अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बहुपक्षवाद का पुनःप्रचलन: वैश्विक सुधार के मार्ग
- 18 Sep 2024
- 36 min read
यह संपादकीय " Summit of the Future: The UN at a crossroads" पर आधारित है, जो 16/09/2024 को द हिंदू में प्रकाशित हुआ था। लेख में भविष्य के आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन को वैश्विक शासन के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षण के रूप में प्रकट किया गया है, जिसमें "भविष्य के लिये समझौता" का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सुधारों को संबोधित करना है। जबकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, शिखर सम्मेलन सार्थक परिवर्तन का अवसर प्रदान करता है यदि सदस्य देश पृष्ठीय समझौतों से परे ठोस कार्रवाई करने के लिये प्रतिबद्ध हों।
प्रिलिम्स के लिये:भविष्य के आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन, बहुपक्षवाद, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोवैक्स, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, ब्रिक्स समूह, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक, विश्व व्यापार संगठन की दोहा दौर की वार्ता, क्रिप्टोकरेंसी, विश्व आर्थिक मंच। मेन्स के लिये:बहुपक्षीय संस्थाओं का महत्त्व, बहुपक्षीय संस्थाओं की घटती भूमिका के कारण |
वैश्विक शासन एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है और 22, 23 सितंबर, 2024 को भविष्य का आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन शीघ्र ही आयोजित होने वाला है। कोविड-19 महामारी और यूक्रेन तथा गाज़ा में युद्ध जैसे संकटों के बाद बहुपक्षवाद में विश्वास कम होने के साथ, शिखर सम्मेलन का मुख्य मघ्यालंकरण- भविष्य के लिये समझौता - संयुक्त राष्ट्र सुधार और वैश्विक सहयोग के लिये एक दृष्टिकोण की रूपरेखा निर्मित करने के लिये लक्षित है। यद्यपि संशयवादी प्रश्न उठाते हैं कि क्या यह शिखर सम्मेलन वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के लंबे समय से चले आ रहे संरचनात्मक मुद्दों, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद की पुरानी शक्ति संरचना को संबोधित कर सकता है।
चुनौतियों के बावजूद, शिखर सम्मेलन वैश्विक मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई के लिये एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर वास्तविक सुधार को उत्प्रेरित कर सकता है। चर्चाओं में नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को सम्मिलित करने से बहुपक्षवाद पुनरुज्जीवित हो सकता है। यद्यपि शिखर सम्मेलन की सफलता अंततः सदस्य देशों की पृष्ठीय सहमति से आगे बढ़ने और ठोस प्रतिबद्धताओं की आकांक्षा पर निर्भर करेगी। हालाँकि भविष्य के लिये समझौता तत्काल परिवर्तनकारी बदलाव नहीं ला सकता है, परंतु यह वैश्विक शासन को पुनः जीवंत करने और यह प्रदर्शित करने के लिये एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है कि बहुपक्षवाद, यद्यपि कमज़ोर हो गया है तथापि अभी भी समाप्त नहीं हुआ है।
बहुपक्षीय संस्थाओं का महत्त्व क्या है?
- संघर्ष समाधान और शांति स्थापना: बहुपक्षीय संस्थाएँ संघर्ष के रोकथाम और समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- वर्ष 1948 से अब तक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को 71 बार परिनियोजित किया गया है, जिससे कई क्षेत्रों में संघर्षों को समाप्त करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिली है।
- मई 2023 तक, अफ्रीका, एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के 12 संघर्ष क्षेत्रों में 87,000 महिलाएँ तथा पुरुष शांति सैनिक के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं।
- आर्थिक स्थिरीकरण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ वैश्विक आर्थिक स्थिरता के संधारण हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
- वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के दौरान, IMF ने अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में सहायता हेतु 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक ऋण देने का वादा किया था।
- हाल ही में IMF वर्तमान में 35 से अधिक देशों को लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रहा है, जिनमें विशेष रूप से अर्जेंटीना, इक्वाडोर, मिस्र, इराक, जॉर्डन, ट्यूनीशिया, यूक्रेन और उप-सहारा अफ्रीका के 16 देश शामिल हैं।
- वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन: वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के समाधान और उपचार में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहता है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान, WHO ने COVAX के माध्यम से इतिहास में सबसे बड़े वैक्सीन वितरण का समन्वय किया।
- चेचक उन्मूलन (वर्ष 1980 में घोषित) तथा वर्ष 1988 से पोलियो के मामलों में 99% की कमी लाने में संगठन के प्रयास वैश्विक स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम 196 देशों को स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिये मिलकर कार्य करने हेतु एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन शमन: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) जैसी संस्थाओं द्वारा सुगमित बहुपक्षीय पर्यावरण समझौते, जलवायु परिवर्तन को न्यूनीकृत करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
- वर्ष 2015 में 196 पक्षकारों द्वारा अंगीकृत पेरिस समझौते ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखने के लिये एक वैश्विक रूपरेखा निर्धारित की।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अभिनव और सफल सिद्ध हुआ है तथा यह विश्व के सभी देशों द्वारा सार्वभौमिक अनुसमर्थन प्राप्त करने वाली पहली संधि है।
- मानवाधिकार का पक्षसमर्थन: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अन्य बहुपक्षीय निकाय वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के प्रोत्साहन तथा संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
- सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा प्रक्रिया ने वर्ष 2008 में अपनी स्थापना के बाद से सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड का मूल्यांकन किया है।
- ये संस्थाएँ मानवाधिकारों में वैश्विक उत्तरदायित्व और मानक निर्धारण के लिये तंत्र प्रदान करती हैं।
- सतत् विकास: संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को वर्ष 2015 में सभी सदस्य देशों द्वारा अंगीकृत किया गया, जो शांति और समृद्धि के लिये एक साझा रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- इन लक्ष्यों ने अतिशय निर्धनता के उन्मूलन के प्रयासों को गति प्रदान की है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक अतिशय निर्धनता दर वर्ष 1990 में 36% से घटकर वर्ष 2019 में 8.4% हो गई है।
- विश्व बैंक समूह जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों ने विकासशील देशों को कोविड-19 महामारी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने में सहायता करने हेतु वर्ष 2020-2021 में 157 बिलियन अमरीकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है, जो वैश्विक विकास प्रयासों में उनकी भूमिका को प्रदर्शित करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारण: बहुपक्षीय संस्थाएँ वैश्विक मानदंड और मानक स्थापित करने में सहायक होती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने श्रम मानक निर्धारित करने हेतु विभिन्न अभिसमयों को अंगीकृत किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने मानक निर्धारित किये हैं जिनके कारण विमानन परिवहन के सबसे सुरक्षित साधनों में से एक बन गई है।
- वैज्ञानिक और शैक्षिक उन्नति: यूनेस्को जैसे संगठन शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रोत्साहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
- जुलाई 2024 तक, 168 देशों में कुल 1,199 विश्व धरोहर स्थल (933 सांस्कृतिक, 227 प्राकृतिक और 39 मिश्रित संपत्तियाँ) विद्यमान हैं।
- शिक्षा के क्षेत्र में संगठन के प्रयासों से वैश्विक साक्षरता दर वर्ष 1820 के 12% से बढ़कर वर्ष 2020 में 87% हो गई है।
- वैज्ञानिक बहुपक्षवाद का एक प्रमुख उदाहरण, सर्न (यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन), ने वर्ष 2012 में हिग्स बोसोन जैसी अभूतपूर्व खोज की।
- जुलाई 2024 तक, 168 देशों में कुल 1,199 विश्व धरोहर स्थल (933 सांस्कृतिक, 227 प्राकृतिक और 39 मिश्रित संपत्तियाँ) विद्यमान हैं।
बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका क्यों कम हो रही है?
