डेली न्यूज़ (08 Nov, 2024)



विश्व सौर रिपोर्ट शृंखला का तीसरा संस्करण

स्रोत: पी.आ.ईबी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की 7वीं असेंबली में विश्व सौर रिपोर्ट का तीसरा संस्करण जारी किया गया इस वर्ष की शृंखला में चार प्रमुख रिपोर्ट शामिल हैं: विश्व सौर बाज़ार रिपोर्ट, विश्व निवेश रिपोर्ट, विश्व प्रौद्योगिकी रिपोर्ट और अफ्रीकी देशों के लिये ग्रीन हाइड्रोजन तत्परता मूल्यांकन। 

  • प्रत्येक रिपोर्ट में सौर ऊर्जा क्षेत्र की प्रगति और चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है तथा वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती भूमिका को रेखांकित किया गया है।

नोट: 

  • ISA द्वारा वर्ष 2022 में शुरू की जाने वाली विश्व सौर रिपोर्ट शृंखला वैश्विक सौर प्रौद्योगिकी प्रगति, प्रमुख चुनौतियों एवं निवेश प्रवृत्तियों का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत करने के साथ उद्योग के विकास के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती है।

विश्व सौर रिपोर्ट शृंखला की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 

  • विश्व सौर बाज़ार रिपोर्ट: वैश्विक सौर क्षमता वर्ष 2000 के 1.22 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2023 में 1,418.97 गीगावाट तक पहुँच गई है, जो 40% वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाती है।
    • पेरिस समझौते के लक्ष्यों के कारण वैश्विक सौर क्षमता वर्ष 2030 तक 5,457 से लेकर 7,203 गीगावाट तक पहुँचने का अनुमान है, जिसके लिये बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होगी।
    • स्वच्छ ऊर्जा उद्योग में अब तक 16.2 मिलियन रोज़गार का सृजन हुआ है, जिसमें सौर ऊर्जा से 7.1 मिलियन रोज़गार सृजित हुए हैं।
    • वैश्विक सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2024 तक 1,100 गीगावाट से अधिक (जो मांग से दोगुना है) हो जाने का अनुमान है, जिससे सौर ऊर्जा अधिक किफायती हो जाएगी।
  • विश्व निवेश रिपोर्ट: वैश्विक ऊर्जा में निवेश वर्ष 2018 के 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 तक 3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा में निवेश जीवाश्म ईंधन से लगभग दोगुना होना अनुमानित है।
    • कुल नवीकरणीय ऊर्जा निवेश में सौर ऊर्जा निवेश का हिस्सा 59% रहा, जिसका कारण कम पैनल लागत है। सौर ऊर्जा निवेश में एशिया-प्रशांत (APAC) सबसे आगे है उसके बाद यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका (EMEA) का स्थान है।
  • विश्व प्रौद्योगिकी रिपोर्ट: मोनोक्रिस्टलाइन सौर पीवी मॉड्यूल (सौर पैनल) द्वारा 24.9% दक्षता हासिल की गई जबकि मल्टीजंक्शन पेरोवस्काइट सेल (सौर सेल का एक प्रकार) उच्च दक्षता और कम लागत पर केंद्रित हैं, जो संभवतः पारंपरिक सिलिकॉन पैनलों से बेहतर हैं।
    • सौर विनिर्माण में वर्ष 2023 में सिलिकॉन के उपयोग में 88% तक कमी आई है और उपयोगिता-स्तरीय सौर पीवी लागत में 90% की गिरावट आई है, जिससे सामग्री दक्षता के साथ संभावित लागत तथा पर्यावरणीय लाभ में सुधार पर प्रकाश पड़ा है। 
  • अफ्रीकी देशों के लिये ग्रीन हाइड्रोजन तत्परता आकलन: इस रिपोर्ट में मिस्र, मोरक्को, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका को उनके नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के कारण ग्रीन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था विकसित करने के क्रम में संभावित नेतृत्वकर्त्ताओं के रूप में पहचाना गया है।
    • इस रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन, इस्पात एवं उर्वरक जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भर उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण है।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)

  • ISA एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसके 120 सदस्य और हस्ताक्षरकर्त्ता देश हैं। यह विश्व भर में ऊर्जा की पहुँच और सुरक्षा को बेहतर बनाने तथा कार्बन-तटस्थ भविष्य के लिये सौर ऊर्जा को एक स्थायी बदलाव के रूप में बढ़ावा देने हेतु सरकारों के साथ सहयोग करने पर केंद्रित है। 
  • ISA का मिशन वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त करना है साथ ही प्रौद्योगिकी एवं इसके वित्तपोषण की लागत को कम करना है। 
  • ISA का गठन वर्ष 2015 में पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 21वें सम्मेलन (COP21) में किया गया था और यह बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs), विकास वित्तीय संस्थानों (DFIs) तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के साथ साझेदारी करता है ताकि लागत प्रभावी ऊर्जा समाधानों को लागू (विशेष रूप से कम विकसित देशों (LDCs) और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) में) किया जा सके।
    • ISA, भारत में मुख्यालय वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन बन गया।
  • ISA नीतियों, निवेशों और नए व्यापार मॉडलों के माध्यम से सौर ऊर्जा एवं सतत् विकास को बढ़ावा देने के साथ स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने पर केंद्रित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को वर्ष 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रोटेक्टेड प्लेनेट रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

प्रोटेक्टेड प्लेनेट रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP 15), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, आईची जैवविविधता लक्ष्य

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना, संरक्षित क्षेत्र और जैवविविधता संरक्षण, जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन

स्रोत: UNEP

चर्चा में क्यों? 

UNEP-WCMC, IUCN और WCPA द्वारा जारी प्रोटेक्टेड प्लेनेट रिपोर्ट 2024 में संरक्षित क्षेत्रों का पहला वैश्विक मूल्यांकन प्रदान किया गया है। 

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल GBF का लक्ष्य 3 क्या है?

