वारा प्रस्तावित एक विधायी ढाँचा है, जिसका उद्देश्य वस्तु आपूर्ति शृंखलाओं से जुड़े वनों की कटाई एवं वन उन्मूलन के वैश्विक मुद्दे का समाधान करना है । 
    • विनियमन का उद्देश्य वनों की कटाई में यूरोपीय संघ की भूमिका को कम करना है और यह सुनिश्चित करना है कि वनों की कटाई से जुड़े उत्पाद यूरोपीय बाज़ार में प्रवेश न करें ।  
  • तंत्र: जब उनका माल निर्यात किया जाता है या यूरोपीय संघ के बाज़ार में लाया जाता है, तब व्यापारियों या संचालकों को यह सिद्ध करना आवश्यक होता है कि वे नई साफ की गई भूमि से नहीं आ रहे हैं या वनों को हानि नहीं पहुँचा रहे हैं।
  • उद्देश्य: प्राथमिक उद्देश्यों में शामिल हैं:
    • यह सुनिश्चित करके कि सूचीबद्ध उत्पाद इसमें योगदान न करें,तथा वनों की कटाई को रोकना।
    • कार्बन उत्सर्जन को प्रतिवर्ष कम से कम 32 मिलियन मीट्रिक टन तक कम करना।
    • इन वस्तुओं के कृषि विस्तार से जुड़े वन उन्मूलन से निपटना।
  • कवर की गई वस्तुएँ: यह मवेशी, लकड़ी, कोको, सोया, ताड़ का तेल, कॉफी, रबर और संबंधित उत्पादों (जैसे, चमड़ा, चॉकलेट, टायर, फर्नीचर) जैसी वस्तुओं पर केंद्रित है।

संबंधित चिंताएँ:

  • गैर-टैरिफ बाधा: EUDR को इस बात का प्रमाणीकरण आवश्यक है कि मवेशी, सोया और पाम ऑयल जैसी वस्तुएँ वनों की कटाई वाली भूमि से नहीं हैं, जिसे भारत गैर-टैरिफ बाधा के रूप में देखता है।
  • अनुपालन का बोझ: यह सिद्ध करना कि सामान वनों की कटाई से मुक्त है, अतिरिक्त प्रशासनिक एवं परिचालन बोझ डालता है, विशेष रूप से SMEs पर।
  • वैश्विक नीति प्रतिकृति: इससे वैश्विक प्रमाणन योजनाएँ आदर्श बन सकती हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों पर और अधिक दबाव पड़ेगा।
  • धीमी FTA वार्ता: चल रही भारत-ईयू FTA वार्ता में EUDR विवादास्पद मुद्दा बन गया है।

रबड़ बोर्ड

  • रबड़ बोर्ड देश में रबड़ उद्योग के समग्र विकास के लिये रबड़ अधिनियम, 1947 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • बोर्ड का मुख्यालय कोट्टायम, केरल में स्थित है।
  • रबड़ अनुसंधान संस्थान रबड़ बोर्ड के अधीन काम करता है।

रबड़ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • रबड़ के बारे में: रबड़ एक लोचदार पदार्थ है जो कुछ पौधों की प्रजातियों, मुख्य रूप से रबड़ के वृक्ष(Hevea brasiliensis) के लेटेक्स या दूधिया रस से प्राप्त होता है।
  • उत्पादन: भारत विश्व में प्राकृतिक रबड़ का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता तथा प्राकृतिक रबड़ एवं सिंथेटिक रबड़ दोनों का पांचवाँ सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
    • केरल भारत में सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक है (90% से अधिक), इसके बाद त्रिपुरा (लगभग 9%) का स्थान है। 
    • अन्य प्रमुख राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कर्नाटक, असम, तमिलनाडु, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, गोवा तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। 
  • आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ: इसके लिये 20°-35°C के बीच तापमान तथा वार्षिक 200 सेमी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • यह दोमट या लैटेराइट मृदा, ढलान वाली या उच्च भूमि में उगता है, जिसकी खेती के लिये सस्ते एवं कुशल श्रम की आवश्यकता होती है।
  • व्यापार परिदृश्य: 2022-23 में भारत ने 3,700 टन प्राकृतिक रबड़ (NR) का निर्यात किया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, UAE, यू.के. और बांग्लादेश सबसे बड़े बाज़ार थे।
    • वर्ष 2022-23 में भारत ने 5,28,677 टन प्राकृतिक गैस का आयात किया, मुख्य रूप से इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से।

राष्ट्रीय रबड़ नीति (NRP) 2019 क्या है?