- वैश्विक शक्ति गतिकी में परिवर्तन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था, जिसने अनेक बहुपक्षीय संस्थाओं को जन्म दिया, अब विशीर्ण हो रही है, क्योंकि शक्ति पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रही है।
- आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय, भारत का बढ़ता प्रभाव और रूस के पुनरुत्थान ने पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं के प्रभुत्व को चुनौती दी है।
- ब्रिक्स समूह (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का विस्तार हुआ है, जो अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 37.3% प्रतिनिधित्व करता है।
- इस स्थानांतरण के कारण एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) जैसी वैकल्पिक संस्थाओं का निर्माण हुआ है, जिसके अब 109 सदस्य देश हैं।
- संप्रभुता को प्राथमिकता देने में वृद्धि: राष्ट्रों द्वारा बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं की तुलना में संप्रभुता को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है।
- ब्रेक्सिट, 47 वर्षों के बाद यूरोपीय संघ छोड़ने का ब्रिटेन का निर्णय, इस परिवर्तन का एक प्रमुख उदाहरण है।
- विश्वभर में लोकाधिकारवादी और राष्ट्रवादी नेताओं के उदय ने वैश्विक संस्थाओं के प्रति संदेह को बढ़ावा दिया है।
- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के कारण पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का विनिवर्तन इसका प्रमुख उदाहरण है।
- संस्थागत निर्णय-निर्माण में असमर्थता: बहुपक्षीय संस्थाएँ प्रायः अपने सर्वसम्मति-आधारित उपागम के कारण निर्णय-निर्माण में असमर्थता से जूझती हैं।
- वीटो शक्ति के कारण सीरिया (जिसमें वर्ष 2011 से अब तक 300,000 से अधिक मौतें हुई हैं) जैसे संघर्षों पर निर्णायक कार्रवाई करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की असमर्थता इस समस्या को प्रदर्शित करती है।
- वर्ष 2011 से अब तक रूस ने 19 वीटो लगाए हैं, जिनमें से 14 सीरिया पर थे।
- विश्व व्यापार संगठन द्वारा वर्ष 2001 में शुरू की गई दोहा दौर की वार्ता दो दशक बाद भी अनिर्णीत है, जो जटिल वैश्विक मुद्दों पर समझौते तक पहुँचने में कठिनाई को प्रदर्शित करती है।
- इस अकुशलता के कारण देश द्विपक्षीय या क्षेत्रीय समझौतों पर आगे बढ़ रहे हैं।
- वीटो शक्ति के कारण सीरिया (जिसमें वर्ष 2011 से अब तक 300,000 से अधिक मौतें हुई हैं) जैसे संघर्षों पर निर्णायक कार्रवाई करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की असमर्थता इस समस्या को प्रदर्शित करती है।
- प्रौद्योगिकी अनुकूलन अंतराल: पारंपरिक बहुपक्षीय संस्थाएँ तीव्र तकनीकी प्रगति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये संघर्ष कर रही हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी विनियमन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता शासन और साइबर सुरक्षा खतरों जैसे मुद्दों के लिये त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, जो नौकरशाही संस्थाएँ प्रायः प्रदान नहीं कर पाती हैं।
- अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को नया आकार देने की क्षमता के बावजूद, एआई विनियमन के प्रति एक सुसंगत वैश्विक दृष्टिकोण का अभाव इस चुनौती को और अधिक रेखांकित करता है।
- ह्रासोन्मुख सार्वजनिक विश्वास: बहुपक्षीय संस्थाओं में सार्वजनिक विश्वास का निरंतर ह्रास हो रहा है, जो अभिजात्यवाद और पारदर्शिता की कमी की धारणाओं के कारण है।
- वर्ष 2021 में विश्व बैंक के विवादास्पद "डूइंग बिज़नेस" रिपोर्ट घोटाले, जिसके कारण इसे बंद कर दिया गया, ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में विश्वास को और अपरदित कर दिया।
- विश्वास की इस कमी के कारण बहुपक्षीय निकायों के लिये अपनी पहलों और नीतियों हेतु समर्थन जुटाना कठिन हो जाता है।
- वित्तीय बाधाएँ: कई बहुपक्षीय संस्थाओं को लगातार अपर्याप्त वित्तपोषण का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की उनकी क्षमता सीमित हो रही है।
- वर्ष 2022 के लिये संयुक्त राष्ट्र का नियमित बजट केवल 3.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कई बहुराष्ट्रीय निगमों के वार्षिक राजस्व से भी कम है।
- यह वित्तीय बाधा संस्थाओं को स्वैच्छिक योगदान पर अधिक निर्भर रहने के लिये बाध्य करती है, जिससे उनकी स्वतंत्रता और दीर्घकालिक एजेंडा निर्धारित करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- प्रतिनिधित्व असंतुलन: कई बहुपक्षीय संस्थाएँ अभी भी 20वीं सदी के मध्य की शक्ति गतिकी को प्रतिबिंबित करती हैं, जिससे उनकी वैधता पर प्रश्न उठते हैं।
- वैश्विक सत्ता में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में वर्ष 1945 से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
- भारत, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान जैसे देश, जो स्थायी सीटों के प्रमुख दावेदार हैं, अभी भी पैनल से बाहर रखे गए हैं।
- IMF का वोटिंग शेयर अभी भी पश्चिमी देशों के पक्ष में है। अफ्रीकी देशों की अभी भी विश्व बैंक और IMF के निर्णयन में बहुत कम भागीदारी है, IMF बोर्ड में उनकी वोट हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम है।
- प्रतिनिधित्व की यह कमी असंतोष को उत्प्रेरित करती है और उभरती शक्तियों को वैश्विक सहभागिता के लिये वैकल्पिक मंचों का अनुसरण करने के लिये बाध्य करती है।
- वैश्विक सत्ता में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में वर्ष 1945 से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
- वैश्विक मुद्दों पर एकाकी उपागम: अनेक बहुपक्षीय संस्थाओं की खंडित प्रकृति के कारण जटिल, परस्पर संबद्ध वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना कठिन हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, जलवायु परिवर्तन के लिये पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक निकायों के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है।
- फिर भी, खंडित दृष्टिकोण प्रायः अप्रभावी प्रतिक्रियाओं की ओर ले जाता है।
- केवल संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में 15 से अधिक अलग-अलग एजेंसियाँ जलवायु परिवर्तन के पहलुओं पर कार्य कर रही हैं, जिनके कार्य क्षेत्र और प्राथमिकताएँ प्रायः एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं, जिससे एक सुसंगत वैश्विक कार्यनीति-निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है।
बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार हेतु कौन-सी कार्यनीतियाँ कार्यान्वित की जा सकती हैं?