  • KM-GBF को जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CBD) की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP 15) में अपनाया गया था।
    • यह रूपरेखा वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने वाले विश्व हेतु वैश्विक दृष्टिकोण तक पहुँचने के क्रम में एक महत्त्वाकांक्षी मार्ग निर्धारित करने पर केंद्रित है, जिसमें वर्ष 2050 के लिये 4 लक्ष्य और वर्ष 2030 के लिये 23 लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • लक्ष्य 3:  इसके तहत यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक कम से कम 30% स्थलीय, अंतर्देशीय जल, तटीय और समुद्री क्षेत्र (विशेष रूप से जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण) प्रभावी रूप से संरक्षित एवं प्रबंधित किये जाएँ
    • इसमें स्वदेशी और पारंपरिक क्षेत्रों को मान्यता देना और इन क्षेत्रों को व्यापक परिदृश्यों एवं समुद्री परिदृश्यों में एकीकृत करना शामिल है साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि स्थानीय लोगों एवं समुदायों के अधिकारों का सम्मान हो।

प्रमुख शब्दावली

  • संरक्षित क्षेत्र: यह CBD द्वारा भौगोलिक रूप से परिभाषित क्षेत्र है जिसे विशिष्ट संरक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये नामित या विनियमित एवं प्रबंधित किया जाता है”।
    • IUCN, UNEP–WCMC के साथ मिलकर संरक्षित क्षेत्रों का वैश्विक डेटाबेस बनाए रखता है। 
  • स्थानीय और पारंपरिक क्षेत्र: CBD के अनुसार ये अद्वितीय जैवविविधता वाले क्षेत्र हैं जिनका स्वामित्व/प्रबंधन स्थानीय लोगों एवं समुदायों के पास होता है। 

प्रोटेक्टेड प्लेनेट रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • वैश्विक कवरेज में प्रगति: 17.6% भूमि और अंतर्देशीय जल तथा 8.4% महासागर एवं तटीय क्षेत्र संरक्षण के अंतर्गत शामिल हैं। हालाँकि इसमें प्रगति हुई है लेकिन वर्ष 2020 के बाद से वृद्धि न्यूनतम (दोनों क्षेत्रों में 0.5% से कम) बनी हुई है।
    • वर्ष 2030 तक 30% लक्ष्य को पूरा करने के लिये अतिरिक्त संरक्षण की आवश्यकता है: 12.4% अधिक भूमि को संरक्षित करने की आवश्यकता है तथा 21.6% अधिक महासागर को सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • महासागर संरक्षण में प्रगति: वर्ष 2020 के बाद से संरक्षण में सबसे अधिक प्रगति महासागर में हुई है लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा राष्ट्रीय जल क्षेत्र के तहत शामिल है। 
    • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में कवरेज काफी कम है (समुद्री और तटीय संरक्षित क्षेत्रों द्वारा कवर किये गए कुल क्षेत्रफल का <11%)। 
  • प्रभावशीलता और प्रशासन से संबंधित चुनौतियाँ: प्रबंधन प्रभावशीलता के तहत 5% से कम भूमि एवं 1.3% समुद्री क्षेत्रों का मूल्यांकन किया गया है। संरक्षित भूमि का केवल 8.5% भाग ही इसमें बेहतर रूप से शामिल है।
    • इसका प्रशासन एक चुनौती बना हुआ है, केवल 0.2% भूमि एवं 0.01% समुद्री क्षेत्रों का ही न्यायसंगत प्रबंधन के लिये मूल्यांकन किया गया है।
  • जैवविविधता का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले क्षेत्रों में से केवल पाँचवाँ हिस्सा ही पूरी तरह संरक्षित है। जैवविविधता का संरक्षण असमान रूप से हुआ है। 
    • यद्यपि दो तिहाई से अधिक प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र (KBAs) आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से संरक्षित एवं परिरक्षित क्षेत्रों द्वारा आच्छादित हैं, शेष एक तिहाई (32%) KBAs पूरी तरह से इन क्षेत्रों से बाहर हैं तथा औपचारिक संरक्षण से वंचित हैं।
  • स्थानीय लोगों की भूमिका: स्थानीय समुदाय द्वारा 4% से भी कम संरक्षित क्षेत्र प्रशासित हैं, जबकि वैश्विक स्थलीय क्षेत्रों का 13.6% हिस्सा औपचारिक संरक्षण के बाहर है।
    • इन क्षेत्रों के लिये शासन संबंधी आंकड़ों का अभाव है तथा इनके योगदान को प्रायः पूरी तरह मान्यता नहीं दी जाती है।
  • मुख्य सिफारिशें:
    • विभिन्न चुनौतियों के बावजूद इसमें आशा बनी हुई है क्योंकि 51 देश पहले ही भूमि के 30% लक्ष्य को पूरा कर चुके हैं तथा 31 देश समुद्र के संदर्भ में ऐसा कर चुके हैं।
      • रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि अब जब 6 वर्ष शेष हैं तो त्वरित प्रयासों, वैश्विक सहयोग एवं स्थानीय लोगों के समर्थन से 30% का लक्ष्य अभी भी प्राप्त किया जा सकता है।
    • इसमें डेटा की अपर्याप्त उपलब्धता एक दीर्घकालिक मुद्दा है (विशेषकर संरक्षित क्षेत्रों के सकारात्मक जैवविविधता परिणामों, स्थानीय लोगों के लिये न्यायसंगत शासन एवं महिलाओं, स्थानीय लोगों एवं समुदायों के अधिकारों को बनाए रखने के संबंध में)। 
      • स्थानीय लोगों को अपनी भूमि के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिये समर्थन दिया जाना चाहिये तथा उनकी मांग पर ध्यान देना चाहिये। 
    • इन प्रयासों का बल न केवल संरक्षित क्षेत्र का कवरेज बढ़ाने पर होना चाहिये, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि ये क्षेत्र अच्छी तरह से संबंधित हों एवं रणनीतिक रूप से जैवविविधता हॉटस्पॉट में स्थित हों।

