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  • 19 Oct, 2024
  • 35 min read
सामाजिक न्याय

नागरिक समाज संगठनों की भूमिका की पुनर्कल्पना

यह संपादकीय 14/10/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख Civil society organizations too need to be accountable पर आधारित है। यह लेख भारत में नागरिक समाज संगठनों के बीच जवाबदेही की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाता है, इस बात पर ज़ोर देता है कि सार्वजनिक नीति पर उनका प्रभाव कानूनी मानकों के अनुपालन पर आधारित होना चाहिये। विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के हालिया उल्लंघन ने जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये पारदर्शिता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ संरेखण की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।

प्रिलिम्स के लिये: 

नागरिक समाज संगठन, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010, सूचना का अधिकार (RTI), दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016, चुनावी बाॅण्ड योजना, डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एसोसिएशन, स्व-नियोजित महिला एसोसिएशन, आधार, मज़दूर किसान शक्ति संगठन, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व 

मेन्स के लिये:

भारत में नागरिक समाज संगठनों की भूमिका, भारत में नागरिक समाज संगठनों से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

भारत में, नागरिक समाज संगठन सामाजिक न्याय और नीति सुधार के समर्थन हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी वे प्रायः अपवादवाद के आवरण में कार्य करते हैं तथा कानूनी जाँच का होने पर राज्य द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं। यह द्वंद्व जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है। 

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 के उल्लंघन के लिये कुछ थिंक टैंक के खिलाफ हाल ही में की गई कार्रवाई उनके संचालन में अनुपालन और पारदर्शिता के महत्त्व को रेखांकित करती है। सार्वजनिक नीति और राय को प्रभावित करने वाली संस्थाओं के रूप में, सीएसओ को जनता का विश्वास बनाए रखने तथा नागरिक समाज की अखंडता को सुरक्षित रखने हेतु अपने व्यवहार को लोकतांत्रिक सिद्धांतों एवं कानूनी शासन के अनुरूप करना चाहिये।

भारत में नागरिक समाज संगठनों की भूमिका क्या है?