  • परिचय: यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा रबड़ के उत्पादन, प्रसंस्करण, खपत तथा निर्यात को समर्थन देने हेतु एक नीतिगत पहल है। 
  • उद्देश्य: 
    • मूल्य शृंखला विकास: खेती से लेकर विनिर्माण तक संपूर्ण रबड़ उद्योग मूल्य शृंखला का विकास करना।
    • रबड़ क्षेत्र का विस्तार : पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचाए बिना गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में प्राकृतिक रबड़ बागानों में वृद्धि करना।
    • उत्पादकता वृद्धि: बेहतर कृषि प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से रबड़ उत्पादकता में सुधार।
    • घरेलू कच्चे माल की आपूर्ति: यह सुनिश्चित करना कि घरेलू उत्पादन कच्चे माल की मांग को पूरा करे।
    • गुणवत्ता मानक: यह सुनिश्चित करना कि संसाधित NR अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करता है।
    • रबड़ उत्पाद विनिर्माण: रबड़ विनिर्माण क्षेत्र को सशक्त बनाना तथा निर्यात को बढ़ावा देना।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: 
    • राष्ट्रीय रबड़ का दर्जा: आय वृद्धि के लिये मौजूदा नीतियों का लाभ उठाने हेतु NR को कृषि उत्पाद के रूप में मान्यता देना।
    • उत्पादन लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 2 मिलियन टन प्राकृतिक गैस उत्पादन प्राप्त करना तथा रोपण क्षेत्रों का विस्तार करना।
    • मूल्य शृंखला समन्वयन: घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिये प्राकृतिक संसाधन उत्पादन, प्रसंस्करण तथा उत्पाद विनिर्माण में गतिविधियों को संरेखित करना।

भारत में रबड़ उत्पादन में वृद्धि हेतु कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • फसल विविधीकरण: विशेष रूप से अनुकूल जलवायु परिस्थितियों वाले पूर्वोत्तर राज्यों में मिश्रित कृषि प्रणालियों में रबड़ को अन्य फसलों के साथ एकीकृत करके किसानों को अपनी भूमि के उपयोग में विविधता लाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिक खेती: उच्च उपज देने वाली किस्मों तथा उन्नत रोपण तकनीकों (जैसे उच्च घनत्व रोपण) को बढ़ावा देने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • अनुसंधान: अधिक रोग प्रतिरोधी, जलवायु अनुकूल तथा उच्च उपज देने वाली रबड़ किस्मों को विकसित करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में किये जाने वाले निवेश में वृद्धि उत्पादन सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • कुशल टैपिंग: रबड़ टैपिंग करने वालों को कुशल तरीकों, जैसे पार्श्व टैपिंग और उचित कोण, का प्रशिक्षण देकर लेटेक्स की मात्रा एवं गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
  • बाजार पहुँच: भारतीय रबड़ तथा रबड़ आधारित उत्पादों (जैसे- रबड़ आधारित टायर और औद्योगिक वस्तुओं) के लिये वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच का विस्तार कर किसानों को अधिक रबड़ उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 के अनुरूप iSNR, INR Konnect और mRube प्लेटफॉर्म जैसी अभिनव पहलों के माध्यम से अपने रबड़ उद्योग को आगे बढ़ा रहा है। इन प्रयासों का उद्देश्य घरेलू उत्पादन में वृद्धि करना, धारणीयता में वृद्धि करना तथा EUDR के अनुपालन एवं बाज़ार पहुँच के विस्तार जैसी चुनौतियों से निपटते हुए वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के रबड़ उद्योग को सशक्त बनाने में राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप-समूह ‘नवीन विश्व (न्यू वर्ल्ड)’ में कृषि-योग्य बनाया गया तथा इसका ‘प्राचीन विश्व (ओल्ड वर्ल्ड)’ में प्रचलन शुरू किया गया? (2019)

(a) तंबाकू, कोको और रबड़
(b) तंबाकू, कपास और रबड़
(c) कपास, कॉफी और गन्ना
(d) रबड़, कॉफी और गेहूँ

उत्तर: (a) 


