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भारतीय राजनीति

महामारी के दौर में सहकारी संघवाद

  • 14 May 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

सहकारी संघवाद, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 

मेन्स के लिये

सहकारी संघवाद: अर्थ, महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल के दिनों में कई विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार पर COVID-19 महामारी के दौर में भारतीय संघवाद को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है। 

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि आज़ादी के पश्चात् भिन्न-भिन्न प्रकार की परिस्थितियों ने भारतीय संघवाद और भारतीय लोकतंत्र का अपने-अपने ढंग से परीक्षण किया और प्रत्येक चुनौती में भारतीय लोकतंत्र ने नए-नए प्रतिमान स्थापित किये, किंतु देश में नवीनतम परिस्थितियों जैसी चुनौती कभी भी देखने को मिली, यह समय न केवल भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के लिये चुनौतीपूर्ण है बल्कि भारतीय संघीय ढाँचे के लिये भी एक संकट का समय है।
  • विश्लेषकों का मत है कि COVID-19 संकट को सक्रिय रूप से हराने में भारत की सफलता पूर्ण रूप से केंद्र-राज्य सहयोग पर टिकी हुई है। यह वास्तव में संघवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता है जो वर्तमान समय में सर्वाधिक तनाव के अधीन है।

संघवाद और सहकारी संघवाद

  • ज्ञातव्य है कि संघवाद (Federalism) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘Foedus’ से हुई है जिसका अर्थ एक प्रकार के समझौते या अनुबंध से होता है। वास्तव में महासंघ दो तरह की सरकारों के बीच सत्ता साझा करने और उनके संबंधित क्षेत्रों को नियंत्रित करने हेतु एक समझौता होता है।
  • इस आधार पर कहा जा सकता है कि संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें देश के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद हैं- पहला केंद्रीय स्तर पर और दूसरा स्थानीय या राज्य स्तर पर। भारत की स्थिति में संघवाद को स्थानीय, केंद्रीय और राज्य सरकारों के मध्य अधिकारों के वितरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों के आधार पर संघवाद की अवधारणा को दो भागों में विभाजित किया गया है (1) सहकारी संघवाद (2) प्रतिस्पर्द्धी संघवाद।
    • सहकारी संघवाद में केंद्र व राज्य एक-दूसरे के साथ क्षैतिज संबंध स्थापित करते हुए एक-दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं। सहकारी संघवाद की इस अवधारणा में यह स्पष्ट किया जाता है कि केंद्र और राज्य में से कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है।
    • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मध्य संबंध लंबवत होते हैं जबकि राज्य सरकारों के मध्य संबंध क्षैतिज होते हैं। प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्यों को आपस में और केंद्र के साथ लाभ के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा करनी होती है।
  • ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के संविधान विशेषज्ञ के. सी. व्हेअर (K.C. Wheare) के अनुसार, संघवाद पारंपरिक रूप से क्षेत्र विशिष्ट में एक देश की संघ और राज्य सरकारों की स्वतंत्रता का प्रतीक है।
  • जब संविधान सभा के सदस्यों ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और स्विटज़रलैंड जैसे अन्य महान संघों के संविधानों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया, तो उन्होंने भारतीय गणतंत्र की आवश्यकता के अनुरूप एक प्रणाली तैयार करने हेतु ‘पिक एंड चूज़’ (Pick and Choose) की नीति अपनाई। 
  • परिणामस्वरूप, भारत की संविधान सभा ‘सहकारी संघवाद’ को अपनाने के लिये विश्व में पहली बार निर्वाचित निकाय बन गई।

COVID-19 के दौर में सहकारी संघवाद पर संकट

  • मौजूदा दौर में कोरोनावायरस (COVID-19) विश्व के लगभग सभी देशों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, जिसमें समृद्ध और चिकित्सकीय रूप से उन्नत पश्चिमी देश भी शामिल हैं। कोरोनावायरस संक्रमण का आँकड़ा वैश्विक स्तर पर 44 लाख के पार जा चुका है, भारत में भी यह संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है।
  • इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं, किंतु देश में कई विशेषज्ञों ने COVID-19 के संबंध में कुछ हालिया घटनाक्रमों के आधार पर केंद्र-राज्य संबंधों में आए तनाव पर चिंता ज़ाहिर की है।
    • उदाहरण के लिये केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों का रेड (Red), ऑरेंज (Orange) और ग्रीन (Green) ज़ोन में किये गए वर्गीकरण का विभिन्न राज्य सरकारों ने विरोध किया है। राज्यों ने केंद्र सरकार से इस प्रकार के वर्गीकरण में अधिक स्वायत्तता की मांग की है।
  • विदित हो कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 जिसके तहत केंद्र द्वारा राज्यों को COVID-19 संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये जा रहे हैं, केंद्र सरकार के लिये राज्यों के साथ परामर्श को अनिवार्य करता है। किंतु केंद्र के हालिया कई निर्णयों में इस बाध्यता का पालन नहीं किया गया है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 11 के तहत एक 'राष्ट्रीय योजना' बनाने की परिकल्पना की गई है, साथ ही अधिनियम की धारा 11 (2) इस 'राष्ट्रीय योजना' को तैयार करने से पूर्व राज्य के परामर्श को अनिवार्य करता है।
  • हालाँकि, केंद्र सरकार ने अभी तक ‘राष्ट्रीय योजना’ तैयार नहीं की है, इसके स्थान पर COVID-19 का मुकाबला करने के लिये केंद्र सरकार राज्यों को ‘तदर्थ बाध्यकारी दिशा-निर्देशों’ (Ad Hoc Binding Guidelines) जारी कर रही है।
    • इस प्रकार के दिशा-निर्देश राज्य के परामर्श के विधायी जनादेश को दरकिनार करते हैं।
  • केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वे निगम जिन्होंने PM-CARES फंड में दान दिया है, CSR छूट का लाभ उठा सकते हैं, किंतु मुख्यमंत्री राहत कोष में दान देने वाले लोग इसका लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
  • इस प्रकार यह निर्णय मुख्यमंत्री राहत कोष में दान को हतोत्साहित करता है और राज्यों को वित्तीय सहायता के लिये केंद्र पर और अधिक निर्भर बनाता है।
  • इसके अतिरिक्त देश में लंबे समय तक शराब बिक्री पर रोक लगी रही, जिसके कारण राज्यों का राजस्व काफी कम हो गया है। हालाँकि अब देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध हटा दिये गए हैं।
    • वहीं पेट्रोल और डीज़ल की शून्य बिक्री के कारण भी राज्यों को राजस्व की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप राज्यों के लिये वेतन, पेंशन और कल्याणकारी योजनाओं के खर्चों को उठाना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो गया है।

निष्कर्ष

  • उल्लेखनीय है कि राज्य वे पहली इकाई होते हैं, जो किसी भी आपदा अथवा महामारी (मौजूदा समय में COVID-19) के समय में पहली प्रतिक्रिया देते हैं, इस प्रकार पर्याप्त धन राशि की आपूर्ति करना संकट से प्रभावी ढंग से निपटने की पूर्व आवश्यकता बन जाता है। किंतु मौजूदा समय में केंद्र सरकार द्वारा जिस प्रकार के निर्णय लिये जा रहे हैं, वे स्पष्ट तौर पर इस सिद्धांत का उल्लंघन कर रहे हैं। आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्यों को बराबरी में देखे और स्वयं पर निर्भरता बढ़ाने के स्थान पर उनकी क्षमता को मज़बूत करे।

स्रोत: द हिंदू

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