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भारतीय अर्थव्यवस्था

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण की संभावनाओं को उजागर करना

  • 04 Jul 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 28/06/2023 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Electronic manufacturing in India needs rapid charging” लेख पर आधारित है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर और निर्यात-उन्मुख बनने की संभावनाओं तथा इससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और आईटी हार्डवेयर के लिये PIL योजनाएँ, इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (SPECS), संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर योजना (EMC 2.0), भारत का सेमीकंडक्टर मिशन, मेक इन इंडिया

मेन्स के लिये:

भारत एक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र के रूप में - संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ, मेक इन इंडिया कार्यक्रम और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र।

विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में भारत ने स्वयं को गतिशील कर लिया है। इस संदर्भ में, इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के क्षेत्र में प्रगति का अपना विशेष महत्त्व है। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिये दुनिया भर की कंपनियाँ भारतीय बाज़ार को अपने अगले इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण गंतव्य के रूप में देखने लगी हैं।

इस क्षेत्र की विकास क्षमता और बड़े पैमाने पर रोज़गार प्रदान कर सकने की क्षमता को समझते हुए, भारत सरकार देश के विनिर्माण क्षेत्र (इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र सहित) को समर्थन और गति प्रदान करने हेतु एक प्रमुख नीति पहल के रूप में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को उत्साहपूर्वक आगे बढ़ा रही है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का वर्तमान परिदृश्य

  • भारत के लिये खुलते अवसर:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी विनिर्माण एवं कारोबारी श्रेणी (manufactured and traded category) है, जिसका मूल्य 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। इसमें से चीन लगभग 50% से अधिक की आपूर्ति करता है।
      • हालाँकि, चीन में बढ़ती वेतन लागत (wage cost) खरीदारों को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने और जोखिम कम करने के लिये प्रेरित कर रही है, जो भारत के लिये एक अनूठा अवसर पेश कर रही है।
    • भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के लिये वैकल्पिक समाधान के प्रमुख दावेदारों में से एक है और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में अगले 3-5 वर्षों में भारत शीर्ष निर्यातक क्षेत्रों में से एक बनने की क्षमता है।
    • वित्त वर्ष 2026 तक भारत के 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है।
  • भारत का उत्पादन परिदृश्य: भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग वर्ष 2015-16 में 37.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 67.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का हो गया और भारत इसे वर्ष 2026 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर (घरेलू उत्पादन) तक ले जाने का लक्ष्य रखता है।
    • इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के विज़न दस्तावेज़ 2.0 के अनुसार - भारत इस लक्ष्य तक पहुँच सकता है, बशर्ते कि स्केलिंग की उच्च क्षमता वाले विशिष्ट उत्पाद खंडों को शॉर्टलिस्ट किया जाए और प्रोत्साहन एवं नीतिगत उपायों के माध्यम से इसे समर्थन दिया जाए।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आँकड़े तक पहुँचने के लिये 120-140 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात महत्त्वपूर्ण है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये योजनाएँ:

भारत को ‘इलेक्ट्रॉनिक्स हब’ में बदलने की राह की चुनौतियाँ

  • शुल्कों का दोधारी तलवार के रूप में कार्य करना:
    • उच्च आयात शुल्क और सख्त स्थानीयकरण मानदंड प्रायः स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये अधिरोपित किये जाते हैं। हालाँकि वे स्थानीय विनिर्माण सुनिश्चित करने में एक हद तक सफल होते हैं, लेकिन वे देश की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
      • यह बात इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में विशेष रूप से सत्य है जहाँ आपूर्ति शृंखलाएँ वैश्विक स्तर पर आपस में जुड़ी हुई हैं।
    • विनिर्माण के लिये उपयोग की जाने वाली मशीनरी और अनुसंधान एवं विकास जैसे क्षेत्रों में वियतनाम एवं चीन जैसे देशों में भारत की तुलना में अधिक अनुकूल सब्सिडी संरचनाएँ हैं।
  • घटक पारितंत्र का अभाव:
    • एक अन्य चुनौती यह है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिये आवश्यक घटकों का स्थानीय स्तर पर निर्माण करने वाली कंपनियों के एक सुदृढ़ पारितंत्र का अभाव है।
    • भारत में एक पूर्ण घटक पारितंत्र (Component Ecosystem) की अनुपस्थिति में इन घटकों को आयात करने की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप निर्माताओं के लिये लागत और समय-सीमा (lead time) बढ़ जाती है।
      • स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये (घरेलू विनिर्माताओं के योगदान सहित) एक सक्रिय नीति समर्थन का वर्तमान में अभाव प्रतीत होता है।
  • कौशल विकास:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी है। भारत को एक वैश्विक केंद्र बनने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, अनुसंधान एवं विकास और उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ एक उच्च कुशल कार्यबल विकसित करने की दिशा में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • नियामक पर्यावरण:
    • भारत में नियामक ढाँचा एवं नौकरशाही कार्यवाही जटिल और धीमी हैं।
    • नियमों को सुव्यवस्थित करने और नौकरशाही की लालफीताशाही (bureaucratic red tape) को कम करने से कारोबार सुगमता बढ़ेगी, निवेश आकर्षित होगा और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • पर्यावरणीय स्थिरता/संवहनीयता:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण प्रायः इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जो पर्यावरणीय चुनौतियाँ पेश करता है।
    • ई-अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण हेतु अनुकूल विनिर्माण प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने जैसे संवहनीय अभ्यासों के प्रभावी कार्यान्वयन का अभाव पर्यावरण के लिये इच्छित लाभ की तुलना में हानि ही अधिक पहुँचा सकता है।

भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में सुधार के लिये क्या कदम उठाये जा सकते हैं?

