विशेष: संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के 70 वर्ष: वैश्विक शांति कायम रखने में भारत की भूमिका
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में 29 मई को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना ने अपने गठन के 70 वर्ष पूरे कर लिये। 29 मई, 1948 के बाद से विश्वभर में शांति की निगरानी के लिये इसका योगदान अतुलनीय रहा है। तब से लेकर अब तक भारत ने इस संगठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस शांति सेना में सैन्य योगदान के नज़रिये से विश्व के सभी देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। इसके अलावा विभिन अशांत क्षेत्रों में चलाए जाने वाले शांति मिशनों में हताहत होने वालों में सबसे ज़्यादा संख्या भारतीयों की होती है।
- वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के दुनियाभर में 14 शांति अभियान चल रहे हैं, जो अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में केंद्रित रहे हैं। इसमें भी अधिकांश अफ्रीका महाद्वीप में चल रहे हैं। इनमें भारत और पाकिस्तान के अलावा कोसोवो, दक्षिणी सूडान, साइप्रस, तिमूर, कांगो, सियरा लियोन, लेबनान, पश्चिमी सहारा, माली, अबेयी, हैती तथा मध्य-पूर्व के देश शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना दिवस
युद्ध/गृहयुद्ध/जातीय संघर्ष से प्रभावित देशों में शांति तथा सुरक्षा स्थापित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले बहादुर पुरुषों, महिलाओं के कार्य की सराहना तथा उनके सम्मान हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2003 में एक प्रस्ताव पारित कर 29 मई का दिन संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में आयोजित करने का निर्णय किया।
- यह दिवस वर्ष 1948 से संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के अधीन कार्यरत शांति सैनिकों को संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित करने हेतु उनके प्रयासों के लिये याद किया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय शांति सैनिक दिवस, 2018 का विषय संयुक्त राष्ट्र शांतिकर्मी: 70 साल की सेवा एवं बलिदान है।
- इस दिवस के आयोजन के लिये 29 मई को इसलिये चुना गया क्योंकि इसी दिन 1948 में सुरक्षा परिषद ने संयुक्त राष्ट्र ट्रूस सुपरविज़न आर्गेनाईज़ेशन (United Nations Truce Supervision Organization-UNTSO) का गठन किया था और यरुशलम में इसकी तैनाती की थी।
- इस संगठन को अरब-इज़राइल युद्ध में शांति वार्ता की निगरानी करने के लिये नियुक्त किया गया था और इसमें 36 सशस्त्र सैन्य पर्यवेक्षकों को शामिल किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र की नहीं है अपनी कोई सेना
- संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय इस सेना की परिकल्पना नहीं की गई थी, बल्कि बदलती परिस्थितियों के साथ इसका विकास होता गया।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सेना संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सेनाओं की मदद से एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में अलग-अलग परिस्थितियों में गठित की जाती है।
- इसका उद्देश्य टकराव को दूर करके शांति स्थापित करने में मदद करना होता है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक नीले रंग की कैप लगाते हैं या नीले रंग के हेल्मेट पहनते हैं, जो अब इस सेना की पहचान बन गई है।
- संयुक्त राष्ट्र की अपनी कोई सेना नहीं है और शांति सेना के सदस्य अपने देश की सेना के सदस्य ही रहते हैं।
- शांति सेना के रूप में कार्य करते समय यह सेना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रभावी नियंत्रण में होती है और शांति रक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है।
- संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में सुरक्षा परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये संयुक्त कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
क्या है संयुक्त राष्ट्र शांति सेना?
