संसद (भाग-l)
परिचय:
- सर्वोच्च विधायी निकाय: संसद केंद्र सरकार का विधायी अंग है और भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है।
- यह सरकार के संसदीय स्वरूप (सरकार के 'वेस्टमिंस्टर' मॉडल) को अपनाने के कारण भारतीय लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में प्रमुख और केंद्रीय स्थान रखता है।
- पहली संसद: भारत के नए संविधान के तहत पहला आम चुनाव वर्ष 1951-52 के दौरान हुआ था और पहली निर्वाचित संसद अप्रैल 1952 में अस्तित्व में आई थी।
- संवैधानिक प्रावधान: संविधान के भाग V में अनुच्छेद 79 से 122 तक संसद के संगठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकारों और शक्तियों से संबंधित हैं।
- संसदीय पैटर्न: भारतीय संविधान के निर्माताओं ने अमेरिकी पैटर्न के बजाय संसद के लिये ब्रिटिश पैटर्न को अपनाया था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति विधायिका का अभिन्न अंग नहीं है, जबकि भारत में विधायिका का अभिन्न अंग है।
संसद के अंग:
राज्यसभा (राज्यों की परिषद):
- यह उच्च सदन (द्वितीय सदन) है और यह भारतीय संघ के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करता है।
- राज्यसभा को संसद का स्थायी सदन कहा जाता है क्योंकि यह कभी भी पूरी तरह से भंग नहीं होती है।
- भारतीय संविधान की अनुसूची IV राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये राज्यसभा में सीटों के आवंटन से संबंधित है।
- संरचना: राज्यसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होए हैं (अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए) और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
- वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं, 229 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं 4 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किये गए हैं।
- प्रतिनिधियों का चुनाव: राज्यों के प्रतिनिधियों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- राज्यसभा में प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के प्रतिनिधि इस उद्देश्य के लिये विशेष रूप से गठित एक निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
- केवल तीन केंद्रशासित प्रदेशों (दिल्ली, पुद्दुचेरी और जम्मू-कश्मीर) का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है।
- राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य वे होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
- इसके पीछे तर्क यह है कि बिना चुनाव हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों को सदन में जगह दी जाए।
- कार्य: लोकसभा द्वारा शुरू किये गए कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें बदलने में राज्यसभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- यह कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है और कानून बनाने के लिये राज्यसभा से एक विधेयक पारित करने की आवश्यकता होती है।
- शक्ति:
- राज्य से संबंधित मामले: राज्यसभा राज्यों को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है। इसलिये राज्यों को प्रभावित करने वाले किसी भी मामले को उसकी सहमति और अनुमोदन के लिये उसके पास भेजा जाना चाहिये।
- यदि केंद्रीय संसद किसी मामले को राज्य सूची से हटाना/स्थानांतरित करना चाहती है, तो राज्यसभा का अनुमोदन आवश्यक है।
लोकसभा (लोगों का सदन):
- यह निचला सदन (प्रथम सदन या लोकप्रिय सदन है और समग्र रूप से भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।
- संरचना: लोकसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 निर्धारित की गई है, जिसमें से 530 सदस्य राज्यों और 20 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं।
- वर्तमान में लोकसभा में 543 सदस्य हैं, जिसमें से 530 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं और 13 केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- इससे पहले राष्ट्रपति ने एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को भी नामित किया था, लेकिन 95वें संशोधन अधिनियम, 2009 द्वारा यह प्रावधान केवल 2020 तक ही मान्य था।
- प्रतिनिधियों का चुनाव: राज्यों के प्रतिनिधि सीधे राज्यों के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों द्वारा चुने जाते हैं।
- केंद्रशासित प्रदेश (लोगों के सदन का प्रत्यक्ष चुनाव) अधिनियम, 1965 के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेशों में लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
- कार्य: लोकसभा के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्यपालिका का चयन करना है, व्यक्तियों का एक समूह जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिये मिलकर कार्य करता है।
- जब हम सरकार शब्द का प्रयोग करते हैं तो कार्यपालिका अक्सर हमारे दिमाग में आती है।
- शक्तियाँ:
- संयुक्त बैठक में निर्णय: किसी भी सामान्य कानून को दोनों सदनों द्वारा पारित करने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि दोनों सदनों के बीच किसी भी मतभेद की स्थिति में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को बुलाकर अंतिम निर्णय लिया जाता है।
- अधिक संख्या में होने के कारण ऐसी बैठक में लोकसभा की राय प्रबल होने की संभावना है।
- धन से जुड़े मामलों में शक्ति: धन से जुड़े मामलों में लोकसभा के पास अधिक शक्तियाँ होती हैं। एक बार जब लोकसभा सरकार का बजट या किसी अन्य धन संबंधी कानून को पारित कर देती है, तो राज्यसभा इसे अस्वीकार नहीं कर सकती है।
- राज्यसभा इसमें केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है या इसमें बदलाव का सुझाव दे सकती है, हालाँकि लोकसभा इन परिवर्तनों को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत कर सकती है।
- मंत्रिपरिषद से जुड़ी शक्ति: लोकसभा मंत्रिपरिषद को नियंत्रित करती है।
- यदि लोकसभा के अधिकांश सदस्य मंत्रिपरिषद में 'अविश्वास' जाहिर करते हैं तो तो प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों को पद छोड़ना होगा।
- राज्यसभा के पास यह शक्ति नहीं है।
राष्ट्रपति
- भारत का राष्ट्रपति किसी भी सदन का सदस्य नहीं है और संसद की बैठकों में भाग नहीं लेता है, लेकिन वह संसद का एक अभिन्न अंग है।
- वह राष्ट्र का मुखिया होता है और देश में सर्वोच्च औपचारिक प्राधिकारी होता है।
