भारतीय राजव्यवस्था
इन डेप्थ: प्रमुख संवैधानिक संशोधन
- 12 Dec 2024
- 32 min read
प्रिलिम्स के लिये:संविधान दिवस, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, प्रस्तावना, संविधान के स्रोत, अनुच्छेद 370, अनुसूचियाँ, वेस्टमिंस्टर मॉडल, भारतीय संसद मेन्स के लिये:संविधान की मुख्य विशेषताएँ, प्रमुख संवैधानिक संशोधन |
चर्चा में क्यों?
26 नवंबर, 2024 को भारत ने संविधान दिवस मनाया। भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता इसकी गतिशील प्रकृति में निहित है, जो इसे व्याख्या या संशोधन के माध्यम से समय के साथ अनुकूलित करने में सक्षम बनाती है।
- विश्व स्तर पर सर्वाधिक बार संशोधित संविधानों में से एक के रूप में, यह सुनिश्चित किया गया है कि भारतीय संविधान प्रासंगिक बना रहे तथा यह राष्ट्र के विकास और प्रगति में बाधक न बने।
संविधान दिवस
- परिचय: 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान को अपनाने की याद में संविधान दिवस मनाया जाता है। यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का जश्न मनाता है और न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है।
- वर्ष 2015 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नागरिकों के संविधान के साथ एकीकरण को मज़बूत करने के लिये 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2015 से पहले, 26 नवंबर को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था।
- यह दिन संविधान का मसौदा तैयार करने में संविधान सभा के दृष्टिकोण और प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की महत्त्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है, जिसके कारण उन्हें "भारतीय संविधान के जनक" की उपाधि मिली।
- जम्मू और कश्मीर में संविधान दिवस समारोह: वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, 74 वर्षों में पहली बार जम्मू और कश्मीर ने संविधान दिवस मनाया।
- यह आयोजन केंद्र शासित प्रदेश के भारत के कानूनी और राजनीतिक ढाँचे के साथ संरेखण में एक नए अध्याय का प्रतीक है।
संविधान के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- उद्देश्य:
- भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। यह एक लिखित दस्तावेज़ है जो सरकार और उसके संगठनों के मौलिक बुनियादी कोड, संरचना, प्रक्रियाओं, शक्तियों तथा कर्तव्यों एवं नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों को परिभाषित करता है।
- प्रारूपण समयरेखा:
- इसे संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया तथा यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।
- अपने अंगीकार के समय संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं तथा यह लगभग 145,000 शब्दों का था, जिससे यह अब तक अपनाया गया सबसे लंबा राष्ट्रीय संविधान बन गया।
- इसे प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने हस्तलिखित सुलेख के माध्यम से लिखा था, तथा इसके पृष्ठों को नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया था।
- संविधान के प्रत्येक अनुच्छेद पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा बहस की गई, जिन्होंने संविधान तैयार करने के लिये 2 वर्ष और 11 महीने की अवधि में 11 सत्र और 167 दिन तक बैठक की।
- प्रस्तावना:
- संविधान की प्रस्तावना भारत को एक प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है तथा इसके नागरिकों को न्याय, समानता तथा स्वतंत्रता का आश्वासन देती है एवं भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।
- संविधान का निर्माण:
- डॉ. भीम राव अंबेडकर को भारतीय संविधान का मुख्य निर्माता माना जाता है। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति बने।
संविधान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- सबसे लंबा लिखित संविधान:
- भारत का संविधान विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा है। यह एक अति व्यापक, और विस्तृत दस्तावेज़ है।
- मूलतः (1949) संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ थीं।
- वर्तमान में (2019), इसमें एक प्रस्तावना, लगभग 470 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
- भारत का संविधान विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा है। यह एक अति व्यापक, और विस्तृत दस्तावेज़ है।
- विभिन्न स्रोतों से प्राप्त:
- भारत का संविधान विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संविधानों और भारत सरकार अधिनियम 1935 से व्यापक रूप से उधार लिया गया है।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इसके निर्माण को "विश्व के सभी ज्ञात संविधानों की छानबीन" के रूप में वर्णित किया।
- भारत का संविधान विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संविधानों और भारत सरकार अधिनियम 1935 से व्यापक रूप से उधार लिया गया है।
- कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण:
- संविधानों को कठोर या लचीले में वर्गीकृत किया जाता है। अमेरिकी संविधान की तरह कठोर संविधान में संशोधन के लिये विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जबकि ब्रिटिश संविधान की तरह लचीले संविधान में सामान्य कानूनों की तरह संशोधन किया जा सकता है।
- भारत का संविधान दोनों का मिश्रण है। अनुच्छेद 368 में दो प्रकार के संशोधनों की रूपरेखा दी गई है:
- विशेष बहुमत: इसके लिये उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के साथ-साथ प्रत्येक सदन में कुल सदस्यता के बहुमत की आवश्यकता होती है।
- राज्य अनुसमर्थन के साथ विशेष बहुमत: इसके लिये उपरोक्त के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
- इसके अतिरिक्त कुछ प्रावधानों को सामान्य विधायी प्रक्रिया के अनुरूप संसद में साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।
- यह अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आते।
- एकात्मक पूर्वाग्रह वाली संघीय प्रणाली:
- संविधान एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है जिसमें दोहरी सरकार, शक्तियों का विभाजन, लिखित और सर्वोच्च संविधान, कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका तथा द्विसदनीयता जैसी विशिष्ट विशेषताएँ हैं।
- हालाँकि इसमें एक मज़बूत केंद्र, एकल संविधान और नागरिकता, लचीलापन, एकीकृत न्यायपालिका, केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल, अखिल भारतीय सेवाएँ तथा आपातकालीन प्रावधान जैसी एकात्मक विशेषताएँ भी शामिल हैं।
- उल्लेखनीय है कि संविधान में संघ शब्द का अभाव है। अनुच्छेद 1 भारत को राज्यों का संघ बताता है, जिसका अर्थ है कि राज्य अलग नहीं हो सकते और यह संघ राज्यों के बीच किसी समझौते पर आधारित नहीं है।
- इस प्रकार भारत के संविधान को स्वरूप में संघीय लेकिन भावना में एकात्मक, अर्द्ध-संघीय (के.सी. व्हीयर), सौदेबाजी संघवाद (मॉरिस जोन्स), सहकारी संघवाद (ग्रानविले ऑस्टिन) और केंद्रीकरण प्रवृत्ति वाला महासंघ (आइवर जेनिंग्स) के रूप में वर्णित किया गया है।
- संविधान एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है जिसमें दोहरी सरकार, शक्तियों का विभाजन, लिखित और सर्वोच्च संविधान, कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका तथा द्विसदनीयता जैसी विशिष्ट विशेषताएँ हैं।
- संसदीय शासन प्रणाली:
- संसदीय प्रणाली, विधायिका और कार्यकारी अंगों के बीच सहयोग पर बल देती है, जबकि राष्ट्रपति प्रणाली शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है।
- वेस्टमिंस्टर मॉडल के नाम से मशहूर संसदीय प्रणाली केंद्र और राज्य दोनों जगह स्थापित है। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- नाममात्र और वास्तविक कार्यकारी अधिकारियों की उपस्थिति
- बहुमत दल का शासन
- कार्यपालिका की विधायिका के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी
- विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता
- प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का नेतृत्व
- निचले सदन (लोकसभा या विधानसभा) का विघटन
- भले ही भारतीय संसदीय प्रणाली काफी हद तक ब्रिटिश पैटर्न पर आधारित है, लेकिन दोनों में कुछ मूलभूत अंतर हैं। भारतीय राज्य का एक निर्वाचित प्रमुख (गणतंत्र) होता है जबकि ब्रिटिश राज्य का एक वंशानुगत प्रमुख (राजतंत्र) होता है।
- इसके अतिरिक्त भारतीय संसद संप्रभु नहीं है। दोनों प्रणालियों में प्रधानमंत्री की भूमिका इतनी केंद्रीय है कि इसे अक्सर प्रधानमंत्री सरकार कहा जाता है।
- संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का संश्लेषण:
- ब्रिटिश संसद संप्रभुता का प्रतीक है, जबकि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक सर्वोच्चता को दर्शाता है। भारत में संसदीय प्रणाली और न्यायिक समीक्षा दोनों मॉडल से अलग है।
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा शक्ति अमेरिका की तुलना में सीमित है, क्योंकि अनुच्छेद 21 विधि की उचित प्रक्रिया के बजाय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं को अपनाता है।
- भारत का संविधान संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के बीच संतुलन स्थापित करता है। सर्वोच्च न्यायालय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, जबकि संसद अपनी संवैधानिक शक्ति का उपयोग करके संविधान के अधिकांश भागों में संशोधन कर सकती है।
- एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका:
- भारतीय संविधान एक एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है, जिसमें सर्वोच्च स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय, उसके बाद राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय और उसके नीचे अधीनस्थ न्यायालय हैं।
