‘पड़ोसी पहले’ नीति और भारत-भूटान संबंध
संदर्भ
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार का जब गठन हुआ तो विदेश मंत्री पद पर पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर की नियुक्ति ने एकबारगी सभी को हैरानी में डाल दिया। इस पद पर नियुक्त होने के बाद नए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की पड़ोसी पहले नीति के तहत अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये भूटान को चुना। भूटान के साथ सदियों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं और यह भारत का करीबी सहयोगी रहा है तथा पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफी प्रगति हुई है। विदेश मंत्री के इस दौरे से यह भी स्पष्ट हुआ कि निकट मित्र एवं पड़ोसी भूटान के साथ संबंधों को भारत कितना महत्त्व देता है। गौरतलब है कि वर्ष 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री का पद सँभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पहले विदेश दौरे के लिये भूटान को ही चुना था। वर्ष 2019 में जब नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो बिम्सटेक देशों के नेताओं को आमत्रित किया गया था, जिसमें भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग भी शामिल थे।
1949 की भारत-भूटान संधि
भारत की आज़ादी के बाद 8 अगस्त, 1949 को भारत और भूटान के बीच दार्जिलिंग में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें अनेक प्रावधान शामिल थे जिनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था रक्षा और विदेश मामलों में भूटान का भारत पर आश्रित होना। काफी लंबे समय तक इस संधि के जारी रहने के बाद भूटान के आग्रह पर 8 फरवरी, 2007 को इसमें बदलाव कर अद्यतन बनाया गया। अद्यतन संधि में यह उल्लेख है कि भारत और भूटान के बीच स्थायी शांति और मैत्री होगी। इसके अलावा इसमें से ऐसे प्रावधानों को हटा दिया गया जो समय के साथ अप्रचलित हो गए थे। अद्यतन संधि में पारस्परिक और दीर्घकालिक लाभ के लिये आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने और उसके विस्तार, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग के नए प्रावधान शामिल किये गए। इसमें दोनों देशों के नागरिकों के साथ व्यवहार अथवा हमारी विद्यमान मुक्त व्यापार व्यवस्था में किसी परिवर्तन की परिकल्पना नहीं है। यह माना गया कि इस अद्यतन संधि से दोनों देश अपने-अपने राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ सहयोग करने तथा एक-दूसरे की राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों के विरुद्ध क्रियाकलापों हेतु अपने क्षेत्रों का उपयोग न करने देने के लिये प्रतिबद्ध होंगे।
विदित हो कि पिछले कई दशकों से भूटान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति का एक स्थायी कारक रहा है । साझा हितों और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर आधारित अच्छे पड़ोसी के संबंधों का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। यह इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया की साझा नियति है। यही वज़ह है कि आज परिपक्वता, विश्वास, सम्मान और समझ-बूझ तथा निरंतर विस्तृत होते कार्यक्षेत्र में संयुक्त प्रयास भारत-भूटान संबंधों की विशेषता है ।
राजतंत्र से लोकतंत्र में बदला भूटान
सदियों तक चले राजतंत्र के बाद वर्ष 2008 में भूटान ने लोकतंत्र की ओर अपना पहला कदम बढ़ाया और आश्चर्यजनक रूप से इसकी शुरुआत तत्कालीन भूटान नरेश ने ही की थी तथा उन्हीं की पहल पर भूटान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव भी हुए। तब से अब तक वहाँ तीन बार चुनाव हो चुके हैं। भूटान के संविधान के अनुसार आम चुनाव दो चरणों में होते हैं। पहले चरण में मतदाता विभिन्न दलों में से अपनी पसंद के दल चुनते हैं। सर्वाधिक पसंद किये गए केवल दो दलों के उम्मीदवारों को ही दूसरे चरण में भूटान के 20 जिलों से उम्मीदवारी का मौका मिलता है। राष्ट्रीय सभा के निम्न सदन की 47 सीटों में से अधिकांश पर विजयप्राप्त करने वाले दल के नेता को भूटान के राजा द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है।
सामरिक रूप से भारत के लिये भूटान का महत्त्व
