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जलवायु अनुकूल कृषि

  • 15 Jul 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु-अनुकूल कृषि, FAO, जलवायु परिवर्तन, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), कृषि वानिकी

मेन्स के लिये:

जलवायु-अनुकूल कृषि, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार जलवायु की दृष्टि से संवेदनशील ज़िलों में स्थित 50,000 गाँवों में जलवायु-अनुकूल कृषि (Climate Resilient Agriculture- CRA)) को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा का अनावरण करने की योजना बना रही है।

जलवायु अनुकूल कृषि (CRA) क्या है?

  • परिचय:
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO)) के अनुसार, जलवायु अनुकूल कृषि को "जलवायु और चरम मौसम में परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने तथा उसके लिये तैयारी करने, साथ ही उसके अनुकूल होने, उसे आत्मसात करने एवं उससे उबरने की कृषि प्रणाली की क्षमता" के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) की एक नेटवर्क परियोजना, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (National Innovations on Climate Resilient Agriculture- NICRA) ने कृषि और किसानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन किया।
    • अध्ययनों से संकेत मिलता है कि अनुकूलन उपायों की अनुपस्थिति में, जलवायु परिवर्तन अनुमानों से वर्ष 2020-2039 की अवधि के लिये सिंचित चावल की पैदावार में 3%, वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 7 से 28%, गेहूँ की पैदावार में 3.2-5.3%, मक्का की पैदावार में 9-10% की कमी आने की संभावना है और सोयाबीन की पैदावार में 2.5-5.5% की वृद्धि होने की संभावना है।
    • सूखे जैसी चरम घटनाएँ खाद्य और पोषक तत्त्वों की खपत को प्रभावित करती हैं, गरीबी को बढ़ाती हैं, पलायन को बढ़ावा देती हैं, ऋणग्रस्तता बढ़ाती हैं तथा किसानों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता को कम करती हैं।
  • CRA पद्धति:
    • कृषि वानिकी: कृषि वानिकी में फसलों के साथ-साथ पौंधों की खेती भी शामिल है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार, मृदा अपरदन में कमी तथा जैवविविधता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • यह पद्धति मृदा में नमी बनाए रखने में मदद करती है तथा किसानों को अनेक लाभ प्रदान करती है।
    • मृदा एवं जल संरक्षण: कंटूर बंडिंग, कृषि तालाब और चेक डैम जैसी तकनीकें मृदा में नमी बनाए रखने, मृदा अपरदन को कम करने तथा भू-जल पुनर्भरण को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
      • ये पद्धतियाँ किसानों को सूखे और जल की कमी से निपटने में भी मदद कर सकती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ती जा रही हैं।
    • सतत् कृषि: फसल विविधीकरण, जैविक कृषि और एकीकृत कीट प्रबंधन जैसी पद्धतियाँ रासायनिक इनपुट के उपयोग को कम करने तथा मृदा स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करती हैं।
    • पशुधन प्रबंधन: पशुधन प्रबंधन पद्धतियाँ, जैसे स्टाल-फीडिंग और मिश्रित फसल, पशुधन प्रणालियों की उत्पादकता तथा लचीलेपन में सुधार कर सकती हैं।
      • इन प्रथाओं से प्राकृतिक संसाधनों जैसे चरागाह भूमि पर दबाव भी कम होता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण दुर्लभ होते जा रहे हैं।

जलवायु अनुकूल कृषि हेतु सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

  • सरकार जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NAPCC) का क्रियान्वयन कर रही है, जो देश में जलवायु कार्रवाई के लिये नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture- NMSA) NAPCC के अंतर्गत भारतीय कृषि को अधिक लचीला बनाने के लिये चलाए जा रहे मिशनों में से एक है।
    • NMSA को तीन प्रमुख घटकों अर्थात् वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (Rainfed Area Development- RAD), खेत जल प्रबंधन (On Farm Water Management- OFWM) और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (Soil Health Management- SHM) के लिये अनुमोदित किया गया था।
    • इसके बाद चार नए कार्यक्रम शुरू किये गए, जिनके नाम हैं मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER) और प्रति बूंद अधिक फसल।
    • इसके अतिरिक्त पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission- NBM) अप्रैल 2018 में शुरू किया गया।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार (National Innovations in Climate Resilient Agriculture- NICRA) नामक एक प्रमुख नेटवर्क परियोजना शुरू की।
    • यह एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-स्थानीय कार्यक्रम है जिसका मूल उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और परिवर्तनीयता को संबोधित करना तथा समग्र देश में हितधारकों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करना है।
    • कृषि और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई पहलुओं पर नीतिगत जानकारी प्रदान करने के अतिरिक्त अनुसंधान, प्रदर्शन तथा क्षमता निर्माण इसके तीन प्रमुख घटक हैं।
    • जलवायु अनुकूल कृषि पर ICAR की प्रमुख उपलब्धियों में 1888 जलवायु उपयुक्त फसल किस्मों का विकास, 650 ज़िलों के लिये ज़िला कृषि आकस्मिकता योजनाओं (District Agriculture Contingency Plans- DACP) का विकास आदि शामिल हैं।
  • सरकार ने लघु भू-धारकों सहित किसानों को जलवायु संबंधी जोखिमों से बचाने के लिये वर्ष 2016 के खरीफ सीज़न से उपज आधारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के सहित पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS) की शुरुआत की है।
    • इस योजना का उद्देश्य अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं, मौसम की प्रतिकूल घटनाओं के कारण फसल हानि/क्षति से पीड़ित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करके कृषि क्षेत्र में सतत् उत्पादन को बढ़ावा देना है ताकि किसानों की आय में स्थिरता लाई जा सके।