प्रश्न. सूची-I को सूची-II से सुमेलित करें और सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए: (2008)

सूची-I         -  सूची-II

(बोर्ड)         -  (मुख्यालय)

  1. कॉफी बोर्ड  -    1. बंगलूरू 
  2. रबड़ बोर्ड   -     2. गुंटूर
  3. चाय बोर्ड    -    3. कोट्टायम
  4. तंबाकू बोर्ड  -    4. कोलकाता

कूट:

    A B C D

(a) 2 4 3 1
(b) 1 3 4 2
(c) 2 3 4 1
(d) 1 4 3 2

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: अंग्रेज किस कारण भारत से करारबद्ध श्रमिक अन्य उपनिवेशों में ले गए थे? क्या वे वहाँ पर अपनी सांस्कृतिक पहचान को परिरक्षित करने में सफल रहे हैं? (2018)


सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सिंगापुर के साथ सहभागिता

प्रिलिम्स के लिये:

सेमीकंडक्टर विनिर्माण, एकीकृत सर्किट (IC), वेफर फैब्रिकेशन पार्क, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, STEM, सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला और नवाचार भागीदारी, यूरोपीय आयोग, भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM), उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्द्धचालकों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (SPECS), क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) 

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में अर्द्धचालक यंत्रों का महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान, सिंगापुर के राष्ट्रपति ने उन्नत पीढ़ी के तकनीकी समाधानों के निर्माण में सहभागिता किये जाने के अतिरिक्त भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण और सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम के विकास जैसी पहलों की संभावनाओं के अन्वेषण संबंधी योजनाओं की घोषणा की।

सिंगापुर का सेमीकंडक्टर परिदृश्य कैसा है?

  • आर्थिक योगदान: सिंगापुर का सेमीकंडक्टर क्षेत्र का इसके सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8% का योगदान है।
    • इसका विश्व के अर्द्धचालक उत्पादन में लगभग 10%, वैश्विक वेफर निर्माण में 5% और अर्द्धचालक उपकरण उत्पादन में 20% का योगदान है
  • वैश्विक कंपनियों की उपस्थिति: सेमीकंडक्टर क्षेत्र की प्रमुख वैश्विक कंपनियों ने सिंगापुर में महत्त्वपूर्ण परिचालन स्थापित किया है, जिसमें एकीकृत सर्किट (IC) के डिज़ाइन से लेकर असेंबली, पैकेजिंग, परीक्षण और वेफर फैब्रिकेशन तक संपूर्ण सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला शामिल है।
    • सिंगापुर के चार प्रमुख वेफर फैब्रिकेशन पार्क 374 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत हैं और अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं।
  • चुनौतियाँ: सिंगापुर का सेमीकंडक्टर उद्योग ऑटोमोटिव और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये पूर्ण विकसित-नोड चिप्स (28 एनएम और उससे अधिक) में विशेषज्ञता रखता है लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत कंप्यूटिंग (7 एनएम और उससे कम) के लिए उच्च-स्तरीय लॉजिक चिप्स अभी भी सिंगापुर के सेमीकंडक्टर क्षेत्र के दायरे से बाहर हैं।

Semiconductor

भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • बाजार मूल्य: वर्ष 2022 में, भारत के सेमीकंडक्टर बाज़ार का मूल्य 26.3 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिसके 2032 तक 271.9 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान है।

Semiconductor_industry

  • आयात निर्भरता: सेमीकंडक्टर उपकरणों के लिये भारत की आयात पर अत्यधिक निर्भरता है। वर्ष 2022 में भारत का आयात 5.36 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जबकि निर्यात केवल 0.52 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
  • सकारात्मक कारक:
    • कुशल कार्यबल: भारत में बड़ी संख्या में STEM स्नातक है, जिससे अर्द्धचालक विनिर्माण, डिज़ाइन और अनुसंधान एवं विकास के लिये तैयार कार्यबल प्राप्त होता है।
    • लागत सुलाभ: भारत कम श्रम और परिचालन लागत के कारण सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण लागत लाभ प्रदान करता है।
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित होकर कंपनियों द्वारा चीन से बाहर जाने से भारत के लिये सेमीकंडक्टर विनिर्माण का एक उपयुक्त गंतव्य बनने की संभावना है।

STEM

सिंगापुर भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास में किस मदद कर सकता है?

  • विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार: भारतीय कंपनियाँ असेंबली और परीक्षण को आउटसोर्स करने के लिये सिंगापुर की फर्मों के साथ साझेदारी कर सकती हैं, जिससे सिंगापुर के लिये लागत कम होगी और भारत उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सक्षम होगा।
  • प्रतिभा विकास: सिंगापुर के विश्वविद्यालय माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और भारतीय संस्थान भारत के सेमीकंडक्टर लक्ष्यों के लिये कुशल कार्यबल का निर्माण करने हेतु अनुसंधान, छात्र आदान-प्रदान और पीएच.डी के लिये सहयोग कर सकते हैं।
  • औद्योगिक पार्क विकास: सिंगापुर के वेफर फैब पार्क (विशेष रूप से सेमीकंडक्टर विनिर्माण हेतु डिजाइन किये गए औद्योगिक क्षेत्र) के अनुरूप, भारत वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिये इसी प्रकार के औद्योगिक पार्क स्थापित कर सकता है ।
    • सिंगापुर की फर्मों के साथ साझेदारी से भारतीय कंपनियों को उन्नत अर्द्धचालक प्रौद्योगिकियों और चिप उत्पादन के लिये आवश्यक सामग्रियों तक पहुँच प्राप्त हो सकती है।

भारत-सिंगापुर संबंध

  • पृष्ठभूमि: भारत 1965 में सिंगापुर की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
    • दोनों देशों में सहभागिता का आधार स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा 1819 में सिंगापुर में स्थापित एक व्यापारिक केंद्र था, जो 1867 तक कोलकाता से शासित एक ब्रिटिश उपनिवेश बन गया।
  • व्यापार और आर्थिक सहयोग: भारत और सिंगापुर के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • सिंगापुर भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है (वित्त वर्ष 2024), जिसका भारत के कुल व्यापार में 3.2% का योगदान है।
    • भारत सिंगापुर का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और सिंगापुर के कुल व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 2.3% है। 
    • सिंगापुर ASEAN क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है।
  • सुरक्षा सहयोग: भारत और सिंगापुर के बीच आयोजित सैन्य अभ्यासों में सिम्बेक्स (नौसेना), सिनडेक्स (वायु सेना) और बोल्ड कुरुक्षेत्र (थल सेना) शामिल हैं।
  • संस्कृति: सिंगापुर की चार आधिकारिक भाषाएँ मलय, मंदारिन, तमिल और अंग्रेज़ी हैं। सिंगापुर की 3.9 मिलियन की निवासी आबादी में लगभग 9.1% या 3.5 लाख जनसंख्या भारतीय मूल की है।

Malaysia

भारत के लिये सेमीकंडक्टर का क्या महत्त्व है?

  • औद्योगिक विकास: वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग एक दशकीय विकास की ओर अग्रसर है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक इसका मूल्य एक ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा तथा भारत का लक्ष्य इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करना है।
    • भारत के सेमीकंडक्टर बाज़ार का वर्ष 2020 में मूल्य 15 बिलियन अमरीकी डॉलर था और वर्ष 2026 तक इसके 63 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान है।
  • तकनीकी संप्रभुता: घरेलू अर्द्धचालक क्षमताओं को विकसित कर, भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और सुरक्षित संचार नेटवर्क के लिये स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला: सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत की भागीदारी से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में इसकी स्थिति सुदृढ़ हो सकती है, निवेश प्राप्त हो सकता है और इसकी रणनीतिक भू-राजनीतिक भूमिका भी बढ़ सकती है।
  • डिजिटल परिवर्तन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G की दृष्टि से सेमीकंडक्टर की महत्ता अत्यधिक है, जिससे भारत की डिजिटल और तकनीकी प्रगति हेतु घरेलू विकास महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • यह राष्ट्रीय विकास को गति प्रदान करते हुए डेटा सेंटरों, संचार नेटवर्कों और स्मार्ट शहरों को सहायता प्रदान करेगा।
  • कौशल विकास: सेमीकंडक्टर उद्योग में विशेष कौशल की मांग से भारतीय संस्थानों में STEM शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।

