प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 15 जुलाई, 2020
डॉल्फिन
Dolphin
मध्य प्रदेश वन विभाग की नवीनतम डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, 425 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) में सिर्फ 68 डॉल्फिन (Dolphin) बची हैं जो तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान) से होकर गुजरती हैं।
प्रमुख बिंदु:
- मध्य प्रदेश वन विभाग की नवीनतम डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट जून, 2020 के अंतिम सप्ताह में सार्वजनिक की गई।
- डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों में चंबल नदी में डॉल्फिन की संख्या में 13% की कमी आई है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2016 में चंबल में डॉल्फिन की संख्या 78 थी। वर्ष 2016 से ही डॉल्फिन की संख्या में घटने की प्रवृत्ति लगातार जारी है।
- देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India- WII) के शोधकर्त्ताओं जो चंबल नदी में डॉल्फिन पर शोध कर रहे हैं, के अनुसार:-
- चंबल नदी में डॉल्फिन की अधिकतम वहन क्षमता 125 है।
- डॉल्फिन को टिकाऊ आवास (Sustainable Habitat) के लिये नदी में कम-से-कम 3 मीटर गहराई और 266.42-289.67 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड का जल प्रवाह होना आवश्यक है।
- चंबल नदी डॉल्फिन की एक दुर्लभ प्रजाति (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका- Platanista Gangetica) का निवास स्थान है और इसे IUCN की रेड लिस्ट में लुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
डॉल्फिन की शारीरिक विशेषताएँ:
- इसकी आँखें अल्पविकसित (Rudimentary) होती हैं।
- ‘शिकार करने’ से लेकर ‘सर्फिंग’ (नदी या समुद्र की लहरों के साथ तैरना) तक की सभी प्रक्रियाओं में डॉल्फिन अल्ट्रासोनिक ध्वनि (Ultrasonic Sound) का प्रयोग करती है।
- डॉल्फिन तेज़ी से बढ़ते शिकार को पकड़ने के लिये शंक्वाकार दाँतों का उपयोग करती है।
- इनके पास अच्छी तरह से विकसित श्रवण क्षमता होती है जो हवा एवं पानी दोनों के लिये अनुकूलित है।
अल्ट्रासोनिक ध्वनि (Ultrasonic Sound):
- ‘अल्ट्रासोनिक’ शब्द श्रव्य ध्वनि की आवृत्तियों के ऊपर की किसी भी ध्वनि को संदर्भित करता है अर्थात् इसमें 20,000 हर्ट्ज से अधिक वाली सभी ध्वनियाँ शामिल हैं।
चंबल नदी में पहली बार डॉल्फिन की उपस्थिति:
- वर्ष 1985 में पहली बार इटावा (उत्तर प्रदेश) के पास चंबल नदी में डॉल्फिन को देखा गया था। उस समय इनकी संख्या 110 से अधिक थी किंतु अवैध शिकार ने संख्या को कम कर दिया।
- वर्तमान में चंबल नदी में डॉल्फिन की कम होती संख्या का मुख्य कारण अवैध शिकार ही नहीं है बल्कि प्रतिकूल आवास भी है।
- इससे चंबल नदी में न केवल डॉल्फिन, बल्कि घड़ियालों की आबादी भी प्रभावित हुई है।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary):
- राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1979 में चंबल नदी की 425 किलोमीटर की लंबाई के साथ की गई थी।
- इसे राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य (National Chambal Gharial Wildlife Sanctuary) भी कहा जाता है।
- यह उत्तर भारत में ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ घड़ियाल, रेड क्राउन्ड रूफ कछुए (Red-Crowned Roof Turtle) और लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन (राष्ट्रीय जलीय पशु) के संरक्षण के लिये 5,400 वर्ग किमी. में फैला त्रिकोणीय राज्य संरक्षित क्षेत्र है।
- यह अभयारण्य भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act of 1972) के तहत संरक्षित क्षेत्र है।
- इस अभयारण्य परियोजना का प्रबंधन उत्तर प्रदेश वन विभाग के वन्यजीव विंग द्वारा किया जाता है और इसका मुख्यालय आगरा में है।
उच्चतम न्यायालय की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी
(Central Empowered Committee- CEC):
- वर्ष 2006 में, उच्चतम न्यायालय की ‘सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी’ (CEC) ने चंबल नदी की वनस्पतियों एवं जीवों को बचाने के लिये अभयारण्य क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था किंतु अवैध रेत खनन एवं जल की अनुचित खपत चंबल नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रही है।
गौरतलब है कि चंबल नदी तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान) की एक जीवन रेखा है। जहाँ इसके जल का प्रतिदिन उपयोग किया जाता है। वहीँ मध्यप्रदेश के भिंड एवं मुरैना तथा राजस्थान के धौलपुर में अवैध बालू खनन का धंधा जारी है।
प्रज्ञाता दिशा-निर्देश
PRAGYATA Guidelines