प्रमुख संस्थान

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN): इसकी स्थापना वर्ष 1948 में हुई थी और यह एक वैश्विक सदस्यता संगठन है जिसमें सरकारी तथा नागरिक समाज संगठन शामिल हैं। यह प्राकृतिक विश्व की स्थिति और इसे बचाने के लिये आवश्यक उपायों पर आधिकारिक निकाय के रूप में कार्य करता है। 
    • भारत वर्ष 1969 में IUCN का एक राज्य सदस्य बना, यह वैश्विक स्तर पर प्रकृति संरक्षण के प्रयासों के लिये अमूल्य वैज्ञानिक ज्ञान, नीति मार्गदर्शन एवं समर्थन प्रदान करता है।
  • UNEP-WCMC: प्रकृति के सामने आने वाली समस्या को हल करने और एक सतत् भविष्य को आगे बढ़ाने के लिये, यह जैव विविधता में एक वैश्विक अग्रणी है, जो विज्ञान, नीति और व्यवहार को एकीकृत करता है। यह यूके चैरिटी WCMC और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के बीच साझेदारी के रूप में कार्य करता है।
  • संरक्षित क्षेत्रों पर IUCN विश्व आयोग (WCPA): यह एक वैश्विक नेटवर्क है जो वैज्ञानिक, तकनीकी और नीतिगत सलाह प्रदान करता है, तथा जैवविविधता को लाभ पहुँचाने वाले प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों का समर्थन करता है। 

भारत की जैवविविधता रणनीति के प्रमुख लक्ष्य क्या हैं?

  • NBSAP: CBD भारत सहित सदस्य देशों को जैवविविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग के लिये  एक राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति एवं कार्य योजना (NBSAP) विकसित करने का अधिकार देता है।
    • भारत ने हाल ही में अपने NBSAP को KM-GBF के अनुरूप अद्यतन किया है तथा वर्ष 2030 तक अपने प्राकृतिक क्षेत्रों के कम से कम 30% को संरक्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
      • मूल रूप से वर्ष 1999 में निर्धारित भारत की NBSAP को पहले वर्ष 2008 और वर्ष 2014 में आईची जैवविविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अद्यतन किया गया था, जिससे जैवविविधता खतरों से निपटने के लिये भारत की निरंतर प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।
  • भारत का अद्यतन NBSAP: अद्यतन NBSAP का लक्ष्य  KM-GBF के वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप, स्थलीय, अंतर्देशीय जल, तटीय और समुद्री क्षेत्रों के 30% हिस्से की रक्षा करना है।
    • योजना में वनों और नदियों जैसे पारिस्थितिकी तंत्रों की बहाली पर ज़ोर दिया गया है, ताकि स्वच्छ जल एवं वायु जैसे संसाधनों की उपलब्धता बनी रहे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचे के संदर्भ में भारत की अद्यतन राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. भारत में जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ नागोया प्रोटोकॉल के उद्देश्यों को हासिल करने के लिये प्रमुख कुंजी हैं। 
  2. जैव विविधता प्रबंधन समितियों के, अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत, जैविक संसाधनों तक पहुँच के लिये संग्रह शुल्क लगाने की शक्ति सहित, पहुँच और लाभ सहभागिता निर्धारित करने के लिये, महत्त्वपूर्ण प्रकार्य हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 व 2 दोनों 
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न: 'भूमंडलीय पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2014)

(a) यह 'जैवविविधता पर अभिसमय' एवं 'जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढाँचा अभिसमय' के लिये वित्तीय क्रियाविधि के रूप में काम करता है  
(b) यह भूमंडलीय स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करता है  
(c) यह आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अधीन एक अभिकरण है जो अल्पविकसित देशों को उनके पर्यावरण की सुरक्षा के विशिष्ट उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और निधियों का अंतरण सुकर बनाता है।  
(d) (a) और (b) दोनों 

उत्तर: (a) 


प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल
(b) UNEP सचिवालय
(c) UNFCCC सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018)


निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर सीमा

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 39(b) और 31C, अनुच्छेद 300A, आर्थिक लोकतंत्र, समाजवाद, मूल अधिकार, जमींदारी प्रथा, संपत्ति का अधिकार, नौवीं अनुसूची, अनुच्छेद 31A और 31B, रैयतवाड़ी, नीति निर्देशक सिद्धांत, अनुच्छेद 14 और 19, प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951, अनुच्छेद 368, संविधान संशोधन, संसद। 

मेन्स के लिये:

स्वतंत्रता के बाद से संपत्ति के अधिकार का विकास। संपत्ति के अधिकार को आकार देने में न्यायपालिका की भूमिका।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक वितरण हेतु निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को अपने अधीन लेने की सरकार की शक्ति पर सीमाएँ निर्धारित की हैं।  

  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 39(b) और 31C की संवैधानिक योजनाओं को आधार बनाकर राज्य द्वारा निजी संपत्तियों पर कब्जा नहीं किया जा सकता है।

नोट:

  • अनुच्छेद 39(b) में प्रावधान है कि राज्य का लक्ष्य सभी के हित में भौतिक संसाधनों का वितरण सुनिश्चित करना होना चाहिये।
  • अनुच्छेद 31C के अनुसार, अनुच्छेद 39(b) और 39(C) को समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) या अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक एकत्र होने का अधिकार आदि) का हवाला देकर चुनौती नहीं दी जा सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • निजी संसाधनों का अधिग्रहण: जो संसाधन दुर्लभ हैं या सामुदायिक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, उन्हें राज्य अधिग्रहण के लिये योग्य माना जाना चाहिये, न कि सभी निजी संपत्तियों को।
    • "सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत" (जहाँ राज्य द्वारा जनता के लिये कुछ संसाधनों को ट्रस्ट में रखा जाता है) से इस निर्धारण का मार्गदर्शन हो सकता है। 
  • संसाधन योग्यता के लिये परीक्षण: न्यायालय ने दो प्रमुख परीक्षण निर्धारित किये हैं अर्थात संसाधन “भौतिक” और “समुदाय से संबंधित या उसका कल्याण करने वाले या दोनों होने चाहिये। 
    • निजी स्वामित्व वाले संसाधन और उसके सामुदायिक तत्त्व की भौतिकता का मूल्यांकन विषयगत आधार पर किया जाना चाहिये।
      • भौतिकता से तात्पर्य भूमि, खनिज या जल जैसी परिसंपत्तियों के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय गतिशीलता पर पड़ने वाले प्रभाव से है।
  • रंगनाथ रेड्डी मामले,1977 के विपरीत निर्णय: बहुमत द्वारा संजीव कोक फैसले, 1982 को  पलट दिया गया, जिसमें रंगनाथ रेड्डी मामले, 1977 में दिए गए तर्क को बरकरार रखा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को पुनर्वितरण हेतु "समुदाय के भौतिक संसाधन" माना जा सकता है। 
    • एकमात्र असहमति जताने वाले न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने समुदाय के "भौतिक संसाधनों" को परिभाषित करने में व्यापक विधायी विवेकाधिकार की वकालत की।
  • अनुच्छेद 39(b) पर प्रतिबंध: न्यायालय ने अनुच्छेद 39(b) की व्यापक व्याख्या के प्रति सचेत किया, जिससे अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव होगा।
    • अनुच्छेद 300A: किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • निजी संसाधनों को सामुदायिक संसाधनों में बदलना: सर्वोच्च न्यायालय ने निजी संसाधनों को सामुदायिक भौतिक संसाधनों में बदलने के पाँच तरीके बताए हैं:
    • राष्ट्रीयकरण, अधिग्रहण, विधि का क्रियान्वयन, राज्य द्वारा खरीद और संपत्ति के मालिक द्वारा दान।

