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भारतीय राजव्यवस्था

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण

  • 23 Feb 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

RPA अधिनियम 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार, किसी चुनावी उम्मीदवार द्वारा योग्यता के संबंध में भ्रामक जानकारी प्रदान करना जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है। 

  • न्यायालय के अनुसार, भारत में कोई व्यक्ति उम्मीदवार की शैक्षिक पृष्ठभूमि के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन नहीं करता है।

मामला: 

  • वर्ष 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया था कि शैक्षणिक योग्यता से संबंधित झूठी जानकारी की घोषणा मतदाताओं के चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप नहीं करती है। इस संबंध में फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी थी।
  • याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार धारा 123 (2) के तहत "भ्रष्ट आचरण" के तहत दोषी है क्योंकि अपनी उत्तरदायित्त्व (Liabilities) तथा नामांकन के अपने हलफनामे में शैक्षिक योग्यता सही होने का खुलासा न कर चुनावी अधिकारों के मुक्त अभ्यास में हस्तक्षेप किया है।
    • इसमें यह भी तर्क दिया कि धारा 123 (4) के तहत एक "भ्रष्ट आचरण" किया गया जिसमें उम्मीदवार द्वारा अपने चरित्र के बारे में तथ्य का झूठा बयान प्रकाशित करने और अपने चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने के लिये जान-बूझकर इसका उपयोग किया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए "अमान्य" घोषित कर दिया कि एक उम्मीदवार की योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रदान करना RPA, 1951 की धारा 123 (2) और धारा 123 (4) के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं माना जा सकता है।

RPA, 1951 के तहत "भ्रष्ट आचरण":

  • अधिनियम की धारा 123: 
    • RPA अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, "भ्रष्ट आचरण" वह है जिसमें एक उम्मीदवार चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, "दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है।"
  • धारा 123 (2):
    • यह धारा 'अनुचित प्रभाव (undue influence)' से संबंधित है, जिसे "किसी भी चुनावी अधिकार के मुक्त अभ्यास के साथ उम्मीदवार (किसी परिस्थिति में उम्मीदवार द्वारा स्वयं अथवा कभी कभी उसके प्रतिनिधित्त्वकर्त्ताओं या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है।"
    • इसमें चोटिल करने/हानि पहुँचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है।
  • धारा 123 (4): 
    • यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने हेतु "भ्रष्ट आचरण" की परिभाषा को और व्यापक बनाता है।
    • अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे- भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना: 

  • अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस: 
    • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर उम्मीदवार के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ:  
    • वर्ष 1994 में 'एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ' में  सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि RPA अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण सख्ती से प्रतिबंधित है।  
  • एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य:
    • वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 के 'एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य' फैसले पर पुनर्विचार करते हुए यह माना कि मुफ्त उपहारों के वादों को एक भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है।
    • हालाँकि इस मामले पर अभी फैसला होना है।

जनप्रतिनिधित्त्व कानून 1951: 

  • प्रावधान: 
    • यह चुनाव के संचालन को नियंत्रित करता है।
    • यह सदनों की सदस्यता हेतु योग्यताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट प्रथाओं और अन्य अपराधों को रोकने के प्रावधान करता है।
    • यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • महत्त्व: 
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारु संचालन हेतु महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रतिनिधि निकायों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाता है, इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देता है।
    • अधिनियम में प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने तथा चुनाव खर्च का लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता होती है। यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ हेतु शक्ति के दुरुपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि जैसे भ्रष्ट आचरणों पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करता है तथा किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता हेतु आवश्यक है।
    • अधिनियम के तहत केवल वे राजनीतिक दल जो RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने हेतु पात्र हैं, इस प्रकार राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को ट्रैक करने एवं चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यह एक तंत्र प्रदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
  2. वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में देवीलाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। 
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है, बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वर्ष 1996 में जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक उम्मीदवार द्वारा लड़ी जाने वाली सीटों की संख्या को 'तीन' से 'दो' तक सीमित करने के लिये संशोधित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वर्ष 991 में देवीलाल ने तीन लोकसभा सीटों, सीकर, रोहतक और फिरोजपुर सीटों से चुनाव लड़ा। अतः कथन 2 सही है।
  • जब भी कोई उम्मीदवार एक से अधिक निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और एक से अधिक निर्वाचन-क्षेत्रों पर विजयी होता है, तो उम्मीदवार को केवल एक निर्वाचन-क्षेत्र को बनाए रखना होता है, जिससे बाकी निर्वाचन-क्षेत्रों पर उपचुनाव कराने के लिये मजबूर होना पड़ता है। परिणामी रिक्ति के खिलाफ उपचुनाव आयोजित किये जाने से सरकारी खजाने, सरकारी श्रमशक्ति एवं अन्य संसाधनों पर अपरिहार्य वित्तीय बोझ पड़ता है। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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