श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा
प्रिलिम्स के लिये:भारत की पड़ोसी पहले नीति, सागर विजन, सार्क, भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS), मित्र शक्ति, SLINEX, समुद्री बचाव समन्वय केंद्र, अवैध मत्स्यन, हिंद महासागर, कच्चातिवु द्वीप, अफानासी निकितिन सीमाउंट, बिम्सटेक। मेन्स के लिये :भारत के सामरिक हितों और भारत की पड़ोसी प्रथम नीति के लिये भारत-श्रीलंका संबंधों का महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका के नए राष्ट्रपति व्यापार, ऊर्जा और समुद्री सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी पहली भारत यात्रा पर थे।
- भारतीय नेताओं के साथ चर्चा में तमिल आकांक्षाओं, आर्थिक सुधार और चीनी प्रभाव का मुकाबला करने पर ज़ोर दिया गया, तथा भारत की पड़ोसी पहले नीति और सागर विजन को मज़बूत किया गया।
हालिया दौरे के परिणाम क्या हैं?
- आर्थिक और व्यापार समझौते: राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान प्रस्तावित आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौतों (ETCA) पर भी चर्चा हुई, जिसका उद्देश्य व्यापार संबंधों में सेवाओं और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना है।
- भारत ने भारतीय रुपया (INR)-श्रीलंकाई रुपया (LKR) व्यापार समझौतों को बढ़ावा देने तथा 1,500 श्रीलंकाई सिविल सेवकों के प्रशिक्षण सहित क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है।
- ऊर्जा साझेदारी: भारत ने श्रीलंका की तत्काल ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उसे LNG की आपूर्ति करने पर सहमति व्यक्त की, जबकि दोनों देशों ने क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिये संयुक्त अरब अमीरात के साथ ऊर्जा पाइपलाइन की घोषणा की।
- त्रिंकोमाली को ऊर्जा केंद्र के रूप में विकसित करने के साथ-साथ अपतटीय पवन ऊर्जा और ग्रिड इंटरकनेक्शन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता दी गई।
- बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: भारत की "पड़ोसी पहले" नीति के तहत नौका सेवाओं की बहाली और कांकेसंथुराई बंदरगाह, आवास और डिजिटल बुनियादी ढाँचे का निरंतर विकास।
- क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग: दोनों देश सुरक्षा सहयोग, विशेषकर समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- वित्तीय सहायता: खाद्य, ईंधन और दवाओं के लिये 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर सहित भारत की वित्तीय सहायता, संकट के दौरान श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में महत्त्वपूर्ण थी।
- वैश्विक मंचों पर द्विपक्षीय सहयोग: श्रीलंका ने ब्रिक्स समूह में शामिल होने के अपने प्रयास में तथा महाद्वीपीय शेल्फ की सीमाओं पर संयुक्त राष्ट्र आयोग से संबंधित मामलों में भारत से समर्थन मांगा।
भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग के क्षेत्र क्या हैं?
- आर्थिक सहयोग: भारत SAARC में श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2023-24 में 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- भारत आवश्यक वस्तुओं का निर्यात करता है जबकि श्रीलंका को भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते से लाभ मिलता है।
- विकास सहायता: भारत ने भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS) के अंतर्गत ऋण सहायता (LOC) के माध्यम से श्रीलंका को विकास सहायता प्रदान की है।
- वर्ष 2023 तक, श्रीलंका को रेलवे, अस्पताल, बुनियादी ढाँचे और विद्युत संचरण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहायता हेतु 2 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की ऋण सहायता (LOC) प्रदान की गई।
- जाफना सांस्कृतिक केंद्र और सुवा सेरिया एम्बुलेंस सेवाओं जैसी परियोजनाओं सहित भारत की ऋण सहायताओं से श्रीलंका का सामाजिक-आर्थिक ढाँचा सुदृढ़ होता है तथा बुनियादी ढाँचे एवं आजीविका में सुधार होता है।
- ऊर्जा सहयोग: जाफना में हाइब्रिड प्रणालियों सहित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं , क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा के लिये भारत के प्रयासों को प्रतिबिंबित करती हैं ।
- रक्षा एवं सुरक्षा: रक्षा संबंधों में संयुक्त सैन्य अभ्यास ( मित्र शक्ति ) और नौसैनिक अभ्यास ( SLINEX ) शामिल हैं।
- समुद्री बचाव समन्वय केंद्र की स्थापना श्रीलंका की समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- इसके अतिरिक्त, भारत ने श्रीलंका के आतंकवाद-रोधी और पर्यावरण आपदा प्रबंधन प्रयासों का समर्थन किया है।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान: दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को छात्रवृत्ति कार्यक्रमों, बौद्ध मंदिरों के जीर्णोद्धार और शासन एवं शिक्षा में भारतीय प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान के माध्यम से मज़बूत किया गया है।
- समुद्री सहयोग: हिंद महासागर में स्थायी संसाधन प्रबंधन और अवैध मत्स्य संग्रहण के बारे में साझा चिंताओं से सहयोग को बढ़ावा मिला है।
- संयुक्त गश्त और सतत् मत्स्य संग्रहण पहल समुद्री जैवविविधता और आजीविका की रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत और श्रीलंका में सहयोग के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- मत्स्य संग्रहण संबंधी विवाद: श्रीलंकाई जलक्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में भारतीय मछुआरों द्वारा मत्स्य संग्रहण के उपयोग से तनाव बढ़ गया है, जिसके कारण गिरफ्तारियाँ, दंड तथा द्विपक्षीय कूटनीति और तटीय समुदायों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- कच्चातीवु द्वीप विवाद: कच्चातीवु द्वीप का स्वामित्त्व और उपयोग अभी भी विवादास्पद है, तथा भारतीयों को वहाँ मत्स्य संग्रहण और यात्रा करने का अधिकार देने वाले समझौतों के कार्यान्वयन पर असहमति के कारण द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हो रहे हैं।
- राजनीतिक और जातीय मुद्दे: कुछ राजनीतिक समूहों ने श्रीलंका में तमिल लोगों को भारत की सहायता का विरोध किया है।