संपत्ति के अधिकार से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 31: अनुच्छेद 31 (एक मूल अधिकार) संपत्ति के अधिकार से संबंधित था, लेकिन इसे निरस्त कर दिया गया (44वें संशोधन अधिनियम, 1978) और अनुच्छेद 300A (संवैधानिक अधिकार) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
    • प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951: प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 31A और 31B के साथ -साथ नौवीं अनुसूची भी शामिल की गई।
    • अनुच्छेद 31A: इसने राज्य को मूल अधिकारों के साथ असंगति के आधार पर चुनौती दिये बिना संपत्ति अर्जित करने या संपत्ति में अधिकार में परिवर्तन की शक्ति प्रदान की।
    • अनुच्छेद 31B: यह सुनिश्चित करता है कि नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को रद्द नहीं किया जा सकेगा,भले ही वे मूल अधिकारों के विरुद्ध हों।
    • नौवीं अनुसूची: इसमें केंद्रीय और राज्य कानूनों की सूची शामिल है जिन्हें न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती। जैसे,भूमि सुधार कानून
  • 25वाँ संशोधन अधिनियम, 1971: इसने अनुच्छेद 39(B) एवं (C) के तहत संसाधन वितरण के उद्देश्य से राज्य के कानूनों को संवैधानिक चुनौतियों से बचाने के लिये अनुच्छेद 31C जोड़ा गया।
    • संशोधन ने अदालतों को राज्य के कार्यों की समीक्षा करने से रोक दिया, भले ही वे मनमाने या तर्कहीन हों।
  • 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976: इसने सभी निदेशक तत्त्वों को शामिल करने के लिये अनुच्छेद 31C के दायरे का  विस्तार किया।
    • यह प्रावधान योग्य कानूनों को अनुच्छेद 14 एवं 19 के तहत निरस्त होने से बचाता है यदि वे वास्तव में संसाधन पुनर्वितरण के माध्यम से सार्वजनिक कल्याण सुनिश्चित करते हैं।
  • 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978: अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31, जो संपत्ति अर्जित एवं धारण करने के साथ-साथ निपटान करने के अधिकार की रक्षा करते थे, को निरस्त कर दिया गया, जिसका अर्थ है कि इसने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया।
    • भाग XII के अध्याय IV में अनुच्छेद 300A के अंतर्गत संपत्ति एक संवैधानिक अधिकार के रूप में स्थापित हुआ।

संपत्ति के अधिकार से संबंधित न्यायिक व्याख्या क्या है?

  • शंकरी प्रसाद मामला, 1951: सर्वोच्च न्यायालय ने प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951 को बरकरार रखा, जिसमें अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने के लिये संसदीय विशेषाधिकार की पुष्टि की गई और साथ ही यह निर्णय दिया गया कि मौलिक अधिकारों को प्रभावित करने वाले संशोधन अनुच्छेद 13(2) द्वारा प्रतिबंधित नहीं हैं।
    • अनुच्छेद 13(2) न्यायिक समीक्षा का प्रावधान करता है जो मौलिक अधिकारों के साथ टकराव करने वाले कानूनों को अमान्य घोषित करने में सहायता प्रदान करता है।
  • बेला बनर्जी मामला, 1954: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनिवार्य संपत्ति अधिग्रहण के मामलों में सरकार को उचित मुआवज़ा प्रदान करना आवश्यक है।
  • केशवानंद भारती मामला, 1973: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक संशोधन अनुच्छेद 13(2) के प्रतिबंधों के अधीन नहीं हैं, जिसका अर्थ है कि संसद,संविधान में संशोधन कर सकती है, जिसमें संपत्ति के अधिकार से संबंधित प्रावधानों में परिवर्तन करना या समाप्त करना शामिल है।
  • मिनर्वा मिल्स मामला, 1980: सभी निदेशक सिद्धांतों को शामिल करने के लिये अनुच्छेद 31C के दायरे का विस्तार करने को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 31C की न्यायिक जाँच को रोकने वाले प्रावधानों को भी निरस्त कर दिया, परिणामस्वरूप संवैधानिक जाँच और संतुलन के सिद्धांत को बल मिला।
  • वामन राव मामला, 1981: यह माना गया कि केशवानंद भारती मामले से पहले नौवीं अनुसूची में संवैधानिक संशोधन और कानून न्यायिक चुनौती से संरक्षित हैं।
    • हालाँकि, इन मामलों के बाद जोड़े गए संशोधन मूल संरचना सिद्धांत के आधार पर न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं। 
  • विद्या देवी मामला, 2020: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को जबरन बेदखल करना मानवाधिकारों और अनुच्छेद 300A के तहत संवैधानिक अधिकार दोनों का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व क्या है?