  • अधिकारों की रक्षा और नीतिगत प्रभाव: भारत में नागरिक समाज संगठन सीमांत समूहों के लिये अधिकारों की रक्षा और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • राष्ट्रीय दिव्यांग जन रोज़गार संवर्द्धन केंद्र (NCPEDP) जैसे संगठन इस समर्थन में सबसे आगे रहे हैं।
    • वे नागरिकों और सरकार के बीच सेतु का काम करते हैं तथा महत्त्वपूर्ण मुद्दों को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं। 
    • अनुसंधान, अभियान और पैरवी प्रयासों के माध्यम से, नागरिक समाज संगठन कानून तथा सरकारी कार्यक्रमों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • उदाहरणस्वरूप, मज़दूर किसान शक्ति संगठन द्वारा शुरू किया गया सूचना का अधिकार (RTI) आंदोलन है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2005 में RTI अधिनियम पारित हुआ। 
    • इसका एक हालिया उदाहरण नागरिक समाज संगठनों की भूमिका है, जिन्होंने दिव्यांग जनों के अधिकार अधिनियम, 2016 का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप इसका कार्यान्वयन और बाद में संशोधन हुए। 
  • सामाजिक सेवा वितरण: सामाजिक संगठन सार्वजनिक सेवा वितरण में कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ सरकार की पहुँच सीमित है। 
    • वे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, स्वच्छता और आपदा राहत में आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं तथा अक्सर सबसे कमज़ोर समुदायों तक पहुँचते हैं। 
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, CSO ने समुदायों की सहायता करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिये, एक प्रमुख CSO ‘गूंज’ ने 'राहत' अभियान शुरू किया।
  • शासन और जवाबदेही: नागरिक समाज संगठन शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देते हुए निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं।
    • वे सरकारी कार्यक्रमों की निगरानी करते हैं, सामाजिक ऑडिट का संचालन करते हैं और भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं, जिसके माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ तेज़ होती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स चुनावी सुधारों को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जैसा कि वर्ष 2024 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारतीय चुनाव आयोग के मामले में देखा गया है और यह संगठन राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को भी बढ़ावा दे रहा है। 
    • चुनावी बाॅण्डो के विश्लेषण और मतदाताओं के सूचना के अधिकार हेतु अभियान ने महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक चर्चा और कानूनी चुनौतियों को उत्पन्न किया है, जिसकी परिणति फरवरी 2024 में चुनावी बाॅण्ड योजना को रद्द करने के सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के रूप में हुई।
  • सामुदायिक लामबंदी और सशक्तीकरण: सामुदायिक संगठन समुदायों को लामबंद करने, अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और हाशिए पर पड़े समूहों को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • वे सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करते हैं और स्थानीय नेतृत्व का विकास करते हैं, जिससे समुदाय अपनी चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम बनता है। 
    • उदाहरण के लिये, स्व-नियोजित महिला एसोसिएशन (SEWA) अनौपचारिक क्षेत्र की महिला श्रमिकों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 
    • 18 राज्यों में स्व-नियोजित महिला एसोसिएशन के साथ 2.9 मिलियन श्रमिक जुड़े हुए हैं, उन्होंने इन श्रमिकों के अधिकारों का सफलतापूर्वक समर्थन किया है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन हुए हैं।
  • नवाचार और सामाजिक उद्यमिता: नागरिक समाज संगठन अक्सर सामाजिक समस्याओं के लिये नवीन समाधान विकसित करने, सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने और सतत् विकास को समर्थन देने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। 
    • वे नए तरीकों का परीक्षण करते हैं, जिन्हें बाद में सरकार द्वारा बढ़ाया या अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिये, ‘अक्षय पात्र फाउंडेशन’ ने अपने केंद्रीकृत रसोई के माध्यम से स्कूलों में मध्याह्न भोजन कार्यक्रम में आवश्यक योगदान दिया है। 
    • वर्ष 2023 तक, वे 15 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों के 22,367 स्कूलों में प्रतिदिन 2 मिलियन से अधिक बच्चों को सेवाएँ प्रदान करते हैं, जो दर्शाता है कि कैसे नागरिक समाज संगठन (CSOs) बड़े पैमाने पर सार्वजनिक सेवा वितरण को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण और जलवायु कार्रवाई: हाल के वर्षों में, भारत में पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने और जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने में नागरिक समाज संगठन (CSOs) की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई है। 
    • वे जागरूकता बढ़ाते हैं, अनुसंधान करते हैं और सतत् विकास हेतु ज़मीनी स्तर पर पहल करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने भारत की जलवायु नीति को आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके शोध और समर्थन के प्रयासों ने न केवल वाहन उत्सर्जन मानदंडों के कार्यान्वयन में सहायता की है, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने में भी योगदान दिया है। 
    • वर्ष 2023 में, CSE की "भारत के पर्यावरण की स्थिति" रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों पर नीतिगत चर्चाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
  • डिजिटल अधिकार और साइबर सुरक्षा: जैसे-जैसे भारत तेज़ी से डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहा है, नागरिक समाज संगठन (CSO) डिजिटल अधिकारों की रक्षा, साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने और डिजिटल प्रौद्योगिकियों तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 
    • इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन (IFF) जैसे संगठन इस आंदोलन में अग्रणी रहे हैं। निगरानी तकनीकों को चुनौती देने, डेटा गोपनीयता की रक्षा करने और नेट न्यूट्रैलिटी को बढ़ावा देने में IFF का समर्थन तथा कानूनी हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण रहे हैं। 
    • आधार बायोमेट्रिक और चेहरे की पहचान आधारित उपस्थिति प्रणालियों के उपयोग के खिलाफ उनके अभियान ने सुरक्षा आवश्यकताओं तथा गोपनीयता अधिकारों के मध्य संतुलन बनाने पर राष्ट्रीय बहस को प्रेरित किया है।
  • नागरिक सहभागिता और सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देना: नागरिक समाज संगठन नागरिक सहभागिता और सहभागी शासन को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • वे निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं और सक्रिय नागरिकता की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। राजस्थान में मज़दूर किसान शक्ति संगठन योजनाओं के सहभागी सामाजिक ऑडिट में अग्रणी रहा है। 
    • PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च जैसे संगठन जटिल विधायी प्रक्रियाओं के बारे में नागरिकों को जागरूक करने हेतु प्रयास कर रहे हैं।