- तमिल बहुल क्षेत्रों को सत्ता हस्तांतरित करने के लिये 13वें संशोधन को लागू करने में देरी एक लंबे समय से चली आ रही शिकायत रही है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत के सामरिक हितों को चुनौती मिल रही है, खासतौर पर हंबनटोटा बंदरगाह जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में। चीन द्वारा समर्थित परियोजनाओं को भारत क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये खतरा मानता है।
- समुद्री सीमा मुद्दे: दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रक्रियाओं का उपयोग कर रहे हैं, अफानासी निकितिन सीमाउंट पर संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय जल में अतिव्यापी दावों को उजागर करता है तथा कूटनीतिक तनाव उत्पन्न कर सकता है।
आगे की राह:
- संवाद बढ़ाना: मत्स्य संग्रहण के अधिकार, तमिल सुलह और समुद्री विवाद जैसे प्रमुख मुद्दों के समाधान हेतु राजनयिक संबंधों को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
- बिम्सटेक जैसे द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से नियमित वार्ता समाधान के लिये एक मंच प्रदान कर सकती है।
- आर्थिक एकीकरण: व्यापार समझौतों और बुनियादी ढाँचों के संबंधों, जैसे नौका सेवाओं और पाइपलाइन परियोजनाओं का विस्तार करने से आर्थिक अंतरनिर्भरता को में वृद्धि होगी।
- प्रस्तावित समुद्री ऊर्जा केबल जैसी सहयोगात्मक पहल साझा लाभ को बढ़ा सकती है।
- मत्स्य प्रबंधन: संयुक्त पहल, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और मछुआरों के लिये वैकल्पिक आजीविका के माध्यम से सतत् मत्स्य संग्रहण की प्रथाओं को बढ़ावा देने से संघर्ष का समाधान हो सकता है तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का भी संरक्षण होगा।
- विवादों को सुलझाने के अलावा, सहकारी परियोजनाओं, क्षमता निर्माण पहलों और मछुआरों के लिये आय के वैकल्पिक स्रोतों के माध्यम से सतत् मत्स्य संग्रहण के तरीकों को बढ़ावा देने से समुद्री आवासों को बचाया जा सकेगा।
- विकास संबंधी सहायता का लाभ उठाना: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा, शिक्षा और डिजिटल शासन पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक प्रमुख विकास भागीदार के रूप में अपनी भूमिका जारी रखनी चाहिये।
- ग्रीन डेब्ट स्वैप आर्थिक सुधार को स्थिर लक्ष्यों के साथ संरेखित कर सकता है।
- भू-राजनीति को संतुलित करना: भारत को रणनीतिक निवेश और कूटनीतिक पहुँच के माध्यम से चीनी प्रभाव को संतुलित करना होगा।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि इसकी सहायता श्रीलंका के दीर्घकालिक हितों के अनुरूप हो।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक सहयोग के प्रमुख क्षेत्र और समुद्री सहयोग से संबंधित मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013) |
NHRC और संबद्ध चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993, संयुक्त राष्ट्र (UN) मेन्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की भूमिका और कार्य, उभरती मानवाधिकार चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामसुब्रमण्यम को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा का 1 जून 2024 को कार्यकाल पूरा होने के बाद से यह पद रिक्त था।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) क्या है?
- परिचय:
- भारत का NHRC मानव अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिये स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- स्थापना:
- इसका गठन 12 अक्तूबर 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2006 और वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था।
- आयोग की स्थापना पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप की गई थी, जो मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और संरक्षण के लिये अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं।
- पेरिस सिद्धांत मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये पेरिस (अक्तूबर, 1991) में अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानकों का समूह है और 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र (UN) की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- ये सिद्धांत विश्व भर में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं (NHRI) के कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं।
- भूमिका और कार्य:
- न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप: यह संबंधित न्यायालय की पूर्वानुमति से मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े न्यायालयी मामलों में हस्तक्षेप करता है।
- सुरक्षा उपायों की समीक्षा: यह मानवाधिकार संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों और मौजूदा कानूनों का विश्लेषण करता है तथा उनके प्रभावी प्रवर्तन के लिये उपाय प्रस्तावित करता है।
- मानवाधिकारों के अवरोधकों का मूल्यांकन: यह आतंकवाद सहित उन कारकों की जाँच करता है जो मानव अधिकारों के प्रवर्तन में बाधा डालते हैं तथा उचित उपाय सुझाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय विषयों का अध्ययन: यह मानव अधिकारों पर संधियों और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का भी विश्लेषण करता है, तथा भारतीय संदर्भ में उनके कार्यान्वयन के लिये सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
- अनुसंधान एवं संवर्द्धन: यह मानवाधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा विभिन्न विषयों में इसके अध्ययन को प्रोत्साहित करता है।
- यह प्रकाशनों, संगोष्ठियों, मीडिया और अन्य माध्यमों से मानवाधिकार साक्षरता और जागरूकता को भी बढ़ावा देता है।
- NHRC की शक्तियाँ: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार NHRC को सिविल न्यायालय के समकक्ष शक्तियाँ प्राप्त हैं। इन शक्तियों में शामिल हैं:
- दस्तावेज़ों की खोज और प्रस्तुतीकरण का आदेश देना।
- शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत साक्ष्य प्राप्त करना।
- किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक अभिलेख या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना।
- गवाहों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये कमीशन जारी करना।
- प्रासंगिक कानूनों के अंतर्गत निर्धारित किसी भी अतिरिक्त शक्तियों का प्रयोग करना।
- NHRC जाँच दल: NHRC का अपना जाँच दल है जिसका नेतृत्व पुलिस महानिदेशक करते हैं।
- यह केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग भी कर सकता है तथा जाँच के लिये गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग भी कर सकता है।
NHRC से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- गैर-बाध्यकारी अनुशंसाएँ: NHRC सरकार को केवल अनुशंसाएँ कर सकता है, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इससे उसके निर्णयों को लागू करने और अनुपालन सुनिश्चित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू, जो वर्ष 2016 में इसके अध्यक्ष थे, ने मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले में आयोग की कथित निष्क्रियता के कारण इसे "दंतविहीन बाघ" कहा था।
- क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ: NHRC का क्षेत्राधिकार सार्वजनिक और निजी प्राधिकारियों द्वारा किये गए मानवाधिकार उल्लंघनों तक सीमित है।
- यह निजी व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किये गए उल्लंघनों को संबोधित नहीं कर सकता है। सशस्त्र बलों से संबंधित मामलों पर भी इसका अधिकार क्षेत्र सीमित है।
- प्रवर्तन शक्ति का अभाव: NHRC के पास उन प्राधिकारियों को दंडित करने का अधिकार नहीं है जो इसकी सिफारिशों को लागू करने में विफल रहते हैं।
- संसाधन की कमी: NHRC को प्रायः अपर्याप्त धन और स्टाफिंग सहित संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है, जो मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच करने और प्रभावी ढंग से उनका समाधान करने की इसकी क्षमता बाधित होती है।
- अत्यधिक कार्यभार: NHRC को बड़ी संख्या में शिकायतें और याचिकाएँ प्राप्त होती हैं, जिससे मामलों को शीघ्रता एवं पूरी तरह से निपटाने की उसकी क्षमता पर असर पड़ सकता है।
- जागरूकता और पहुँच: बहुत से लोग NHRC के अस्तित्व और इसके अधिदेश से अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण इसमें प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या सीमित है।
- इसके अतिरिक्त, शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया बोझिल हो सकती है तथा हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये यह पहुँच से बाहर हो सकती है।
- वैश्विक स्तर पर मान्यता का अभाव: जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध निकाय, ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस (GANHRI) ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन के संबंध में चिंताओं को उज़ागर करते हुए भारत के NHRC की मान्यता को स्थगित कर दिया है।
- अपवाद: NHRC एक वर्ष से पुराने, गुमनाम, छद्मनाम या अस्पष्ट मामलों पर विचार नहीं करता है।
- इसमें महत्त्वहीन मामलों और सेवा संबंधी मामलों को भी शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वे इसके अधिकार क्षेत्र या अधिदेश से बाहर हैं।
- यह भी देखा गया है कि कभी-कभी NHRC राजनीतिक रूप से प्रभावित मामलों को लेता है और दूसरे को छोड़ देता है।
NHRC की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना: NHRC को अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये सशक्त बनाने से अनुपालन में वृद्धि होगी और मानवाधिकार उल्लंघनों को संबोधित करने में अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- जाँच प्राधिकार का विस्तार: NHRC के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करके इसमें निजी व्यक्तियों या संस्थाओं, विशेष रूप से कॉर्पोरेट और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में किये गए उल्लंघनों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
- समयबद्ध जाँच: जाँच पूरी करने के लिये समय-सीमा लागू करने से पीड़ितों को न्याय मिलने में तेज़ी आएगी तथा शिकायतों का समय पर समाधान सुनिश्चित होगा।
- वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि: NHRC के लिये सरकारी नियंत्रण से मुक्त एक समर्पित, स्वतंत्र बजट आवंटित करने से इसकी परिचालन दक्षता बढ़ेगी और बाहरी प्रभाव कम होगा।
- उभरते मुद्दों पर ध्यान देना: NHRC को डिजिटल गोपनीयता, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पर्यावरण अधिकार जैसी उभरती मानवाधिकार चुनौतियों के अनुकूल होना चाहिये।
- इन मुद्दों के समाधान के लिये NHRC के भीतर विशेष समितियों या अनुसंधान प्रभागों की स्थापना से समकालीन चुनौतियों का सक्रिय जवाब देने में मदद मिलेगी।
- नियमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: NHRC के सदस्यों और कर्मचारियों के लिये निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास यह सुनिश्चित करेगा कि वे जटिल और उभरते मानवाधिकार मामलों को प्रभावी ढंग से संभालने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित हों।
- संस्थागत जवाबदेही: भारत को UNHRC जैसे वैश्विक निकायों से अंतर्राष्ट्रीय मानकों और मान्यताओं को अपनाने की आवश्यकता है।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि NHRC के प्रदर्शन का निरंतर मूल्याँकन किया जाएगा, जिससे इसके अधिदेश को प्राप्त करने में इसकी प्रभावशीलता में सुधार होगा।
कमज़ोर वर्गों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय आयोग
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC):
- NCSC की स्थापना अनुच्छेद 338 द्वारा की गई थी। इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST): NCST की स्थापना अनुच्छेद 338A के तहत की गई थी।
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC): वर्ष 2018 के 102 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 338B को सम्मिलित करके आयोग को एक वैधानिक निकाय से संवैधानिक निकाय बना दिया।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं।