  • राज्य एवं व्यक्तिगत अधिकार: यह राज्य के हस्तक्षेप की संभावना को संरक्षित करता है, जबकि यह स्वीकार करता है कि निजी संसाधनों का अंधाधुंध अधिग्रहण स्वीकार्य नहीं है।
  • आर्थिक लोकतंत्र: यह निर्णय डॉ.बी.आर.अंबेडकर के "आर्थिक लोकतंत्र" के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो यह सुनिश्चित करता है कि संविधान एक कठोर आर्थिक संरचना को निर्देशित नहीं करता है, इस प्रकार लोगों की अपने सामाजिक एवं आर्थिक संगठन का निर्णय लेने की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है।
  • लचीली/नम्य व्याख्या: इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि अनुच्छेद 39(B) जैसे निर्देशक सिद्धांतों को इस तरह से क्रियान्वित किया जाना चाहिये जो विकासशील सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे, न कि किसी एक कठोर आर्थिक सिद्धांत को।
  • विधायी ढाँचा: यह निर्णय आर्थिक और कल्याणकारी नीतियों को आकार देने में निर्वाचित सरकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की भूमिका को पुष्ट करता है।
  • कल्याण: भविष्य की कल्याणकारी नीतियाँ संभवतः सार्वजनिक कल्याण के लिये आवश्यक दुर्लभ, महत्त्वपूर्ण संसाधनों पर केंद्रित होंगी। राज्य प्रगतिशील कराधान और सार्वजनिक योजनाओं जैसी अधिक लक्षित कल्याणकारी रणनीतियाँ अपना सकता है।

संपत्ति पर राज्य के नियंत्रण का प्रभाव क्या है?

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • न्यायसंगत पुनर्वितरण: हाशिए पर पड़े समूहों में संसाधनों का पुनर्वितरण करके सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है तथा धन असमानता को कम करता है।
    • संसाधन प्रबंधन: यह सुनिश्चित करता है कि भूमि, जल और खनिज जैसे संसाधनों का उपयोग स्थायी रूप से और सार्वजनिक लाभ के लिये किया जाए।
    • लोक कल्याण संबंधी परियोजनाएँ: सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये भूमि या संपत्ति का अधिग्रहण करके बुनियादी ढाँचे के विकास, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की सुविधा प्रदान करती हैं।
    • कमज़ोर समूहों की सुरक्षा: वंचित समुदायों को शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • नकारात्मक प्रभाव: 
    • निजी स्वामित्व पर सीमाएँ: व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों को कम करती है, जिससे निजी निवेश एवं उद्यमशीलता को हतोत्साहित होने की संभावना होती है।
    • प्रोत्साहन में कमी: राज्य के प्रतिबंधों के कारण निजी मालिकों में संपत्ति में सुधार या निवेश करने हेतु प्रोत्साहन में कमी हो सकती है।
    • आर्थिक स्थिरता: अत्यधिक विनियमन या अत्यधिक नियंत्रण बाज़ार-संचालित विकास एवं नवाचार को बाधित कर सकता है।

निष्कर्ष 

प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2024) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने निजी संपत्ति के अधिग्रहण के लिये राज्य की शक्ति के बारे में महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम की है। यह सार्वजनिक उद्देश्य, मुआवज़ा और मामले-दर-मामले आकलन की आवश्यकता पर बल प्रदान करता है, और साथ ही व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों को सामान्य हित के साथ संतुलित भी करता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: विभिन्न ऐतिहासिक मामलों में संपत्ति के अधिकार की न्यायिक व्याख्या पर चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक

प्र. भारत में संपत्ति के अधिकार की क्या स्थिति है? (2021)

(a) केवल नागरिकों के लिये उपलब्ध विधिक अधिकार
(b) किसी भी व्यक्ति के लिये उपलब्ध विधिक अधिकार
(c) केवल नागरिकों के लिये उपलब्ध मौलिक अधिकार
(d) न तो मौलिक अधिकार और न ही कानूनी अधिकार

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. कोहिलो केस में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है? (2016) 

प्रश्न: कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों की पहचान कीजिये। (2016)


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में उत्तराधिकार मानदंड

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, उत्तराधिकार कानून, विधि आयोग,  राष्ट्रीय महिला आयोग, वीरशैव, लिंगायत, ब्रह्म सभा, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, अनुसूचित जनजाति, अनुच्छेद 366, मिताक्षरा और दयाभागा शाखा।

मुख्य परीक्षा के लिये:

लैंगिक समानता और महिलाओं से संबंधित मुद्दे

स्रोत: हिदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) के तहत उत्तराधिकार प्रावधानों को बनाए रखा, जिसमें उत्तराधिकार को लैंगिक असमानता के मामले के रूप में देखने के स्थान पर सांस्कृतिक मानदंडों के साथ-साथ विधायी निरंतरता पर बल दिया गया।

  • कई याचिकाओं में इन प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई, और साथ ही उत्तराधिकार के मामलों में पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार की मांग की गई।

उत्तराधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?