सेमीकंडक्टर विनिर्माण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • पूंजी और निवेश: सेमीकंडक्टर विनिर्माण अत्यंत पूंजी-प्रधान है, जिसमें अनुसंधान एवं विकास तथा बुनियादी ढाँचे दोनों में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
    • वर्ष 2021 में आयात अर्द्धचालक विनिर्माण मूल्य सूचकांक में 4.9% की वृद्धि हुई और वर्ष 2022 में इसमें अतिरिक्त 2.4% की वृद्धि हुई।
  • प्रतिभा का अभाव: वर्ष 2025 तक 1 मिलियन से अधिक कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होगी जिसकी दृष्टि से वर्तमान में इस क्षेत्र में प्रतिभा का व्यापक अभाव है।
    • भारत में विनिर्माण संयंत्रों को संचालित करने में सक्षम कुशल श्रमिकों की कमी है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के प्रभुत्व से, जिनके पास महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का अभिगम है, भारत की अपनी क्षमताओं का वर्द्धन करने की क्षमता सीमित होती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: सेमीकंडक्टर उद्योग ऊर्जा-गहन है और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसका योगदान 31% है
  • अन्य उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: भारत को वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है , जिसमें मलेशिया ने सेमीकंडक्टर निवेश के प्रथम चरण में इंफिनिऑन जैसी कंपनियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।

आगे की राह

  • शिक्षा और प्रशिक्षण: उद्योग-संबंधित पाठ्यक्रम और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिये वैश्विक कंपनियों के साथ साझेदारी करते हुए विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये। उदाहरण: IISc बंगलुरु ने TSMC ( ताइवान की सेमीकंडक्टर कंपनी) के साथ सहयोग किया है।
  • स्वदेशी चिप डिज़ाइन: बंगलुरु और हैदराबाद जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रों में चिप डिज़ाइन केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, IIT मद्रास का शक्ति प्रोसेसर।
  • आपूर्ति शृंखला: कच्चे माल से लेकर उन्नत पैकेजिंग तक में निवेश आकर्षित करते हुए भारत के भीतर एक व्यापक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना करने की आवश्यकता है।
  • सॉवरेन सेमीकंडक्टर फंड: 3nm और 2nm फैब्रिकेशन जैसी प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देते हुए सेमीकंडक्टर निवेश के लिये एक सॉवरेन फंड निर्मित किये जाने की आवश्यकता है। 
  • चिप कूटनीति: जापान जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुरक्षित करने के लिये भारत की भू-राजनीतिक स्थिति का पूर्णतम रूप से उपयोग किया जाना चाहिये।
  • ग्रीन सेमीकंडक्टर पहल: जल उपयोग, ऊर्जा खपत और रासायनिक अपशिष्ट को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत को संधारणीय सेमीकंडक्टर विनिर्माण में अग्रणी देश के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के विकास में अर्द्धचालक के महत्त्व की विवेचना कीजिये? आगामी दशकों में भारत इस अवसर का पूर्णतम उपयोग किस प्रकार कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारत प्रकाश- वोल्टीय इकाइयों में प्रयोग में आने वाले सिलिकॉन वेफर्स का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।  
  2. सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण भारतीय सौर ऊर्जा निगम के द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस लेज़र प्रकार का उपयोग लेज़र प्रिंटर में किया जाता है? (2008) 

(a) डाई लेज़र 
(b) गैस लेज़र
(c) सेमीकंडक्टर लेज़र
(d) एक्सीमर लेज़र 

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020)

प्रश्न. नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020)


चुनावी ट्रस्ट के माध्यम से दान में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड, सर्वोच्च न्यायालय (SC), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ मामला, 2024, चुनावी बॉण्ड योजना, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, भारत का निर्वाचन आयोग (ECI), वित्त अधिनियम 2017, अनुच्छेद 19, 14 और 21

मेन्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड का चुनाव प्रक्रिया पर प्रभाव, चुनावी बॉण्ड के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा वित्त वर्ष 2023-24 के लिये जारी चुनावी ट्रस्ट योगदान रिपोर्ट, चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिये जाने वाले दान में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देती है। 

ECI की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु और उसके निहितार्थ क्या हैं?