नोट: उपर्युक्त तीनों आयोगों (NCSC, NCST, NCBC) के पास सिविल न्यायालय के समकक्ष प्राधिकार हैं।
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): NCW की स्थापना वर्ष 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करने के लिये एक वैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
- आयोग में एक अध्यक्ष, 5 सदस्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से कम से कम 1 सदस्य और केंद्र सरकार द्वारा नामित एक सदस्य-सचिव शामिल होंगे।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): NCPCR का गठन बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत किया गया है।
- आयोग में एक अध्यक्ष और 6 सदस्य हैं, जिनमें से कम से कम 2 महिलाएँ हैं।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM): अल्पसंख्यक आयोग का नाम बदलकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत एक वैधानिक निकाय बना दिया गया।
- NCM अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) में प्रावधान है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिये 'अल्पसंख्यक' का तात्पर्य केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय से है।
- सरकार ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा 5 सदस्य होते हैं।
- प्रत्येक सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद पर रहता है।
- NCM अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) में प्रावधान है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिये 'अल्पसंख्यक' का तात्पर्य केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय से है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त का कार्यालय: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 74 में दिव्यांगजनों के लिये एक मुख्य आयुक्त तथा केंद्र में मुख्य आयुक्त की सहायता के लिये दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की कार्यप्रणाली में अपनी सिफारिशों को लागू करने के संबंध में प्रमुख सीमाएँ क्या हैं? इन सीमाओं को कैसे दूर किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 (Universal Declaration of Human Rights 1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) |
डार्क मैटर और डार्क एनर्जी
प्रिलिम्स के लिये:डार्क मैटर, विद्युत चुंबकीय बल, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन, कमज़ोर रूप से परस्पर क्रिया करने वाले विशाल कण (Weakly Interacting Massive Particles), न्यूट्रिनो, ब्लैक होल, व्हाइट ड्वार्फ, न्यूट्रॉन तारे, ब्राउन ड्वार्फ, गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग, आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, डार्क एनर्जी। मेन्स के लिये:डार्क मैटर और डार्क एनर्जी |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भौतिकविदों ने डार्क मैटर के न्यूनतम द्रव्यमान को संशोधित किया और इसे 2.3 × 10-30 प्रोटॉन द्रव्यमान तक बढ़ा दिया।
- दशकों तक वैज्ञानिकों का मानना था कि यह न्यूनतम द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग 10-31 गुना था।
नोट: वर्ष 1922 में, डच खगोलशास्त्री जैकोबस कैप्टेन ने निष्कर्ष निकाला कि "डार्क मैटर" (इस शब्द का पहली बार प्रयोग) का घनत्व 0.0003 सौर द्रव्यमान प्रति घन प्रकाश वर्ष होना चाहिये।
डार्क मैटर क्या है?
- परिचय: डार्क मैटर पदार्थ का एक ऐसा रूप है जो पूर्णतः अदृश्य है, कोई प्रकाश या ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करता है, जिससे पारंपरिक सेंसर और डिटेक्टरों द्वारा इसका पता नहीं लगाया जा सकता।
- डार्क मैटर विद्युत चुंबकीय बलों के साथ अंतःक्रिया नहीं करता है, इसलिये यह न तो प्रकाश को अवशोषित करता है, न ही परावर्तित करता है, और न ही उत्सर्जित करता है, जिससे इसका पता लगाना कठिन हो जाता है।
- ब्रह्माण्ड का लगभग 27% हिस्सा डार्क मैटर से बना है, जो दृश्यमान पदार्थ से छह से एक गुना अधिक है, जबकि दृश्यमान पदार्थ केवल 5% है।
- दृश्य पदार्थ (बैरोनिक पदार्थ) में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन जैसे उपपरमाण्विक कण होते हैं।
- डार्क मैटर की संरचना: ऐसा माना जाता है कि डार्क मैटर गैर-बैरोनिक WIMP (कमज़ोर रूप से परस्पर क्रिया करने वाले विशाल कण) से बना होता है, जिनका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान से 10-100 गुना अधिक होता है, लेकिन वे सामान्य पदार्थ के साथ दुर्बल अंतःक्रिया करते हैं, जिससे उनका पता लगाना कठिन हो जाता है। WIMP में शामिल हैं:
- न्यूट्रिनो: ये काल्पनिक कण हैं (जिन्हें अभी तक नहीं देखा गया है) जो न्यूट्रिनो से भारी और धीमे हैं।
- स्टेराइल न्यूट्रिनो: स्टेराइल न्यूट्रिनो को डार्क मैटर के कारक के रूप में प्रस्तावित किया गया है क्योंकि यह केवल गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से नियमित पदार्थ के साथ प्रतिक्रिया करता है। इसके अलावा, न्यूट्रिनो ऐसे कण हैं जिनसे नियमित पदार्थ नहीं बनते हैं।
- डार्क मैटर की उत्पत्ति:
- बिग बैंग सिद्धांत: ऐसा अनुमान है कि डार्क मैटर का निर्माण बिग बैंग के दौरान हुआ और वह ब्लैक होल में केंद्रित हो गया।
- तारकीय अवशेष: व्हाइट ड्वार्फ और न्यूट्रॉन तारों जैसे तारकीय अवशेषों में भी उच्च मात्रा में डार्क मैटर पाया जाता है।
- ब्राउन ड्वार्फ (असफल तारे) जो अपने केंद्र में नाभिकीय संलयन को शुरू करने के लिये पर्याप्त पदार्थ एकत्र नहीं कर पाए, वे भी डार्क मैटर का स्रोत हो सकते हैं।
- डार्क मैटर के साक्ष्य:
- आकाशगंगा घूर्णन वक्र: न्यूटोनियन गुरुत्वाकर्षण के अनुसार, आकाशगंगाओं के पार्श्व स्थित वस्तुओं को केंद्र के पास स्थित वस्तुओं की तुलना में धीमी गति से घूर्णन करना चाहिये।
- प्रेक्षणों से पता चलता है कि आकाशगंगाओं के किनारों पर स्थित तारे अपेक्षा से अधिक तेज़ी से घूर्णन करते हैं, जिससे पता चलता है कि अदृश्य द्रव्यमान - जो डार्क मैटर के कारण है - अतिरिक्त गुरुत्वाकर्षण खिंचाव प्रदान करता है।
- गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग: गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग तब होती है जब प्रकाश किसी विशाल वस्तु के गुरुत्वाकर्षण के कारण मुड़ जाता है, जिससे दृश्यमान द्रव्यमान से अधिक द्रव्यमान प्रकट होता है, जो डार्क मैटर की उपस्थिति का संकेत देता है।
- आकाशगंगा निर्माण: समय के साथ आकाशगंगाओं का वितरण और गति डार्क मैटर की ओर संकेत करती है, क्योंकि यह आकाशगंगाओं को एक साथ समूहबद्ध होने और वर्तमान संरचनाओं का निर्माण करने में सक्षम बनाती है।
- आकाशगंगा घूर्णन वक्र: न्यूटोनियन गुरुत्वाकर्षण के अनुसार, आकाशगंगाओं के पार्श्व स्थित वस्तुओं को केंद्र के पास स्थित वस्तुओं की तुलना में धीमी गति से घूर्णन करना चाहिये।
- डार्क मैटर के अध्ययन हेतु परियोजनाएँ: डार्क मैटर पर प्रकाश डालने के लिये कुछ प्रमुख परियोजनाएँ डिज़ाइन की गई हैं।
- अल्फा मैग्नेटिक स्पेक्ट्रोमीटर (AMS): AMS अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर स्थापित एक प्रयोग है, जिसने पॉज़िट्रॉन (इलेक्ट्रॉनों के समकक्ष प्रतिपदार्थ) की अधिकता का पता लगाया है, जो डार्क मैटर का संकेत हो सकता है।
- XENON1T: इतालवी ग्रान सासो प्रयोगशाला में XENON1T प्रयोग का उद्देश्य ज़ेनॉन परमाणुओं के साथ WIMP की अंतःक्रिया का अवलोकन करके डार्क मैटर का पता लगाना है।
- आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला, अंटार्कटिका: आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला, स्टेराइल न्यूट्रिनो की संभावना की जाँच कर रही है - काल्पनिक कण जो केवल गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से नियमित पदार्थ के साथ अंतःक्रिया करते हैं और डार्क मैटर का एक रूप हो सकते हैं।
- CERN, स्विटज़रलैंड में पार्टिकल कोलाइडर: ब्रह्मांड के मूलभूत घटकों की जाँच करने के लिये, CERN के लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) में उच्च-ऊर्जा कण के टकराव किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त, LHC डार्क मैटर के संभावित संकेतों की खोज के लिये कण टकराव के बाद की स्थिति की जाँच करता है।
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST): JWST से आकाशगंगाओं और ब्रह्मांडीय संरचनाओं के विकास के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलने की उम्मीद है, जिससे हमें उनके निर्माण में डार्क मैटर की भूमिका को समझने में मदद मिल सकती है।
नोट: प्रतिपदार्थ (Antimatter) में ऐसे कण होते हैं जो मूलतः दृश्य पदार्थ कणों के समान होते हैं, लेकिन उनमें विपरीत विद्युत आवेश होते हैं।
- इन कणों को एंटीप्रोटोन और पॉज़िट्रॉन (या एंटीइलेक्ट्रॉन) कहा जाता है।
- प्रतिपदार्थ और डार्क मैटर एक समान नहीं हैं।
डार्क एनर्जी क्या है?
- डार्क एनर्जी ऊर्जा का एक रहस्यमय रूप है जो ब्रह्मांड का लगभग 68% हिस्सा डार्क एनर्जी से बना है। ब्रह्मांड के तेज़ी से विस्तार का कारण यही है।
- यह पूरे ब्रह्मांड में समान रूप से वितरित है, अर्थात ब्रह्मांड के विस्तार के साथ इसका प्रभाव कम नहीं होता है।
- समान वितरण का अर्थ है कि गुप्त ऊर्जा का कोई स्थानीय गुरुत्वाकर्षण प्रभाव नहीं होता, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर इसका वैश्विक प्रभाव होता है।
- इससे प्रतिकर्षण बल उत्पन्न होता है, जो ब्रह्माण्ड के विस्तार को तीव्र कर देता है।
- विस्तार की दर और उसके त्वरण को हबल नियम पर आधारित अवलोकनों द्वारा मापा जा सकता है ।
- हबल का नियम कहता है कि आकाशगंगाएँ पृथ्वी से जितनी दूर होती हैं, उतनी ही तेज़ी से दूर भी जाती हैं, जिसका अर्थ है कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है।
निष्कर्ष:
ब्रह्मांड का एक बड़ा हिस्सा होने के बावजूद, डार्क मैटर अभी भी रहस्यपूर्ण है, लेकिन ब्रह्मांडीय संरचनाओं और विकास को समझने के लिये यह आवश्यक है। इसके गुणों, उत्पत्ति और प्रभाव की अभी भी चल रहे प्रयोगों और खगोलीय प्रेक्षणों द्वारा जाँच की जा रही है, जो मौलिक भौतिकी में आशाजनक प्रगति को दर्शाते है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: डार्क मैटर के अस्तित्व को समर्थन देने वाले साक्ष्यों और ब्रह्मांड की हमारी समझ पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संदर्भ में, हाल ही में समाचारों में रहे दक्षिण ध्रुव पर स्थित एक कण डिटेक्टर 'आइसक्यूब' के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
केंद्र द्वारा “नो डिटेंशन पॉलिसी” का समापन
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्द्धित शिक्षा कार्यक्रम मेन्स के लिये:डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की विशेषताएँ, भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित मुद्दे, शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों तथा जवाहर नवोदय विद्यालयों सहित स्वयं द्वारा शासित स्कूलों में कक्षा 5 और 8 के लिये "नो-डिटेंशन" नीति को समाप्त कर दिया है।
- यह “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” शीर्षक से एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया गया।
- इस संशोधन से स्कूल उन विद्यार्थियों को अगली कक्षा में जाने से रोक सकेंगे जो पदोन्नति के मानदंडों को पूरा करने में असफल हैं।
नो-डिटेंशन पॉलिसी
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 16 के तहत नो-डिटेंशन नीति शुरू की गई थी। इस अधिनियम की धारा 16 में दो प्रमुख प्रावधान हैं:
- पहला, प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले किसी भी बच्चे को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा, और दूसरा, किसी भी बच्चे को किसी भी कक्षा में फेल नहीं किया जाएगा।
- इससे स्कूलों पर कक्षा 8 तक के विद्यार्थियों को फेल करने पर रोक लगाई गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चों को फेल होने के डर के बिना न्यूनतम स्तर की शिक्षा मिले, जिससे स्कूल छोड़ने की दर में कमी आए।
निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 क्या है?