भारत में नागरिक समाज संगठनों से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ और वित्तीय स्थिरता: भारत में नागरिक समाज संगठनों को स्थायी और विविध वित्तपोषण स्रोत प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • वर्ष 2020 में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) संशोधनों ने विदेशी वित्तपोषण को और अधिक प्रतिबंधित कर दिया है, जिससे कई संगठनों का संचालन प्रभावित हुआ है।
    • घरेलू परोपकार इस कमी को प्रभावी रूप से पूरा नहीं कर सका है, जिससे कई नागरिक समाज संगठन आर्थिक रूप से कमज़ोर हो गए हैं। 
    • एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 54% सीएसओ ने कोविड-19 के बाद वित्तपोषण में कमी के आँकड़ों को दर्शाया।
    • इस वित्तीय अस्थिरता ने कई संगठनों को अपने परिचालन में कटौती करने या पूरी तरह से बंद करने के लिये मज़बूर कर दिया है, जिसका विशेष रूप से सीमांत समुदायों के साथ कार्य करने वाले ज़मीनी स्तर के संगठनों पर अधिक प्रभाव पड़ा है।
  • विनियामक वातावरण और सरकारी जाँच: भारत में नागरिक समाज संगठनों के लिये विनियामक परिदृश्य तेज़ी से जटिल और प्रतिबंधात्मक होता जा रहा है। वर्ष 1976 से अब तक कुल 20,701 गैर-सरकारी संगठन अपने FCRA लाइसेंस से वंचित हो गए हैं। 
    • इस गहन जांजाँच के कारण नागरिक समाज संगठनों, विशेषकर मानवाधिकार या पर्यावरण संरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कार्य करने वाले संगठनों में सेल्फ-सेंसरशिप की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे सामाजिक परिवर्तन में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो गई है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव: जबकि नागरिक समाज संगठन शासन में पारदर्शिता का समर्थन करते हैं, वहीं कुछ को स्वयं जवाबदेही और पारदर्शिता के अभाव के कारण आलोचना का सामना करना पड़ता है। 
    • अपर्याप्त वित्तीय रिपोर्टिंग, अस्पष्ट निर्णय-प्रक्रिया, तथा गतिविधियों और परिणामों का सीमित सार्वजनिक प्रकटीकरण, कुछ संगठनों में जनता के विश्वास को खत्म कर रहा है। 
    • वर्ष 2019 में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सरकारी आवंटित धन का दुरुपयोग करने और खर्च न की गई राशि वापस न करने के आरोप में NGO इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर (ICCW) के विरुद्ध FIR दर्ज की है।
    • पारदर्शिता की कमी से जनता का विश्वास कम होता है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: भारत में बढ़ते राजनीतिक ध्रुवीकरण ने नागरिक समाज संगठनों, विशेष रूप से मानवाधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार या पर्यावरण संरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कार्य करने वाले नागरिक समाज संगठनों के लिये, चुनौतीपूर्ण वातावरण उत्पन्न कर दिया है। 
    • कुछ संगठनों पर "राष्ट्र-विरोधी" होने या भारत के हितों के विरुद्ध कार्य करने के आरोप लगते हैं, जिसके कारण जनता में भारी आक्रोश उत्पन्न होता है तथा कभी-कभी कानूनी चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं। 
    • वर्ष 2023 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 180 देशों में 161वाँ स्थान दिया गया है, जो मुक्त अभिव्यक्ति पर व्यापक प्रतिबंधों को दर्शाता है, जो नागरिक समाज संगठनों को भी प्रभावित करते हैं। 