- अमेरिका के विपरीत, जहाँ संघीय और राज्य कानूनों को अलग-अलग न्यायिक प्रणालियों द्वारा लागू किया जाता है, भारत की एकल प्रणाली केंद्रीय और राज्य दोनों कानूनों को लागू करती है।
- सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय, सर्वोच्च अपीलीय निकाय, मौलिक अधिकारों का गारंटर और संविधान का संरक्षक के रूप में कार्य करता है।
- भारतीय संविधान एक एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है, जिसमें सर्वोच्च स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय, उसके बाद राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय और उसके नीचे अधीनस्थ न्यायालय हैं।
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights- FR):
- भारतीय संविधान का भाग III सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है:
अधिकार |
अनुच्छेद |
समानता का अधिकार |
14-18 |
स्वतंत्रता का अधिकार |
19-22 |
शोषण के विरुद्ध अधिकार |
23-24 |
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार |
25-28 |
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार |
29-30 |
संवैधानिक उपचार का अधिकार |
32 |
- राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत:
- डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को भारतीय संविधान की एक नई विशेषता बताया, जिसे भाग IV में रेखांकित किया गया है। समाजवादी, गांधीवादी और उदार-बुद्धिजीवी के रूप में वर्गीकृत इन सिद्धांतों का उद्देश्य सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना एवं कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
- मौलिक अधिकार के विपरीत वे गैर-न्यायसंगत हैं, जिसका अर्थ है कि अदालतें उन्हें लागू नहीं कर सकती हैं।
- मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन पर आधारित है।
- मौलिक कर्तव्य:
- मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान नहीं था।
- इन्हें स्वर्ण सिंह समिति (1976) की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा आंतरिक आपातकाल (1975-77) के संचालन के दौरान शामिल किया गया था।
- 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
- संविधान के भाग IV-A (जिसमें केवल एक अनुच्छेद 51-A है) में ग्यारह मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है।
- ये भी गैर-न्यायसंगत प्रकृति के हैं।
- एक धर्मनिरपेक्ष राज्य:
- भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का प्रतीक है।
- यह किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता है।
- भारतीय संविधान पंथनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा को मूर्त रूप देता है, अर्थात् सभी धर्मों को समान सम्मान देना या सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करना।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार:
- भारतीय संविधान ने लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों के आधार के रूप में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया है।
- प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष से कम नहीं है, उसे जाति, नस्ल, धर्म, लिंग, साक्षरता, धन आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार है।
- एकल नागरिकता:
- भारतीय संविधान संघीय है और इसमें दोहरी राजनीति (केंद्र तथा राज्य) की परिकल्पना की गई है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता अर्थात् भारतीय नागरिकता का प्रावधान है।
- भारत में सभी नागरिक चाहे वे जिस भी राज्य में पैदा हुए हों या रहते हों, पूरे देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकारों का आनंद लेते हैं तथा उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
- स्वतंत्र निकाय:
- भारतीय संविधान भारत में लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली की सुरक्षा के लिये प्रमुख स्तंभों के रूप में स्वतंत्र निकायों की स्थापना करता है:
- आपातकालीन प्रावधान:
- भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को किसी भी असाधारण स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाने के लिये विस्तृत आपातकालीन प्रावधान हैं।
- संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियों की परिकल्पना की गई है:
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
- राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) (अनुच्छेद 365)
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
- त्रिस्तरीय सरकार:
- मूल रूप से भारतीय संविधान में दोहरी राजनीति का प्रावधान था और इसमें केंद्र तथा राज्यों के संगठन एवं शक्तियों के संबंध में प्रावधान थे।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने सरकार का एक तीसरा स्तर (यानी स्थानीय) जोड़ा है जो विश्व के किसी अन्य संविधान में नहीं पाया जाता है।
- सहकारी समितियाँ:
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण दिया।
प्रमुख संवैधानिक संशोधन क्या हैं?