  • लैंगिक न्याय के संदर्भ में नहीं: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि विवाह के बाद, एक महिला अपने पति के परिवार का हिस्सा बन जाती है, तथा उस परिवार में उत्तराधिकार के संबंध में उसके अधिकार भी समान हो जाते हैं।
    • न्यायायलय ने स्पष्ट किया कि उत्तराधिकार कानून को केवल लैंगिक समानता के मुद्दे के रूप में निर्मित नहीं किया जाना चाहिये। 
  • सांस्कृतिक संदर्भ: न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि हिंदू उत्तराधिकार संबंधी प्रथाएँ गहराई से निहित सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। 
    • पारंपरिक भावनाएँ प्राय: एक विवाहित महिला के माता-पिता को उसके उत्तराधिकार से प्राप्त संपत्तियों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देती हैं।
  • वैज्ञानिक और तर्कसंगत वंशावली: न्यायालय ने अधिनियम के "वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत" ढाँचे को बनाए रखा, जिसमें महिला द्वारा अपने माता-पिता या ससुराल वालों से अर्जित संपत्ति प्रत्यक्ष उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति में मूल परिवार को वापस कर दी जाती है, जिसमें पैतृक वंशावली-आधारित दृष्टिकोण को बनाए रखा जाता है।
  • विधायी परिवर्तन की आवश्यकता: न्यायालय ने दोहराया कि उत्तराधिकार कानूनों में संशोधन न्यायिक निर्णयों के स्थान पर विधायी निकाय संसद द्वारा प्रस्तावित एवं अधिनियमित किये जाने चाहिये।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि उत्तराधिकार कानून संपूर्ण समाज को प्रभावित करते हैं, और किसी भी परिवर्तन को कुछ व्यक्तियों या विशिष्ट विवाद संबंधी चिंताओं से प्रभावित होने के स्थान पर व्यापक सामाजिक सहमति और सामूहिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करना चाहिये।
  •  उत्तराधिकार की भूमिका: न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि एक महिला  उत्तराधिकार के माध्यम से अपनी संपत्ति को अपनी इच्छानुसार वितरित करने के लिये स्वतंत्र है, तथा मौजूदा कानूनी मानदंडों के अंतर्गत व्यक्तिगत स्वायत्तता पर भी बल दिया गया।
  • विगत अनुशंसाएँ: हालाँकि, 174वें विधि आयोग (2000) तथा  राष्ट्रीय महिला आयोग सहित कुछ निकायों द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिये समान उत्तराधिकार अधिकारों की सिफारिश की है, ये सुधार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के विचारों पर निर्भर करते हैं।

HSA, 1956 के अंतर्गत बिना वसीयत के उत्तराधिकार हेतु मुख्य प्रावधान क्या हैं?

  • हिंदू महिलाओं के लिये: यदि किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति (जिसमें स्वयं अर्जित संपत्ति भी शामिल है) प्राथमिक रूप से उसके बच्चों और पति को विरासत में मिलती है।
  • यदि पति या बच्चे मौजूद नहीं हैं तो संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है। केवल उन मामलों में जहाँ पति का कोई उत्तराधिकारी नहीं हैं, संपत्ति महिला के माता-पिता या उनके उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होती है।
  • जब संपत्ति किसी स्रोत (जैसे माता-पिता, ससुराल वाले) से विरासत में मिलती है तो यदि महिला की मृत्यु बिना किसी प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी के हो जाती है, तो वह उस मूल परिवार को वापस मिल जाती है।
  • हिंदू पुरुषों के लिये: जब किसी हिंदू पुरुष की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति उसकी पत्नी, बच्चों और माँ के बीच बराबर-बराबर बाँट दी जाती है। अगर इनमें से कोई भी उत्तराधिकारी मौजूद नहीं है, तो संपत्ति पिता को मिल जाती है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 क्या है?

  • परिचय: यह किसी हिंदू व्यक्ति की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाने पर संपत्ति के वितरण हेतु विधिक ढाँचा है। 
    • इस अधिनियम के तहत मृतक के साथ व्यक्ति के संबंधों के आधार पर उत्तराधिकारियों, उनके अधिकारों एवं संपत्ति के विभाजन के निर्धारण के लिये नियम निर्धारित किये गए हैं।
  • अधिनियम की प्रयोज्यता:
    • हिंदू धर्म के अनुसार वीरशैव, लिंगायत, ब्रह्मोस, प्रार्थना समाज और आर्य समाज के अनुयायी शामिल हैं।
    • यह अधिनियम बौद्ध, सिख और जैन धर्म पर लागू होगा
    • वे व्यक्ति जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि हिंदू कानून या रीति-रिवाज़ उन पर लागू नहीं होते हैं, तब तक यह अधिनियम लागू होगा।
    • यह अधिनियम संपूर्ण भारत में लागू होगा लेकिन संविधान के अनुच्छेद 366 के अनुसार यह अनुसूचित जनजातियों पर स्वतः लागू नहीं होता है, जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा इसे अधिसूचित न कर दिया जाए।
  • हिंदू विधि की शाखाएँ: इससे संपत्ति के उत्तराधिकार एवं अंतरण की एक समान प्रणाली का निर्धारण होता है जो मिताक्षरा और दायभाग शाखाओं पर समान रूप से लागू होती है।
    • मिताक्षरा विधि पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर पूरे भारत में लागू होती है जबकि दायभाग विधि पश्चिम बंगाल और असम पर लागू होती है।
      • दायभाग विधि के तहत उत्तराधिकार का अधिकार पूर्वजों की मृत्यु के बाद ही प्राप्त होता है जबकि मिताक्षरा विधि में जन्म से ही संपत्ति का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • दायभाग प्रणाली में पुरुष और महिला, परिवार के दोनों ही सदस्य सहदायिक हो सकते हैं जबकि मिताक्षरा प्रणाली में सहदायिक अधिकार केवल पुरुष सदस्यों तक ही सीमित है।
      • सहदायिक वह व्यक्ति होता है जो जन्म से ही पैतृक संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकता है।
  • संपत्ति का वितरण: 
    • श्रेणी I के उत्तराधिकारी: विधवा को संपत्ति का एक हिस्सा मिलता है।
      • पुत्र, पुत्री और माँ सभी को बराबर हिस्सा मिलता है।  
    • श्रेणी II के उत्तराधिकारी: यदि कोई श्रेणी I का उत्तराधिकारी मौजूद नहीं है, तो संपत्ति को समान रूप से विभाजित किया जाता है।
    • सगोत्रीय और सजातीय: यदि कोई श्रेणी I या II का उत्तराधिकारी नहीं है, तो संपत्ति पैतृक रिश्तेदारों (सगोत्रीय) और अन्य रिश्तेदारों (सगोत्रीय) को हस्तांतरित हो जाती है।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005: अधिनियम की धारा 6 में वर्ष 2005 में संशोधित किया गया था और महिलाओं को वर्ष 2005 से संपत्ति के विभाजन के लिये सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।

नोट: 

  • श्रेणी I के उत्तराधिकारियों में पुत्र, पुत्री, विधवा, माँ, पूर्व मृत बेटे का बेटा और पूर्व मृत बेटे की बेटी आदि शामिल हैं।
  • श्रेणी II के उत्तराधिकारियों में पिता, पुत्र की पुत्री का पुत्र, पुत्र की पुत्री की पुत्री, भाई, बहन आदि शामिल हैं। 