    • इस ध्रुवीकृत वातावरण ने कुछ संगठनों को सेल्फ-सेंसर करने या कुछ मुद्दों से बचने के लिये प्रेरित किया है, जिससे महत्त्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
  • सीमित सहयोग और क्षेत्रीय विखंडन: भारत में CSO क्षेत्र अक्सर संगठनों के बीच सीमित सहयोग और समन्वय से ग्रस्त रहता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रयासों का दोहराव और संसाधनों का अकुशल उपयोग होता है। 
    • वित्तपोषण और मान्यता के लिये प्रतिस्पर्द्धा कभी-कभी उन साझेदारियों में बाधा उत्पन्न करती है जो सामूहिक प्रभाव को बढ़ा सकती हैं। 
    • यह विखंडन न केवल नागरिक समाज के सामूहिक प्रभाव को कम करता है, बल्कि नीति और सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों को भी कमज़ोर करता है।
  • प्रभाव मापन और रिपोर्टिंग चुनौतियाँ: CSO अक्सर अपने प्रभाव को प्रभावी ढंग से मापने और संप्रेषित करने में संघर्ष करते हैं, जो कि वित्तपोषण को आकर्षित करने तथा हितधारकों के लिये मूल्य प्रदर्शित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है। 
    • कई संगठनों में मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन प्रणालियों या आकलन करने की क्षमता का अभाव है। 
    • प्रभावी मापन में यह अंतर न केवल संगठनों की अपने कार्यक्रमों को बेहतर बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि दाताओं और नीति निर्माताओं के समक्ष अपने कार्य को उचित ठहराना भी कठिन बना देता है, जिसके परिणामस्वरूप समर्थन और वित्तपोषण में कमी आ सकती है।
  • डिजिटल विभाजन और तकनीकी चुनौतियाँ: समाज के तेज़ी से डिजिटलीकरण ने CSO क्षेत्र के भीतर एक महत्त्वपूर्ण डिजिटल विभाजन को उजागर कर दिया है। 
    • जबकि कुछ संगठनों ने अपने कार्य के लिये प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है, कई, विशेष रूप से छोटे और ग्रामीण CSO, सीमित डिजिटल बुनियादी ढाँचे और कौशल के साथ संघर्ष कर रहे हैं। 
    • एक हालिया सर्वेक्षण में कहा गया है कि 95% नागरिक समाज संगठनों का कहना है कि इंटरनेट उनके कार्य क्षमता हेतु महत्त्वपूर्ण है, जबकि 78% के पास ऐसा करने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी उपकरणों का अभाव है।
    • यह डिजिटल विभाजन न केवल नागरिक समाज संगठनों की परिचालन दक्षता को प्रभावित करता है, बल्कि तेज़ी से डिजिटल विश्व में उनकी पहुँच और प्रभाव को भी सीमित करता है।
  • स्वयंसेवक प्रबंधन और प्रतिधारण: कई नागरिक समाज संगठनों को स्वयंसेवकों को आकर्षित करने, प्रबंधित करने और बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर उनके संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं। 
    • स्वयंसेवकों की उच्च टर्न-ओवर रेट और सीमित दीर्घकालिक प्रतिबद्धता कार्यक्रम की निरंतरता तथा संगठनात्मक विकास को बाधित कर सकती है। 
    • एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार 78% ने स्वयंसेवी कार्यक्रमों में कर्मचारियों की भागीदारी की सूचना दी, जबकि केवल 26% ने स्वयंसेवकों की संख्या तथा 39% ने स्वयंसेवी घंटों की संख्या की सूचना दी।
    • स्वयंसेवी सहभागिता में यह असंगतता, दीर्घकालिक परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने तथा टिकाऊ सामुदायिक संबंध बनाने में नागरिक समाज संगठनों के लिए चुनौतियां उत्पन्न करती है।

