जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट 2024
- 20 May 2024
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:धन शोधन और अवैध वन्यजीव व्यापार, संगठित अपराध, पैंगोलिन, गैंडे का अवैध शिकार मेन्स के लिये:संगठित अपराध और वन्यजीव तस्करी, वन्यजीव संरक्षण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) ने हाल ही में विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट (World Wildlife Crime Report) 2024 का तीसरा संस्करण जारी किया है।
- इसमें वर्ष 2015 से 2021 तक अवैध वन्यजीव व्यापार का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC):
- इसकी स्थापना दवा नियंत्रण और अपराध निवारण कार्यालय (Office for Drug Control and Crime Prevention) के रूप में वर्ष 1997 में की गई थी। वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) अर्थात् ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय कर दिया गया।
- यह संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नियंत्रण कार्यक्रम (UNDCP) और वियना में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अपराध रोकथाम एवं आपराधिक न्याय प्रभाग को मिलाकर ड्रग नियंत्रण तथा अपराध रोकथाम कार्यालय के रूप में कार्य करता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- जंतु एवं पादप उत्पादों की तस्करी:
- गैंडे के सींग- अवैध पशु व्यापार में इसकी हिस्सेदारी सबसे अधिक (29%) है, इसके बाद पैंगोलिन के स्केल/शल्क (28%) और हाथी दांँत (15%) का स्थान है।
- गैंडा (जंतु) और देवदार (पादप)- वर्ष 2015 से 2021 के बीच वैश्विक रूप से अवैध वन्यजीव व्यापार के चलते सर्वाधिक प्रभावित हुए।
- अवैध रूप से व्यापार की जाने वाली अन्य जंतु प्रजातियाँ- ईल (5%), मगरमच्छ (5%), तोते और कॉकटू (2%), मांसाहारी जानवरों, कछुए, साँप और समुद्री घोड़े।
- अवैध रूप से व्यापार किये जाने वाले प्रमुख पौधे- देवदार और महोगनी, होली ट्री की लकड़ियों और गुआकम जैसे अन्य सैपिंडेल्स मिलकर 47% की भागीदारी के साथ सबसे बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी का निर्माण करते है, इसके बाद 35% हिस्सेदारी शीशम तथा 13% हिस्सेदारी अगरवुड एवं अन्य मायर्टेल्स की रही।
- गैंडे के सींग- अवैध पशु व्यापार में इसकी हिस्सेदारी सबसे अधिक (29%) है, इसके बाद पैंगोलिन के स्केल/शल्क (28%) और हाथी दांँत (15%) का स्थान है।
- व्यापार में वस्तुएँ:
- वस्तुओं में प्रवाल के टुकड़े (Coral Pieces) सबसे अधिक पाए गए और वर्ष 2015-2016 के दौरान सभी ज़ब्ती में से 16% इसमें शामिल थे; जीवित नमूने- 15%, जबकि पशु उत्पादों से बनी दवाओं की बरामदगी 10% थी।
- स्रोत राष्ट्रों में जाने के लिये अस्थि प्रसंस्करण:
- रिपोर्ट के अनुसार,अस्थियों का प्रसंस्करण गंतव्य देशों (सुदूर पूर्व) में होता था, लेकिन अब उन महाद्वीपों (अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया) से भी अस्थियों का प्रसंस्करण संभव है, जिनके नज़दीक इनका उत्पादन होता है।
- यह चिंताजनक है क्योंकि प्रसंस्करण के बाद इनकी तस्करी करना आसान होगा, जैसे कि अस्थियों को पेस्ट के रूप में संसाधित करना और यह स्पष्ट नहीं होगा कि इनका इरादा निर्यात, स्थानीय उपयोग या दोनों के लिये है।
- रिपोर्ट में बाघ की अस्थियों के स्थान पर शेर और जगुआर की अस्थियों को रखने के बारे में चिंता व्यक्त की गई है, जिन्हें पारंपरिक चीनी चिकित्सा में अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।
- SDG लक्ष्य संख्या 15.7 से ऑफ-ट्रैक:
- वर्ष 2024 में UNODC ने SDG लक्ष्य 15.7 पर प्रगति को ट्रैक करने के लिये एक नया संकेतक पेश किया, जिसका उद्देश्य अवैध वन्यजीव तस्करी को रोकना है।
- बढ़ते अवैध व्यापार से पता चलता है कि वन्यजीव व्यापार (कानूनी और अवैध) की तुलना में अवैध वन्यजीव व्यापार का अनुपात 2017 से बढ़ रहा है।
- कोविड-19 महामारी (2020-2021) के दौरान समस्या और भी बदतर हो गई, वन्यजीवों की ज़ब्ती वैश्विक व्यापार के 1.4-1.9% के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई।
- पिछले वर्षों में 0.5-1.1% की तुलना में वर्तमान में अवैध वन्यजीव व्यापार में हो रही वृद्धि से पता चलता है कि विश्व वर्ष 2030 तक प्रस्तावित SDG लक्ष्य 15.7 प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर नहीं है।
वन्यजीव अपराध के लिये ज़िम्मेदार कारक क्या हैं?