भूटान भारत का निकटतम पड़ोसी देश है और दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। द्विपक्षीय भारतीय-भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना दोनों देशों के बीच सीमा की सुरक्षा करने के लिये की गई है। वर्ष 1971 के बाद से भूटान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत ने ही किया था, जिसके बाद से इस देश को संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलती है। भारत के साथ भूटान मज़बूत आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य संबंध रखता है। भूटान सार्क का संस्थापक सदस्य है और बिम्सटेक, विश्व बैंक तथा IMF का सदस्य भी बन चुका है। भौगोलिक स्थिति के कारण भूटान दुनिया के बाकी हिस्सों से कटा हुआ था, लेकिन अब भूटान ने दुनिया में अपनी जगह बनाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। हालिया समय में भूटान ने एक खुली-द्वार नीति विकसित की है और दुनिया के कई देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के प्रयास किये हैं।
भारत की उत्तरी प्रतिरक्षा व्यवस्था में भी भूटान को Achilles Heel की संज्ञा दी जाती है। यह भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। चुम्बी घाटी से चीन की सीमाएँ लगभग 80 मील की दूरी पर हैं, जबकि भूटान चीन से अपना लगभग 470 किमी. लंबा बॉर्डर साझा करता है। ऐसे में चीन के विस्तारवादी रुख के मद्देनज़र भूटान की सीमाओं को सुरक्षित रखना ज़रूरी है क्योंकि इससे न केवल भूटान को बल्कि उत्तरी बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश को भी खतरा हो सकता है।
भारत और भूटान के बीच 605 किलोमीटर लंबी सीमा है तथा वर्ष 1949 में हुई संधि की वज़ह से भूटान की अंतर्राष्ट्रीय, वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव रहा है। भारतीय सेना भूटान की शाही सेना को आवश्यकता पड़ने पर प्रशिक्षण देती रही है। इधर हालिया कुछ वर्षों में चीन ने भूटान को प्रभावित करने की कोशिश की है। इस परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि जितना भारत के लिये भूटान के साथ अच्छे संबंध रखना ज़रूरी है, उतना ही चीन के लिये भी भूटान से बेहतर संबंध रखना ज़रूरी है। लेकिन अभी तक भूटान और चीन के बीच कूटनीतिक संबंध नहीं बन पाए हैं, ऐसे में भूटान के चीन के निकट जाने की फिलहाल कोई सूरत दिखाई नहीं देती।
भारत और भूटान से है चीन का सीमा विवाद
चीन की सीमाएँ 14 देशों के साथ लगती हैं और इनमें भारत और भूटान ही ऐसे हैं जिनके साथ चीन का सीमा विवाद अब भी जारी है। वर्ष 2017 में हुआ डोकलाम विवाद इसी सीमा विवाद का परिणाम था। भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं, जबकि भारत-भूटान के बीच काफी गहरे संबंध हैं। भूटान को चीन और भारत के बीच का बफर ज़ोन भी कह सकते है। भारत के लिये भूटान का महत्त्व उसकी भौगोलिक स्थिति की वज़ह से ही अधिक है। भूटान एक भू-आबद्ध देश है जो एशिया महाद्वीप के दो बड़े देशों भारत और चीन के बीच एक बफर ज़ोन जैसा है। इसका महत्त्व वर्ष 1951 में चीन के तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद और बढ़ गया। भूटान के पश्चिम में भारत का सिक्किम, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण-पूर्व में असम है। पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग ज़िला इसे नेपाल से अलग करता है। दोनों देशों की सीमाएँ भले ही एक-दूसरे को अलग करती हैं, लेकिन भारत और भूटान के नागरिकों को एक-दूसरे की सीमा में आने-जाने के लिये किसी वीज़ा की ज़रूरत नहीं होती।
भारत-भूटान व्यापारिक परिदृश्य
- भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9228 करोड़ रुपए का था। इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए (भूटान के कुल आयात का 84%) तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए (भूटान के कुल निर्यात का 78 प्रतिशत) दर्ज किया गया।
- भारत से भूटान को निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुओं में खनिज उत्पाद, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, बिजली के उपकरण, धातुएँ, वाहन, सब्जी उत्पाद, प्लास्टिक की वस्तुएँ शामिल हैं।
- भूटान से भारत को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं- बिजली, फेरो-सिलिकॉन, पोर्टलैंड सीमेंट, डोलोमाइट, सिलिकॉन, सीमेंट क्लिंकर, लकड़ी तथा लकड़ी के उत्पाद, आलू, इलायची और फल उत्पाद।
- भारत-भूटान व्यापार और पारगमन समझौता, 1972 (India-Bhutan Trade and Transit Agreement,1972) द्वारा दोनों देशों के बीच व्यापार संचालित होता है, जिसे अंतिम बार नवंबर 2016 में नवीनीकृत किया गया था तथा जो जुलाई 2017 में प्रभावी हुआ था।
- इस समझौते ने दोनों देशों के बीच एक मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित की। समझौते में तीसरे देशों को भूटानी निर्यात के ड्यूटी फ्री ट्रांज़िट का भी प्रावधान है।
भारत के लिये जलविद्युत का स्रोत है भूटान