भारत में CSO की भूमिका बढ़ाने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और सरल बनाना: सरकार आवश्यक नियंत्रण बनाए रखते हुए CSO के लिये नौकरशाही बाधाओं को कम करने हेतु FCAR और अन्य विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर सकती है। 
    • इसमें पंजीकरण और अनुपालन के लिये एकल-खिड़की मंज़ूरी प्रणाली बनाना, कागजी कार्रवाई को कम करने के लिये प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना तथा अनुमोदन के लिये स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित करना शामिल हो सकता है। 
    • विनियमन के लिये जोखिम-आधारित दृष्टिकोण को लागू करना, जहाँ अनुपालन के ट्रैक रिकॉर्ड वाले संगठनों को कम प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है, भी लाभकारी हो सकता है। उदाहरण के लिये, गृह मंत्रालय द्वारा FCRA वार्षिक रिटर्न को ऑनलाइन जमा करने की अनुमति देने की पहल सही दिशा में एक कदम है, लेकिन इसे सभी विनियामक संवाद को कवर करने के लिये विस्तारित किया जा सकता है।
  • घरेलू परोपकार और CSO साझेदारी को बढ़ावा देना: कर प्रोत्साहन और सरलीकृत दान प्रक्रियाओं के माध्यम से घरेलू परोपकार को प्रोत्साहित करने से विदेशी वित्तपोषण में गिरावट को कम करने में मदद मिल सकती है। 
    • सरकार पंजीकृत नागरिक समाज संगठनों को दिये जाने वाले वित्तपोषण हेतु आयकर अधिनियम की धारा 80G के अंतर्गत कर कटौती की सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (CSR) पहल के तहत CSO और कॉर्पोरेट्स के बीच मज़बूत साझेदारी को सुविधाजनक बनाने से स्थायी वित्तपोषण स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं। 
    • अन्य देशों के सफल मॉडलों के समान, एक राष्ट्रीय CSR-CSO मिलान मंच बनाने से सहयोग और संसाधन आवंटन दक्षता में वृद्धि हो सकती है।
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास में निवेश: सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से संभावित रूप से वित्तपोषित, नागरिक समाज संगठनों के लिये राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम की स्थापना से डिजिटल साक्षरता, वित्तीय प्रबंधन तथा प्रभाव माप जैसे क्षेत्रों में कौशल अंतराल को दूर किया जा सकता है। 
    • यह कार्यक्रम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार के प्रशिक्षण मॉड्यूल , मार्गदर्शन के अवसर और विभिन्न संगठनात्मक आकारों तथा केंद्रित क्षेत्रों के अनुरूप संसाधन प्रदान कर सकता है। 
    • शैक्षिक संस्थानों और कॉर्पोरेट प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ सहयोग करने से विशेषज्ञता और संसाधन प्राप्त हो सकते हैं। 
    • हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है, जिसका लाभ उठाकर CSO प्रबंधन को फोकस क्षेत्र के रूप में शामिल किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही तंत्र को बढ़ाना: एक व्यापक, उपयोगकर्त्ता-अनुकूल राष्ट्रीय CSO डेटाबेस विकसित करना जिसमें वित्तीय रिपोर्ट, कार्यक्रम परिणाम और प्रभाव आकलन शामिल हों, पारदर्शिता में सुधार कर सकता है तथा सार्वजनिक विश्वास का निर्माण कर सकता है। 
    • इस प्लेटफॉर्म को गाइडस्टार जैसे सफल अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों के आधार पर तैयार किया जा सकता है, जिसे भारतीय संदर्भ के लिये अनुकूलित किया जा सकता है। 
    • नागरिक समाज संगठनों को मानकीकृत रिपोर्टिंग प्रारूप अपनाने तथा स्वैच्छिक तृतीय-पक्ष ऑडिट कराने के लिये प्रोत्साहित करने से विश्वसनीयता में और वृद्धि हो सकती है। 
