निबंध
निर्धनता कहीं भी हो, हर जगह की समृद्धि के लिये खतरा होती है
- 25 Apr 2024
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निर्धनता क्रांति और अपराध की जननी है।
—अरस्तू।
प्रौद्योगिकी, व्यापार और संचार द्वारा आकार प्राप्त हमारे परस्पर संबद्ध विश्व में, यह दावा किया जाता है कि
"किसी भी स्थान/देश में निर्धनता हर जगह समृद्धि के लिये खतरा पैदा करती है" यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है। निर्धनता को अक्सर एक स्थानीय चुनौती के रूप में देखा जाता है, किंतु इसका प्रभाव सीमाओं से आबद्ध नहीं है, जो वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाओं, सामाजिक ढाँचों और मानवता के समग्र कल्याण को प्रभावित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने भी फिलाडेल्फिया घोषणापत्र में इस सिद्धांत को शामिल किया है। हालाँकि वर्तमान परिदृश्य में अर्थव्यवस्थाओं की समृद्धता और जीवन की सुगमता देखी जा सकती है, किंतु यह वैश्विक निर्धनता की वास्तविकताओं से परे नहीं है।
निर्धनता से होने वाले सबसे प्रत्यक्ष खतरों में से एक वैश्विक आर्थिक स्थिरता है। निर्धन क्षेत्रों में अक्सर बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश करने के लिये संसाधनों की कमी होती है। इससे सीमित आर्थिक अवसरों का चक्र बनता है, जिससे वैश्विक स्तर पर बाज़ार में भाग लेने की उनकी क्षमता बाधित होती है। इसके अलावा, व्यापक निर्धनता का अर्थ है उपभोक्ता आधार में कमी, जो निर्यात पर निर्भर समृद्ध देशों में व्यवसायों की लाभप्रदता को प्रभावित करती है।
निर्धनता में सिर्फ भौतिक संसाधनों की कमी ही शामिल नहीं है; इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और आर्थिक उन्नति के अवसरों तक अपर्याप्त पहुँच भी शामिल है। विश्व बैंक ने अत्यधिक निर्धनता को 2.15 अमेरिकी डॉलर/दिन से कम पर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है, किंतु निर्धनता के आयाम आय सीमा से आगे बढ़कर शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक बहिष्कार जैसे बहुआयामी कारकों को भी शामिल करते हैं। नीति आयोग के अनुसार , शहरी क्षेत्रों के लिये निर्धनता रेखा 1,286 रुपए प्रति माह और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 1,059.42 रुपए प्रति माह निर्धारित की गई है।
स्थानीय स्तर पर, निर्धनता विभिन्न रूपों में प्रकट होती है, जिसमें भुखमरी, अपर्याप्त आवासन एवं शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच शामिल है। निर्धन समुदायों में, व्यक्तियों को रोगों, कुपोषण और शोषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता का सामना करना पड़ता है। निर्धन परिवारों के बच्चों को अक्सर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच की कमी का सामना करना पड़ता है , जिससे पीढ़ियों तक निर्धनता का चक्र चलता रहता है। इसके अतिरिक्त, निर्धनता सामाजिक अशांति और अपराध को जन्म दे सकती है, जिससे समुदाय और भी अस्थिर हो सकते हैं एवं आर्थिक विकास में बाधा आआर्थिक विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है। आर्थिक रूप सकती है।
से वंचित क्षेत्रों में, बीमारी, कुपोषण और शिक्षा की कमी के कारण उत्पादकता में कमी से मानव पूंजी कम हो जाती है , जिससे आर्थिक विकास की संभावना बाधित होती है।
इसके अलावा, निर्धनता बाज़ार के अवसरों और उपभोक्ता खर्च को सीमित करती है, मांग को दबाती है और आर्थिक विस्तार में बाधा डालती है। वैश्विक संदर्भ में, निर्धनता अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश को कमज़ोर करती है, राष्ट्रों के बीच आर्थिक असमानताओं में योगदान देती है और वैश्विक आर्थिक एकीकरण की दिशा में प्रयासों को बाधित करती है।
स्थानीय झुग्गी-झोपड़ियों (स्लम्स) में , परिवारों को अत्यधिक भीड़भाड़ वाले, अनुचित आवास में रहने के लिये विवश किया जा सकता है, जहाँ स्वच्छ जल एवं आवश्यक स्वच्छता तक पहुँच सीमित होती है। इससे रोगों का प्रसार हो सकता है तथा मौजूदा स्वास्थ्य समस्याएँ और भी बढ़ सकती हैं। किराए की उच्च लागत कई परिवारों को एक ही कमरे को साझा करने के लिये विवश कर सकती है, जिससे गोपनीयता सीमित होती है एवं स्वच्छता में बाधा आ सकती है। उदाहरण के लिये, धारावी विश्वभर में झुग्गियों में रहने वाले कई परिवारों द्वारा सामना की जाने वाली जीवकान की जटिल चुनौतियों का स्मरण कराता है। भीड़भाड़, अपर्याप्त स्वच्छता और सीमित संसाधन ऐसे गंभीर मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने और समाधान की आवश्यकता है। झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वालों के लिये आवासन स्थितियों में सुधार और बेहतर अवसर प्रदान करने के प्रयास अधिक समतापूर्ण समाज के निर्माण हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
