भारतीय राजनीति
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा
- 05 Dec 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS), संघ लोक सेवा आयोग मेन्स के लिये:भारत में न्यायपालिका से संबंधित पहलें, भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने न्यायपालिका की विविधता में वृद्धि करने हेतु उपेक्षित सामाजिक समूहों की भागीदारी को बढ़ाने के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service- AIJS) की वकालत की।
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) क्या है?
- परिचय:
- यह सभी राज्यों में अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीशों एवं ज़िला न्यायाधीशों के स्तर पर न्यायाधीशों के लिये एक प्रस्तावित केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली है।
- इसका लक्ष्य संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) मॉडल के समान न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करना तथा सफल उम्मीदवारों को राज्यों का कार्यभार सौंपना है।
- वर्ष 1958 और 1978 की विधि आयोग की रिपोर्टों की सिफारिशों के अनुसार, AIJS का उद्देश्य अलग-अलग वेतन, रिक्तियों पर भर्ती और मानकीकृत राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण जैसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान करना है।
- संसदीय स्थायी समिति ने वर्ष 2006 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के समर्थन पर पुनर्विचार किया।
- संवैधानिक आधार:
- संविधान का अनुच्छेद 312 केंद्रीय सिविल सेवाओं के समान ही राज्यसभा के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पर AIJS की स्थापना का प्रावधान करता है।
- हालाँकि अनुच्छेद 312 (2) में कहा गया है कि AIJS में ज़िला न्यायाधीश (अनुच्छेद 236 में परिभाषित) से नीचे स्तर के किसी भी पद को शामिल नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 236 के अनुसार, एक ज़िला न्यायाधीश के अंतर्गत नगर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर ज़िला न्यायाधीश, संयुक्त ज़िला न्यायाधीश, सहायक ज़िला न्यायाधीश, लघुवाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, अपर मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश हैं।
- आवश्यकता:
- AIJS न्यायाधीशों के चयन और प्रशिक्षण का एक समान और उच्च मानक सुनिश्चित करेगा, जिससे न्यायपालिका की गुणवत्ता एवं दक्षता में वृद्धि होगी।
- AIJS निचली अदालतों में न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरेगा, वर्तमान में देश भर में निचली न्यायपालिका में लगभग 5,400 पद रिक्त हैं और मुख्य रूप से राज्यों द्वारा नियमित परीक्षा आयोजित करने में अत्यधिक देरी के कारण निचली न्यायपालिका में 2.78 करोड़ मामले लंबित हैं।
- AIJS देश की सामाजिक संरचना को दर्शाते हुए विभिन्न क्षेत्रों, लिंग, जातियों और समुदायों के न्यायाधीशों के प्रतिनिधित्व एवं विविधता को बढ़ाएगा।
- AIJS न्यायपालिका संबंधी नियुक्तियों में न्यायिक या कार्यकारी हस्तक्षेप की गुंज़ाइश को कम करेगा, जिससे न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- AIJS प्रतिभाशाली और अनुभवी न्यायाधीशों का एक समूह तैयार करेगा जिन्हें उच्च न्यायपालिका में नियुक्त किया जा सकता है, जिससे न्यायाधीशों की भविष्य की संभावनाओं और उनकी गतिशीलता में सुधार होगा।
- वर्तमान स्थिति:
- प्रमुख हितधारकों की इस संबंध में अलग-अलग राय के कारण वर्ष 2023 तक AIJS पर कोई आम सहमति नहीं है।
- यह AIJS की स्थापना के प्रस्ताव पर आम सहमति प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों को उज़ागर करता है।
वर्तमान में ज़िला न्यायाधीशों की भर्ती कैसे की जाती है?
- वर्तमान प्रणाली में अनुच्छेद 233 और 234 शामिल हैं जो राज्यों को ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार देते हैं, जिसका प्रबंधन राज्य लोक सेवा आयोगों और उच्च न्यायालयों के माध्यम से किया जाता है, क्योंकि उच्च न्यायालय राज्य में अधीनस्थ न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का पैनल परीक्षा के बाद उम्मीदवारों का साक्षात्कार लेता है और नियुक्ति के लिये उनका चयन करता है।
- निचली न्यायपालिका के ज़िला न्यायाधीश स्तर तक के सभी न्यायाधीशों का चयन प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। PCS (J) को आमतौर पर न्यायिक सेवा परीक्षा के रूप में जाना जाता है।
- अनुच्छेद 233 ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। किसी भी राज्य में ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पोस्टिंग और पदोन्नति राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसे राज्य पर अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाएगी।
- अनुच्छेद 234 न्यायिक सेवा में ज़िला न्यायाधीशों के अलावा अन्य व्यक्तियों की भर्ती से संबंधित है।
AIJS के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- यह संघीय ढाँचे और राज्यों व उच्च न्यायालयों की स्वायत्तता का उल्लंघन होगा, जिनके पास अधीनस्थ न्यायपालिका को प्रशासित करने का संवैधानिक अधिकार एवं दायित्व है।
- इससे हितों का टकराव और न्यायाधीशों पर दोहरे नियंत्रण की स्थिति उत्पन्न होगी, जो केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों के प्रति जवाबदेह होंगे।
- यह विभिन्न राज्यों की स्थानीय विधियों, भाषाओं और रीति-रिवाज़ों की अवहेलना करेगा, जो न्यायपालिका के प्रभावी कामकाज के लिये आवश्यक हैं।
- इसका असर मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के मनोबल और प्रेरणा पर पड़ेगा, जो अपने कॅरियर में उन्नति के अवसरों तथा प्रोत्साहन से वंचित रह जाएंगे।
आगे की राह
- चिंताओं को दूर करने और AIJS के लिये समर्थन जुटाने हेतु राज्यों, उच्च न्यायालयों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ संवाद एवं परामर्श की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- इसके प्रभाव का आकलन करने और धीरे-धीरे चिंताओं को दूर करने के लिये चुनिंदा राज्यों में पायलट आधार पर AIJS को लागू करने पर विचार करना चाहिये।
- AIJS को लचीले तंत्र के साथ डिज़ाइन करना जो स्थानीय विधियों, भाषाओं तथा रीति-रिवाज़ों के अनुकूलन की अनुमति देता हो, क्षेत्रीय बारीकियों की उपेक्षा किये बिना प्रभावी कार्य पद्धति सुनिश्चित करना।
- एक पूर्णतः स्पष्ट परिभाषित संक्रमण अवधि का प्रस्ताव करना जिसके दौरान मौजूदा न्यायिक अधिकारी व्यवधानों को कम करते हुए नई प्रणाली को सहजता से अपना सकें।
- संघीय ढाँचे, स्वायत्तता तथा न्यायपालिका की प्रभावी कार्यप्रणाली पर AIJS के प्रभाव का आकलन करने तथा आवश्यकतानुसार आवश्यक समायोजन के लिये एक आवधिक समीक्षा तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
- AIJS के अंतर्गत एक प्रोत्साहन संरचना विकसित करना जो कॅरियर में उन्नति से संबंधित चिंताओं का समाधान करते हुए मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के योगदान को प्रेरित करे और मान्यता दे।
विधिक दृष्टिकोण
अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के बारे में विस्तार से पढ़ें
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स: प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। 150 शब्द (2017) |