    • सरकार उच्च पारदर्शिता मानकों को बनाए रखने वाले संगठनों को शीघ्र अनुदान अनुमोदन या कर प्रोत्साहन जैसे लाभ प्रदान करके इन प्रथाओं को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • सहयोग और ज्ञान साझाकरण को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय और क्षेत्रीय CSO नेटवर्क या गठबंधन बनाने से सहयोग में वृद्धि हो सकती है, प्रयासों का दोहराव कम हो सकता है, तथा सामूहिक प्रभाव बढ़ सकता है। 
    • इन नेटवर्कों को नियमित सम्मेलनों, ऑनलाइन प्लेटफार्मों और संयुक्त परियोजनाओं के माध्यम से सुगम बनाया जा सकता है। 
    • मुद्दा-आधारित संघों के गठन को प्रोत्साहित करना, जहाँ समान विषयों पर कार्य करने वाले नागरिक समाज संगठन संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्रित करते हैं, इससे अधिक प्रभावी हस्तक्षेप हो सकता है। 
  • साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को लागू करना: नीति निर्माण और कार्यान्वयन में CSO की भागीदारी के लिये औपचारिक तंत्र स्थापित करने से सरकारी कार्यक्रमों की प्रभावशीलता बढ़ सकती है। 
    • इसमें प्रासंगिक सरकारी समितियों में CSO का प्रतिनिधित्त्व अनिवार्य करना, नियमित परामर्श मंचों का निर्माण करना, तथा नीतिगत निर्णयों में CSO द्वारा उत्पन्न आँकड़ों और अनुसंधान को शामिल करना शामिल हो सकता है। 
    • नीति आयोग की नीतिगत चर्चाओं में नागरिक समाज संगठनों को शामिल करने की हाल की पहलों का विस्तार किया जा सकता है तथा उन्हें सभी सरकारी विभागों में संस्थागत रूप दिया जा सकता है, ताकि नीति निर्माण में विविध तथा जमीनी स्तर के दृष्टिकोणों को शामिल करना सुनिश्चित हो सके।
  • डिजिटल परिवर्तन और नवाचार को बढ़ावा देना: प्रौद्योगिकी अपनाने में संगठनों को सहायता देने के लिये 'डिजिटल CSO’ पहल शुरू करने से उनकी दक्षता और पहुँच बढ़ सकती है। 
    • इसमें डिजिटल उपकरणों तक रियायती पहुँच प्रदान करना, डिजिटल परिवर्तन हेतु तकनीकी सहायता प्रदान करना और क्षेत्र के भीतर नवीन तकनीकी समाधानों को साझा करने के लिये मंच स्थापित करना शामिल हो सकता है। 
    • नवाचार निधि के माध्यम से प्रौद्योगिकी कंपनियों और नागरिक समाज संगठनों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करने से भारत-विशिष्ट समाधानों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • सरकार की डिजिटल इंडिया पहल का विस्तार सामाजिक क्षेत्र की डिजिटल आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिये किया जा सकता है।
  • सामाजिक उद्यम मॉडल के माध्यम से वित्तीय स्थिरता को बढ़ाना: सामाजिक उद्यम दृष्टिकोण को शामिल करके स्थायी राजस्व मॉडल विकसित करने के लिये CSO को प्रोत्साहित करने से दाताओं पर निर्भरता कम हो सकती है । 
    • इसे विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सामाजिक उद्यमों के लिये कम ब्याज दर वाले ऋणों तक पहुँच तथा CSO उत्पादों एवं सेवाओं के लिये बाज़ार का निर्माण करके समर्थित किया जा सकता है। 
    • सतत् मॉडल विकसित करने में गूंज जैसे संगठनों की सफलता इस दृष्टिकोण की क्षमता को प्रदर्शित करती है।
  • प्रभाव मापन और रिपोर्टिंग को मज़बूत बनाना: CSO कार्य के विभिन्न क्षेत्रों के अनुरूप मानकीकृत प्रभाव मापन ढाँचे का विकास करने से प्रभाव को प्रदर्शित करने और संप्रेषित करने की क्षमता में वृद्धि हो सकती है। 
    • इसे राष्ट्रीय प्रभाव माप संसाधन केंद्र बनाकर समर्थित किया जा सकता है, जिसमें इन ढाँचों को लागू करने के लिये नागरिक समाज संगठनों को प्रशिक्षण तथा उपकरण प्रदान किये जा सकते हैं।