- प्रथम संशोधन (1951) :
- इसके तहत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को उन्नति के लिये विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्तियाँ दी गई।
- कानून की रक्षा के लिये संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था की गई।
- भूमि सुधार तथा न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानूनों को नौंवी अनुसूची में स्थान दिया गया।
- अनुच्छेद 31 में दो उपखंड 31(क) और 31 (ख) जोड़े गये।
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के तीन आधार जोड़े गये, ये थे- लोक आदेश, अपराध करने के लिये उकसाना तथा विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिये।
- इसने इन प्रतिबंधों को 'उचित' भी करार दिया और इसलिये इन्हें न्यायिक जांच के अधीन बताया।
- यह व्यवस्था की गई कि राज्य ट्रेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यवसाय या व्यापार के राष्ट्रीयकरण को केवल इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि यह व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- 7वाँ संशोधन (1956):
- महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लागू करने के लिये दूसरी और सातवीं अनुसूचियों में संशोधन किया गया:
- राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति (भाग-क, भाग-ख, भाग-ग और भाग-घ) की गई और इनके स्थान पर 14 राज्यों एवं 6 केंद्र शासित प्रदेशों को स्वीकृति दी गई।
- उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र बढ़ाकर केंद्रशासित प्रदेशों को भी इसमें शामिल कर लिया गया।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक कॉमन (उभय) उच्च न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था (प्रावधान) की गई।
- उच्च न्यायालय में अतिरिक्त एवं कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई।
- महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लागू करने के लिये दूसरी और सातवीं अनुसूचियों में संशोधन किया गया:
- 42वाँ संशोधन (1976):
- इसमें 59 धाराएँ शामिल थीं और इसमें अनेक परिवर्तन किये गए, जिसके कारण इसे "लघु संविधान" का खिताब मिला।
- प्रस्तावना में तीन नए शब्द शामिल किये गए: समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता।
- नए भाग IV-A के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों को प्रस्तुत किया गया।
- यह अनिवार्य किया गया कि राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार कार्य करना होगा।
- संवैधानिक संशोधनों को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर घोषित किया गया।
- इसमें यह प्रावधान किया गया कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिये बनाए गए कानूनों को कुछ मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के कारण अमान्य नहीं किया जा सकता।
- राज्य नीति के तीन अतिरिक्त निर्देशक सिद्धांत जोड़े गए।
- लोकसभा और राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना में सहायता की गई।
- संविधान में भाग XIV-A को शामिल करके प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और अन्य विशेष न्यायाधिकरणों के निर्माण को सक्षम बनाया गया।
- 44वाँ संशोधन (1978):
- लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के वास्तविक कार्यकाल को पुनःस्थापित कर दिया गया (अर्थात् पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।)
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों में कोरम की व्यवस्था को पूर्ववत रखा गया।
- संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों की कार्यवाहियों की खबरों को समाचार पत्रों में प्रकाशन को संवैधानिक संरक्षण दिया गया।
- कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिये एक बार लौटाने/ वापस भेजने की राष्ट्रपति को शक्तियाँ दी गई। परंतु पुनर्विचारित सलाह को राष्ट्रपति को मानने के लिये बाध्य कर दिया गया।
- अध्यादेशों को जारी करने के संदर्भ में राष्ट्रपति, राज्यपालों एवं प्रशासकों की अंतिम संतुष्टि वाले उपबंध को समाप्त कर दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की कुछ शक्तियों को पुनः बहाल कर दिया गया।
- राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में ‘आंतरिक अशांति’ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द को रखा गया।
- राष्ट्रपति द्वारा कैबिनेट की लिखित सिफारिश के आधार ही राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करने की व्यवस्था की गई।
- राष्ट्रपति शासन तथा राष्ट्रीय आपातकाल के संदर्भ में कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा (सेफगार्ड्स) के उपाय किये गये।
- मौलिक अधिकारों की सूची में संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा उसे केवल एक विधिक अधिकार के रूप में रखा गया।
- अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किये जा सकने की व्यवस्था की गई।