जलवायु अनुकूल कृषि से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • विकासशील देश जलवायु जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं क्योंकि वे प्रमुख रूप से कृषि पर निर्भर हैं तथा जोखिम प्रबंधन के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकियों का अभाव है। उदाहरण हेतु भारत में 65% जनसंख्या कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई है।
    • जोखिमों को कम करने और अनुकूलन उपायों के अभाव के कारण ये गरीब किसान निम्न आय, उच्च ऋण तथा गरीबी के चक्र से उबर नहीं पाते हैं।
  • वर्तमान में MSP व्यवस्था कुछ फसलों पर केंद्रित है जिसमें अन्य फसलों के लिये पर्याप्त सहायता नहीं दी जाती है जिसके परिणामस्वरूप फसलों का विविधीकरण कम होता है।
  • विशेष रूप से उत्तरी भारत में भू-जल पर अत्यधिक निर्भरता से सतत् कृषि के क्षेत्र में किये गए प्रयासों की प्रभावशीलता कम होती है।
  • कृषि क्षेत्र का देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 14% योगदान है और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन दर में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
  • भारत की कृषि उत्पादकता अन्य प्रमुख उत्पादकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, जहाँ प्रति हेक्टेयर चावल की औसत उपज लगभग 2.5 टन है जबकि चीन में प्रति हेक्टेयर औसतन लगभग 6.5 टन है।
  • जलवायु परिवर्तन नीति का सबसे चुनौतीपूर्ण राजनीतिक पहलू ग्राम पंचायतों या स्थानीय स्वशासी निकायों द्वारा अपर्याप्त मान्यता है, जिसके कारण ज़मीनी स्तर पर नीतिगत पहल का अभाव है।

आगे की राह 

  • विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को तकनीकी उन्नति, मौसम विज्ञान और डेटा विज्ञान जैसे एकीकृत दृष्टिकोणों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • जलवायु और मौसम संबंधी घटनाओं से किसानों की रक्षा के लिये राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार (NICRA) योजना को सभी जोखिम-संवेदनशील गाँवों में लागू किया जाना चाहिये।
  • फसलों के विविधीकरण की आवश्यकता है जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में सक्षम बनाएगी।
    • फसल विविधता खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, मृदा की उर्वरता बढ़ाने, कीटों को नियंत्रित करने और उपज स्थिरता लाने में भी मदद करती है।
  • ड्रिप सिंचाई के दायरे में न केवल उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों अपितु अन्य फसलों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
  •  सरकार को भू-जल निष्कर्षण के संदर्भ में बिजली सब्सिडी पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार करना चाहिये, क्योंकि भू-जल स्तर में कमी आने में इसकी प्रमुख भूमिका होती है। 
    • सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित करने, जल को संरक्षित करने तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने वाले उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • चूँकि जैविक खेती में ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की क्षमता होती है, इसलिये संबंधित मंत्रालय द्वारा जलवायु परिवर्तन के अनुकूल जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिये।
    • जैविक खेती में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग प्रतिबंधित होने से नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है।
  • कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के बुनियादी ढाँचे के साथ तकनीकी सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता है। उन्हें स्थानीय भाषाओं में जानकारी प्रदान करने के लिये तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना चाहिये। ये परिवर्तन मौजूदा KVK को नया रूप देने के साथ उन्हें जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये सुसज्जित करेंगे।
  • जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों को अपनाने और उनका प्रसार करने के क्रम में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। इन फसलों में तापमान तथा वर्षा के उतार-चढ़ाव के प्रति सहनशीलता अधिक होने के साथ जल और पोषक तत्त्वों का अनुकूल उपयोग सुनिश्चित होगा।
    • कृषि नीति के तहत फसल उत्पादकता में सुधार को प्राथमिकता देने के साथ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों से निपटने हेतु सुरक्षा संजाल तैयार किया जाना चाहिये।
  • जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में प्रशासन द्वारा किये गए प्रयासों से तब वांछित परिणाम नहीं मिल सकते हैं जब तक कि स्थानीय शासन को कृषि नीति-निर्माण में शामिल नहीं किया जाता है।
    • चूँकि पंचायतें कई सरकारी योजनाओं से धन प्राप्त कर सकती हैं, इसलिये इस संदर्भ में जागरूकता लाभप्रद होगी।
    • जलवायु के प्रति सर्वोत्तम अनुकूलनीय पद्धतियों को अपनाने वाले गाँवों हेतु राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर रैंकिंग प्रणाली शुरू करने से ऐसी पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहन मिल सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को बताते हुए इन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय बताइए?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी० सी० ए० एफ० एस०) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2. सी० सी० ए० एफ० एस० परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी० जी० आइ० ए० आर०) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आइ० सी० आर० आइ० एस० ए० टी०), सी० जी० आइ० ए० आर० के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)


Q. 'जलवायु-अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहबंध' (ग्लोबल एलायन्स फॉर क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर)

(GACSA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. GACSA, वर्ष 2015 में पेरिस में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन का एक परिणाम है।
  2. GACSA में सदस्यता से कोई बंधनकारी दायित्व उत्पन्न नहीं होता।
  3. GACSA के निर्माण में भारत की साधक भूमिका थी।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कृषि उत्पादन को बनाए रखने में किस सीमा तक सहायक है? (2019)

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