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भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाएँ

  • 25 Oct 2024
  • 25 min read

प्रिलिम्स के लिये:

DLI योजना, भारत में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का विकास, सेमीकंडक्टर फैब, सिस्टम ऑन चिप ('SoC), भारत सेमीकंडक्टर मिशन

मेन्स के लिये:

सेमीकंडक्टर निर्माण का महत्त्व, भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग, भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM), मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने अपनी सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की ओर ध्यान केंद्रित किया है और इस क्रम में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुजरात में टाटा समूह और ताइवान की पावरचिप के नेतृत्व वाले 11 बिलियन डॉलर के चिप निर्माण संयंत्र को मंजूरी दी है।

भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग की वर्तमान स्थिति और अवसर क्या हैं? 

  • वर्तमान स्थिति:
    • बाज़ार का आकार: इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत का सेमीकंडक्टर बाज़ार मूल्य 45 बिलियन डॉलर था।
    • विकास अनुमान: उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सेमीकंडक्टर बाज़ार वर्ष 2030 तक 13% की CAGR के साथ तेज़ी से बढ़कर 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाने का अनुमान है।
  • अवसर: 
    • विशाल घरेलू बाज़ार: विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाली अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के पास सेमीकंडक्टर के लिये खपत का काफी बड़ा घरेलू बाज़ार है। 
      • भारत वर्ष 2024 की पहली छमाही में चीन के बाद 5G स्मार्टफोन का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार बनकर उभरा है, जिसके भविष्य में और बढ़ने की उम्मीद है।
    • सरकारी सहायता और प्रोत्साहन: सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम को मंज़ूरी दी है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकाइयों और असेम्बलिंग, परीक्षण, अंकन और पैकेजिंग सुविधाओं की स्थापना, इस उद्योग के लिये एक मज़बूत आधार तैयार कर रही है।
      • रणनीतिक साझेदारियाँ: वैश्विक सेमीकंडक्टर हितधारकों के साथ सहयोग और अमेरिका तथा जापान जैसे देशों के साथ प्रौद्योगिकी साझेदारियाँ भारत की क्षमताओं को बढ़ा रही हैं जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिल रहा है।

सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदम कौन से हैं?

भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM)

  • परिचय:
    • ISM को इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) के तत्वावधान में 76,000 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ वर्ष 2021 में शुरू किया गया था।
    • यह देश में टिकाऊ सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है।
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले विनिर्माण और डिज़ाइन पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले उद्योग के वैश्विक विशेषज्ञों के नेतृत्व में ISM योजनाओं के कुशल, सुसंगत और सुचारू कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।

भारत में सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चार योजनाएँ शुरू की गई हैं

  • 'भारत में सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना के लिये संशोधित योजना': 
    • इसके तहत सिलिकॉन CMOS-आधारित सेमीकंडक्टर फैब्स हेतु 50% राजकोषीय सहायता प्रदान करना शामिल है, जिसका उद्देश्य बड़े निवेश को आकर्षित करना तथा देश के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र एवं मूल्य शृंखला को मज़बूत करना है।
  • 'भारत में डिस्प्ले फ़ैब की स्थापना के लिये संशोधित योजना':
    • इसके तहत TFT LCD और AMOLED डिस्प्ले पैनल के विनिर्माण हेतु निवेश आकर्षित करने के क्रम में 50% राजकोषीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे देश के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूती मिलेगी।
  • 'भारत में कम्पाउंड सेमीकंडक्टर और ATMP सुविधाएँ स्थापित करने के लिये संशोधित योजना': 
    • 'भारत में कम्पाउंड सेमीकंडक्टर और ATMP सुविधाएँ स्थापित करने के लिये संशोधित योजना' के तहत कम्पाउंड सेमीकंडक्टर, सिलिकॉन फोटोनिक्स, सेंसर्स और डिस्क्रीट सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना पर पूंजीगत व्यय के लिये 50% राजकोषीय सहायता प्रदान करना शामिल है।
  • 'सेमीकॉन इंडिया फ्यूचर डिज़ाइन: डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम':
    • 'सेमीकॉन इंडिया फ्यूचर डिज़ाइन: डिज़ाइन लिंक्ड इन्सेंटिव स्कीम के तहत सेमीकंडक्टर डिज़ाइन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें व्यय पर 50% तक (₹15 करोड़ की सीमा) और पाँच वर्षों में शुद्ध बिक्री कारोबार पर 6%-4% (₹30 करोड़ की सीमा) प्रोत्साहन प्रदान किया जाना शामिल है।
  • इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्द्धचालकों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (SPECS): इस योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्द्धचालकों के लिये भारत के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना है। वर्ष 2018-19 में 20.8 बिलियन डॉलर तक पहुँचने वाले और वर्ष 2025 तक 200 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद वाले बढ़ते बाज़ार के साथ भारत कुशल श्रम, बेहतर बुनियादी ढाँचे और सरकारी पहलों द्वारा समर्थित वैश्विक केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। इस योजना से घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा तथा इस क्षेत्र में रोज़गार सृजित होंगे।

  • बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हेतु उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI): बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हेतु PLI द्वारा घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के साथ मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक घटकों और ATMP इकाइयों सहित इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन को सुलभ बनाना शामिल है।

  • IT हार्डवेयर के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI): IT हार्डवेयर के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और मूल्य शृंखला में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन को सुलभ बनाने पर केंद्रित है। इस योजना का उद्देश्य बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिये मौजूदा स्थापित क्षमता का उपयोग करने के क्रम में कंपनियों को प्रोत्साहित करना है।

  • संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC 2.0) योजना: EMC 2.0 योजना का उद्देश्य भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिये बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखला दक्षता को बढ़ावा देना और रसद लागत को कम करना है। यह निर्माताओं के लिये गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे एवं सामान्य सुविधाओं के निर्माण हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने पर केंद्रित है।

सेमीकंडक्टर निर्माण का रणनीतिक महत्त्व क्या है?

  • आर्थिक विकास: सेमीकंडक्टर उद्योग के निर्माण से पर्याप्त निवेश आकर्षित हो सकता है, उच्च मूल्य वाले रोज़गार सृजित हो सकते हैं तथा विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार के वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में 10% हिस्सेदारी प्राप्त करना है।
    • इसके अलावा घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन डाउनस्ट्रीम उद्योगों की एक विस्तृत शृंखला के लिये आवश्यक है, जिससे आर्थिक लचीलेपन और रणनीतिक हितों को समर्थन मिलता है।
  • तकनीकी संप्रभुता और आत्मनिर्भरता: घरेलू सेमीकंडक्टर निर्माण क्षमताओं का विकास करने से विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर भारत की निर्भरता कम होगी, महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों पर अधिक नियंत्रण सुनिश्चित होगा और राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ेगी। 
    • यह तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के भारत के रणनीतिक लक्ष्यों के अनुरूप है और "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत अभियान" जैसी पहलों की समर्थक है।
    • इसके अलावा भारत अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का लगभग 65-70% आयात (मुख्य रूप से चीन से) करता है। स्थानीय विनिर्माण क्षमता स्थापित करने से इस निर्भरता को कम किया जा सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को उन्नत करना: सेमीकंडक्टर को अर्थव्यवस्था का "न्यू फ्यूल" माना जाता है इसलिये इस उद्योग में एक प्रमुख हितधारक के रूप में भारत का उदय इसकी वैश्विक स्थिति को बेहतर कर सकता है और इसे प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • तकनीकी उन्नति को बढ़ावा देना: सेमीकंडक्टर विनिर्माण में निवेश करने से अनुसंधान और विकास को बढ़ावा मिलने के साथ देश में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। यह दीर्घकालिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
  • चौथी औद्योगिक क्रांति को अपनाना: भारत चौथी औद्योगिक क्रांति (जिसे उद्योग 4.0 के रूप में भी जाना जाता है) को अपना रहा है जिसमें सेमीकंडक्टर की प्रमुख भूमिका है। देश में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ड्रोन और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में अग्रणी बनने की क्षमता है। 
  • इन क्षेत्रों में प्रगति को सुविधाजनक बनाने, नवाचार को बढ़ावा देने और विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने के लिये एक मज़बूत सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र महत्त्वपूर्ण होगा।

वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • आपूर्ति शृंखला और अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: सेमीकंडक्टर विनिर्माण को कच्चे माल के लिये विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला स्थापित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। उद्योग में आवश्यक अवसंरचना, जैसे कि क्लीनरूम और विशेष सुविधाएँ (फैब) का भी अभाव है, जो सेमीकंडक्टर निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • सेमीकंडक्टर निर्माण एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें अक्सर 500 से 1,500 चरण शामिल होते हैं, जो संदूषण से बचने के लिये क्लीनरूम में किया जाता है। इस पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने हेतु महत्त्वपूर्ण निवेश एवं तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
  • पूंजी-गहन: सेमीकंडक्टर विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिये निरंतर अनुसंधान एवं विकास व्यय के साथ-साथ पर्याप्त पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। इन परियोजनाओं का वित्तीय बोझ अक्सर कई कंपनियों के लिये चुनौतीपूर्ण होता है।
    • उच्च प्रारंभिक लागत: बुनियादी ढाँचे के अलावा, कंपनियों को उन्नत प्रौद्योगिकी, प्रतिभा और उपकरणों में निवेश करने की आवश्यकता होती है, जिससे सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये पूंजी की आवश्यकता और बढ़ जाती है।
  • प्रतिभा की कमी: सेमीकंडक्टर निर्माण के लिये चिप डिज़ाइन, निर्माण, परीक्षण और पैकेजिंग जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होती है। भारत को ऐसे ही कुछ कुशल श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ाने की उसकी क्षमता सीमित हो गई है।
    • टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को वर्ष 2027 तक 250,000-300,000 पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ेगा। 
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार प्रभुत्त्व: वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार पर कुछ ही देशों का नियंत्रण है, जिसमें ताइवान और दक्षिण कोरिया वैश्विक चिप फाउंड्री बेस का 80% हिस्सा रखते हैं। भारत को चीन और अन्य सेमीकंडक्टर हब के साथ-साथ कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
    • AI चिप्स में Nvidia का प्रभुत्व: Nvidia जैसी कंपनियाँ चिप डिज़ाइन व्यवसाय में, विशेष रूप से हाई-एंड ग्राफिक्स और एआई चिप्स में, प्रमुख हैं, जिससे भारत के लिये इस बाज़ार में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है। इसी तरह, प्रोसेसर आर्किटेक्चर डिज़ाइन में ARM का भी अच्छा-खासा बाज़ार हिस्सा है।
    • EUV प्रौद्योगिकी का एकाधिकार: उन्नत सेमीकंडक्टर विनिर्माण अत्यधिक पराबैंगनी लिथोग्राफी (EUV) प्रौद्योगिकी पर निर्भर है, जिसका उत्पादन पूरी तरह से नीदरलैंड स्थित कंपनी ASML द्वारा किया जाता है। 
      • इस महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी पर एकाधिकार भारत के लिये एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इससे उन्नत चिप्स के उत्पादन के लिये आवश्यक अत्याधुनिक उपकरणों तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: सेमीकंडक्टर उद्योग में हाइड्रोक्लोरिक एसिड, जहरीली धातुएँ और वाष्पशील विलायक जैसे खतरनाक रसायनों का बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के लिये बहुत बड़ा जोखिम पैदा करते हैं। इन पर्यावरणीय चिंताओं का प्रबंधन सेमीकंडक्टर उत्पादन में जटिलता और लागत को बढ़ाता है।

Semiconductor

भारत में सेमीकंडक्टर से संबंधित आगे की राह:

  • पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना: सेमीकंडक्टर विनिर्माण के सुचारू संचालन के लिये रसायनों, गैसों और सिलिकॉन वेफर्स जैसे कच्चे माल की स्थिर और विश्वसनीय आपूर्ति महत्त्वपूर्ण है। 
    • भारत को वैश्विक नेताओं के साथ मज़बूत साझेदारी करनी चाहिये तथा इन आवश्यक सामग्रियों तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं को समर्थन देना चाहिये।
  • प्रतिभा विकास: सेमीकंडक्टर डिज़ाइन, निर्माण और परीक्षण पर केंद्रित व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा शैक्षिक पहल विकसित करना आवश्यक है। 
    • उन्नत सेमीकंडक्टर (अर्द्धचालक) प्रौद्योगिकियों में कुशल प्रतिभाओं का समूह तैयार करने के लिये इन कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये।
    • हाल ही में, कंपनियों और सरकार ने विभिन्न कॉलेजों में आवश्यक सेमीकंडक्टर-केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करने के लिये मिलकर कार्य किया है। वर्ष 2023 में, सरकार ने घोषणा की कि सिर्फ भारत में 300 से अधिक अग्रणी संस्थान सेमीकंडक्टर विशेष पाठ्यक्रम की शुरुआत करेंगे, जो सही दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R & D): वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा के लिये भारत को अनुसंधान एवं विकास में निवेश को काफी बढ़ाना होगा। इसमें स्वदेशी उत्पाद डिज़ाइन और बौद्धिक संपदा (IP) विकास का समर्थन करना शामिल है, जो छोटी कंपनियों और स्टार्टअप को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बना सकता है। 
  • प्रोत्साहन और नीतियाँ: प्रोत्साहन और अनुकूल नीतियों के माध्यम से निरंतर सरकारी समर्थन से अधिक निवेश आकर्षित होगा। भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) और राज्य-स्तरीय पहल सही दिशा में उठाए गए कदम हैं। 
    • विभिन्न राज्यों ने भी अनुकूल नीतियों और प्रोत्साहनों के माध्यम से सेमीकंडक्टर विनिर्माण को समर्थन देने के लिये पहल शुरू की है। उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश ने उत्तर प्रदेश सेमीकंडक्टर नीति 2024 की शुरूआत की है।
      • ये राज्य स्तरीय प्रयास भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के पूरक हैं।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की भूमिका को "चिप कूटनीति "के माध्यम से मज़बूत किया जा सकता है- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देना, भारत को पूंजीगत व्यय बाधाओं को दूर करने तथा इसके विकास में तेज़ी लाने में मदद करना। 
  • वैश्विक साझेदारी: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करके, "चिप डिप्लोमेसी" भारत को पूंजीगत व्यय बाधाओं को दूर करने तथा अपने विकास को बढ़ावा देने में सहायता कर सकती है, जिससे वैश्विक सेमीकंडक्टर क्षेत्र में इसकी स्थिति मज़बूत होगी।
  • विशिष्ट प्रौद्योगिकियों पर ध्यान: भारत को MEMS (माइक्रो-इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम) और सेंसर जैसी विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो IoT, ऑटोमोटिव और दूरसंचार जैसे उद्योगों के लिये तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं। 
    • ये प्रौद्योगिकियाँ भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार के विशिष्ट क्षेत्रों में नेतृत्व करने का अवसर प्रदान करती हैं।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है। निजी कंपनियाँ, जोखिम उठाने की क्षमता और वैश्विक नेटवर्क तक पहुँच प्रदान करती हैं, जो तीव्र विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • टाटा समूह द्वारा ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (PSMC) के सहयोग से गुजरात के धोलेरा में भारत का पहला सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र का निर्माण किया जा रहा है। 
      • निजी क्षेत्र की पहलों को और अधिक बढ़ावा तथा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
  • संघर्षों के बीच अवसरों का लाभ उठाना: अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार और भू-राजनीतिक संघर्ष ने सेमीकंडक्टर परिदृश्य को नया आकार दिया है, जिससे भारत जैसे देशों के लिये सरकारी वित्तपोषित पहलों और रणनीतिक साझेदारियों, जैसे कि ताइवान की पावरचिप के साथ सहयोग, के माध्यम से उद्योग में अपनी स्थिति मज़बूत करने के अवसर पैदा हुए हैं।

निष्कर्ष

टाटा समूह के फैब्रिकेशन प्लांट जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं द्वारा समर्थित भारत के सेमीकंडक्टर उत्पादन प्रयास इसकी तकनीकी क्षमताओं में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है। यह कदम न केवल भारत की आर्थिक और रणनीतिक अनिवार्यताओं को मज़बूत करता है, बल्कि देश को वैश्विक सेमीकंडक्टर परिदृश्य में एक संभावित प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भी स्थापित करता है। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत की सेमीकंडक्टर उत्पादन महत्त्वाकांक्षाओं की क्षमता का मूल्यांकन कीजिये। घरेलू निर्माण संयंत्रों की स्थापना भारत के रणनीतिक और आर्थिक भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

Q. लेज़र प्रिंटर में निम्नलिखित में से कौन-सा एक लेज़र प्रकार प्रयुक्त होता है? (2008)

(a) डाई लेजर 
(b) गैस लेजर
(c) सेमीकंडक्टर लेजर
(d) एक्साइमर लेजर

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारत प्रकाश-वोल्टीय इकाइयों में प्रयोग में आने वाले सिलिकॉन वेफर्स का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  2. सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण भारतीय सौर ऊर्जा निगम के द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 व 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

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