अन्य समुदायों में उत्तराधिकार कानून

निष्कर्ष

HSA के तहत उत्तराधिकार प्रावधानों पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ सांस्कृतिक परंपराओं और वंश-आधारित उत्तराधिकार पर ज़ोर देने वाले विधायी ढाँचे के बीच परस्पर क्रिया को उजागर करती हैं। न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार कानूनों में लैंगिक न्याय और सामाजिक मूल्यों के महत्त्व पर ज़ोर दिया, साथ ही व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करने और संभावित विधायी सुधारों पर विचार करने की आवश्यकता को स्वीकार किया। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि किसी कानून के उद्देश्य को केवल उस कठिनाई के कारण कम नहीं किया जा सकता है जो इससे हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत उत्तराधिकार अधिकारों की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न:  प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)

  1. मिताक्षरा ऊँची जाति की सिविल विधि थी और दायभाग निम्न जाति की सिविल विधि थी। 
  2. मिताक्षरा व्यवस्था में, पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में ही संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे। 
  3. मिताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों, दोनों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3  
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014)

प्रश्न: "यद्यपि स्वातंत्र्योत्तर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और

प्रश्न: नारीवादी आंदोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक रहा है।" महिला शिक्षा और महिला सशक्तीकरण की

प्रश्न: योजनाओं के अतिरिक्त कौन-से हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं?  (2021)


RCEP पर भारत के दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ (GVCs), राष्ट्रीय रसद नीति 2022, FDI, मुक्त व्यापार समझौते (FTAs), उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), आसियान, व्यापक एवं प्रगतिशील ट्राँस-पैसिफिक भागीदारी समझौता, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय समूहीकरण और भारत पर इसका प्रभाव, RCEP को लेकर भारत की चिंताएँ

स्रोत: FE

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग के सीईओ ने चीन के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एवं व्यापक एवं प्रगतिशील ट्राँस-पैसिफिक भागीदारी समझौता (CPTPP) में भारत को शामिल करने हेतु समर्थन व्यक्त किया। 

  • उनकी टिप्पणी RCEP पर भारत के वर्तमान रुख में बदलाव को दर्शाती है जो आर्थिक सर्वेक्षण 2024 की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसमें क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला नेटवर्क में भारत के एकीकरण की वकालत की गई है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी:

  • परिचय:
    • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP), आसियान सदस्यों और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक समझौता है।
    • RCEP विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है। इसे सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • RCEP वार्ता वर्ष 2012 में शुरू हुई थी। इस पर आधिकारिक तौर पर नवंबर 2020 में हस्ताक्षर किये गए थे, जो क्षेत्रीय व्यापार के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। इसे 1 जनवरी, 2022 को लागू किया गया।
  • सदस्य देश:
    • 15 सदस्य देश, जैसे चीन, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और आसियान राष्ट्र (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम)।
  • कवरेज़ क्षेत्र:
    • RCEP वार्ता में शामिल हैं: वस्तुओं में व्यापार, सेवाओं में व्यापार, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्धा, विवाद निपटान, ई-कॉमर्स, छोटे और मध्यम उद्यम (SME) एवं अन्य मुद्दे।
  • RCEP के उद्देश्य:
    • सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को सुगम बनाना।
    • व्यापार में टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना या समाप्त करना।
    • आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाना।
  • व्यापार की मात्रा:
    • RCEP के सदस्य राष्ट्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 30% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • व्यापारिक गुट विश्व की लगभग एक-तिहाई आबादी को कवर करता है।
    • इसमें वैश्विक व्यापार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता है।
  • भारत और RCEP:
    • भारत RCEP का संस्थापक सदस्य राष्ट्र था। वर्ष 2019 में भारत ने RCEP वार्ता से हटने का निर्णय लिया।

भारत RCEP से अलग क्यों हुआ?

  • "चाइना की प्लस वन" रणनीति:
    • भारत का निर्णय "चाइना प्लस वन" रणनीति की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य आपूर्ति शृंखलाओं और व्यापार संबंधों में विविधता लाकर चीन पर निर्भरता को न्यूनतम करना है।
  • बढ़ता व्यापार घाटा:
    • RCEP के कार्यान्वयन के बाद से कई सदस्य देशों के व्यापार घाटे में अत्यधिक रूप से वृद्धि हुई है। 
    • RCEP से भारत का व्यापार घाटा और बढ़ जाता, जैसा कि अन्य देशों में देखा गया है। उदाहरण के लिये, चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 81.7 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 135.6 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
  • चीनी वस्तुओं की डंपिंग:
    • भारत सस्ते चीनी उत्पादों के आयात से चिंतित है, जिससे घरेलू उद्योगों को हानिन हो सकती है। चीन के साथ देश का व्यापार घाटा वर्ष 2023-24 में पहले ही बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुका है।
  • घरेलू उद्योग का संरक्षण और उत्पत्ति के नियम मानदंड:
    • भारत का RCEP से अलग होना आंशिक रूप से घरेलू उद्योगों, विशेष रूप से डेयरी एवं इस्पात जैसे क्षेत्रों के संरक्षण को लेकर चिंताओं के कारण था, जहाँ टैरिफ में 35% से शून्य तक की कटौती से उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत उत्पत्ति के नियमों के प्रावधानों को लेकर चिंतित था, क्योंकि उसे भय था कि उत्पाद अन्य देशों से होकर भारतीय टैरिफ को दरकिनार कर सकते हैं, जिससे घरेलू उद्योगों के लिये सुरक्षा उपाय कमज़ोर हो जाएंगे।

CPTPP क्या है?