    • वास्तविक समय डेटा संग्रहण और विश्लेषण के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने से प्रभाव रिपोर्टिंग की सटीकता और समयबद्धता में सुधार हो सकता है। 
    • सरकार कुछ निश्चित निधियों या लाभों तक पहुँच के लिये मानकीकृत प्रभाव रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाने पर विचार कर सकती है, जिससे पूरे क्षेत्र में इसे अपनाने को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • जन सहभागिता और स्वयंसेवा को बढ़ावा देना: स्वयंसेवा और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय अभियान शुरू करने से CSO गतिविधियों में जन समर्थन और भागीदारी बढ़ सकती है। 
    • इसमें सामुदायिक सेवा को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक डाटाबेस तैयार करना, तथा स्वयंसेवी कार्य के लिये शैक्षणिक क्रेडिट या कौशल प्रमाण-पत्र जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल हो सकता है ।
    • संभावित स्वयंसेवकों को नागरिक समाज संगठनों से जोड़ने के लिये सोशल मीडिया तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाने से सहभागिता को सुचारू बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और नीति सुधार को प्रभावित करने के लिये नागरिक समाज संगठन अपरिहार्य हैं। अपनी क्षमता, पारदर्शिता और सहयोग को बढ़ाने के उपायों को लागू करके, नागरिक समाज संगठन एक अधिक समतापूर्ण और न्यायपूर्ण समाज को आकार देने में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकते हैं। आगे बढ़ने हेतु सरकार और नागरिक समाज को एक साथ मिलकर ऐसा वातावरण प्रदान करना होगा जो इन संगठनों को समर्थन दे और उन्हें अपने मिशन को पूरा करने में सक्षम बनाए।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

भारत में सामाजिक न्याय और नीति सुधार को बढ़ावा देने में नागरिक समाज संगठनों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इन संगठनों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये उनके भीतर जवाबदेही को कैसे मज़बूत किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

मेन्स   

  1. पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को कैसे मज़बूत किया जा सकता है? प्रमुख बाधाओं पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिये। (2015)
  2. विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 1976 के तहत गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तपोषण को नियंत्रित करने वाले नियमों में हाल के बदलावों की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। (2015)
  3. क्या सिविल सोसाइटी और गैर-सरकारी संगठन आम नागरिक को लाभ पहुँचाने के लिये सार्वजनिक सेवा वितरण का कोई वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक मॉडल की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (2021)
  4. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि विकास के लिये दाता एजेंसियों पर बढ़ती निर्भरता विकास प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी के महत्त्व को कम करती है? अपने उत्तर का औचित्य बताइये। (2022)
  5. विकास के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से निपटने में सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच किस तरह का सहयोग सबसे अधिक उत्पादक होगा? (2024)
  6. सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों में भारत के विकास को और अधिक समावेशी बनाने की क्षमता है क्योंकि वे कुछ महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दों से संबंधित हैं। टिप्पणी कीजिये। (2024)


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