14 जुलाई, 2020 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री (Union Human Resource Development Minister) ने नई दिल्ली में ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा पर ‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश (PRAGYATA Guidelines) जारी किये।
प्रमुख बिंदु:
- ‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश विद्यार्थियों के दृष्टिकोण को आधार बनाकर विकसित किये गए हैं जो COVID-19 के मद्देनज़र जारी लॉकडाउन के कारण घरों पर मौजूद छात्रों के लिये ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा पर केंद्रित हैं।
- डिजिटल/ऑनलाइन शिक्षा पर जारी ये दिशा-निर्देश शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये ऑनलाइन शिक्षा को आगे बढ़ाने की विस्तृत कार्य योजना प्रदान करते हैं।
- इन दिशा-निर्देशों में उन छात्रों के लिये जिनके पास डिजिटल उपकरण हैं और जिनके पास डिजिटल उपकरण तक सीमित या कोई पहुँच नहीं है, दोनों के लिये, एनसीईआरटी के वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर के उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।
ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा के 8 चरण:
- प्रज्ञाता दिशा-निर्देशों में ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा के 8 चरण- योजना (Plan), समीक्षा (Review), व्यवस्था (Arrange), मार्गदर्शन (Guide), बातचीत (Talk), असाइन (Assign), ट्रैक (Track), सराहना करना (Appreciate) शामिल हैं।
- ये 8 चरण उदाहरणों के साथ चरणबद्ध तरीके से डिजिटल शिक्षा की योजना एवं कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करते हैं।
- प्रज्ञाता दिशा-निर्देश स्कूल प्रशासकों, स्कूल प्रमुखों, शिक्षकों, अभिभावकों एवं छात्रों को निम्नलिखित पहलुओं में सुझाव भी प्रदान करते हैं:
- मूल्यांकन की जरूरत से संबंधित पहलुओं में।
- ऑनलाइन एवं डिजिटल शिक्षा की योजना बनाते समय कक्षा की क्षमता के अनुसार सत्र की अवधि, स्क्रीन समय, समावेशिता, संतुलित ऑनलाइन एवं ऑफलाइन गतिविधियों आदि से संबंधित पहलुओं में।
- हस्तक्षेप के तौर-तरीके जिनमें संसाधन अवधि, कक्षा के हिसाब से उसका वितरण आदि शामिल हैं, से संबंधित पहलुओं में।
- डिजिटल शिक्षा के दौरान शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहलुओं में।
- साइबर सुरक्षा को बनाए रखने के लिये सावधानियों एवं उपायों सहित साइबर सुरक्षा एवं नैतिक तरीके में।
- विभिन्न पहलों के साथ सहयोग एवं अभिसरण में।
अनुशंसित स्क्रीन समय:
कक्षा |
सिफारिश |
प्री-प्राइमरी |
माता-पिता के साथ बातचीत करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिये तय किये गए समय को 30 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिये। |
कक्षा 1 से 12 तक |
Http://ncert.nic.in/aac.html पर एनसीईआरटी के वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर को अपनाने की सिफारिश की गई है। |
कक्षा 1 से 8 तक |
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्राथमिक वर्गों के लिये ऑनलाइन कक्षाएँ लेने के तय दिन के अनुसार दिन में 30-45 मिनट के दो सत्रों से अधिक ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कराई जा सकती है। |
कक्षा 9 से 12 तक |
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा तय किये गए दिनों में प्रत्येक दिन 30-45 मिनट के चार सत्रों से अधिक ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कराई जा सकती है। |
- प्रज्ञाता दिशा-निर्देश देश भर में स्कूल जाने वाले छात्रों को लाभान्वित करने के लिये डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकजुट करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
- इस पहल में स्वयंप्रभा (SWAYAM Prabha), दीक्षा (DIKSHA), स्वयं मूक्स (SWAYAM MOOCS), रेडियो वाहिनी, शिक्षा वाणी जैसे प्लेटफॉर्म को भी शामिल किया गया है।
सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रोड
Supercapacitor Electrode
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन ‘इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स’ (International Advanced Research Centre for Powder Metallurgy and New Materials- ARCI) के वैज्ञानिकों ने औद्योगिक अपशिष्ट कपास से एक कम लागत वाला, पर्यावरण अनुकूल एवं टिकाऊ सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रोड (Supercapacitor Electrode) का निर्माण किया है जिसे ‘एनर्जी हारवेस्टर स्टोरेज़ डिवाइस’ (Energy Harvester Storage Device) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- पहली बार प्राकृतिक समुद्री जल को पर्यावरण अनुकूल, लागत प्रभावी, मापनीय एवं वैकल्पिक जलीय इलेक्ट्रोलाइट (Aqueous Electrolyte) के रूप में खोजा गया है जो सुपरकैपेसिटर के आर्थिक निर्माण के लिये मौज़ूदा जलीय-आधारित इलेक्ट्रोलाइट्स (Aqueous-Based Electrolytes) की जगह ले सकता है।
