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भारतीय राजव्यवस्था

पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • 04 Sep 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, मिताक्षरा कानून, शून्य विवाह, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, हिंदू अविभाजित परिवार, दायभाग कानून

मेन्स के लिये:

पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि शून्य अथवा अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे मिताक्षरा कानून के तहत संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में अपने माता-पिता का हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।

  • हालाँकि इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ये बच्चे परिवार में किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति में अथवा उसके अधिकार के हकदार नहीं होंगे।

नोट:

  • शून्य विवाह: यह ऐसा विवाह है जो शुरू में वैध होता है लेकिन यदि कोई पक्ष इसे रद्द करना चाहे तो इसमें व्याप्त कुछ दोष अथवा शर्तों के तहत इसे रद्द कर सकता/सकती है।
  • अमान्य विवाह: यह वह विवाह है जिसे शुरू से ही अमान्य माना जाता है जैसे कि यह कानून की नज़र में कभी अस्तित्व में ही नहीं था।

पृष्ठभूमि:

  • रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन, 2011 वाद में यह फैसला दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के संदर्भ में दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि अमान्य/शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने माता-पिता की संपत्ति को प्राप्त करने के हकदार हैं, चाहे वह संपत्ति स्व-अर्जित हो अथवा पैतृक।
  • इस फैसले ने ऐसे बच्चों के विरासत/पैतृक संपत्ति संबंधी अधिकारों को मान्यता देने की नींव रखी।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:

  • विरासत हिस्सेदारी का निर्धारण:
    • शून्य अथवा अमान्य विवाह से किसी बच्चे के लिये विरासत में हिस्सा प्रदान करने की दिशा में पहला कदम पैतृक संपत्ति में उनके माता-पिता की सटीक हिस्सेदारी का पता लगाना है।
    • इस निर्धारण में पैतृक संपत्ति का "काल्पनिक विभाजन (Notional Partition)" करना शामिल है ताकि उस हिस्से की गणना की जा सके जो माता-पिता को उनकी मृत्यु से ठीक पहले प्राप्त हुआ होगा।
  • विरासत का कानूनी आधार:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती है, यह ऐसे बच्चों की अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार निर्धारित करती है।
  • समान विरासत अधिकार:
    • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो पैतृक संपत्ति को विनियमित करता है, के तहत शून्य या अमान्य विवाह से हुए बच्चों को "वैध परिजन" माना जाता है।
    • जब पारिवारिक संपत्ति विरासत में मिलने की बात आती है तो उन्हें नाजायज़ नहीं माना जा सकता।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 का प्रभाव:
    • न्यायालय ने कहा कि वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम के लागू होने के बाद मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिंदू परिवार में एक मृत व्यक्ति का हिस्सा वसीयत अथवा बिना वसीयत के उत्तराधिकार द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
    • इस संशोधन ने उत्तरजीविता से परे विरासत के दायरे का विस्तार किया और महिलाओं तथा पुरुषों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान किया।

नोट: जून 2022 में कट्टुकंडी एडाथिल कृष्णन तथा अन्य बनाम कट्टुकंडी एडाथिल वाल्सन और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लिव-इन रिलेशनशिप में पार्टनर से पैदा हुए बच्चों को वैध माना जा सकता है। यह एक तरह से सशर्त है कि संबंध दीर्घकालिक होना चाहिये, न कि 'आकस्मिक' प्रकृति का।

बेटी की विरासत के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:

  • अरुणाचल गौंडर बनाम पोन्नुसामी, 2022:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि बिना वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति, विरासत द्वारा हस्तांतरित होगी, न कि उत्तराधिकार द्वारा।
    • इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि ऐसी संपत्ति बेटी को विरासत में मिलेगी, जो कि बँटवारे के माध्यम से प्राप्त सहदायिक संपत्ति के अलावा होगी।
  • विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा, 2020
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला/बेटी को भी बेटे के समान संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी माना जाएगा और वह पैतृक संपत्ति को पुरुष उत्तराधिकारी के समान ही प्राप्त कर सकती है, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रभाव में आने से पहले पिता जीवित नहीं था। 

मिताक्षरा कानून:

  • परिचय:
    • मिताक्षरा कानून एक कानूनी और पारंपरिक हिंदू कानून प्रणाली है जो मुख्य रूप से हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के सदस्यों के बीच विरासत और संपत्ति के अधिकारों के नियमों को नियंत्रित करती है।
      • यह हिंदू कानून के दो प्रमुख स्कूलों में से एक है, दूसरा दायभाग स्कूल है।
    • उत्तराधिकार का मिताक्षरा कानून पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर पूरे देश में लागू होता है।

हिंदू विधियों के प्रकार

मिताक्षरा कानून

दायभाग कानून

मिताक्षरा शब्द याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई एक टिप्पणी के नाम से लिया गया है।

एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है।

इसका अनुसरण भारत के सभी भागों में किया जाता है तथा बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र और द्रविड़ स्कूलों में विभाजित है ।

इसका अनुसरण  बंगाल और असम में किया जाता है।

एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है।

एक पुत्र के पास जन्म से स्वत: स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं होता है, लेकिन वह इसे अपने पिता की मृत्यु पर प्राप्त करता है।

सभी सदस्य पिता के जीवनकाल के दौरान सहदायिकी अधिकार प्राप्त करते हैं ।

पिता के जीवित रहने पर पुत्रों को सहदायिकी अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं।

एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है।

प्रत्येक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित किया गया है और उसका निपटान किया जा सकता है।

एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है।

यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि बेटे विभाजन की मांग नहीं कर सकते क्योंकि पिता पूर्ण मालिक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)

  1. मिताक्षरा ऊँची जाति की सिविल विधि थी और दायभाग निम्न जाति की सिविल विधि थी।
  2. मिताक्षरा व्यवस्था में पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में ही संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे।
  3. मिताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों, दोनों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3  
(d) केवल 3

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

विज्ञानेश्वर द्वारा याज्ञवल्क्य स्मृति पर लिखी गई टीका मिताक्षरा पूरे देश में (बंगाल, असम तथा उड़ीसा एवं बिहार के कुछ भागों को छोड़कर जहाँ दायभाग व्यवस्था लागू थी) संपत्ति के अधिकार के लिये कानून की सर्वमान्य पुस्तक थी। मिताक्षरा और दायभाग जाति भेद नहीं करती थी, यानी ऊँची या नीची जाति के लिये नहीं लिखी गई थी। अत: कथन 1 सही नहीं है।

मिताक्षरा व्यवस्था में पिता के जीवित रहते पुत्र, पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा कर सकता था जबकि दायभाग पिता की मृत्यु के पश्चात् ऐसे किसी दावे पर विचार करती थी। अत: कथन 2 सही है।

मिताक्षरा और दायभाग स्त्री-पुरुष दोनों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार व्यक्त करते हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है। 

अत: विकल्प (b) सही है।

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