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जैव विविधता और पर्यावरण

यूरोपीय संघ ग्रीन डील

  • 21 Dec 2019
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

EU, पेरिस जलवायु समझौता, यूरोपीय संघ ग्रीन डील, जलवायु तटस्थता, क्योटो प्रोटोकॉल

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union- EU) की वार्षिक जलवायु वार्ता (Annual Climate Talk) स्पेन की राजधानी मैड्रिड में एक निराशाजनक परिणाम के साथ समाप्त हुई।

  • यह वार्ता पेरिस जलवायु समझौते (Paris Climate Agreement) के तहत स्थापित किये जाने वाले एक नए कार्बन बाज़ार के नियमों को परिभाषित करने में विफल रही।
  • वैज्ञानिक आकलन के मद्देनजर वर्तमान में जलवायु परिवर्तन से निपटने के मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।
  • यूरोपीय संघ (जिसमें 28 सदस्य देश हैं) विश्व में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद ग्रीनहाउस गैसों के तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
  • यूरोपीय संघ द्वारा जलवायु परिवर्तन पर अतिरिक्त उपायों की एक घोषणा, यूरोपीय संघ ग्रीन डील (European Union Green Deal) की गई थी।

यूरोपीय संघ ग्रीन डील के बारे में:

दो प्रमुख फैसले यूरोपीय ग्रीन डील के केंद्र में हैं।

  • जलवायु तटस्थता (Climate Neutrality)
    • यूरोपीय संघ ने वर्ष 2050 तक ‘जलवायु तटस्थ’ बनने हेतु सभी सदस्य देशों के लिये एक कानून लाने का वादा किया है।
    • जलवायु तटस्थता जिसे सामान्यतः शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की स्थिति के रूप में व्यक्त किया जाता है, देश के कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करती है। इसके अंतर्गत वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों का अवशोषण और निष्कासन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • वनों को बढ़ाकर अधिक कार्बन सिंक (Carbon Sink) द्वारा अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है, जबकि कार्बन की मात्रा हटाने में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (Carbon Capture and Storage) जैसी प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
    • वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पिछले कुछ समय से देशों द्वारा मांग की जा रही थी । संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सितंबर में महासभा सत्र के मौके पर एक विशेष बैठक बुलाई थी ताकि देशों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित की जा सके। इसके परिणामस्वरूप 60 से अधिक देशों ने अपने जलवायु कार्यवाही (Climate Action) या वर्ष 2050 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सहमति व्यक्त की थी, लेकिन ये सभी अपेक्षाकृत छोटे उत्सर्जक देश हैं।
    • यूरोपीय संघ वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थता लक्ष्य की प्राप्ति पर सहमत होने वाला पहला बड़ा उत्सर्जक है। उसने कहा है कि वह लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये यूरोपीय संघ में अगले वर्ष मार्च तक एक प्रस्ताव लाएगा।
  • 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्य में वृद्धि:
    • पेरिस जलवायु समझौते के तहत घोषित अपनी जलवायु कार्ययोजना में यूरोपीय संघ वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन में 40% की कमी करने के लिये प्रतिबद्ध है। अब इस कमी को कम-से-कम 50% तक बढ़ाने और 55% की दिशा में काम करने का वादा किया गया है।
    • इसके विपरीत अन्य विकसित देशों द्वारा कम महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन लक्ष्य घोषित किये गए हैं। उदाहरण के लिये अमेरिका ने वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 26-28% की कटौती करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन पेरिस जलवायु समझौते से हटने के बाद अब वह उस लक्ष्य को पूरा करने के लिये भी बाध्य नहीं है।
    • यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये वर्ष 1990 को आधार को बनाने के विपरीत अन्य सभी विकसित देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के अनिवार्य लक्ष्य के तहत अपने आधार वर्ष को वर्ष 2005 या पेरिस जलवायु समझौते के तहत स्थानांतरित कर दिया है।

यूरोपीय संघ ग्रीन डील हेतु किये गए प्रयास:

  • ग्रीन डील में इन दो समग्र लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये क्षेत्रीय योजनाएँ शामिल हैं और नीतिगत बदलावों के प्रस्ताव की भी आवश्यकता होती है।
  • उदाहरणस्वरूप इसमें वर्ष 2030 तक इस्पात उद्योग को कार्बन-मुक्त बनाने, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों के लिये नई रणनीति, रेलवे के प्रबंधन में संशोधन तथा उन्हें अधिक कुशल बनाने एवं वाहनों हेतु अधिक कठोर वायु प्रदूषण उत्सर्जन मानकों का प्रस्ताव है।

कार्बन उत्सर्जन पर अन्य देशों की स्थिति:

  • यूरोपीय संघ उत्सर्जन को कम करने के लिये अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर कार्य कर रहा है। उत्सर्जन में कमी के संदर्भ में यह संभवतः यूरोपीय संघ के बाहर किसी भी विकसित देश के विपरीत वर्ष 2020 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रगति पर है।
  • कनाडा जो क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर चला गया, ने पिछले वर्ष बताया कि वर्ष 2005 के उत्सर्जन से इसका उत्सर्जन 4% कम था, लेकिन यह वर्ष 1990 की तुलना में लगभग 16% अतिरिक्त था।

कार्बन उत्सर्जन से संबंधित अन्य मुद्दे:

  • हालाँकि यूरोपीय संघ भी अपने सभी जलवायु दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद के लिये विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्त और प्रौद्योगिकी स्थानांतरण करने का प्रावधान किया गया है।
  • इस प्रावधान के तहत विकासशील देशों की अनुकूलन ज़रूरतों के लिये यूरोपीय संघ से वित्त का सीमित प्रवाह देखा गया है, साथ ही नई जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के पेटेंट और स्वामित्व से संबंधित नियमों में भी परिवर्तन किया गया है।
  • यही कारण है कि वर्ष 2020 के पूर्व की अवधि में भारत और चीन जैसे विकासशील देश विकसित देशों के अप्रभावित दायित्वों के मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं, जिनको क्योटो प्रोटोकॉल द्वारा कवर किया गया है।

समझौते की घोषणा करते हुए यूरोपीय संघ ने अन्य देशों से भी इस कार्य के प्रति अपनी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का आग्रह किया क्योंकि सभी देशों के साझे प्रयास के बिना जलवायु परिवर्तन को रोक पाना संभव नही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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