- भूटान की जलविद्युत परियोजनाएँ दोनों देशों के बीच सहयोग के प्रमुख उदाहरण हैं जो भारत को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती हैं तथा राजस्व अर्जन के साथ-साथ दोनों देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को मज़बूती प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग किया है और ये परियोजनाएँ चालू अवस्था में हैं तथा भारत को विद्युत निर्यात कर रही हैं।
- भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग वर्ष 2006 में हाइड्रोपावर क्षेत्र में हुए सहयोग समझौते तथा प्रोटोकॉल (Agreement on Cooperation in Hydropower and Protocol) पर आधारित है जिस पर मार्च 2009 में हस्ताक्षर किये गए थे। इस प्रोटोकॉल के तहत भारत सरकार भूटान सरकार को वर्ष 2020 तक कम-से-कम 10 हज़ार मेगावाट जलविद्युत के विकास में सहयोग देने तथा भूटान भारत को अतिरिक्त विद्युत का निर्यात करने पर सहमत हुआ था।
- जलविद्युत निर्यात भूटान के घरेलू राजस्व का 40% और उसके सकल घरेलू उत्पाद का 25% से अधिक राजस्व प्रदान करता है।
भूटान को भारतीय सहायता
भारतीय सहायता से ही भूटान के तीसरे नरेश जिग्मे दोरजी वांगचुक ने भूटान योजना आयोग की नींव रखी थी और तब से भारत भूटान में चलने वाली योजनाओं के लिये आर्थिक सहायता देता रहा है, ताकि संसाधनों की कमी के कारण भूटान का विकास न रुके। भारत ने भूटान की बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिये 4500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता का ऐलान किया है।
वर्ष 2000 से 2017 के बीच भूटान को भारत से बतौर सहायता लगभग 4.7 बिलियन डॉलर मिले, जो भारत की कुल विदेशी सहायता का सबसे बड़ा हिस्सा था। यही नहीं भारत ने भूटान की मुद्रा न्गुल्ट्रम (Ngultrum) को रुपए के समान मूल्य पर ही रखा है और यही कारण है कि भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों तथा भूटान में दोनों मुद्राएँ चलती हैं।
प्रोजेक्ट दंतक
ऊर्जा, अवसंरचना और सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं को देखें तो भारत के सहयोग से भूटान की अवसंरचना की दशा और दिशा दोनों ही बदल गई हैं। इसमें भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा चलाए जाने वाले ‘प्रोजेक्ट दंतक’ की भूमिका अहम है, जिसके तहत भूटान में लगभग 1800 किमी. लंबी सड़कों का निर्माण किया गया है। इसी प्रोजेक्ट के तहत पारो एवं यांगफुला में हवाई पट्टियाँ, हेलीपैड, दूरसंचार नेटवर्क, भारत-भूटान माइक्रोवेव लिंक, भूटान आकाशवाणी केंद्र, प्रतिष्ठित इंडिया हाउस परिसर, जल विद्युत केंद्र, स्कूल एवं कॉलेजों का निर्माण कार्य भी किया गया है। वर्ष 1961 में भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा शुरू किया गया ‘प्रोजेक्ट दंतक’ किसी विदेशी धरती पर राष्ट्र निर्माण के लिये शुरू किया गया सबसे बड़ा प्रोजेक्ट माना जाता है।
दोनों देशों के संबंधों में चुनौतियाँ
आज का लोकतांत्रिक भूटान अपनी संप्रभुता के एक महत्त्वपूर्ण आयाम के रूप में स्वतंत्र विदेश नीति के लिये प्रयास कर रहा है, जिसमें भारत से उसके संबंध प्रगाढ़ बने रहें और चीन सहित अन्य शक्तियों से भी संतुलन सधा रहे। निवेश की आकांक्षा से अपने उत्तर-पूर्व पड़ोसी चीन के प्रति आकर्षण से भूटान इसलिये भी स्वयं को बचाता है, क्योंकि भारत से उसके संबंध बेहद विश्वासपूर्ण रहे हैं।
लेकिन डोकलाम की घटना के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है तथा कुछ हद तक भूटान के लोग भी चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों का समर्थन कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में भारत के सामने कुछ अन्य चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं।
भारत को भूटान की चिंताओं को दूर करने के लिये मज़बूती से काम करने की आवश्यकता है, क्योंकि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ने से भारत-भूटान के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव कमज़ोर पड़ने का खतरा है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज़ से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
गौरतलब यह भी है कि मात्र 8 लाख की आबादी वाले देश भूटान की अर्थव्यवस्था बहुत छोटी है और वह काफी हद तक भारत को होने वाले निर्यात पर ही निर्भर है। लेकिन इधर भारत में विमुद्रीकरण, GST जैसी घटनाओं ने व्यापार के मामले में भूटान में भ्रम उत्पन्न कर दिया है। इसलिये ऐसे सभी मुद्दों पर दोनों देशों को मिलकर विस्तार से विचार करना होगा, जो दोनों देशों के विकास, शांति एवं सुरक्षा के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है।
अभ्यास प्रश्न: चीन के विस्तारवादी रवैये की प्रतिछाया में कुछ माह पूर्व भूटान में हुए सत्ता परिवर्तन का भूटान की आंतरिक राजनीति और भारत पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा करें।