निर्धनता के सामाजिक परिणाम बहुत गंभीर और दूरगामी हैं। निर्धनता सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती है, कमजोर समूहों को हाशिये पर धकेलती है और अभाव के चक्र को जारी रखती है। इसके अलावा, निर्धनता सामाजिक सामंजस्य और स्थिरता को कमज़ोर करती है, समुदायों के मध्य आक्रोश एवं अशांति को बढ़ाती है। कुछ मामलों में, निर्धनता सामाजिक अशांति, संघर्ष एवं बड़े पैमाने पर पलायन को जन्म दे सकती है, जिसका क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिये, अफगानिस्तान एक गंभीर मानवीय संकट और निर्धनता का सामना कर रहा है, जहाँ लगभग 28.8 मिलियन लोगों को तत्काल सहायता की आवश्यकता है। दशकों से जारी आर्थिक पतन ने लाखों अफगानों को निर्धनता को संबोधित करने तथा अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संघर्ष करने पर विवश किया है। खाद्य असुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है, जिसमें 17.2 मिलियन लोग संकट या खाद्य असुरक्षा के बदतर स्तर का सामना कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा वर्ष 2019 में किये गए एक अध्ययन में निर्धनता, असमानता और हिंसक संघर्ष के बीच एक संबंध पाया गया। यह अस्थिरता अर्थव्यवस्थाओं को बाधित करती है, निवेश में बाधा डालती है एवं लोगों को पलायन करने के लिये विवश करती है, जिससे शरणार्थी संकट उत्पन्न होता है जो विकसित देशों पर बोझ डालता है। उदाहरण के लिये, सीरियाई गृहयुद्ध, जो आंशिक रूप से निर्धनता एवं सामाजिक असमानता से प्रेरित था, ने शरणार्थियों के बड़े पैमाने पर यूरोप की ओर पलायन को जन्म दिया, जिससे मेजबान देशों में सामाजिक सेवाओं और सुरक्षा बलों पर दबाव पड़ा।
स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच एक मौलिक मानव अधिकार है, फिर भी निर्धनता अक्सर लोगों को इस आवश्यक सेवा से वंचित करती है। निर्धन समुदायों में, स्वास्थ्य सुविधाओं, दवाओं और प्रशिक्षित स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों तक सीमित पहुँच स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाती है और निवारण योग्य रोगों के प्रसार को बढ़ाती है। इसके अलावा, निर्धनता सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को कमजोर करती है, संक्रामक रोगों के निदान में और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के प्रयासों में बाधा डालती है। उप-सहारा अफ्रीका के कई ग्रामीण क्षेत्रों में, निर्धनता स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच को सीमित करती है। इन क्षेत्रों में अक्सर आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं, अस्पताल और प्रशिक्षित पेशेवर चिकित्सकों की कमी होती है।
भारत में ग्रामीण समुदाय स्वास्थ्य सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक व्यय सीमित है एवं निजी स्वास्थ्य सेवा मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में कार्य करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अक्सर स्वास्थ्य सेवाओं हेतु लंबी दूरी (100 किमी तक) तय करते हैं। भारत ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य चिकित्सा कर्मियों की अपर्याप्तता का सामना कर रहा है। कुशल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की अनुपस्थिति समस्या को और बढ़ा देती है। निर्धनता की उच्च दर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में बाधा डालती है। लगभग 90% आबादी बीमा द्वारा कवर नहीं है और अधिकांश लागतों का भुगतान जेब से या ऋण के माध्यम से किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता के कारण स्वास्थ्य संकेतकों में असमानताएँ देखी जाती हैं, जिसमें शिशु मृत्यु दर, कुपोषण, मातृ मृत्यु दर, कम टीकाकरण दर और कम जीवन प्रत्याशा दरें शामिल हैं ।
निर्धनता एक चक्रीय प्रभाव उत्पन्न करती है जो शिक्षा सहित जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करती है। कम आय वाले परिवारों के बच्चे अच्छे स्कूल, यूनिफॉर्म या परिवहन, खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, भले ही सार्वजनिक शिक्षा मुफ़्त हो। यह उन्हें स्कूल में दाखिला लेने या पूरी तरह से भाग लेने से रोक सकता है।