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 को वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था ताकि नो-डिटेंशन नीति को समाप्त किया जा सके। संशोधित अधिनियम को लागू करने के नियमों को स्थगित कर दिया गया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की शुरुआत के बाद उन्हें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) के अनुरूप बनाने के लिये वर्ष 2024 में पारित किया गया।
- RTE संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद असम, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने इस नीति को समाप्त कर दिया।
- हरियाणा और पुदुचेरी ने अभी तक इस पर निर्णय नहीं लिया है जबकि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इसे लागू करना जारी रखा है।
- RTE संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद असम, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने इस नीति को समाप्त कर दिया।
- संशोधित नियमों के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान:
- उत्तीर्ण करने से संबंधित संशोधित मानदंड: परीक्षा और पुन: परीक्षा से समग्र विकास का आकलन किया जाएगा, जिसमें रटने के बजाय सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को दो महीने के अतिरिक्त प्रशिक्षण के साथ पुनः परीक्षा का अवसर मिलेगा।
- उत्तीर्ण न होने पर उसी कक्षा में रहना: पुन: परीक्षा के बाद अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों को उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
- प्रमोट नहीं किये गए छात्रों के लिये विशेष उपाय: कक्षा शिक्षकों को प्रमोट नहीं किये गए छात्रों और उनके अभिभावकों का मार्गदर्शन करना चाहिये तथा लक्षित उपाय प्रदान करना चाहिये।
- स्कूल प्रमुख विद्यार्थी की प्रगति की निगरानी करने और सुधारात्मक प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये उत्तरदायी होगा।
- NEP के तहत पढ़ाई में कमज़ोर छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- अधिगम का समावेशी दृष्टिकोण और सुरक्षा: नियमों में समग्र विकास को प्राथमिकता दी गई तथा यह सुनिश्चित किया गया है कि RTE अधिनियम के अनुरूप, प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने से पहले किसी भी छात्र को निष्कासित न किया जाए।
- उत्तीर्ण करने से संबंधित संशोधित मानदंड: परीक्षा और पुन: परीक्षा से समग्र विकास का आकलन किया जाएगा, जिसमें रटने के बजाय सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
स्कूली शिक्षा में नो-डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?
- पक्ष में तर्क:
- स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाना: इस नीति का उद्देश्य फेल होने और फेल होने के डर से स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी लाना है।
- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE): इसमें CCE पर ज़ोर दिया गया, जो एक एकल परीक्षा के स्थान पर विभिन्न पहलुओं में विद्यार्थी की प्रगति के सतत् मूल्यांकन पर केंद्रित है।
- इस समग्र दृष्टिकोण का उद्देश्य परीक्षा से संबंधित तनाव और चिंता को कम करना था।
- समावेशी शिक्षा: नीति ने समावेशी शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि सभी बच्चे, चाहे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन कैसा भी हो, स्कूल में बने रहें और शिक्षा प्राप्त करें।
- राज्य की मांगें: कई राज्यों ने नीति के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये, जिनमें प्राथमिक शिक्षा में जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- वर्ष 2019 में, RTE अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसमें राज्यों को कक्षा 5 और 8 के लिये डिटेंशन नीतियों को लागू करने पर निर्णय लेने की अनुमति प्रदान की गई।
- NEP 2020 के साथ संरेखण: उक्त नीति को समाप्त करने का निर्णय NEP 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप है जिसमें स्कूली शिक्षा में योग्यता-आधारित शिक्षा और उत्तरदायित्व पर ज़ोर दिया गया है।
- वैश्विक प्रथाएँ: फिनलैंड जैसे देश विद्यार्थी के फेल होने पर उसे अगली कक्षा में प्रमोट करने के स्थान पर सुधारात्मक उपायों और निरंतर मूल्यांकन किये जाने पर ज़ोर देते हैं।
- अमेरिका में ग्रेड रिटेंशन एक सामान्य प्रथा है, जहाँ ग्रेड-स्तर के मानकों को पूरा करने में विफल रहने वाले छात्रों को उसी कक्षा में पुनः उत्तीर्ण होना पड़ता है। यह नीति विभिन्न ग्रेड स्तरों और राज्यों में अलग-अलग होती है।
- विपक्ष में तर्क:
- अपर्याप्त अधिगम के परिणाम: नो-डिटेंशन नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों में आत्मसंतोष की भावना प्रखर हुई, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आई, क्योंकि स्कूल अधिगम के परिणामों में सुधार लाने के स्थान पर अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे- मध्याह्न भोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- ASER 2022 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के केवल 20% छात्र कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते हैं और 2023 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 25% युवा कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री अपनी क्षेत्रीय भाषा में धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं।
- आधे से अधिक बच्चे गणित के भाग संबंधी प्रश्नों का हल करने में विफल रहे तथा 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के केवल 43.3% बच्चे ही ऐसे प्रश्नों को सही ढंग से हल कर पाते हैं।
- उच्च कक्षाओं में असफलता की उच्च दर: शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2023 में कक्षा 10वीं और 12वीं में 65 लाख विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हुए, जो आधारभूत शिक्षण अंतराल को दर्शाता है।
- निम्न स्तर पर आवश्यक कौशल और ज्ञान के बिना स्वैच्छिक पदोन्नति से माध्यमिक विद्यालय में असफलता की दर बढ़ जाती है।
- जवाबदेही का अभाव: इस नीति से छात्रों और शिक्षकों के बीच जवाबदेही कम होती है, क्योंकि छात्रों को उनके प्रदर्शन की परवाह किये बिना स्वैच्छिक रूप से अगली कक्षा में पदोन्नत कर दिया जाता है।