सुपरकैपेसिटर (Supercapacitor):
- सुपरकैपेसिटर नई पीढ़ी के ऊर्जा भंडारण उपकरण हैं जो उच्च शक्ति घनत्व कैपेसिटर, लंबे समय तक स्थायित्त्व एवं पारंपरिक कैपेसिटर की तुलना में अल्ट्राफास्ट चार्जिंग एवं लिथियम-आयन बैटरी (lithium-ion batteries) जैसे गुणों के कारण व्यापक अनुसंधान के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- सुपरकैपेसिटर के चार मुख्य घटकों इलेक्ट्रोड, इलेक्ट्रोलाइट, सेपरेटर और करेंट कलेक्टर में से पहले दो (इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट) प्रमुख घटक हैं जो तत्काल सुपरकैपेसिटर के विद्युत रासायनिक व्यवहार को निर्धारित करते हैं।
- परिणामतः इलेक्ट्रोड सामग्री और इलेक्ट्रोलाइट्स के निर्माण की लागत को कम किया जाना चाहिये क्योंकि ये दो घटक ही उपकरण निर्माण लागत के मामले में महत्त्वपूर्ण हैं।
- वहनीय सुपरकैपेसिटर उपकरण बनाने हेतु एक लागत प्रभावी सामग्री के लिये ARCI के वैज्ञानिकों ने ‘औद्योगिक अपशिष्ट कपास’ (कचरे) को ‘अत्यधिक महीन कार्बन फाइबर’ में बदलकर ‘सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रोड’ का निर्माण किया है।
- हाल ही में एनर्जी टेक्नोलॉजी (Energy Technology) में प्रकाशित हुए शोध में बताया गया कि ARCI के वैज्ञानिकों ने जलीय-आधारित सुपरकैपेसिटर उपकरणों के निर्माण के लिये समुद्री जल को प्राकृतिक इलेक्ट्रोलाइट के रूप में उपयोग किया।
- इस शोध में पाया गया कि प्राकृतिक समुद्री जल-आधारित सुपरकैपेसिटर ने 1 Ag-1 के धारा घनत्व (Current Density) पर अधिकतम धारिता का प्रदर्शन किया।
- इसके अलावा समुद्री जल-आधारित सुपरकैपेसिटर 99% कैपेसिटेंस रिटेंशन (Capacitance Retention) और 99% कूलम्बिक दक्षता (Coulombic Efficiency) के साथ 10,000 चार्ज-डिस्चार्ज चक्रों पर बेहतर परिणाम देता है।
कूलम्बिक दक्षता (Coulombic Efficiency):
- इसे फैराडिक दक्षता (Faradaic Efficiency) या धारा दक्षता (Current Efficiency) भी कहा जाता है।
- यह आवेश दक्षता को संदर्भित करती है जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉनों को बैटरी में स्थानांतरित किया जाता है।
हेरॉन एवं स्पाइक-एलआर
Heron and Spike-LR
भारतीय सेना केंद्र सरकार द्वारा दी गई आपातकालीन वित्तीय शक्तियों के तहत इज़रायल से हेरॉन निगरानी ड्रोन (Heron Surveillance Drones) और स्पाइक-एलआर एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों (Spike-LR Anti-Tank Guided Missiles) प्राप्त करने के लिये तैयार है जिससे सेना की निगरानी एवं मारक क्षमताओं में वृद्धि की जा सके।
प्रमुख बिंदु:
- हेरॉन मानव रहित हवाई वाहन पहले से ही वायु सेना, नौसेना एवं थल सेना में विद्यमान है और लद्दाख क्षेत्र में निगरानी के लिये सेना द्वारा बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जा रहा है।
- यह 10 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई से टोह लेने वाले एक स्ट्रेच पर दो दिनों से अधिक समय तक लगातार उड़ान भर सकता है।
- यह इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के मालट यूएवी (Malat-UAV) डिविज़न द्वारा विकसित एक मध्यम-ऊँचाई पर लंबे समय तक उड़ने वाला मानव रहित हवाई वाहन (UAV) है।
- यह ‘मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस’ (Medium Altitude Long Endurance- MALE) के संचालन में 10.5 किमी. (35000 फीट) ऊँचाई तक की 52 घंटे की अवधि के संचालन में सक्षम है।
स्पाइक (Spike):
- स्पाइक, चौथी पीढ़ी की एक इज़रायली ‘फायर एंड फॉरगेट एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल’ (Fire-and-Forget Anti-tank Guided Missile) है।
- इसे इज़रायली कंपनी ‘राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम’ (Rafael Advanced Defense Systems) द्वारा डिज़ाइन एवं विकसित किया गया है।
- इसे भूमि से या सेना के विशेष वाहन एवं हेलीकॉप्टर से लॉन्च किया जा सकता है।
- स्पाइक समूह में निम्नलिखित मिसाइलें शामिल हैं:
- 800 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एसआर (Spike-SR)
- 2500 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एमआर (Spike-MR)
- 4000 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एलआर (Spike-LR)
- 8000 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-ईआर (Spike-ER)