- शक्ति समीकरण का पुनर्संतुलन: वर्तमान वैश्विक आर्थिक और जनसांख्यिकीय वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये मतदान संरचनाओं में सुधार।
- उदाहरण के लिये, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार की आवश्यकता है ताकि भारत, ब्राज़ील, जापान और अफ्रीका जैसी उभरती शक्तियों को इसमें सम्मिलित किया जा सके।
- IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में भारित मतदान प्रणाली का कार्यान्वयन किया जा सकता है, जो जीडीपी, जनसंख्या और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर गतिशील रूप से समायोजित हो।
- सुरक्षा परिषद सुधार के लिये अफ्रीकी संघ का प्रयास तथा वर्ष 2023 में G-20 द्वारा AU को स्थायी सदस्य के रूप में समावेशन, ऐसे परिवर्तनों के लिये वर्द्धित गति को प्रदर्शित करता है।
- डिजिटल लोकतंत्र का अंगीकरण: अधिक समावेशी वैश्विक निर्णयन की प्रक्रियाओं के लिये सुरक्षित डिजिटल प्लेटफॉर्म का कार्यान्वयन।
- बहुपक्षीय मंचों पर पारदर्शी मतदान और निर्णय-पदांकन सुनिश्चित करने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग।
- अंतर्राष्ट्रीय बैठकों के दौरान वास्तविक समय में भाषा संबंधी बाधाओं को समाप्त करने के लिये AI-संचालित अनुवाद सेवाओं का विकास।
- एस्टोनिया का ई-गवर्नेंस मॉडल, जो नागरिकों को ऑनलाइन मतदान और सरकारी सेवाओं तक अभिगम्य बनाता है, वैश्विक संस्थाओं में डिजिटल एकीकरण के लिये प्रेरणा का कार्य कर सकता है।
- अनुकूली गठबंधन गठन: तत्काल वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये बहुपक्षीय ढाँचे के भीतर मुद्दा-विशिष्ट गठबंधनों के गठन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। ये गठबंधन बड़े, आम सहमति-आधारित निकायों की तुलना में अधिक तेज़ी से कार्य कर सकते हैं।
- हाई एम्बिशन कोएलिशन फॉर नेचर एंड पीपल, जिसने वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क में 30x30 लक्ष्य को सफलतापूर्वक अग्रेषित किया, ऐसी सुनम्य व्यवस्थाओं की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करता है।
- वैश्विक लक्ष्यों का स्थानीयकरण: वैश्विक समझौतों को अधिक प्रभावी ढंग से स्थानीय कार्रवाई में परिवर्तित करने के लिये प्रणाली का विकास किया जा सकता है।
- वैश्विक पहलों के कार्यान्वयन के लिये बहुपक्षीय संस्थाओं से स्थानीय सरकारों और नागरिक समाज संगठनों तक प्रत्यक्ष निधियन माध्यम का सृजन किया जा सकता है।
- वैश्विक शासन में शहरी भागीदारी बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट सिटीज़ प्रोग्राम जैसे कार्यक्रमों का विस्तार किया जा सकता है।
- उन्नत पारदर्शिता उपाय: सभी बहुपक्षीय संस्थाओं में व्यापक खुली डेटा नीतियों का कार्यान्वयन किया जा सकता है।
- संस्थागत परिचालनों की देखरेख के लिये विभिन्न देशों से आवर्ती सदस्यता वाली लेखा परीक्षा समितियों की स्थापना की जा सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहायता पारदर्शिता पहल (IATI), जो सहायता व्यय के आँकड़ों को खुले तौर पर उपलब्ध कराती है, को बहुपक्षीय परिचालनों के सभी पहलुओं को सम्मिलित करने के लिये विस्तारित किया जा सकता है।
- उत्तरदायित्व में वृद्धि करने के लिये उपयोगकर्त्ता अनुकूल डैशबोर्ड और नियमित सार्वजनिक रिपोर्टिंग प्रणाली का विकास किया जा सकता है।
- बहु-हितधारक अनुबंधता: बहुपक्षीय निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में निजी क्षेत्र और नागरिक समाज की अनुबंधता हेतु प्रणाली को औपचारिक बनाया जा सकता है।
- विश्व आर्थिक मंच के बहु-हितधारक अनुबंधता मॉडल को औपचारिक बहुपक्षीय संस्थाओं के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
- वैश्विक शासन में कॉर्पोरेट अनुबंधता के लिये अधिक बाध्यकारी प्रतिबद्धताएँ निर्मित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट जैसी पहलों का विस्तार किया जा सकता है।
- संकट प्रतिक्रिया तत्परता: आपात स्थितियों में कार्य करने के लिये पूर्व-स्वीकृत निधियन और प्राधिकार के साथ बहुपक्षीय संस्थाओं के भीतर समर्पित त्वरित प्रतिक्रिया इकाईयाँ विकसित की जा सकती है।