- संगठित वाणिज्यिक अवैध स्रोत:
- संगठित अपराध समूह दूर से संचालित होकर हाथी और बाघ के अवैध शिकार, अवैध मछली पकड़ने और लॉगिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होते हैं और अक्सर अन्य आपराधिक उद्यमों के साथ सत्ता संबंधों, भ्रष्टाचार, अवैध आग्नेयास्त्रों और धन-शोधन के अवसरों का उपयोग करते हैं।
- संपूर्ण व्यापार शृंखला में निर्यात, आयात, दलाली, भंडारण, जीवित नमूनों का प्रजनन और प्रोसेसर के साथ इंटरफेसिंग जैसी विशेष भूमिकाओं में संगठित अपराध स्पष्ट है।
- अनुपूरक आजीविका और अवसरवादिता:
- हालाँकि कुछ तस्करी के पीछे बड़े आपराधिक समूह हो सकते हैं, वहीं कई गरीब लोग भी हैं जो केवल अपना गुज़ारा करने का प्रयास कर रहे हैं।
- कभी-कभी अवैध शिकार इसलिये होता है क्योंकि लोग अपनी फसलों या पशुओं को जंगली जानवरों से बचाने को बेताब रहते हैं।
- काला बाज़ार नई मांग उत्पन्न करता है:
- जब किसी उत्पाद का कानूनी उपयोग कम हो जाता है, तो अवैध व्यापारी बिक्री जारी रखने के लिये इसका उपयोग करने के नए तरीके ईजाद कर सकते हैं।
- दुर्लभ जानवरों, पौधों, या लुप्तप्राय प्रजातियों की ट्राफियाँ (हाथी दाँत, बड़ी बिल्ली की खाल) जैसी लक्जरी वस्तुओं की कमी वास्तव में अवैध बाज़ारों में मांग को बढ़ा सकती है, जिससे अधिक खरीदार आकर्षित होंगे।
- भ्रष्टाचार:
- यह निरीक्षण बिंदुओं पर रिश्वतखोरी से लेकर परमिट जारी करने और कानूनी निर्णयों पर उच्च-स्तरीय प्रभाव तक वन्यजीव तस्करी को बाधित करने तथा रोकने के प्रयासों को कमज़ोर करता है।
- भ्रष्टाचार को संबोधित करने वाले कानून में मज़बूत जाँच शक्तियाँ और संभावित रूप से उच्च दंड की पेशकश के बावजूद ऐसे कानूनों के तहत वन्यजीव तस्कर पर मुकदमा चलाना असामान्य है।
- अवैध शिकार की सांस्कृतिक जड़ें:
- लोग केवल धनार्जन हेतु वन्यजीवों का अवैध शिकार नहीं करते क्योंकि कभी-कभी यह उनकी संस्कृति का हिस्सा होता है; मध्य अफ्रीकी गणराज्य में चिंको रिज़र्व की परिधि में शोध से पता चला कि कुछ लोग हाथियों के शिकार को अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मानते हैं, जो बहादुरी एवं पुरुषार्थ का प्रतीक है तथा यह पीढ़ियों से चली आ रही है।
वन्यजीव अपराध और तस्करी के प्रभाव क्या हैं?
- पर्यावरण संबंधी प्रभाव:
- प्रजातियों का अत्यधिक दोहन: वन्यजीव अपराध के कारण अत्यधिक दोहन द्वारा जैवविविधता का क्षरण होता है, जिससे जनसंख्या में कमी आती है और विलुप्त होने का संकट होता है। पारिस्थितिक तंत्र की कार्य पद्धति के लिये प्रजातियों की विविधता महत्त्वपूर्ण है।
- पारिस्थितिक प्रभाव: वन्यजीवों के अत्यधिक दोहन के कारण लिंगानुपात असंतुलन व धीमी प्रजनन दर जैसी दीर्घकालिक पारिस्थितिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- तस्करी से जनसंख्या में कमी होने के साथ-साथ यह प्रजातियों की परस्पर निर्भरता व खाद्य शृंखला एवं खाद्य वेब (जाल) जैसे आवश्यक पारिस्थितिक कार्यों को बाधित कर सकती है।
- आक्रामक प्रजातियों का फैलाव: अवैध वन्यजीव व्यापार गैर-देशी प्रजातियों को नए वातावरण में लाने में योगदान कर सकता है, जिससे संभावित रूप से आक्रामक प्रजातियाँ पैदा हो सकती हैं जो देशी पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों को हानि पहुँचाती हैं।
- सामाजिक और आर्थिक नुकसान:
- कल्याण और आजीविका: अवैध व्यापार सहित वन्यजीव अपराध, प्रकृति के लाभों को कम करता है, भोजन, चिकित्सा, ऊर्जा और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित करता है।
- विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अवैध वन्यजीव व्यापार से प्रति वर्ष 1-2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वैश्विक आर्थिक हानि होती है, जो मुख्य रूप से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्य से संबंधित है, जिसका बाज़ार स्तर पर आकलन नहीं हो पाता है।
- निजी क्षेत्र की लागत और हानि: वन्यजीव अपराध कानूनी वन्यजीव व्यापार और संबंधित सेवाओं में व्यवसायों की लागत तथा घाटे को बढ़ाकर अर्थव्यवस्थाओं को हानि पहुँचाता है।
- इससे संसाधन तक पहुँच में कमी आने, अनुचित प्रतिस्पर्द्धा होने तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठा की हानि होने से वैधता सत्यापन के संदर्भ में अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ सकती है।
- स्वास्थ्य जोखिम: वन्यजीव व्यापार से मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिये रोग संचरण का गंभीर जोखिम उत्पन्न होता है, साथ ही प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, पशुधन और कृषि प्रणालियों के लिये भी खतरा बढ़ता है।