  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:
    • दान में वृद्धि: प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (PET) में योगदान वर्ष 2022-23 से 2023-24 तक लगभग तीन गुना बढ़ गया।
      • PET भारत का सबसे बड़ा चुनावी ट्रस्ट है, जिसे वित्त वर्ष 24 में 1,075.71 करोड़ रुपए मिले। यह एक ही ट्रस्ट के भीतर कॉर्पोरेट दान का एक महत्त्वपूर्ण संकेंद्रण दर्शाता है।
    • प्रमुख लाभार्थी: केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी लाभार्थी रही, उसके बाद कॉन्ग्रेस, भारत राष्ट्र समिति (BRS) तथा YSR कॉन्ग्रेस का स्थान रहा।
    • चुनावी ट्रस्टों की स्थिति : भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त 15 से अधिक चुनावी ट्रस्टों में से, इस अवधि के दौरान केवल पाँच ट्रस्टों को, जिनमें PET भी शामिल है, को दान प्राप्त हुआ।
  • निहितार्थ: 
    • तुलनात्मक विश्लेषण: चुनावी बॉण्ड के विपरीत, जिसने वर्ष 2018 से वर्ष 2023 के बीच गुमनाम दान में 12,000 करोड़ रुपए दिये, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया  मामले वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने, उन्हें असंवैधानिक घोषित करते हुए राजनीतिक फंडिंग को चुनावी ट्रस्टों की ओर
      • इस बदलाव ने दानकर्त्ता की पहचान, राशि और प्राप्तकर्त्ता पक्षों का खुलासा करके पारदर्शिता में वृद्धि की है, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट जैसे ट्रस्टों को फैसले के बाद वित्त वर्ष 24 के उनके दान का 74% (1,075.7 करोड़ रुपए में से 797.1 करोड़ रुपए) प्राप्त हुए।
    • आर्थिक आयाम: चुनावी ट्रस्ट बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट फंड को राजनीतिक प्रणालियों में प्रवाहित करते हैं, जिससे पार्टी के वित्त पर कॉर्पोरेट प्रभाव मज़बूत होता है।
      • प्रूडेंट एवं ट्रायम्फ जैसे कुछ ट्रस्टों का प्रभुत्व शीर्ष दानदाताओं के बीच राजनीतिक फंडिंग के केंद्रीकरण को उजागर करता है।स्थानांतरित कर दिया है।

चुनावी ट्रस्ट क्या हैं?

  • चुनावी ट्रस्ट के बारे में; वर्ष 2013 में शुरू किये गए चुनावी ट्रस्ट गैर-लाभकारी संस्थाएँ हैं जो दानदाताओं से धन एकत्र करने और उन्हें राजनीतिक दलों को वितरित करने के लिये स्थापित की गई हैं।
  • कानूनी ढाँचा: इन ट्रस्टों को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत विनियमित किया जाता है । इस अधिनियम की धारा 25 (वर्तमान में नए कंपनी अधिनियम, 2013 में धारा 8 ) किसी भी कंपनी को इस योजना के तहत चुनावी ट्रस्ट स्थापित करने की अनुमति देती है।
  • दान के लिये पात्रता: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 17CA चुनावी ट्रस्टों को निम्नलिखित से दान की अनुमति देती है:
    • भारतीय नागरिक, भारत में पंजीकृत कंपनियाँ, फर्म, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), या भारत में रहने वाले व्यक्तियों के संघ।
  •  दानदाताओं को अंशदान करते समय अपना पैन (निवासियों के लिये) या पासपोर्ट नंबर (NRIs के लिये) देना आवश्यक है।
  • राजनीतिक दलों को दान: चुनावी ट्रस्टों को एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त धनराशि का कम से कम 95% उन पात्र राजनीतिक दलों को दान करना होगा जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत पंजीकृत हैं।
  • पंजीकरण एवं नवीकरण: चुनावी ट्रस्टों को अपना पंजीकरण और संचालन जारी रखने के लिये प्रत्येक तीन वित्तीय वर्षों में नवीकरण के लिये आवेदन करना आवश्यक है।
  • चुनावी बॉण्ड तथा चुनावी ट्रस्ट के बीच मुख्य अंतर: 

विशेषता

            चुनावी बॉण्ड 

          चुनावी ट्रस्ट

विनियमन

मुख्य रूप से RBI, SBI और चुनाव आयोग द्वारा विनियमित।

कंपनी अधिनियम द्वारा विनियमित, चुनाव आयोग एवं आयकर विभाग द्वारा निगरानी।

उद्देश्य

इसका उद्देश्य दानकर्त्ता की गुमनामी को बनाए रखते हुए दान को सुव्यवस्थित करना है।

दान को एकत्रित करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ।

कर लाभ

दानकर्ता धारा 80 GGC के अंतर्गत कटौती का लाभ उठा सकते हैं।

ट्रस्ट के माध्यम से दानदाताओं को कर में छूट मिलती है ।

परिचालन तंत्र

दान बॉण्ड के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों को दिया जाता है।

