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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और यूरोप: रणनीतिक साझेदारी का एक नया युग

  • 13 Jul 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 12/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘What India can gain from Europe’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत-यूरोप संबंधों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

ईयू-भारत शिखर सम्मेलन, सतत् विकास, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन, आसियान, स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ, राफेल जेट, इसरो-CNES उपग्रह समूह, यूरोपीय ग्रीन डील, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, एक ग्रह शिखर सम्मेलन, हिंद महासागर क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत के लिये यूरोप का महत्त्व, यूरोपीय सुरक्षा के साथ भारत की भागीदारी के लिये चुनौतियाँ

भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ यूरोपीय सुरक्षा के साथ भारत की संलग्नता को नवीन रूप देने का एक अच्छा क्षण हो सकता है। भारत और फ्राँस के बीच रक्षा सहयोग इस सदी में यूरेशियाई सुरक्षा में योगदान दे सकता है। भारतीय प्रधानमंत्री की फ्राँस यात्रा से कई नए समझौते संपन्न होने (विशेष रूप से रक्षा एवं अंतरिक्ष क्षेत्र में) और द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को उच्च स्तर तक ले जाने की उम्मीद है। यह यात्रा महज इस बारे में नहीं है कि फ्राँस से कौन-सी उन्नत प्रौद्योगिकियाँ और हथियार प्राप्त हो सकते हैं, यह एक ऐसे विषय को भी उज़ागर करती है जिस पर प्रायः चर्चा नहीं होती है उदाहरण के लिये, भारत फ्राँस और यूरोप के लिये क्या कर सकता है पर चर्चा होनी चाहिये। 

यूरोपीय सुरक्षा में भारत का योगदान क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • ऐतिहासिक योगदान: 
    • भारत ने दो विश्व युद्धों के दौरान यूरोप में शांति स्थापित करने में मदद की है, जब लाखों भारतीय सैनिक मित्र राष्ट्रों के लिये लड़े थे और शहीद हुए थे। 
  • आर्थिक हित: 
    • यूरोप की स्थिरता और समृद्धि में भारत की भी एक हिस्सेदारी है, जो एक प्रमुख व्यापार एवं निवेश भागीदार, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार का स्रोत और एक सहयोगी लोकतंत्र है। 
  • सुरक्षा संबंधी चिंता: 
    • भारत यूक्रेन में ज़ारी युद्ध के समाधान में रुचि रखता है, जो एशियाई सुरक्षा और वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। 
  • राजनयिक भूमिका: 
    • भारत के पास विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर रूस और पश्चिम के साथ-साथ चीन और यूरोप के बीच की दूरियों को कम करने में रचनात्मक भूमिका निभाने का अवसर है। 
  • रणनीतिक भागीदारी: 
    • भारत में अपने रक्षा औद्योगिक आधार के आधुनिकीकरण, अपनी समुद्री निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा एवं जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिये फ्राँस और अन्य यूरोपीय देशों के साथ सहयोग करने की क्षमता है। 

भारत के लिये यूरोप का क्या महत्त्व है? 

  • रोज़गार: 
    • यूरोपीय संघ (EU) भारत में शांति को बढ़ावा देने, रोज़गार सृजित करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और सतत् विकास की संवृद्धि के लिये इसके साथ कार्यरत है। 
  • वित्तीय सहायता: 
    • भारत के निम्न-आय देश से मध्यम-आय देश के रूप में आगे बढ़ने के साथ (OECD 2014 के अनुसार) यूरोपीय संघ और भारत का सहयोग भी पारंपरिक वित्तीय सहायता की श्रेणी से आगे बढ़कर सामान्य प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली साझेदारी के रूप में विकसित हुआ है। 
  • व्यापार: 
    • यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार (अमेरिका के बाद) है और भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार भी है। भारत EU का 10वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका EU के कुल माल व्यापार में 2% योगदान है। 
    • यूरोपीय संघ और भारत के बीच सेवाओं का व्यापार वर्ष 2021 में 40 बिलियन यूरो तक पहुँच गया। 
  • निर्यात: 
    • वर्ष 2021-22 में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को भारत का व्यापारिक निर्यात लगभग 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जबकि आयात 51.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। 
    • वर्ष 2022-23 में कुल निर्यात 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जबकि वर्ष 2021-22 में आयात 54.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। 
  • अन्य द्विपक्षीय तंत्र: 
    • वर्ष 2017 के EU-भारत शिखर सम्मेलन में नेताओं ने सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा के कार्यान्वयन पर सहयोग को सुदृढ़ करने के अपने इरादे को दोहराया और EU-भारत विकास वार्ता की निरंतरता की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति व्यक्त की। 