- एक वैश्विक आपातकालीन समन्वय मंच का निर्माण किया जा सकता है जो विभिन्न एजेंसियों एवं देशों के डेटा और संसाधनों को एकीकृत करे।
- विभिन्न संस्थाओं और देशों को सम्मिलित करते हुए नियमित वैश्विक संकट अनुकृति अभ्यास कार्यान्वित किया जा सकता है।
- व्यापक डिजिटल शासन: साइबर सुरक्षा, डेटा गोपनीयता और AI नीतिपरकता जैसे मुद्दों को संबोधित करते हुए एक व्यापक वैश्विक डिजिटल शासन ढाँचे का विकास किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के समन्वय हेतु डिजिटल मामलों के लिये एक समर्पित एजेंसी का निर्माण किया जा सकता है।
- साइबर अपराध पर बुडापेस्ट अभिसमय, इंटरनेट के माध्यम से किये गए अपराधों पर पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि, व्यापक डिजिटल शासन प्रयासों के लिये आधार का कार्य कर सकती है।
बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार लाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है?
- विकसित और विकासशील देशों के बीच सेतु का कार्य: एक विकासशील देश और एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपनी विशिष्ट स्थिति के साथ भारत, वैश्विक उत्तर तथा दक्षिण के बीच एक महत्त्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य कर सकता है।
- विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश और पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, समतापूर्ण वैश्विक शासन सुनिश्चित करने में भारत का दृष्टिकोण अमूल्य है।
- वर्ष 2023 में G-20 में भारत का नेतृत्व, जहाँ इसने विकासशील देशों के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और जलवायु वित्त जैसे मुद्दों पर नेतृत्व किया, इस सेतु निर्माण भूमिका का उदाहरण है।
- देश का "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" G-20 विषय विकसित और विकासशील दोनों देशों को पसंद आया, जिससे वैश्विक एकता को बढ़ावा देने में भारत की क्षमता प्रदर्शित हुई।
- वैश्विक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का सुदृढ़ीकरण: विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत बहुपक्षीय संस्थाओं के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- लोकतांत्रिक ढाँचे में विविध विचारों और हितों के प्रबंधन में भारत का अनुभव वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में सुधारों को सूचित कर सकता है।
- वर्ष 2024 का भारतीय आम चुनाव एक विशाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जिसका वैश्विक और ऐतिहासिक स्तर पर कोई मुकाबला नहीं है तथा यह वैश्विक शासन प्रणाली में पारदर्शिता एवं दक्षता में वृद्धि के लिये सबक प्रदान करता है।
- डिजिटल नवाचार नेतृत्व: सूचना प्रौद्योगिकी में भारत की दक्षता और बड़े पैमाने पर डिजिटल पहलों का सफल कार्यान्वयन इसे वैश्विक शासन के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में अग्रणी बनाता है।
- भारत की आधार प्रणाली, विश्व का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक आईडी कार्यक्रम, वैश्विक स्तर पर डिजिटल पहचान समाधान के लिये एक मॉडल प्रस्तुत करता है।
- वर्ष 2023 में, भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस ने कुल 2.19 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के 117 बिलियन वित्तीय लेन-देन को संभाला।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये समान मंच बनाने के प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है।
- जलवायु कार्रवाई उत्प्रेरक: एक प्रमुख उत्सर्जक और जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक सुभेद्य देश के रूप में, भारत सुधारित बहुपक्षीय ढाँचे के भीतर न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- वर्ष 2070 तक इसके महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा के साथ सकल-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता
- भारत द्वारा शुरू किये गए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में अब 110 देश सदस्य हैं और यह सतत् विकास के लिये नई बहुपक्षीय प्रणाली बनाने की भारत की क्षमता का उदाहरण है।
- शांति स्थापना अभियानों में विशेषज्ञता: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में भारत का व्यापक अनुभव उसे वैश्विक सुरक्षा प्रणाली में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सबसे बड़े योगदानकर्त्ताओं में से एक होने के नाते, जिसने 49 मिशनों में 200,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, भारत अधिक प्रभावी और उत्तरदायी शांति स्थापना कार्यनीतियों की वकालत कर सकता है।
- भारत का महिला शांति सेना को समर्थन देने का एक लंबा इतिहास रहा है और वर्ष 2007 में लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र बल में पूर्ण महिला सैन्य टुकड़ी भेजने वाला पहला देश था।
- भारत की "मानव-केंद्रित" शांति स्थापना की अवधारणा, जो क्षमता निर्माण और सामुदायिक सहभागिता पर केंद्रित है, संघर्ष समाधान उपागम में व्यापक सुधारों को सूचित कर सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सबसे बड़े योगदानकर्त्ताओं में से एक होने के नाते, जिसने 49 मिशनों में 200,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, भारत अधिक प्रभावी और उत्तरदायी शांति स्थापना कार्यनीतियों की वकालत कर सकता है।
- वैक्सीन कूटनीति में अग्रणी: "विश्व की फार्मेसी" के रूप में भारत की भूमिका और इसके वैक्सीन सामरिक प्रयास इसे वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में सुधारों का नेतृत्व करने की स्थिति में लाते हैं।
- कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने 150 से अधिक देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व के लिये उसकी क्षमता का प्रदर्शन हुआ।
- भारत महामारी से निपटने की तैयारी बढ़ाने तथा वैश्विक स्तर पर दवाओं और टीकों तक समान अभिगम्यता सुनिश्चित करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधारों का समर्थन कर सकता है।
- सांस्कृतिक राजनयन: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इसका "वसुधैव कुटुम्बकम" (विश्व एक परिवार है) का दर्शन वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक विशिष्ट आधार प्रदान करता है।
- सुधारित बहुपक्षवाद में, भारत ऐसे पहलों को अग्रेषित कर सकता है जो सांस्कृतिक विनिमय और आपसी विवेक का विस्तार कर सकते हैं, जो प्रभावी वैश्विक शासन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- विश्वभर में लोकतंत्र की साझी विरासत को समर्पित यूनेस्को विरासत स्थल के लिये भारत का प्रस्ताव इस बात का उदाहरण है कि वह किस प्रकार बहुपक्षीय सहयोग को सुदृढ़ करने के लिये सांस्कृतिक राजनयन का उपयोग कर सकता है।
निष्कर्ष:
जबकि बहुपक्षीय संस्थाओं को परिवर्तित होती वैश्विक व्यवस्था के अनुकूल होने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन वैश्विक शासन को पुनर्जीवित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। सुधार प्रयासों की सफलता सार्थक परिवर्तन को अंगीकृत करने के लिये सदस्य देशों की इच्छा पर निर्भर करेगी। भारत, अपने बढ़ते वैश्विक कद के साथ, नेतृत्व करने और विभाजन को पाटने के लिये अच्छा विकल्प है, जो समकालीन चुनौतियों का समाधान करने वाली अधिक समावेशी और प्रभावी बहुपक्षीय प्रणाली पर बल दे रहा है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: वैश्विक शासन में बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा समकालीन मुद्दों के समाधान में उनके समक्ष प्रस्तुत होने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नQ. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की उत्तर: (a) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मुख्य:Q. 'मोतियों के हार' (द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) से आप क्या समझते हैं? यह भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है? इसका सामना करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिये। (2013) |