- नियुक्ति: संसद के निर्वाचित सदस्य (सांसद) और विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (विधायक) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
- शक्तियाँ:
- किसी विधेयक को कानून बनाने की स्वीकृति: संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना कानून नहीं बन सकता।
- सदनों का समन और सत्रावसान: उसके पास दोनों सदनों को बुलाने और सत्रावसान करने, लोकसभा को भंग करने तथा सदनों के सत्र में नहीं होने पर अध्यादेश जारी करने की शक्ति है।
संसद की सदस्यता:
- योग्यता:
- राज्यसभा: वह भारत का नागरिक होना चाहिये और उसकी आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिये।
- उसे यह कहते हुए शपथ या प्रतिज्ञान करना चाहिये कि वह भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगा।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, उसे उस राज्य में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिये, जहाँ से वह राज्यसभा के लिये चुनाव की मांग कर रहा है।
- हालाँकि वर्ष 2003 में यह घोषणा करते हुए एक प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी राज्यसभा का चुनाव लड़ सकता है, चाहे वह किसी भी अन्य राज्य में रहता हो।
- लोकसभा: उसकी आयु 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिये।
- उसे शपथ या प्रतिज्ञान के माध्यम से घोषित करना चाहिये कि वह संविधान के प्रति सच्चा विश्वास और निष्ठा रखता है तथा भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखेगा।
- उसके पास ऐसी अन्य योग्यताएँ होनी चाहिये जो संसद ने कानून द्वारा निर्धारित की हैं और उसे भारत के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिये।
- आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति, जिसके लिये भी आरक्षण लागू होता हो, से संबंधित होना चाहिये।
- अयोग्यताएँ:
- संवैधानिक आधार पर:
- यदि वह केंद्र या राज्य सरकार के तहत लाभ का कोई पद धारण करता है ( मंत्री या संसद द्वारा छूट प्राप्त किसी अन्य कार्यालय को छोड़कर)।
- यदि वह विकृत मानसिकता का है और अदालत द्वारा ऐसा घोषित किया गया है।
- यदि वह घोषित दिवालिया है।
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है।
- यदि वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत अयोग्य है।
- वैधानिक आधार पर (जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951):
- यदि चुनाव में कुछ चुनावी अपराधों/भ्रष्ट आचरणों का दोषी पाया गया।
- किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराया गया जिसके परिणामस्वरूप दो या अधिक वर्षों के लिये कारावास हो (निवारक निरोध कानून के तहत निरोध अयोग्यता नहीं है)।
- भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति वफादारी न करने के लिये सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया हो।
- विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने या रिश्वतखोरी के अपराध के लिये दोषी ठहराया गया हो।
- अस्पृश्यता, दहेज और सती जैसे सामाजिक अपराधों के प्रचार और अभ्यास के लिये दंडित किया गया हो।
- कार्यकाल:
- राज्यसभा: राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य का छह वर्ष का सुरक्षित कार्यकाल होता है।
- इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल बाद सेवानिवृत्त होते हैं। वे सदस्यता के लिये फिर से चुनाव लड़ने के हकदार हैं।
- लोकसभा: लोकसभा का सामान्य कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। लेकिन राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर पाँच साल की समाप्ति से पहले इसे भंग किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में इसकी अवधि एक बार में एक वर्ष के लिये बढ़ाई जा सकती है लेकिन यह आपातकाल समाप्त होने के बाद छह महीने से अधिक नहीं होगा।
- अधिकारी:
- राज्यसभा: भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। वह राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
- उसकी अनुपस्थिति में उपसभापति (सदस्यों द्वारा आपस में से निर्वाचित) सदन की बैठक की अध्यक्षता करता है।
- लोकसभा: लोकसभा के पीठासीन अधिकारी को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है।
- वह लोकसभा के भंग होने के बाद भी अध्यक्ष बना रहता है, जब तक कि अगला सदन उसके स्थान पर एक नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर लेता।
- अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष (सदन द्वारा निर्वाचित) बैठकों की अध्यक्षता करता है।
- संसद की शक्तियाँ/कार्य:
- विधायी कार्य: केवल संसद ही संघ सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। राज्य विधानमंडलों के साथ संसद को समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है।
- जिन विषयों का किसी सूची में उल्लेख नहीं है, उनकी अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में निहित होती हैं।
- वित्तीय कार्य: यह जनता के धन का संरक्षक है। सरकार संसद की मंज़ूरी के बिना न तो जनता पर कोई कर लगा सकती है और न ही पैसा खर्च कर सकती है।
- बजट को हर साल संसद द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- चुनावी कार्य: यह भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है और उपराष्ट्रपति का चुनाव भी करती है।
- लोकसभा अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करती है तथा राज्यसभा अपने उपसभापति का चुनाव करती है।
- पदच्युत करनेे की शक्ति: कुछ उच्च पदाधिकारियों को संसद की पहल पर पद से हटाया जा सकता है।
- यह संविधान के उल्लंघन के लिये महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटा सकती है।
- संविधान में संशोधन: संविधान के अधिकांश हिस्सों में संसद द्वारा विशेष बहुमत से संशोधन किया जा सकता है।
- कुछ प्रावधानों में केवल राज्यों के अनुमोदन से संसद द्वारा संशोधन किया जा सकता है।
- संसद संविधान के मूल ढाँचे को नहीं बदल सकती है।
- कार्यपालिका शक्ति: संसद प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण सूचना, स्थगन प्रस्ताव आदि के माध्यम से कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।
- सरकार हमेशा इन प्रस्तावों को बहुत गंभीरता से लेती है क्योंकि सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की जाती है और अंततः मतदाताओं पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव का सामना सरकार को करना पड़ता है।