सामाजिक न्याय
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति की महिलाएँ 'उत्तरजीविता के अधिकार' की हकदार नहीं
- 21 Mar 2023
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प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जनजाति, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005, संविधान का अनुच्छेद 14, हिंदू कानून का मिताक्षरा स्कूल, भारत में विरासत अधिकार। मेन्स के लिये:भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
संसद सदस्य ने सरकार से एक अधिसूचना जारी करने का आग्रह किया है जिसमें हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005 के विरासत अधिकार प्रावधानों में अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिलाओं को समावेशित किया जाएगा।
- अधिनियम की धारा 2(2) अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को इससे बाहर रखती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की पैतृक संपत्तियों को प्राप्त करने के उनके समान अधिकारों की अनदेखी की जाती है।
विरासत अधिकार से संबंधित मुद्दे:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 को वर्ष 2005 में संशोधित किया गया था ताकि बेटियों को उनके पिता या हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्तियों में समान अधिकार दिया जा सके।
- संसद सदस्य (MoP) ने कहा कि इस अधिनियम में अनुसूचित जनजाति की महिलाओं का बहिष्कार लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है, जो विधि के समक्ष समानता की वकालत करता है।
- इसके अतिरिक्त MoP का तर्क है कि ऐतिहासिक उत्पीड़न और शिक्षा, रोज़गार एवं संपत्ति तक पहुँच की कमी के कारण अनुसूचित जनजाति की महिलाएँ अधिक वंचित समूह हैं।
- संसद सदस्य ने सरकार से एक अधिसूचना जारी करने का आग्रह किया है जिसमें अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाएगा, उन मामलों को छोड़कर जहाँ किसी विशेष अनुसूचित जनजाति के रीति-रिवाज में महिलाओं को लाभप्रद स्थिति प्राप्त है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956:
- परिचय:
- मिताक्षरा स्कूल हिंदू कानून को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था, जो उत्तराधिकार और संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता था लेकिन कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को ही मान्यता दी जाती थी।
- प्रासंगिकता:
- यह मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी को छोड़कर सभी पर लागू होता है।
- इस कानून के लिये बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायी भी हिंदू के अंतर्गत आते हैं।
- परंपरागत रूप से संयुक्त हिंदू परिवार में केवल एक सामान्य पूर्वज के पुरुष वंशजों की माताएँ, पत्नियाँ और अविवाहित बेटियाँ होती हैं। कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से पारिवारिक संपत्ति का स्वामित्त्व रखते हैं।
- यह मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी को छोड़कर सभी पर लागू होता है।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005:
- सितंबर 2005 में 1956 के अधिनियम में संशोधन के बाद से वर्ष 2005 से महिलाओं को संपत्ति विभाजन के लिये सह-मालिक/सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।
- इस अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया था ताकि एक सहदायिक की पुत्री को भी जन्म से सहदायिक बनाया जा सके " पुत्र की ही तरह उसके अधिकार में रूप में"।
- इसने बेटी को "सहभागिता संपत्ति (Coparcenary Property) में" समान अधिकार और देनदारियाँ भी दीं, क्योंकि यदि वह पुत्र होता तो उसे प्राप्त होता।
- कानून पैतृक संपत्ति पर और व्यक्तिगत संपत्ति में उत्तराधिकार को प्रमाणित करने के लिये लागू होता है, जहाँ उत्तराधिकार कानून के अनुसार होता है, न कि वसीयत के माध्यम से।
- सितंबर 2005 में 1956 के अधिनियम में संशोधन के बाद से वर्ष 2005 से महिलाओं को संपत्ति विभाजन के लिये सह-मालिक/सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।