- इसका आरंभ 1948 में किया गया था और इसने अपने पहले ही मिशन, 1948 में हुए अरब-इज़राइल युद्ध के दौरान युद्धविराम का पालन करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- तब से संयुक्त राष्ट्र शांति सेना गृहयुद्ध और जातीय हिंसा के शिकार देशों में शांति स्थापना का महत्त्वपूर्ण काम करती आ रही है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक विविध पृष्ठभूमियों से संबंध रखते हैं। इसमें 119 देशों के सैनिक, सेना के पर्यवेक्षक तथा सिविल पुलिस अधिकारी काम कर रहे हैं।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक बल को 1988 में नोबेल शांति पुरस्कार से समानित किया गया था।
- वर्तमान में 4 महाद्वीपों में 17 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान चलाए जा रहे हैं।
तीन बुनियादी सिद्धांत
- शामिल सभी पक्षों की सहमति का ख्याल रखना।
- शांति व्यवस्था कायम रखने के दौरान निष्पक्ष बने रहना।
- आत्म-रक्षा और जनादेश की रक्षा के अलावा किसी भी स्थिति में बल प्रयोग नहीं करना।
चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं
- शांति रक्षा मिशन के लिये आज्ञापत्र को लागू करने में भारत जैसे देशों की भूमिका तो होनी चाहिये, साथ ही वैश्विक शांति बहाल करने हेतु महत्त्वपूर्ण नीतियों और सैद्धांतिक मुद्दों पर शांति सैनिक प्रदान करने वाले देशों तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बीच अधिक प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है।
- वर्तमान दौर में शांति अभियानों के दौरान कई जटिल चुनौतियाँ देखने को मिलती हैं। ऐसे में शांति कायम करने के लिये सुरक्षा परिषद के सदस्यों, शांति सैनिक योगदानकर्त्ता प्रमुख देशों और संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के बीच एक राजनीतिक आम सहमति का बनना आवश्यक है।
- वस्तुतः संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के अभियान एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ स्थितियाँ विपरीत और बहुआयामी हैं तथा जहाँ शांति कार्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में तैनात वर्दीधारी सैनिकों की संख्या पिछले 10 वर्ष में लगभग दोगुनी हो गई है। ऐसे में शांति अभियानों को विभिन्न प्रकार के वातावरणों में विशेष मांगों को पूरा करने की आवश्यकता होती है और लचीलेपन व तत्परता के लिये समस्त क्षमताओं को अनुकूल एवं प्रभावी रूप में एकजुट करना आवश्यक है।
- सुरक्षा का परिवेश भी बदल रहा है, शांति स्थापना की मांग भी बढ़ रही है और संसाधन जुटाना कठिन हो गया है। ऐसे में शांति स्थापना मिशनों को उनकी सीमाओं और राजनीतिक समाधान के समर्थन के साथ कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
भारत में भी तैनात रह चुके हैं संयुक्त राष्ट्र के सैन्य पर्यवेक्षक
पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर पर किये गए हमले की शिकायत लेकर 6 जनवरी 1948 को भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गया था। चूँकि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की धारा 35 के नियमों के तहत सुरक्षा परिषद में गया था, इसलिये भारत पर हुए पाकिस्तान के हमले के विषय पर 6 बिंदुओं वाला एक प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव पर पाकिस्तान ने कभी अमल ही नहीं किया।
UNMOGIP
- 1949 में कराची समझौते के बाद United Nations Military Observer Group in India and Pakistan (UNMOGIP) की तैनाती हुई थी, जबकि नियंत्रण रेखा (LoC) 1973 में अस्तित्व में आई।
- भारत यह मानता है कि UNMOGIP को जिस नियंत्रण रेखा की निगरानी करने के लिये बनाया गया था, वह अब मौजूद ही नहीं है, क्योंकि 1972 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते के बाद इसकी प्रासंगिकता ही खत्म हो गई है।
- भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौते में यह व्यवस्था की थी कि दोनों देश कश्मीर पर विवाद का समाधान द्विपक्षीत वार्ता के माध्यम से करेंगे, तो ऐसे में UNMOGIP की कोई भूमिका नहीं बचती।
- वैसे भी सैन्य पर्यवेक्षक समूह कश्मीर की स्थिति पर नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पर नज़र रखने के लिये अधिकृत थे।
- 2018-19 के लिये इस सैन्य पर्यवेक्षक समूह के बजट में संयुक्त राष्ट्र ने 11.39% की कमी कर दी है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
भारत की भूमिका
- भारत शुरू से ही संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के विभिन्न मिशनों में शामिल होता रहा है।
- कोसोवो, सूडान, साइप्रस, तिमूर, कांगो, सियरा, लियोन, लाइबेरिया, हैती आदि देशों में कार्यरत भारतीय सैनिकों की प्रशंसा न केवल संयुक्त राष्ट्र संघ करता रहा है, बल्कि स्थानीय नागरिकों द्वारा भी उनके काम को सराहा जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा मिशनों में बड़ी संख्या में सैनिकों और पुलिस का योगदान देने वाले देशों में भारत का नाम भी शामिल है।
- भारत अब तक विभिन्न शांति अभियानों के तहत 180,000 से अधिक भारतीय सैनिकों को भेज चुका है।
- भारत ने 82 देशों के लगभग 800 शांति स्थापना अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया है।
महिला पुलिस भी भेजी