यूरोपीय सुरक्षा के साथ भारत की संलग्नता के लिये प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • ऐतिहासिक निर्भरता: 
    • रक्षा संबंधी आवश्यकताओं के लिये रूस पर भारत की ऐतिहासिक निर्भरता और क्रीमिया एवं यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों की आलोचना करने की अनिच्छा। 
  • संस्थागत अंतराल: 
    • उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ( NATO), पर्मानेंट स्ट्रक्चर्ड कॉर्पोरेशन (PESCO) और क्लब डी बर्न (Club de Berne) जैसे यूरोपीय सुरक्षा संगठनों के साथ भारत के संस्थागत संबंधों का अभाव। 
  • अवधारणात्मक अंतराल: 
    • एशियाई सुरक्षा मामलों में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और आसियान की तुलना में यूरोप को द्वितीयक स्तर के खिलाड़ी के रूप में देखने की भारत की धारणा। 
  • संसाधन संबंधी बाधा: 
    • अपने पड़ोस में और उससे परे प्रतिस्पर्द्धी प्राथमिकताओं के बीच यूरोप में अपना प्रभाव और उपस्थिति दर्शाने के लिये भारत के पास सीमित संसाधन एवं क्षमताएँ मौजूद हैं। 

यूरोप के साथ भारत की संलग्नता में निहित अवसर 

  • रणनीतिक अभिसरण: 
    • आतंकवाद से मुकाबला, समुद्री सुरक्षा, अंतरिक्ष सहयोग, रक्षा प्रौद्योगिकी और बहुपक्षवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर फ्राँस के साथ भारत का रणनीतिक अभिसरण बढ़ रहा है। 
  • सांस्कृतिक सहयोग: 
    • भारत-फ्राँस संस्कृति वर्ष (Indo-French Year of Culture), 2023-2024 में भारत की भागीदारी, जो दोनों देशों की सांस्कृतिक विविधता और रचनात्मकता को प्रदर्शित करेगी तथा लोगों के परस्पर संबंधों को बढ़ावा देगी। 
  • क्षेत्रीय दृष्टिकोण: 
    • स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संबंध में यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण के साथ भारत का संरेखण, जिसे वर्ष 2021 में जारी एक रणनीति दस्तावेज़ में व्यक्त किया गया था। 
  • प्रमुख परियोजनाएँ: 
  • हरित सहयोग: 

भारत और फ्राँस द्वारा हाल की संयुक्त पहलें 

  • लॉजिस्टिक संबंधी समझौता
    • दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं के बीच वर्ष 2018 में एक परस्पर लॉजिस्टिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया गया जो उन्हें ईंधन भरने और पुनःपूर्ति के लिये एक-दूसरे के सैन्य अड्डों का उपयोग करने की अनुमति देता है। 
  • संयुक्त अभ्यास: 
    • दोनों देशों की नौ सेनाओं (वरुण), थल सेनाओं (शक्ति), वायु सेनाओं (गरुड़) और विशेष बलों (शक्ति) के बीच नियमित संयुक्त अभ्यास का आयोजन किया जाता है।  
  • समुद्री संवाद: 
    • जनवरी 2019 में द्विपक्षीय समुद्री सुरक्षा वार्ता का आरंभ हुआ जिसमें नौवहन की स्वतंत्रता, समुद्री डोमेन के बारे में जागरूकता, समुद्री डकैती विरोधी संचालन और क्षमता निर्माण जैसे मुद्दे शामिल हैं। 
  • साइबर सुरक्षा कार्यसमूह: 
    • वर्ष 2019 में साइबर सुरक्षा पर एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य साइबर प्रत्यास्थता, डिजिटल शासन, डेटा सुरक्षा और साइबर अपराध की रोकथाम पर सहयोग बढ़ाना है। 
  • रक्षा संवाद: 
    • अक्तूबर 2019 में मंत्री स्तर पर एक वार्षिक रक्षा संवाद की शुरुआत की गई जो उनके रक्षा सहयोग को रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