- उस उपबंध को हटा दिया गया जिसने न्यायपालिका की राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर निर्णय देने अधिकार से वंचित करते थे।
- 52वाँ संशोधन (1985):
- संसद तथा विधानमंडलों के सदस्यों को दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराने की व्यवस्था की गई तथा इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी के लिये एक नई अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई।
- 61वाँ संशोधन (1988):
- लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
- 73वाँ और 74वाँ संशोधन (1992):
- 73वाँ संशोधन अधिनियम:
- इस संशोधन के माध्यम से पंचायती राज संस्था को संवैधानिक रूप दिया गया।
- इस अधिनियम द्वारा भारत के संविधान में एक नया भाग-IX जोड़ा गया है तथा इसमें अनुच्छेद 243 से 243O तक के प्रावधान सम्मिलित हैं।
- इसके अतिरिक्त अधिनियम द्वारा संविधान में एक नई 11वीं अनुसूची भी जोड़ी गई है तथा इसमें पंचायतों के 29 कार्यात्मक विषय शामिल किये गए हैं।
- 73वाँ संशोधन अधिनियम:
- 74वाँ संशोधन अधिनियम:
- शहरी स्थानीय सरकारों को 1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान 74वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से संवैधानिक रूप दिया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
- इसमें भाग IX-A जोड़ा गया तथा इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
- इसके अलावा इस अधिनियम ने संविधान में 12 वीं अनुसूची भी जोड़ी गई। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक मद शामिल हैं।
- 86वाँ संशोधन (2002):
- अनुच्छेद 21A के तहत प्रारंभिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया।
- निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु में परिवर्तन किया गया।
- अनुच्छेद 51-A के तहत एक नया मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
- 101वाँ संशोधन (2016):
- यह विधेयक केंद्र और राज्य दोनों को वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) लगाने की अनुमति देता है।
- वर्ष 2016 के संशोधन से पहले, कराधान शक्तियाँ केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित थीं।
- यह विधेयक केंद्र और राज्य दोनों को वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) लगाने की अनुमति देता है।
- 103वाँ संशोधन (2019):
- स्वतंत्र भारत में पहली बार आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये आरक्षण लागू किया गया।
- अनुच्छेद 16 में संशोधन से सार्वजनिक रोज़गार में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये 10% आरक्षण का प्रावधान है।
- 104वाँ संशोधन (2020):
- भारतीय संसद द्वारा 2020 में अधिनियमित 104वें संविधान संशोधन अधिनियम ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिये आरक्षित सीटों को समाप्त कर दिया, जबकि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) हेतु आरक्षण को अतिरिक्त दस वर्षों के लिये बढ़ा दिया।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान लोकतंत्र, न्याय, समानता और बंधुत्व के प्रति भारत के समर्पण का प्रतीक है। इसकी अनुकूलनशीलता, समावेशिता तथा व्यापक ढाँचे ने समय के साथ इसकी प्रासंगिकता को बनाए रखा है। संविधान दिवस नागरिकों के अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों की याद दिलाता है व इसके निर्माताओं की दूरदर्शिता का सम्मान करता है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर का संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत, जो संविधान की सर्वोच्चता के प्रति सम्मान और इसकी प्रक्रियाओं पर बल देता है, आज भी महत्त्वपूर्ण है। यह सरकार की सभी शाखाओं, संवैधानिक प्राधिकारियों, नागरिक समाज तथा नागरिकों को अपने मूल्यों को कायम रखने के लिये एकजुट करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि भारत का विकास उसके आधारभूत सिद्धांतों के अनुरूप हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य उत्तर: (b) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन संविधान सभा की संघीय संविधान समिति के अध्यक्ष थे? (2005) (a) बी.आर. अंबेडकर उत्तर: (c) प्रश्न: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण निम्नलिखित में दी गई योजना पर आधारित है: (2012) (a) मॉर्ले-मिंटो सुधार, 1909 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: स्वतंत्र भारत के लिये संविधान का मसौदा केवल तीन साल में तैयार करने के एतिहासिक कार्य को पूर्ण करना संविधान सभा के लिये कठिन होता, यदि उनके पास भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्राप्त अनुभव नहीं होता। चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न: निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017) प्रश्न: यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014) |