- मूल कारणों का समाधान नहीं: इस नीति की आलोचना इस बात के लिये की जाती है कि इसमें खराब शिक्षण परिणामों के मूल कारणों, जैसे अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, बुनियादी ढाँचे की कमी और सामाजिक-आर्थिक कारकों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं किया गया है।
- अपर्याप्त अधिगम के परिणाम: नो-डिटेंशन नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों में आत्मसंतोष की भावना प्रखर हुई, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आई, क्योंकि स्कूल अधिगम के परिणामों में सुधार लाने के स्थान पर अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे- मध्याह्न भोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
शिक्षा का अधिकार
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत शिक्षा मूल रूप से भारत में एक राज्य का विषय था। हालाँकि, 42वें संविधान संशोधन 1976 के दौरान, शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- इस प्रकार अब केंद्र और राज्य दोनों सरकारें शिक्षा से संबंधित मामलों पर कानून बना सकती हैं।
- 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 ने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21A के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार बना दिया।
- इसने मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 21A को जोड़ा, जिससे 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा एक मौलिक अधिकार बन गई, तथा निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई।
- राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में, अनुच्छेद 45 को प्रतिस्थापित किया गया ताकि 6 वर्ष की आयु तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करने की राज्य की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया जा सके।
- इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 51A में संशोधन करके माता-पिता या अभिभावकों के लिये यह कर्त्तव्य शामिल किया गया कि वे 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चों या आश्रितों के लिये शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करें।
- बाद में, संसद ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 पारित किया, जिसमें अनुच्छेद 21-A के तहत RTE को मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया गया।
शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल
निष्कर्ष
नो-डिटेंशन पॉलिसी समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाने की दिशा में एक अच्छा कदम था। हालाँकि, इसके कार्यान्वयन को चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। यद्यपि इस नीति का उद्देश्य अधिक बाल-अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाना था, लेकिन इससे अनजाने में ही शैक्षणिक कठोरता और जवाबदेही में गिरावट आई।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: RTE (संशोधन) नियम, 2024 के तहत 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' को समाप्त करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ इसके संरेखण के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) मेन्सप्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइये। (2021) |
सुशासन दिवस 2024
प्रिलिम्स के लिये:सुशासन दिवस, विश्व बैंक, विधि सम्मत शासन, किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सर्व शिक्षा अभियान, मिशन कर्मयोगी, विकासशील पंचायत पहल, PRI, SWAYAM, कौशल भारत, आधार, RTI अधिनियम, 2005, PFMS, MGNREGA, CPGRAMS, भारत रत्न, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 मेन्स के लिये:सुशासन और संबंधित चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
सरकार की जवाबदेही और प्रभावी प्रशासन के संबंध में नागरिकों में अधिक जागरूक करने के लिये 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाया जाता है।
- वर्ष 2024 का विषय है "विकसित भारत के लिये भारत का मार्ग: सुशासन और डिजिटलीकरण के माध्यम से नागरिकों का सशक्तीकरण।"
- इसकी शुरुआत वर्ष 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में की गई थी।
- पं. मदन मोहन मालवीय की जयंती भी 25 दिसंबर को मनाई जाती है।
अटल बिहारी वाजपेयी
- जन्म: वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। वह एक कवि और राजनीतिज्ञ थे।
- राजनीतिक कॅरियर: वे तीन बार- 1996 में सीमित समय के लिये, 1998 और 1999 में 13 माह तक तथा 1999 से 2004 तक पूर्णकालिक रूप से, भारत के प्रधानमंत्री रहे।
- सम्मान: 2015 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1994 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
- प्रमुख कार्य:
- स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना: यह चार राष्ट्रीय राजमार्गों का नेटवर्क है जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ता है।
- आर्थिक सुधार: औद्योगिक विकास और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को उदार बनाया गया।
- 1998 के परमाणु परीक्षण: भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया, जिससे शांति और अहिंसा को बढ़ावा मिला।
पं मदन मोहन मालवीय
सुशासन दिवस 2024 के उपलक्ष्य पर किन पहलों का शुभारंभ किया गया?
- नया iGOT कर्मयोगी डैशबोर्ड: यह मंत्रालय/विभाग/संगठन (MDO) के नेताओं और राज्य प्रशासकों को अपनी संस्थाओं की प्रगति एवं प्रभावशीलता की अधिक कुशलतापूर्वक निगरानी करने की सुविधा प्रदान करेगा।
- 1600वाँ iGOT कर्मयोगी पाठ्यक्रम: इसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के लिये एक शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना, निरंतर विकास और आजीवन अधिगम को बढ़ावा देना है।
- विकसित पंचायत पहल: इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने, प्रभावी शासन सुनिश्चित करने और पंचायत नेताओं को आवश्यक कौशल से सशक्त बनाने के लिये पंचायती राज संस्थाओं की कार्यक्षमता में वर्द्धन करना है।
- CPGRAMS वार्षिक रिपोर्ट, 2024: यह एक सुदृढ़ शिकायत निवारण तंत्र के माध्यम से लोक सेवा वितरण की प्रभावशीलता को बढ़ाने में हुई प्रगति को रेखांकित करती है।
सुशासन क्या है?