  • परिचय:
  • महत्त्व:
    • CPTPP वस्तुओं और सेवाओं पर 99% टैरिफ को समाप्त करता है, जिससे आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। इसमें वन्यजीवों की तस्करी को रोकने, सुभेद्य प्रजातियों की रक्षा करने और गैर-संवहनीय कटाई एवं मछली पकड़ने को विनियमित करने के लिये कठोर पर्यावरणीय प्रावधान शामिल हैं, जिनका पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है। 
    • सभी सदस्य APEC का हिस्सा हैं, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • भारत का रुख: 
    • भारत कठोर श्रम एवं पर्यावरण मानकों, संकीर्ण रूप से परिभाषित निवेश संरक्षण प्रावधानों तथा विस्तृत पारदर्शिता आवश्यकताओं के कारण CPTPP में शामिल नहीं हुआ, जो भारत की नियामक स्वायत्तता को सीमित कर सकते थे।

RCEP और CPTPP में शामिल होने से भारत को प्रमुख लाभ क्या होंगे?

  • विस्तृत बाज़ारों तक पहुँच:
    • RCEP और CPTPP में शामिल होने से भारत को बड़े बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त होगी, विशेष रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, जिससे निर्यात विशेष रूप से MSME क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जो भारत के निर्यात में 40% का योगदान करते हैं। 
    • कम टैरिफ और व्यापार बाधाओं से MSME की प्रतिस्स्पर्द्धात्मकता में वृद्धि होगी, जबकि प्रौद्योगिकी एवं संसाधनों तक आसान पहुँच से "मेक इन इंडिया" जैसी पहल के तहत उत्पादन बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
    • इससे भारत की आपूर्ति शृंखला एकीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा, रसद लागत कम होगी साथ ही विनिर्माण दक्षता में सुधार होगा।
  • “चाइना प्लस वन” रणनीति का उपयोग:
    • भारत अपने कुशल कार्यबल और बढ़ते औद्योगिक आधार के साथ "चाइना प्लस वन" रणनीति के तहत विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये बेहतर स्थिति में है। वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों को इस परिवर्तन से व्यापक लाभ प्राप्त हुआ है।
    • RCEP में शामिल होकर भारत चीनी विनिर्माण के विकल्प तलाशने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रुझान का लाभ प्राप्त कर सकता है तथा क्षेत्र में स्वयं को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • बेहतर व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता और FDI:
    • RCEP में शामिल होने से टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके भारत की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी, जिससे इसके उत्पाद अधिक मूल्य-प्रतिस्पर्धी बनेंगे, विशेषकर जापान, दक्षिण कोरिया तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे बाज़ारों में।
    • यह बेहतर बाज़ार पहुँच और स्पष्ट व्यापार शर्तों के माध्यम से FDI को भी आकर्षित करेगा, जिससे बुनियादी अवसरंचना, विनिर्माण एवं प्रौद्योगिकी में निवेश को बढ़ावा देगा जिससे आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
  • व्यापार वार्त्ता शक्ति को मज़बूत करना:
    • इससे भारत की व्यापार वार्त्ता शक्ति में वृद्धि होगी, जिससे वह व्यापार नियमों को प्रभावित करने तथा कृषि, प्रौद्योगिकी एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में अनुकूल शर्तों पर वार्त्ता करने में सक्षम होगा, साथ ही घरेलू हितों की रक्षा करेगा और निर्यात को बढ़ावा देगा।
  • नवाचार और ज्ञान का आदान-प्रदान:
    • RCEP बौद्धिक संपदा अधिकारों और प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, जिससे भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच मिलती है। इससे जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा मिलता है, जिससे नवाचार बढ़ेगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा भारत की तकनीकी क्षमताएँ मज़बूत होंगी।

भारत की वर्तमान टैरिफ संरचना का उसके वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रभाव

  • औसत लागू टैरिफ:
    • भारत का औसत लागू टैरिफ लगभग 13.8% है, जो चीन के 9.8% और संयुक्त राज्य अमेरिका के 3.4% से काफी अधिक है।
    • हालाँकि व्यापार-भारित औसत पर विचार करने पर यह कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है, लेकिन भारत के टैरिफ उसके व्यापार संबंधों पर एक बाधा बने हुए हैं।
  • उच्च सीमा शुल्क:
    • विशेष रूप से कृषि उत्पादों पर भारत की सीमा शुल्क दरें विश्व स्तर पर सबसे अधिक हैं, जो 100% से 300% तक हैं।
    • ये उच्च शुल्क दरें विदेशी निर्यातकों के लिये पर्याप्त बाधाएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे भारतीय बाज़ार कम आकर्षक बनते हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत का एकीकरण सीमित होता है।

आगे की राह 

  • द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA): भारत को बाज़ार पहुँच का विस्तार करने के लिये यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ व्यापक FTA को अंतिम रूप देने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • क्षेत्रीय समूहों को मज़बूत करना: भारत को सार्क के भीतर क्षेत्रीय एकीकरण का समर्थन जारी रखना  चाहिये तथा दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाले बिम्सटेक के साथ संबंधों को बढ़ाना चाहिये।
  • खाड़ी देशों और अफ्रीका के साथ व्यापार समझौते: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों और अफ्रीकी देशों के साथ सक्रिय बातचीत को ऊर्जा, बुनियादी अवसरंचना तथा डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
  • इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF): IPEF में सक्रिय रूप से भाग लेकर भारत अपनी "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" को आगे बढ़ा सकता है, जिससे व्यापार, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, स्वच्छ ऊर्जा और निष्पक्ष आर्थिक प्रथाओं में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • आत्मनिर्भर भारत: निर्यात और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये सरकार को मेक इन इंडिया 2.0 और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू क्षमताओं को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. व्यापार घाटे और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में RCEP में शामिल होने से भारत के लिये संभावित लाभ एवं चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया 
  2. कनाडा
  3. चीन 
  4. भारत
  5. जापान 
  6. यू.एस.ए.

उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुत्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?

(a) 1, 2, 4 और 5    
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5   
(d) 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016) 

(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC

उत्तर: (b)


प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' (Trans-Pacific Partnership)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2016)

  1. यह चीन और रूस को छोड़कर प्रशांत महासागर तटीय सभी देशों के मध्य एक समझौता है।
  2. यह केवल तटवर्ती सुरक्षा के प्रयोजन से किया गया सामरिक गठबंधन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (d)