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कृषि

राष्ट्रीय बाँस मिशन

  • 07 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बाँस मिशन, बाँस क्षेत्र, केंद्रीय प्रायोजित योजना, बाँस से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

बाँस के क्षेत्र का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि मंत्रालय ने पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission- NBM) के तहत बाँस क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विकासात्मक योजनाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये एक सलाहकार समूह का गठन किया है।

राष्ट्रीय बाँस मिशन

  • परिचय:
    • केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme CSS) के रूप में पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM) को वर्ष 2018-19 के दौरान शुरू किया गया था।
    • यह मिशन प्रमुख तौर पर रोपण सामग्री, वृक्षारोपण, संग्रह हेतु सुविधाओं का निर्माण, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, विपणन, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, कुशल श्रमशक्ति और ब्राॅण्ड निर्माण पहल के लिये योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर उत्पादकों को उपभोक्ताओं के साथ जोड़ने के लिये बाँस क्षेत्र की संपूर्ण मूल्य शृंखला के विकास पर क्लस्टर दृष्टिकोण मोड पर अपना ध्यान केंद्रित करता है।
  • उद्देश्य:
    • कृषि आय के पूरक के लिये गैर-वन सरकारी और निजी भूमि में बाँस के वृक्षारोपण के तहत क्षेत्र में वृद्धि करना और जलवायु परिवर्तन के लचीलेपन में योगदान देना।
    • किसानों को बाज़ारों से जोड़ना ताकि किसान उत्पादकों को उगाए गए बाँस के लिये एक तैयार बाज़ार मिल सके और घरेलू उद्योग को उचित कच्चे माल की आपूर्ति में वृद्धि हो सके।
    • यह उद्यमों और प्रमुख संस्थानों के एकीकरण के साथ बाज़ारों की आवश्यकता के अनुसार पारंपरिक बाँस शिल्पकारों के कौशल को उन्नत करने का भी प्रयास करता है।
  • नोडल मंत्रालय:
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय।

बाँस क्षेत्र:

  • महत्त्व:
    • बाँस उद्योग संसाधन उपयोग के कई रास्ते खोलकर एक चरणबद्ध तरीके से परिवर्तन दिखा रहा है।
    • बाँस पौधों का एक बहुमुखी समुह है जो लोगों को पारिस्थितिकी और आजीविका संबंधी सुरक्षा मुहैया कराने में सक्षम  है।
    • हाल ही में प्रधानमंत्री ने बंगलूरु (केम्पागौड़ा) हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का उद्घाटन किया, जिसमें एक वास्तुशिल्प और संरचनात्मक सामग्री के रूप में बाँस की बहुमुखी प्रतिभा साबित हुई है और इस हरित संसाधन की सम्पदा को 'हरित इस्पात' के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • निर्माण क्षेत्र में डिजाइन और संरचनात्मक तत्त्व के रूप में उपयोग करने के अतिरिक्त, बाँस की क्षमता बहुआयामी है।
    • बाँस से बने पर्यावरण के अनुकूल ढाले जा सकने वाले वस्तुएँ प्लास्टिक के उपयोग का स्थान ले सकती हैं। बाँस अपनी तेज पैदावार व विकास दर और प्रचुरता के कारण इथेनॉल तथा जैव-ऊर्जा उत्पादन के लिये एक विश्वसनीय स्रोत है।
    • बाँस आधारित जीवनशैली उत्पादों, कटलरी, घरेलू सजावट, हस्तशिल्प और सौंदर्य प्रसाधनों का बाज़ार भी विकास के पथ पर है।
  • भारत में बाँस उत्पादन की स्थिति:
    • भारत में सर्वाधिक क्षेत्र (13.96 मिलियन हेक्टेयर) पर बाँस की खेती की जाती है तथा भारत बाँस की 136 विविध प्रजातियों (125 स्वदेशी और 11 विदेशी) की खेती करने वाला चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है।

बाँस क्षेत्र हेतु पहल:

  • बाँस क्लस्टर्स: केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने 9 राज्यों अर्थात् गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, असम, नगालैंड, त्रिपुरा, उत्तराखंड और कर्नाटक में 22 बाँस क्लस्टरों का उद्घाटन किया है।
  • MSP वृद्धि: हाल ही में, केंद्र सरकार ने  लघु वनोत्पाद (MFP) के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को संशोधित किया है।
    • MFP में पौधीय मूल के सभी गैर-काष्ठ उत्पाद जैसे- बाँस, बेंत, चारा, पत्तियाँ, गम, वेक्स, डाई, रेज़िन और कई प्रकार के खाद्य जैसे मेवे, जंगली फल, शहद, लाख, रेशम आदि शामिल हैं।
  • बाँस को 'वृक्ष' की श्रेणी से हटाना: वृक्षों की श्रेणी से  बाँस को हटाने के लिये  वर्ष 2017 में भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन किया गया था।।
    • परिणामस्वरूप गैर-वन क्षेत्रों में बाँस की कटाई और परिवहन के लिये अब किसी भी परमिट की आवश्यकता नहीं होगी।
  • किसान उत्पादक संगठन (FPO): 5 वर्ष में 10,000 नए FPO बनाए जाएंगे।
    • FPO किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियाँ प्रदान करने, इनपुट खरीद का सामूहिककरण, परिवहन, बाज़ारों के साथ जुड़ाव और बेहतर मूल्य प्राप्ति जैसी सहायता प्रदान करने में संलग्न हैं क्योंकि ये बिचौलियों को दूर करते हैं।

आगे की राह: 

  • "आत्मनिर्भर कृषि" के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत अभियान में योगदान देने के लिये राज्यों को राष्ट्रीय बाँस मिशन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • बाँस की बहुतायत और इसके तेज़ी से बढ़ते उद्योग के साथ, भारत का लक्ष्य निर्यात को और भी अधिक बढ़ाकर इंजीनियर्ड और दस्तकारी उत्पादों दोनों के लिये वैश्विक बाज़ारों में खुद को स्थापित करने का होना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वन क्षेत्रों में उगने वाले बाँस को काट गिराने का अधिकार है।
  2. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है।
  3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

 (a) केवल 1 और 2
 (b) केवल 2 और 3
 (c) केवल 3        
 (d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • भारतीय वन (संशोधन) विधेयक 2017 गैर-वन क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बाँस की कटाई और पारगमन की अनुमति देता है। हालाँकि, वन भूमि पर उगाए गए बाँस को एक वृक्ष के रूप में वर्गीकृत किया जाना ज़ारी रहेगा और मौज़ूदा कानूनी प्रतिबंधों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अत: कथन 1 सही नहीं है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 बाँस को लघु वन उपज के रूप में मान्यता देता है और अनुसूचित जनजातियों और पारंपरिक वन निवासियों को "स्वामित्व, लघु वन उपज एकत्र करने, उपयोग और निपटान तक पहुँच" का अधिकार देता है। अत: कथन 2 और 3 सही हैं।

अत: विकल्प B सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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