ट्रस्ट धन एकत्र करते हैं और उसे राजनीतिक दलों में वितरित करते हैं।

दाता प्रकटीकरण

दानदाताओं की पहचान गुप्त रखी गयी है।

दानदाताओं की पहचान सार्वजनिक रूप से उजागर की जाती है।

पारदर्शिता

दानदाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं की गुमनामी; अघोषित कॉर्पोरेट प्रभाव की चिंता।

दानदाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं  के विवरण का जनता के समक्ष पूर्ण खुलासा।

चुनावी बॉण्ड योजना क्या है?

  • परिचय : 2018 में शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना, वचन पत्र के समान एक धन साधन है, जो भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा खरीद के लिये उपलब्ध है ।
    • बॉण्ड को केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों द्वारा निर्दिष्ट खाते में ही भुनाया जा सकता है।
    • बॉण्ड खरीदने वाला व्यक्ति या तो अकेले या दूसरों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
  • उद्देश्य : प्राथमिक लक्ष्य चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करना था, सरकार इसे डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते राष्ट्र के लिये एक सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही थी।
  • योजना में संशोधन: वर्ष 2022 में योजना में संशोधन करके राज्य विधान सभा चुनावों के वर्षों के दौरान चुनावी बॉण्ड की खरीद के लिये अतिरिक्त 15 दिन की अवधि की शुरुआत की गई।
    • चुनावी बॉन्ड जारी होने के 15 दिन तक वैध होते हैं। अगर उस समय के भीतर जमा नहीं किया जाता है, तो उनका प्रयोग नहीं किया जा सकता। अगर राजनीतिक दल वैधता अवधि के भीतर जमा कर देता है, तो बॉन्ड उसी दिन उनके खाते में जमा हो जाता है।
    • केवल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने पिछले आम चुनाव (या तो लोकसभा या राज्य विधानसभा) में कम से कम 1% वोट प्राप्त किये हों, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।
  • असंवैधानिक घोषित: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ, 2024 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, इस योजना की अनुमत गुमनामी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा गारंटीकृत ज्ञान के मूल अधिकार का उल्लंघन करती है।

भारत में चुनावी वित्तपोषण से संबंधित सिफारिशें क्या हैं?

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति, 1998: कम वित्तीय संसाधनों वाले दलों के लिये समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु राज्य प्रायोजित चुनावों के विचार का समर्थन किया।
  • अनुशंसित सीमाएँ:
    • राज्य निधि केवल राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को आवंटित की जाएगी, जिन्हें आवंटित चुनाव चिन्ह प्राप्त होंगे, स्वतंत्र उम्मीदवारों को नहीं।
    • प्रारंभ में, राज्य द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिये, तथा मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों एवं उनके उम्मीदवारों को कुछ सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
    • आर्थिक बाधाओं को स्वीकार किया गया तथा पूर्ण राज्य वित्त पोषण के स्थान पर आंशिक वित्त पोषण की वकालत की गई।
  • विधि आयोग, 1999: चुनावों के लिये संपूर्ण राज्य वित्तपोषण को वांछनीय बताया गया, बशर्ते कि राजनीतिक दलों को अन्य स्रोतों से धन प्राप्त करने पर प्रतिबन्ध हो।
    • आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसमें राजनीतिक दलों के खातों के रखरखाव, लेखापरीक्षा एवं प्रकाशन के लिये धारा 78A को शामिल किया गया, तथा अनुपालन न करने पर दंड का प्रावधान किया गया।
  • चुनाव आयोग की सिफारिशें: चुनाव आयोग की वर्ष 2004 की रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि राजनीतिक दलों को अपने खातों को वार्षिक रूप से प्रकाशित करना आवश्यक है, ताकि सामान्य जनता और संबंधित संस्थाओं द्वारा उनकी जाँच की जा सके।
    • सटीकता सुनिश्चित करते हुए लेखापरीक्षित खातों को सार्वजनिक किया जाना चाहिये, तथा लेखापरीक्षा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा अनुमोदित फर्मों द्वारा की जानी चाहिये।