- पर्यावरण रक्षकों को हानि: पुलिस, सीमा शुल्क, वन्यजीव रेंजर्स भी शिकारियों द्वारा उत्पीड़न, हिंसा और यहाँ तक कि जीवन की हानि के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- कल्याण और आजीविका: अवैध व्यापार सहित वन्यजीव अपराध, प्रकृति के लाभों को कम करता है, भोजन, चिकित्सा, ऊर्जा और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित करता है।
- शासन से हानि:
- विधिक शासन को कमज़ोर करना: अवैध वन्यजीव व्यापार कानून के शासन को कमज़ोर करता है और साथ ही प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं आपराधिक न्याय प्रतिक्रियाओं को कमज़ोर करता है।
- भ्रष्टाचार कानून और राजनीतिक स्थिरता से समझौता कर इस व्यापार को सुगम बनाता है। इसके अतिरिक्त मनी लॉन्ड्रिंग वन्यजीव अपराध से जुड़ा हुआ है, हालाँकि इसकी वित्तीय जाँच सीमित है।
- सरकारी राजस्व की हानि: वन्यजीव अपराध विधिक शुल्क, करों एवं पर्यटन आय की चोरी करके स्रोत देशों में सरकारी राजस्व हानि का कारण बनता है।
- प्रवर्तन की वित्तीय लागतें: वन्यजीव अपराधों के कारण विश्व स्तर पर संरक्षण, कानून प्रवर्तन एवं आपराधिक न्याय पर सरकारी व्यय में वृद्धि हुई है।
- विधिक शासन को कमज़ोर करना: अवैध वन्यजीव व्यापार कानून के शासन को कमज़ोर करता है और साथ ही प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं आपराधिक न्याय प्रतिक्रियाओं को कमज़ोर करता है।
वन्यजीव अपराध को प्रभावी रूप से कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- अवैध वन्यजीव उत्पादों पर प्रतिबंध:
- इस दृष्टिकोण का उद्देश्य अवैध रूप से वन्यजीवों से प्राप्त वस्तुओं को रखने अथवा व्यापार करने को अवैध बनाकर मांग को कम करना है।
- उदाहरण के लिये हाथीदाँत उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने से उनके दाँतों के लिये हाथियों की हत्या को हतोत्साहित किया जाएगा।
- घरेलू विनियमों को सुदृढ़ बनाना:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, जैवविविधता अधिनियम, 2002 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 जैसे मौजूदा कानूनों को सख्त करने की आवश्यकता है।
- वन्यजीव संरक्षण कानूनों का उल्लंघन करने पर दंड को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये।
- वन्यजीव संरक्षण का प्रभावी वित्तपोषण:
- बेहतर संसाधन आवंटन के साथ प्रबंधन भी आवश्यक है, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ वित्तपोषण उपलब्ध है। धन सीधे उन सहायक संगठनों के पास जाना चाहिये जो जानवरों का संरक्षण करते हैं, जैसे कि अवैध शिकार विरोधी टीमें और पार्क रेंजर्स।
- इसके अतिरिक्त संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने और उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने से वन्यजीव अपराध को रोकने में उनकी भागीदारी बढ़ सकती है।
- जन जागरूकता एवं सशक्तीकरण:
- वन्यजीव तस्करी के परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। वन्यजीवों के मूल्य के साथ-साथ अवैध उत्पादों के प्रभाव के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने से मांग में कमी आ सकती है।
- यह ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों को अधिकारियों की संदिग्ध गतिविधि की रिपोर्ट करने हेतु प्रोत्साहित करता है।
भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिये विधिक ढाँचे क्या हैं?
- वन्यजीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने वनों और जंगली जानवरों और पक्षियों के संरक्षण के विषय को केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के दायरे में शामिल किया, इसे राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्व में अनुच्छेद 48 A यह आदेश देता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने और देश के जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों तथा वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।
- विधिक ढाँचा:
- वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयास जिसमें भारत एक पक्ष है:
दृष्टि मेन्स प्रश्न: वन्यजीव तस्करी से निपटने में चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डालते हुए 2024 विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये भारत के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न: 'वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लोरा इन कॉमर्स / TRAFFIC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 (b) केवल 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. तटीय रेत खनन, चाहे वैध हो या अवैध, हमारे पर्यावरण के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है। विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए भारतीय तटों पर रेत खनन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2019) |