- परिचय: सुशासन निर्णय लेने की प्रक्रिया है तथा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक निर्णयों को क्रियान्वित किया जाता है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट "शासन और विकास, 1992" के अनुसार, सुशासन वह तरीका है जिसमें विकास के लिये किसी देश के आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- 'सुशासन' की असली परीक्षा यह है कि वह किस हद तक मानव अधिकारों के वादे को पूरा करता है : नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार।
- प्रमुख विशेषताएँ: विश्व बैंक के अनुसार , सुशासन की 8 प्रमुख विशेषताएँ हैं।
- सहभागिता: सुशासन के लिये लैंगिक-समावेशी भागीदारी महत्त्वपूर्ण है, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या प्रतिनिधियों या संस्थाओं के माध्यम से हो।
- सर्वसम्मति उन्मुख: सुशासन में समुदाय के सर्वोत्तम हितों और सतत् विकास लक्ष्यों पर आम सहमति बनाने के लिये सामाजिक हितों की मध्यस्थता करना शामिल है।
- जवाबदेह: किसी संगठन या संस्था को उन लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिये जो उसके निर्णयों या कार्यों से प्रभावित होंगे।
- पारदर्शी: पारदर्शिता का अर्थ है कि निर्णय नियमानुसार लिये जाते हैं तथा उनसे प्रभावित होने वाले लोगों को जानकारी उपलब्ध होती है।
- उत्तरदायी: संस्थाओं को सभी हितधारकों को उचित समय सीमा के भीतर सेवा प्रदान करनी चाहिये।
- प्रभावी और कुशल: सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रियाएँ और संस्थाएँ उपलब्ध संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुए सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करें।
- समतामूलक और समावेशी: किसी समाज का कल्याण सभी सदस्यों, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों का कल्याण करने या उसे बनाए रखने के अवसरों में शामिल करने पर निर्भर करता है।
- विधि का शासन: इसके लिये निष्पक्ष कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है, जिसे स्वतंत्र न्यायपालिका और भ्रष्टाचार-मुक्त पुलिस बल का समर्थन प्राप्त हो।
- यह सहभागी, सर्वसम्मति उन्मुख, जवाबदेह, पारदर्शी, उत्तरदायी, प्रभावी और कुशल, न्यायसंगत और समावेशी है और विधि के शासन का पालन करता है।
- अटल बिहारी वाजपेयी और सुशासन: उनके कार्यकाल में किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी परिवर्तनकारी पहलें हुईं, जिनसे देश में शासन व्यवस्था में बदलाव आया।
सुशासन का महत्व क्या है?
- आर्थिक विकास: सुशासन के तहत की गई पहल कार्यबल में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हो सकती है।
- सामाजिक विकास: स्वयं (SWAYAM) और कौशल भारत शिक्षा और रोज़गार कौशल के साथ हाशिये पर पड़े समूहों को सशक्त बनाते हैं।
- आधार एकीकरण से लीकेज में कमी आती है, जबकि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) कल्याणकारी योजनाओं में मध्यस्थों को खत्म करती है।
- लोकतंत्र को मज़बूत बनाना: MyGov जैसे प्लेटफॉर्म से नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है तथा ई-गवर्नेंस भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक है।
- जवाबदेहिता: RTI अधिनियम, 2005 से सरकारी सूचना तक पहुँच का अधिकार सुनिश्चित हुआ है जबकि PFMS से सार्वजनिक व्यय में जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के क्रम में धन प्रवाह पर निगरानी रखी जाती है।
- असमानता में कमी आना: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) के माध्यम से बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है।
- मनरेगा से ग्रामीण परिवारों को गारंटीकृत रोज़गार मिला है।
- विश्वास निर्माण: ई कोर्ट परियोजना से दक्षता एवं पहुँच के क्रम में न्यायालयी प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाया गया है जबकि CPGRAMS के तहत नागरिक शिकायतों के समाधान हेतु एक मंच मिला है।
भारत में सुशासन के लिये क्या पहल हैं?
- सुशासन सूचकांक
- PRAGATI (प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लिमेंटेशन)
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना
- ई-कोर्ट प्रणाली
- सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली
- मिशन कर्मयोगी
भारत में सुशासन के समक्ष क्या बाधाएँ हैं?
- भ्रष्टाचार: विश्व बैंक के अनुसार, भ्रष्टाचार के कारण भारत को प्रतिवर्ष सकल घरेलू उत्पाद का 0.5% का नुकसान होता है तथा निवेशकों एवं संगठनों के लिये कारोबारी माहौल में बाधा उत्पन्न होती है।
- वर्ष 2023 के भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में 180 देशों में से भारत 93वें स्थान पर है।
- जवाबदेहिता का अभाव: जवाबदेहिता के अभाव से सरकार में नागरिकों का विश्वास समाप्त होता है जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक उदासीनता, कम मतदान प्रतिशत के साथ शासन में नागरिक सहभागिता में कमी आती है।
- राजनीति का अपराधीकरण: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं के कारण सभी नागरिकों के लिये न्याय एवं समान व्यवहार सुनिश्चित करने के प्रयासों में बाधा आती है।
- एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार 18वीं लोकसभा के नवनिर्वाचित 543 सदस्यों में से 251 (46%) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 27 को दोषी ठहराया गया है।
- कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन: भारत के भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों (जैसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988) की अप्रभावी प्रवर्तन के कारण आलोचना की जाती है, जिससे लोगों में निराशा पैदा होती है।
आगे की राह
- विकेंद्रीकरण: सत्ता, केंद्र और राज्य सरकारों के पास केंद्रित है; जमीनी स्तर पर सुशासन सुनिश्चित करने हेतु नगरपालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों को अधिक कार्यात्मक एवं वित्तीय प्राधिकार देने की आवश्यकता है।
- नैतिक मानक: नोलन समिति (1994) द्वारा अनुशंसित ईमानदारी, जवाबदेहिता और निस्वार्थता जैसे नैतिक मूल्यों को लोक सेवकों में स्थापित किया जाना चाहिये।
- लैंगिक समानता: सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि समाज की सभी आवश्यकताएँ पूरी हो सकें।
- व्हिसलब्लोअर संरक्षण: सरकारी मंत्रालयों/विभागों में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्हिसलब्लोअर को अधिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सुशासन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। सुशासन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न: ई-शासन केवल नवीन प्रौद्योगिकी की शक्ति के उपयोग के बारे में नहीं है, अपितु इससे अधिक सूचना के 'उपयोग मूल्य' के क्रांतिक महत्त्व के बारे में है। स्पष्ट कीजिये। (2018) प्रश्न: नागरिक चार्टर संगठनात्मक पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व का एक आदर्श उपकरण है, परंतु इसकी अपनी परिसीमाएँ हैं। परिसीमाओं की पहचान कीजिये तथा नागरिक चार्टर की अधिक प्रभाविता के लिये उपायों का सुझाव दीजिये। (2018) |