कुछ समय पूर्व लाइबेरिया में शांति बहाल करने के लिये 15 वर्षों से चल रहा संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन सफल रहने के बाद आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया। पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नाइजीरिया और भारत सहित कई देशों की सेना और पुलिस लाइबेरिया में तैनात थी। लेकिन इस मिशन में भारतीय महिला शांति सैनिक भी शामिल हुई थीं। भारत लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन के लिये महिला पुलिस यूनिट का योगदान करने वाला एकमात्र देश था। इस मिशन में 2007 से इंडियन फॉर्म्ड पुलिस यूनिट की 125 महिलाएँ तैनात थीं और उन्होंने लाइबेरिया की महिलाओं को भी पुलिस में भर्ती होने के लिये प्रेरित किया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत
- भारत 7 बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है--1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12
- भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है
- भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना संबंधी अभियानों में योगदान करने वाला सबसे बड़ा देश है
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना से संबंधित 64 अभियानों में से 43 अभियानों में 1,60,000 से अधिक सैनिकों का योगदान किया है
- संयुक्त राष्ट्र के नीले झंडे के नीचे लड़ते हुए भारतीय सशस्त्र एवं पुलिस बल के 160 से अधिक कार्मिकों ने अपने जीवन की आहुति दी है।
- वर्तमान में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना के 14 मिशनों में से 7 मिशनों में भारतीय सशस्त्र बलों की मौजूदगी है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका
- पिछले कुछ दशकों में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र को ऐसे मंच के रूप में देखा है जो अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के गारंटर के रूप में भूमिका निभा सकता है।
- हाल के समय में भारत ने विकास एवं गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, जल-दस्युता, निरस्त्रीकरण, मानवाधिकार, शांति निर्माण एवं शांति स्थापना की बहुपक्षीय वैश्विक चुनौतियों की पृष्ठभूमि में संघर्ष करने के लिये संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है।
- 1950 और 1960 के दशकों में भारत ने अफ्रीका एवं एशिया के उस समय तक पराधीन देशों की आजादी का समर्थन करने के लिये संयुक्त राष्ट्र में नव-स्वतंत्र देशों का नेतृत्व किया।
- भारत ने उपनिवेशिक देशों एवं लोगों को आज़ादी प्रदान करने पर 1960 की महत्त्वपूर्ण घोषणा को सह- प्रायोजित किया जिसने सभी रूपों एवं अभिव्यक्तियों के उपनिवेशवाद को किसी शर्त के बिना समाप्त करने की आवश्यकता को प्रमाणित किया।
- भारत दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद एवं नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में भी सबसे आगे रहा। भारत ऐसा पहला देश था जिसने 1946 में संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाया और महासभा द्वारा रंगभेद के विरुद्ध उपसमिति के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई।
- भारत 1965 में अपनाए गए सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन को लेकर अभिसमय पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाले देशों में से एक था।
- भारत संयुक्त राष्ट्र में हमेशा मज़बूत आवाज़ रहा है, क्योंकि इसने गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) तथा विकासशील देशों का समूह 77 गठित किया।
- 1996 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक प्रारूप व्यापक अभिसमय (CCIT) प्रस्तुत किया था, जिसका उद्देश्य आतंकवाद से लड़ने के लिये एक विस्तृत कानूनी रूपरेखा प्रदान करना था।
- भारत संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि जैसी संयुक्त राष्ट्र निधियों में योगदान करने वाले प्रमुख देशों में से एक है। लोकतांत्रिक मूल्यों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिये भारत इस निधि में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।
- हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं में सुधार के लिये आह्वान करने के अलावा भारत ने सभी रूपों के आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस के दृष्टिकोण का समर्थन किया है।
निष्कर्ष: संकटग्रस्त इलाकों में शांति कायम करने के लिये विश्व के विभिन्न भागों में संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों को तैनात किया जाता है। हालिया कुछ दशकों में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों के काम करने के तरीकों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। एकीकृत और बहुआयामी मिशनों के दौरान शांति सैनिकों को लगातार बेहद जटिल आज्ञाओं का पालन करना होता है और उन्हें प्रायः बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। संघर्षों का बदलता स्वरूप शांति स्थापना बल से उत्तरोत्तर अधिक प्रयास करने की मांग करने लगा है। संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की सफलता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्णयों के नैतिक बल पर निर्भर करती है और इसके लिये भारत की प्रतिबद्धता अभी भी मज़बूत बनी हुई है एवं यह आगे और मज़बूत होगी।