भारत में चुनावी फंडिंग से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • पारदर्शिता का मुद्दा: चुनावी बॉन्ड का उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना था, लेकिन दानदाताओं की गुमनामी इसे कमज़ोर करती है, विशेष रूप से जनता और विपक्ष के लिये। चुनावी बॉन्ड में पारदर्शिता का मुद्दा सत्तारूढ़ पार्टी को दानदाताओं की जानकारी में हेरफेर करने की अनुमति देता है, जिससे चुनावों में समझौता होता है।
    • सत्तारूढ़ पार्टी SBI के माध्यम से दानदाताओं के विवरण तक पहुँच सकती है, जिससे गैर-सहायक कंपनियों को हानि पहुँच सकता है ।
  • लोकतंत्र पर प्रभाव: मतदाता दान के स्रोतों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे सूचित विकल्प बनाने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। चुनावी बॉण्ड नागरिकों के राजनीतिक दान के बारे में जानने के अधिकार को प्रतिबंधित करते हैं, जिससे सहभागी लोकतंत्र प्रभावित होता है।
  • क्रोनी कैपिटलिज्म: दान की सीमा (पिछले 3 वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का 7.5%) को हटाने से राजनीति पर कॉर्पोरेट प्रभाव के लिये द्वार खुल जाते हैं, जिससे क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा मिलता है।
    • क्रोनी कैपिटलिज्म एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें व्यापारिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध होते हैं।
  • फंडिंग में असंतुलन: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) रिपोर्ट, 2023 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राष्ट्रीय दल, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल, चुनावी बॉण्ड दान पर हावी हैं, जिससे असमान फंडिंग परिदृश्य बनता है। 
    • चुनावी बॉण्ड से पता चलता है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र से अनुपातहीन दान प्राप्त हुआ है, जिससे सत्तारूढ़ पार्टी की शक्ति मज़बूत हुई है। 

आगे की राह 

  • पारदर्शिता एवं गुमनामी के बीच संतुलन: सबसे प्रमुख प्रतिक्रियाओं में से एक पारदर्शिता एवं गुमनामी में वैध सार्वजनिक हितों के बीच संतुलन बनाना है। कई अधिकार क्षेत्र छोटे दानदाताओं के लिये गुमनामी की अनुमति देकर इस संतुलन को बनाए रखते हैं, जबकि बड़े दान के लिये खुलासे की आवश्यकता होती है।
    • ब्रिटेन में, किसी पार्टी को एक कैलेंडर वर्ष में एक ही स्रोत से प्राप्त कुल 7,500 पाउंड से अधिक दान की रिपोर्ट देनी होती है। 
    • जर्मनी में यह सीमा 10,000 यूरो है।
  • दान का विनियमन: देशों को बड़े दानदाताओं के प्रभुत्व से बचने के लिये दान को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये । क्योंकि सीमाएँ चुनावों में वित्तीय हथियारों की होड़ को रोकती हैं। 
    • चुनावी ट्रस्ट यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि दान सीमा के भीतर रहे तथा उसका उचित आवंटन हो।
  • राजनीतिक दलों के लिये सार्वजनिक वित्तपोषण: सार्वजनिक वित्तपोषण पार्टी के प्रदर्शन पर आधारित होता है, जिसके प्रकटीकरण से पारदर्शिता सुनिश्चित होती है, जबकि गुमनामी से छोटे दानदाताओं की सुरक्षा होती है। 
  • राष्ट्रीय चुनाव कोष: एक राष्ट्रीय कोष सभी दाताओं से दान एकत्र कर सकता है और उसे राजनीतिक दलों को उनके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर वितरित कर सकता है। 
    • इस दृष्टिकोण से दाताओं के विरुद्ध संभावित प्रतिशोध की चिंताओं का समाधान हो सकेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: इलेक्टोरल बॉण्ड और इलेक्टोरल ट्रस्ट के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए पारदर्शिता को बढ़ावा देने में इलेक्टोरल ट्रस्टों की भूमिका की विवेचना कीजिये और निर्वाचकीय जवाबदेही और नियामक निगरानी बढ़ाने के उपायों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के संदर्भ में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनः परिभाषित करता है।” चर्चा कीजिये। (2018)