आगे की राह  

  • जर्मनी के साथ सहयोग के संभावित क्षेत्र: 
    • जर्मनी जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है। 
    • भारत और जर्मनी के लिये रूस के साथ अपने संबंधों को सीमित करने की आवश्यकता को देखते हुए दोनों देशों के नेता समाधान की तलाश के लिये और इस जटिल स्थिति से निपटने के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं। 
    • भारत को जर्मन निवेश के लिये स्वयं को एक आकर्षक गंतव्य के रूप में परिणत करने को प्राथमिकता देनी चाहिये, विशेष रूप से जब जर्मनी रूसी और चीनी बाज़ारों में अपना जोखिम कम करना चाहता है। 
  • फ्राँस के साथ सहयोग के संभावित क्षेत्र: 
    • निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ घरेलू हथियार उत्पादन का विस्तार करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में फ्राँस महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
    • फ्राँस भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विशेष रूप से दोनों देशों द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग के लिये स्थापित संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण के आलोक में, एक आदर्श भागीदार है। 
    • दोनों देशों के विमर्श में कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर-सुरक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहित सहयोग के अन्य उभरते क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिये। 
  • नॉर्डिक देशों को संलग्न करना: 
    • अपनी मामूली जनसंख्या के बावजूद पाँच नॉर्डिक देशों (डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन) का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 1.8 ट्रिलियन डॉलर है, जो रूस से अधिक है। 
    • हाल के वर्षों में भारत ने प्रत्येक यूरोपीय राष्ट्र द्वारा उसके विकास में दिये जा सकने वाले महत्त्वपूर्ण योगदान को चिह्नित किया है। 
      • लक्ज़मबर्ग पर्याप्त वित्तीय शक्ति रखता है, नॉर्वे के पास प्रभावशाली समुद्री प्रौद्योगिकियाँ हैं, एस्टोनिया साइबर शक्ति में उत्कृष्ट है, चेक गणराज्य ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स में विशेषज्ञता रखता है, पुर्तगाल लुसोफोन वर्ल्ड के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है और स्लोवेनिया कोपर में अवस्थित अपने एड्रियाटिक समुद्री बंदरगाह के माध्यम से यूरोप तक वाणिज्यिक पहुँच प्रदान करता है। 
    • भारत को डेनमार्क के साथ एक अद्वितीय हरित रणनीतिक साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और सहयोग की अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिये नॉर्डिक देशों के साथ आगे बढ़ना चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न: भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ के संदर्भ में यूरोपीय सुरक्षा के साथ भारत की संलग्नता के महत्त्व की चर्चा कीजिये। इस संबंध में भारत के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ और अवसर मौजूद हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)

  1. यूरोपीय संघ का ‘स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी एंड ग्रोथ पैक्ट)’ ऐसी संधि है, जो: 
  2. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है। 
  3. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है। 
  4. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है।

उपर्युक्त में से कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक 
(b) केवल दो
(c) सभी तीन 
(d) कोई भी नही

उत्तर (a)

व्याख्या:  

  • स्थिरता एवं समृद्धि समझौता एक राजनीतिक समझौता है जो यूरोपीय मौद्रिक संघ (EMU) के सदस्य राज्यों के राजकोषीय घाटे तथा सार्वजनिक ऋण की सीमा निर्धारित करता है। अतः कथन 1 सही है।
  • इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य किसी सदस्य राज्य की गैर-जिम्मेदार बजटीय नीतियों द्वारा पूरे यूरो क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता को असंतुलित होने से रोकने तथा EMU के अंतर्गत सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।
  • यूरोपीय संघ स्थिरता एवं समृद्धि समझौता आधारिक संरचना सुविधाओं और प्रौद्योगिकियों को साझा करने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं करता है। अतः कथन 2 और 3 सही नहीं हैं।
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