संसाधनों की कमी से बच्चों की अधिगम क्षमता में बाधा आ सकती है और वे अपना समग्र विकास प्राप्त करने से वंचित रह सकते हैं। यह निर्धनता के चक्र को भी बनाए रख सकता है, क्योंकि जिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलती, उन्हें आजीविका के समुचित अवसर नहीं मिलते हैं।
निर्धनता और पर्यावरण क्षरण एक दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं, जो अभाव और पारिस्थितिकीय गिरावट का एक दुष्चक्र बनाते हैं। निर्धन समुदाय अक्सर अपनी आजीविका के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहते हैं, जिससे अत्यधिक दोहन और पर्यावरण क्षरण होता है। इसके अलावा, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और स्वच्छता सुविधाएँ प्रदूषण एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य संबंधी खतरों में योगदान करती हैं, जिससे कमज़ोर आबादी पर बोझ और बढ़ जाता है।
कृषि विस्तार, वनोंमूलन एवं बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न कारकों के कारण वनों का अत्यधिक क्षरण हुआ है जिसने वनों पर दबाव में वृद्धि की है। जनजातीय समुदाय, जो अक्सर भारत में सबसे निर्धन लोगों में से हैं, अपनी आजीविका के लिये वनों पर निर्भर हैं, जिसमें ईंधन हेतु लकड़ी, भोजन और औषधीय पौधे शामिल हैं। जैसे-जैसे वन सिकुड़ते हैं, इन समुदायों को बढ़ती निर्धनता और पारंपरिक ज्ञान के नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिससे अभाव और पारिस्थितिक गिरावट का एक दुष्चक्र बन जाता है। अस्तित्व के लिये संघर्ष कभी-कभी उन्हें अवैध कटाई या संरक्षित क्षेत्रों पर अतिक्रमण जैसी अस्थिर प्रथाओं में विवश कर सकता है, जिससे पर्यावरणीय गिरावट और भी बढ़ जाती है।
तेजी से आपस में जुड़ती दुनिया में, निर्धनता का प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं से परे है, जिसका प्रसार व्यापार, प्रवास और संचार नेटवर्क के माध्यम से अंतरमहाद्वीपीय है। वैश्वीकरण ने आर्थिक अंतरनिर्भरता को तीव्र किया है, जिससे समृद्धि विकास के सभी स्तरों पर राष्ट्रों के कल्याण पर निर्भर है। एक क्षेत्र में आर्थिक मंदी का वैश्विक बाज़ारों पर व्यापक प्रभाव हो सकता है, जो आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की परस्पर अंतर्संबंधित प्रकृति को उज़ागर करता है।
इस चुनौती के निदान हेतु स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। संसाधन एकत्रीकरण, विशेषज्ञता साझाकरण एवं निर्धनता उन्मूलन की प्रभावी रणनीतियों को लागू करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) जैसी पहल सामूहिक कार्रवाई के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है, जिसका लक्ष्य 2030 तक निर्धनता को उन्मूलित करना है तथा साझा समृद्धि को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय सहायता और विकास सहायता निर्धन समुदायों का समर्थन करने एवं अनुकूलित समाजों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रभावी निर्धनता उन्मूलन रणनीतियाँ समुदायों को अपने स्वयं के विकास में परिवर्तन के अभिकर्त्ता बनने के लिये सशक्त बनाती हैं। महिलाओं, स्थानीय लोगों एवं ग्रामीण आबादी सहित हाशिये पर मौजूद समूहों का सशक्तीकरण समावेशी विकास और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं आजीविका के अवसरों में निवेश करके, समुदाय निर्धनता के चक्र से मुक्त हो सकते हैं और व्यापक आर्थिक व सामाजिक प्रगति में योगदान दे सकते हैं।
" निर्धनता कहीं भी हो, हर जगह की समृद्धि के लिये खतरा होती है" यह वैश्विक समाजों और अर्थव्यवस्थाओं के मध्य गहन अंतर्संबंधता को दर्शाता है। निर्धनता मानवीय गरिमा, आर्थिक प्रगति और सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करती है, जिससे स्थानीय एवं वैश्विक दोनों स्तरों पर समृद्धि को खतरा पैदा होता है। निर्धनता को संबोधित करने के लिये समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आर्थिक अभाव से लेकर सामाजिक बहिष्कार एवं पर्यावरणीय गिरावट तक इसके बहुआयामी प्रभावों को संबोधित करे। निर्धनता उन्मूलन को प्राथमिकता देकर और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर, हम सभी के लिये एक अधिक न्यायसंगत एवं समृद्ध विश्व का निर्माण कर सकते हैं। वैश्विक नागरिकों के रूप में, हमें निर्धनता से निपटने और भविष्य की पीढ़ियों के लिये सतत् विकास को बढ़ावा देने में अपनी साझा ज़िम्मेदारी को पहचानना चाहिये।
निर्धनता हिंसा का सबसे निकृष्ट रूप है।
—महात्मा गांधी