  • ‘स्केलेबिलिटी’ की वृद्धि करना:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण बड़े क्लस्टर्स में अधिक फलता-फूलता है जो अपेक्षित ‘इकोनॉमिज़ ऑफ़ स्केल’ प्रदान करता है। लेकिन भारत ने अपेक्षित स्केल पर अपने विनिर्माण क्लस्टर्स की परिकल्पना नहीं की है।
      • भारत के पास निर्यात को बढ़ावा देने के लिये देश भर में लगभग 400 विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) हैं, जिन्हें एक साथ रखकर भी देखें तो ये चीन के शेनज़ेन SEZ की तुलना में लगभग आधा निर्यात ही करते हैं।
    • भारत को देश भर में कुछ स्थानों पर वृहत और वैश्विक स्तर के इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर्स का निर्माण करने पर ज़ोर देना चाहिये। उत्तर प्रदेश (नोएडा), तमिलनाडु और तेलंगाना पहले से ही अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहे हैं और यह उपयुक्त समय है कि वैश्विक स्तर के इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर्स के निर्माण के लिये बड़ा दाँव लगाया जाए।
  • उच्च निर्यात शुल्क को सीमित करना:
    • वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार में उचित हिस्सेदारी हासिल करने के लिये हमारे दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है, विशेष रूप से कराधान, श्रम कानूनों और श्रमिक आवास के मामले में।
      • भारत अब आयात-प्रतिस्थापन इलेक्ट्रॉनिक्स अर्थव्यवस्था (import-substitution electronics economy) से निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ रहा है।
    • जटिल शुल्क संरचना (उच्च और लगातार बदलती दरों के साथ) भारत को वैश्विक OEMs के लिये ‘असेंबली हब’ में परिणत करने में प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करती है और इसलिये इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • निजी-सरकारी सहयोग:
    • जबकि भारत पिछले कुछ वर्षों से मोबाइल फ़ोन का अग्रणी निर्माता रहा है, यह उपलब्धि काफी हद तक निम्न प्रौद्योगिकी श्रेणी में प्राप्त हुई है। अब समय आ गया है कि भारतीय विनिर्माता वैश्विक मूल्य शृंखला का अंग बनने की दिशा में कार्यशील हों।
      • सार्वजनिक-निजी सहयोग (Public-private collaboration), सहायक नीतियाँ और कानूनी ढाँचा इस प्रगति को आगे ले जाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • सरकार ने अगले तीन वर्षों में 10 मिलियन कुशल आईटी कार्यबल तैयार करने, सेमीकंडक्टर डिज़ाइन-लिंक्ड प्रोत्साहन नीति लागू करने आदि का लक्ष्य रखा है। ये सभी पहलें एक सुदृढ़ इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की दिशा में कार्य करेंगी।
  • तनाव के बीच सहयोग की तलाश:
    • आज वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों में से कई कंपनियाँ चीन की हैं। इसके अलावा, हज़ारों चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स घटक आपूर्तिकर्ता बाज़ार में मज़बूत उपस्थिति रखते हैं।
      • भारत और चीन के बीच सीमा तनाव के कारण परस्पर सहयोग की कठिनाइयाँ बड़े पैमाने पर विनिर्माण निवेश को आकर्षित करने की भारत की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर देती हैं।
    • इस संदर्भ में, चीन-ताइवान के उदाहरण से सबक लिया जा सकता है, जहाँ दोनों देश युद्ध की कगार पर हैं फिर भी 4,000 से अधिक ताइवानी कंपनियाँ चीन में कार्यरत हैं। इनमें Foxconn कंपनी भी शामिल है जो चीन के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है।
      • राजनीतिक तनाव के बावजूद भारत के प्रबुद्ध स्वार्थ में चीन के साथ व्यापार करने का रास्ता ढूँढना इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • लचीलापन बढ़ाना:
    • वर्ष 2008 में वियतनाम ने अपने FDI पर स्थानीय सामग्री आवश्यकताओं को हटा दिया, जिसने सैमसंग (Samsung) को अपना विनिर्माण आधार दक्षिण कोरिया से वियतनाम स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहित किया और आज सभी सैमसंग स्मार्टफ़ोन का लगभग 60% वियतनाम में विनिर्मित होता है।
      • LG, Apple, Nintendo और कई अन्य टेक दिग्गजों ने भी अपने विनिर्माण के बड़े भाग को वियतनाम में स्थानांतरित कर दिया है।
      • इसके परिणामस्वरूप, वियतनाम वर्ष 2001 में वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात रैंकिंग में 47वें स्थान से ऊपर बढ़कर वर्ष 2021 में 7वें स्थान पर पहुँच गया।
    • प्रतिस्पर्द्धी देशों के अभ्यासों के अनुरूप कार्यबल का उपयोग कर सकने के लिये भारतीय निर्माताओं को भी लचीलेपन के संबंध में ऐसा ही प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन अधिगम (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), ऑगमेंटेड रियलिटी (AR), वर्चुअल रियलिटी (VR) और रोबोटिक्स (Robotics) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ नए इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की मांग को बढ़ाते हुए उद्योग के स्वरूप को बदल रही हैं। भारत सॉफ्टवेयर विकास में पहले से ही एक चिह्नित वैश्विक खिलाड़ी है और अपनी हार्डवेयर विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ कर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भी एक अग्रणी शक्ति के रूप में उभरने की क्षमता रखता है।

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ का स्वप्न तभी साकार होगा जब विनिर्माण से संबद्ध विभिन्न क्षेत्र अपनी क्षमताओं और प्रौद्योगिकी अंगीकरण के स्तर को वृहत करेंगे। समय की मांग है कि एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाए जो नवाचार को बढ़ावा दे, बौद्धिक संपदा की रक्षा करे, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करे और ऐसी आधारभूत संरचना का निर्माण करे जो पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करे।

अभ्यास प्रश्न: इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) क्षेत्र में वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने की भारत की संभावनाओं और विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न निम्नलिखित में से किसके अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये ''R2 'व्यवहार संहिता (R2 कोड ऑफ प्रैक्टिसेज) साधन उपलब्ध कराती है? (2021)

(A) इलेक्ट्राॅनिक पुनर्चक्रण उद्योग में पर्यावरणीय दृष्टि से विश्वसनीय व्यवहार
(B) रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत 'अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि' का परिस्थितिक प्रबंधन
(C) निम्नीकृत भूमि पर कृषि फसलों की खेती का संधारणीय व्यवहार
(D) प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में 'पर्यावरणीय प्रभाव आकलन

उत्तर: (A)

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