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जैव विविधता और पर्यावरण

ई-अपशिष्ट दिवस

  • 18 Oct 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बेसल कन्वेंशन, नैरोबी घोषणा, ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, ई-अपशिष्ट क्लिनिक

मेन्स के लिये:

भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

ई-अपशिष्ट के प्रभावों को प्रतिबिंबित करने के अवसर के रूप में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष 14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस मनाया जाता है।

  • इस वर्ष की थीम है- 'रीसाइकल इट ऑल, नो मैटर हाउ स्मॉल (‘Recycle it all, no matter how small)'
  • वर्ष 2018 में (14 अक्तूबर) शुरू हुए गैर-लाभकारी अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) फोरम के अनुसार, वर्ष 2022 में लगभग 5.3 बिलियन मोबाइल/स्मार्टफोन उपयोग से बाहर हो जाएंगे।

अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE):

  • अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Waste Electrical and Electronic Equipment-WEEE) के प्रबंधन से संबंधित परिचालन की जानकारी के संबंध में यह दुनिया का सबसे बड़ा बहुराष्ट्रीय क्षमता केंद्र है।
  • यह दुनिया भर में 46 WEEE उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) है, जो एक गैर-लाभकारी संघ है, जिसकी स्थापना अप्रैल 2002 में हुई थी।
  • सर्वोत्तम अभ्यास के आदान-प्रदान और अपने प्रतिष्ठित ज्ञान आधार टूलबॉक्स तक पहुँच के माध्यम से WEEE फोरम, सदस्यों को अपने संचालन में सुधार करने में सक्षम बनाता है तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था के प्रमोटर के रूप में जाना जाता है।

ई-अपशिष्ट:

  • ई-अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और यह पुराने, अप्रचलित, या अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को संदर्भित करता है। इसमें उनके हिस्से, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल हैं।
  • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू हैं, जिसमें यह अनिवार्य है कि केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता ही ई-अपशिष्ट एकत्र करेंगे। ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।
  • घरेलू और वाणिज्यिक इकाइयों से अपशिष्ट को अलग करने, प्रसंस्करण तथा निपटान के लिये भारत का पहला ई-अपशिष्ट क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
  • मूल रूप से बेसल अभिसमय (1992) में ई-अपशिष्ट का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसमें वर्ष 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को शामिल किया गया।
    • नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के ट्रांसबाउंडरी मूवमेंट के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।

भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:

  • लोगों की कम भागीदारी: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं होने का एक प्रमुख कारण यह था कि उपभोक्ताओं ने उन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया। हालांँकि हाल के वर्षों में विश्व भर के देश प्रभावी 'मरम्मत के अधिकार’ कानूनों को पारित करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • बाल श्रमिकों की संलग्नता: भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-अपशिष्ट गतिविधियों में लगे हुए हैं और वह बगैर पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के विभिन्न यार्डों एवं पुनर्चक्रण कार्यशालाओं में कार्य कर रहे हैं।
  • अप्रभावी कानून: अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB)/PCC वेबसाइटों} पर किसी भी सार्वजनिक सूचना का अभाव है।
  • स्वास्थ्य के लिये खतरनाक: ई-अपशिष्ट में 1,000 से अधिक विषाक्त पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।
  • प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव: असंगठित क्षेत्र के लिये ई-अपशिष्ट के प्रबंधन हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। साथ ही, ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये औपचारिक मार्ग अपनाने में लगे लोगों को आकर्षक तरीके से इस दिशा में उन्मुख करने के लिये किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • ई-अपशिष्ट का आयात: विकसित देशों द्वारा 80% ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।
  • संबंधित अधिकारियों की उदासीनता: नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव।
  • सुरक्षा के निहितार्थ: कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी की संभावना रहती है।

भारत में ई-अपशिष्ट के संबंध में प्रावधान:

  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिये नियमों का एक औपचारिक सेट है, पहली बार वर्ष 2016 में इन नियमों की घोषणा की गई और वर्ष 2018 में इसमें संशोधन हुए।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के अधिक्रमण में ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को अधिसूचित किया।
  • 21 से अधिक उत्पादों (अनुसूची- I) को नियम के दायरे में शामिल किया गया था। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल हैं।
  • पहली बार उत्पादकों के लक्ष्य और विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) को इस नियम के अंतर्गत लाया गया। उत्पादकों को ई-अपशिष्ट के संग्रह और उसके विनिमय के लिये ज़िम्मेदार बनाया गया है।
  • विभिन्न उत्पादकों के पास एक अलग उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) हो सकता है और वह ई-कचरे का संग्रह सुनिश्चित कर सकता है। साथ ही,पर्यावरण की दृष्टि से इसका निपटान भी कर सकता है।
  • जमा वापसी योजना (Deposit Refund Scheme) को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में पेश किया गया है जिसमें निर्माता बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा के रूप में एक अतिरिक्त राशि लेता है और इसे उपभोक्ता को ब्याज के साथ तब वापस करता है जब अंत में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वापस कर दिये जाते हैं।
  • विघटन और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की भूमिका भी पेश की गई है।
  • नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
  • शहरी स्थानीय निकायों (नगर समिति/परिषद/निगम) को सड़कों या कूड़ेदानों में बेकार पड़े उत्पादों को एकत्र करने और अधिकृत विघटनकर्ताओं या पुनर्चक्रण करने वालों को चैनलाइज़ करने का कार्य सौंपा गया है।
  • ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण के लिये मौजूदा एवं आगामी औद्योगिक इकाइयों को उचित स्थान का आवंटन।

आगे की राह

  • नीतियाँ और बेहतर कार्यान्वयन:
    • भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियाँ हैं जिन्होंने अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करना और रीसाइकल करना शुरू कर दिया है। हमें बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास तथा मान्यता प्रदान करें और पर्यावरण की दृष्टि से हमारे रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने में हमारी सहायता करें।
  • समावेशन की आवश्यकता: साथ ही संग्रह दरों को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक हितधारक को शामिल करना आवश्यक है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को प्रोत्साहित करना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के साथ जुड़ने की रणनीति के साथ आगे आने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसा करने से न केवल बेहतर ई-कचरा प्रबंधन होगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिलेगी, साथ ही स्वास्थ्य और कार्य करने की स्थिति में सुधार होगा। इससे मज़दूर के साथ-साथ एक लाख से अधिक लोगों को बेहतर काम के अवसर प्राप्त होंगे।
    • यह प्रबंधन को पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और निगरानी के कार्य को आसान बना देगा।
  • रोज़गार में वृद्धि: समय की मांग है कि ऐसा रोज़गार सृजित किया जाए जो सहकारी समितियों की पहचान कर उन्हें बढ़ावा दे और ऐसा इन सहकारी समितियों या अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के दायरे का विस्तार करके किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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